देशद्रोहियों बाहर जाओ, जेएनयू हमारा है'...
SHUT DOWN JNU नहीं , अब नारा होगा 'देशद्रोहियों बाहर जाओ, जेएनयू हमारा है'।
जेएनयू के कुछ क्रांतिकारी छात्रों ने 'संसद की हत्या' के प्रयास के दोषी अफ़ज़ल गुरू को अपना नायक माना है और कश्मीर से भारत को बाहर जाने को कहा है 'एक सांस्कृतिक कार्यक्रम' के बहाने।
अब जब एफआईआर हो गया है तो कैंपस में सरकारी दखल का स्यापा कर रहे हैं।जो कैंपस देशद्रोही पाले, उसे कैंपस कैसे माना जाएगा? यह तो 'साधु वेश में रावण आया' वाली बात हो गई।
चूँकि आजतक इन क्रांतिकारी लोगों ने सैकड़ों कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार, लाखों के पलायन और इस तरह उनके जातिनाश पर कभी जुबान नहीं खोली है , इससे जाहिर होता है कि ये पाकिस्तान परस्त भी हैं और भारत-द्रोही भी।
लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इन्हें वामपंथी-सेकुलर पार्टियों का समर्थन रहा है।ये लोग तो बस मोहरे हैं।
लश्करे तोएबा की इशरत जहाँ को नीतीश कुमार बिहार की बेटी कहते हैं लेकिन बिहार में ही पिछले तीन महीनों में महिलाओं की सरेआम हत्याओं और जंगलराज-2 पर न उन्हें कुछ कहना है न ही बाकी सेकुलर गिरोहों को।
जेएनयू एक गंभीर राष्ट्रीय बीमारी का एक लक्षण भर है, एक ऐसी बीमारी जिसके वायरस को नेहरू परिवार के सत्तामोह ने बड़े जतन से पाला है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस को जीते जी नेहरू द्वारा मृत घोषित किये जाने पर भी जेएनयू में चुप्पी रही है।इससे साफ जाहिर होता है कि जेएनयू की परिकल्पना ही नेहरू जी की याद में नेहरू जैसों के पालन-पोषण के लिए हुई थी।
सवाल है कि जेएनयू का क्या किया जाए?
बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को इसलिए जलाया था कि उसे ज्ञान से नहीं सिर्फ 'इस्लाम की तलवार' से प्यार था।क्या हम भी उसी की तरह ज्ञान-विरोधी परंपरा के वाहक वामी-इस्लामी हैं? उत्तर है 'नहीं'।
तो जेएनयू की स्थापना की साज़िश को बेनकाब किया जाए।जेएनयू के बहाने भारत की देशतोड़क और राष्ट्रविरोधी सेकुलर-वामपंथी-लिबरल राजनीति के खोखलेपन को बेनकाब किया जाए।उसके शुद्ध विज्ञान और संस्कृत अध्ययन के विभागों में बह रही राष्ट्रीयता की भावधारा को पुष्ट किया जाए ।
समाजविज्ञान और भाषा विभागों को विभाजनकारी वायरस ने जकड़ा हुआ है जबकि लगभग दर्जन भर और विभाग हैं जिनके स्वतंत्रचेता राष्ट्रवादी शिक्षक-छात्रों की संख्या सेकुलर-वामपंथी मानसिक गुलामों से बहुत ज्यादा है।
तो सही लोगों के हाथों को मजबूत करने की जरूरत है, विमर्श-जेहाद छेड़ने की जरूरत है, एकदम पिद्दी सी देशतोड़क
लाइन के बगल में बहुत बड़ी राष्ट्रीयता की लाइन खींचनी है।
और कुछ?
फिर तो ये देशघाती मूसबिल्ले बिलबिलाकर बाहर निकलेंगे और हम मूसहर इनका हिसाब बराबर कर देंगे ।
यानी SHUT DOWN JNU नहीं , अब नारा होगा 'देशद्रोहियों बाहर जाओ, जेएनयू हमारा है'।
#ShutDownJNU #NoToShutDownJNU #JNU
जेएनयू के कुछ क्रांतिकारी छात्रों ने 'संसद की हत्या' के प्रयास के दोषी अफ़ज़ल गुरू को अपना नायक माना है और कश्मीर से भारत को बाहर जाने को कहा है 'एक सांस्कृतिक कार्यक्रम' के बहाने।
अब जब एफआईआर हो गया है तो कैंपस में सरकारी दखल का स्यापा कर रहे हैं।जो कैंपस देशद्रोही पाले, उसे कैंपस कैसे माना जाएगा? यह तो 'साधु वेश में रावण आया' वाली बात हो गई।
चूँकि आजतक इन क्रांतिकारी लोगों ने सैकड़ों कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार, लाखों के पलायन और इस तरह उनके जातिनाश पर कभी जुबान नहीं खोली है , इससे जाहिर होता है कि ये पाकिस्तान परस्त भी हैं और भारत-द्रोही भी।
लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इन्हें वामपंथी-सेकुलर पार्टियों का समर्थन रहा है।ये लोग तो बस मोहरे हैं।
लश्करे तोएबा की इशरत जहाँ को नीतीश कुमार बिहार की बेटी कहते हैं लेकिन बिहार में ही पिछले तीन महीनों में महिलाओं की सरेआम हत्याओं और जंगलराज-2 पर न उन्हें कुछ कहना है न ही बाकी सेकुलर गिरोहों को।
जेएनयू एक गंभीर राष्ट्रीय बीमारी का एक लक्षण भर है, एक ऐसी बीमारी जिसके वायरस को नेहरू परिवार के सत्तामोह ने बड़े जतन से पाला है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस को जीते जी नेहरू द्वारा मृत घोषित किये जाने पर भी जेएनयू में चुप्पी रही है।इससे साफ जाहिर होता है कि जेएनयू की परिकल्पना ही नेहरू जी की याद में नेहरू जैसों के पालन-पोषण के लिए हुई थी।
सवाल है कि जेएनयू का क्या किया जाए?
बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को इसलिए जलाया था कि उसे ज्ञान से नहीं सिर्फ 'इस्लाम की तलवार' से प्यार था।क्या हम भी उसी की तरह ज्ञान-विरोधी परंपरा के वाहक वामी-इस्लामी हैं? उत्तर है 'नहीं'।
तो जेएनयू की स्थापना की साज़िश को बेनकाब किया जाए।जेएनयू के बहाने भारत की देशतोड़क और राष्ट्रविरोधी सेकुलर-वामपंथी-लिबरल राजनीति के खोखलेपन को बेनकाब किया जाए।उसके शुद्ध विज्ञान और संस्कृत अध्ययन के विभागों में बह रही राष्ट्रीयता की भावधारा को पुष्ट किया जाए ।
समाजविज्ञान और भाषा विभागों को विभाजनकारी वायरस ने जकड़ा हुआ है जबकि लगभग दर्जन भर और विभाग हैं जिनके स्वतंत्रचेता राष्ट्रवादी शिक्षक-छात्रों की संख्या सेकुलर-वामपंथी मानसिक गुलामों से बहुत ज्यादा है।
तो सही लोगों के हाथों को मजबूत करने की जरूरत है, विमर्श-जेहाद छेड़ने की जरूरत है, एकदम पिद्दी सी देशतोड़क
लाइन के बगल में बहुत बड़ी राष्ट्रीयता की लाइन खींचनी है।
और कुछ?
फिर तो ये देशघाती मूसबिल्ले बिलबिलाकर बाहर निकलेंगे और हम मूसहर इनका हिसाब बराबर कर देंगे ।
यानी SHUT DOWN JNU नहीं , अब नारा होगा 'देशद्रोहियों बाहर जाओ, जेएनयू हमारा है'।
#ShutDownJNU #NoToShutDownJNU #JNU
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