Thursday, October 22, 2015

मुद्दा पुरस्कार-लौटाऊ लेखकों के दोहरेपन का है,गोमांस नही

मुद्दा पुरस्कार-लौटाऊ लेखकों के दोहरेपन का है,गोमांस नही।अब मैं कहूँ कि ईसा मसीह ने एक लाइन मौलिक नहीं कही है और सब के सब बौद्धमत से लिया गया है तो इसका इस संदर्भ से क्या मतलब है? कोई नहीं सिवाय इसके कि यह  बहस से भटकाने का एक पुराना सेकुलर-वामी-ईसाई-इस्लामी तरीका है जिसकी ट्रेनिंग 30 साल पहले हमने पाई थी और अब मुक्त हो चुका हूँ ।
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हापुड़ में एक लड़की को बलात्कार कर जला दिया गया...
किसी लेखक की कोई प्रतिक्रिया?
दिल्ली-भागलपुर-मुंबई दंगों पर जुबान खुली?
हत्या, अपहरण, लूट, बलात्कार और खेत-घर कब्जे के शिकार लाखों कश्मीरी पंडितों के पलायन पर दो  'बोल वचन'?
लज्जा-पीके-सैटेनिक वर्सेज पर कोई धरना-प्रदर्शन?
प्रशांत पुजारी की हत्या पर कोई आवाज?
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मेरी पोस्ट इसी दोहरेपन को आईना दिखाने का विनम्र प्रयास है।
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अगर यह दोहरापन आपके काम की चीज है तो इसे डिफेंड करिये एकदम ताल ठोंककर, आपका स्वागत है।यानी खुल्लम खेल फर्रूखाबादी, सेकुलर-वामी-ईसाई-इस्लामी पाखंड नहीं ।

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