नारी विमर्श से पुरुष का निष्कासन यानी शुभ-लाभ धंधा-पानी
किताबों के विश्वविद्यालय से निकले मैकाले-मानस- संतानों ने जीवन के विश्वविद्यालय का बंटाधार कर दिया है।किताबों की मजबूरी है जीवन के किसी एक पहलू को एक बार उठाना। मैकाले संतानें एक ही पक्ष को सबकुछ मान धरना पर बैठ जाती हैं कि जीवन फलाँ की लिखी फलाँ किताब जैसा क्यों नहीं है!
जार्ज फर्नांडीस को ऐसे लोगों के बारे में 1989 में
जेएनयू की एक रात्रिसभा (सतलज छात्रावास) में कहते सुना था: They are the last to learn( उनकी अक्ल का बल्ब सबसे बाद में जलता है).
ऐसे ही लोगों ने नारी विमर्श को पुरुष से विच्छिन्न कर उसे नारी बनाम पुरुष के विवाद में तब्दील कर दिया है।इससे एक लाभ तो जरूर है: कुछ लोगों की दुकान चल पड़ी है।
इसे कहते शुभ-लाभ!
इस पर बेहतरीन पोस्ट किया है Gunjan Sinha ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पेज पर।
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