Monday, April 27, 2020

हिंदुओं ने अपने संघर्ष को आउटसोर्स कर दिया है

देश के अधिकांश हिंदुओं ने अपने वाजिब अधिकारों के लिए संघर्ष को आउटसोर्स कर दिया है।
• किसको आउटसोर्स किया है? भाजपा को।
• कैसे किया है? वोट देकर।
• फिर भाजपा किससे संघर्ष करेगी? जहाँ तक राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू-हित रक्षा की बात है, जाहिर है भाजपा 'खुद से ही संघर्ष' करेगी क्योंकि पिछले छह सालों से केंद्र में उसी की सरकार है। यही बात राज्य स्तर भी लागू होगी अगर संबंधित राज्य भाजपा या उसके गठबंधन द्वारा शासित है। लेकिन जिस राज्य में वह विपक्ष में है वहाँ उस राज्य सरकार से संघर्ष करेगी जो 'ख़ुद' से संघर्ष करने से कहीं आसान है।
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अन्य पार्टियों की तरह भाजपा भी 135 साल पुरानी हिंदू-विरोधी कांग्रेस पार्टी का ही एक संस्करण है लेकिन किसी भी अन्य पार्टी से वह यानी भाजपा कम हिंदू-विरोधी है। यह भी कि इन सभी पार्टियों के हिंदू-विरोधी चरित्र का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इनकी राजनीति का मूलमंत्र है: हिंदू तोड़ो मुस्लिम जोड़ो। उदाहरण स्वरुप नितांत अन्यायपूर्ण क़ानून SC -SC ACT के समाजतोड़क पहलुओं को लागू करने को लेकर कांग्रेस और भाजपा में गलाकाट प्रतियोगिता।
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गौरतलब है कि फ़िलवक़्त भाजपा एक विशिष्ट स्थिति में है क्योंकि कांग्रेस आज 1947 वाली मुस्लिम लीग बन चुकी है और अन्य सेकुलर दलों का भी यही हाल है। इन दलों का हिंदू-विरोध इतना नंगा है कि भाजपा का क़ानून सम्मत नैसर्गिक हिंदू-विरोध अक्सर पूरी तरह पहचान में नहीं आ पाता। लेकिन उत्तरप्रदेश इसका (भाजपा के नैसर्गिक हिंदू-विरोध का) इस अर्थ में आंशिक अपवाद है कि यहाँ भाजपा से ज्यादा एक हठयोगी संन्यासी आदित्यनाथ की सरकार है।
■ उपरोक्त संदर्भ में पहला सवाल है कि हिंदुओं का अपने संघर्ष को आउटसोर्स करना उचित है क्या? उत्तर है 'नहीं'।
■ दूसरा सवाल है कि आउटसोर्सिंग एजेंसी भाजपा ने अपना दायित्व ठीक से निभाया है क्या? इसका भी उत्तर है 'नहीं' ।
हालाँकि दोनों ही सवालों का उत्तर 'ना' है लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि फिलहाल 'घटले नाती दामाद' वाला मामला है।
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उपरोक्त स्थिति को समझने के लिए निम्न घटनाओं पर भाजपा के रिस्पांस का तुलनात्मक अध्ययन दिलचस्प होगा:
• लॉकडाउन के दौरान पटना के खाजेकलां में NCC कैडेट सन्नी गुप्ता की एक मुसलमान पडोसी द्वारा हत्या;
• झारखंड में एक हिंदू फल विक्रेता पर मुकदमा;
• पालघर में दो संतों और उनके सारथी की हत्या;
• पुणे में एक मुस्लिम डिलीवरी ब्वाय से संक्रमण के डर से सामान नहीं लेनेवाले हिंदू ग्राहक के खिलाफ केस;
• पालघर मामले में सोनिया गाँधी से सवाल पूछनेवाले पत्रकार अर्नब गोस्वामी की पुलिस हिरासत में घंटों पूछताछ; और,
• भारत में कोरोना जिहाद की सूत्रधार संस्था 'तबलीगी जमात' के नाम की जगह Single Source का लिखा जाना।
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हिंदुओं द्वारा अपने संघर्ष की आउटसोर्सिंग अनुचित है और यह उनके अभिजात वर्ग की बौद्धिक गुलामी का परिचायक भी है। यह भी कि भाजपा नामक BPO एजेंसी भी अपना काम ठीक से नहीं कर रही है और ऐसा वह ठसक के साथ कर रही है क्योंकि उसे पता है कि फिलहाल हिंदू अभिजात वर्ग विकल्पहीन है।
■ अब तीसरा सवाल यह है कि क्या भाजपा को लेकर हिंदू समाज की यह विकल्पहीनता सचमुच वास्तविक है? इसका भी उत्तर है 'नहीं' क्योंकि विकल्पहीनता का यह बोध हिंदू अभिजात वर्ग की बौद्धिक कायरता से पैदा हुआ है न कि ज़मीनी स्थितियों से। ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि अधिसंख्य हिंदू आबादी गाँवों में रहती है जो सैकड़ों सालों से विकट संघर्षों का वरण करती आई है और सही रास्ता दिखाने पर वह सड़क पर उतरकर संघर्ष करने में ज़रा भी नहीं हिचकेगी। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि सैकड़ों सालों की इस्लामी-अंग्रेजी बर्बरता के बावजूद वह आज भी हिंदू ही है।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

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