Thursday, September 24, 2015

कद्दू-ईद-वादी के नाम एक बकरा-ईद-वादी का ख़त

कद्दू-ईद-वादी सुमंत भट्टाचार्य जी के नाम एक बकरा-ईद-वादी भूतपूर्व सेकुलर-वामी-सामी का ख़तः

आदरणीय सुमंत दादा,
नमस्कार।आगे का हवाल यह है कि जबसे आपने ये कद्दूवादी आंदोलन चलाया है तब से मेरी  बुद्धि, मेरा विवेक और मेरा मन सब मेरे पेट की तीर्थयात्रा पर निकल गए हैं । बकरे की जगह कद्दू काटना तो एकदम से शाकाहार हो गया।फिर तो इसे कद्दू ईद कहेंगे?

मेरी मनःस्थिति भाँप मेरे मित्र #सेकुलरदास ने मुझे #घरवापसी का निमंत्रण भी दे दिया है और यहाँ तक  कह दिया है कि धन-धान्य की कोई कमी नहीं होगी क्योंकि अब वामी खजाने का जिम्मा #सोवियत विघटन के बाद
#ईसाई_मिशनरियों को दे दिया गया है ।
आप मेरी बात समझ रहे हैं न? मैं बहुत दुविधा में हूँ फिर भी हिचकिचाते-हिचकिचाते अपने मन की बात आपके सामने रख रहा हूँ:

* पहले #ब्राह्मण बिना #बलि दिए रहते नहीं थे लेकिन बाद में बलि को लगभग त्याग दिया कुछ क्षेत्रीय अपवादों को छोड़कर।
उन्हें महात्मा #बुद्ध के #अहिंसा वादी दर्शन का लाभ मिला।

*#अरब में पिछले 2500 सालों में कोई उनके जैसा किसी को परवरदिगार ने नहीं भेजा तो इसमें उनकी क्या ग़लती।
जो मिला उसी से काम चला लिया और उसी को मान लियाः भूतो न भविष्यति।

* #अंतिम_संदेशवाहक और #अंतिम_संदेश जब पूरी दुनिया यानी जाहिल अरबों (ऐसा ही कहा है #रसूलाल्लाह ने उनके लिए) की दुनिया को सब कुछ फाइनली मिल ही गया और #भारतीय_अंकीय_प्रणाली को अरबी में अनुवाद कर उसे #अरबी_नंबर घोषित कर हम #काफिरों पर इतना उपकार कर ही दिया, तो अब क्या अरबी खुरासान के लिए भारत की #नापाक ज़मीन पर #सज़दा के लिए उन्हें मजबूर करेंगे?
भाई डा त्रिभुवन सिंह जी ने भी #अल्लामा_इक़बाल के हवाले से कहा है:

हो जाए अगर शाहे #खुरासान का इशारा
सज़दा न करूँ हिन्द की #नापाक ज़मी पर।

*सेकुलरदास ने फाइनल वालों की तरफ से यह संदेशा भेजा है जिसे मैं हूबहू पेश कर रहा हूँ:

" उस ज़मीन की जिसकी संतानों की बातें गैरअंतिम या YET TO BE FINALIZED हैं, अल्लाह के वास्ते कम अज कम फाइनल वालों पर तो मत लादो काफ़िरों!

"हजारों साल पहले तुम्हारे पूर्वज (वैसे वे हमारे भी पूर्वज थे लेकिन उनकी विरासत को मानने की अनुमति इस्लाम में नहीं है)  कहते थे कि नहीं:

'वैदिक हिंसा हिंसा न भवति' ?

"फिर खेती-बारी, यातायात  और #बौद्धों के दबाव में बलि को कलि को सौंप घासफूस खाने की बात करने लगे।

"लेकिन जब हमारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,
यानी हमारे मजहबी पूर्वज #बद्दुओं के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, तो तुम सनातन अपना कार्य-व्यापार और खानपान बदलने वालों की बातें हम स्थाई और स्थापित लोग कैसे मान लें?

" मूरख को  समझाइ के  ग्यान गाँठ खुल जाए...

तौबा तौबा ! लाहौलबिलाकुवत!"।

आपका विश्वासी,
एक भूतपूर्व सेकुलर-वामी-सामी निवेदक ।

#बकरीद #शाकाहार #माँसाहार #हिन्दू #मुसलमान #भारत #हिन्दुस्तान

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