Thursday, August 25, 2016

स्टालिन, लेनिन और माओ नायक तो हिटलर क्यों नहीं?

जोसेफ स्टालिन बैंक लूटते थे, आजीविका चलाने के लिए। बाद में कम्युनिस्ट हो गए। अपनी पत्नी समेत 2 करोड़ से ज़्यादा लोगों को मौत के घाट उतारा और पूरी दुनिया के कम्युनिस्टों के प्रेरणास्रोत बन गए।

19 वीं सदी के अंतिम वर्षों में रूस के लोग अकाल से मर रहे थे। कॉमरेड लेनिन ने इस आधार पर उनकी सहायता से इनकार कर दिया कि जितना ज़्यादा लोग भूख से मरेंगे क्रान्ति की संभावना उतनी ही अधिक होगी। बाद में उन्होंने दुनिया की पहली कम्युनिस्ट सरकार क़ायम की और अक्टूबर क्रान्ति के  महानायक कहलाये।

नेता माओ ने अपने देश में सांस्कृतिक क्रान्ति की , चार करोड़ लोगों को मौत के घाट उतारा और चीन समेत  ग़रीब देशों में कम्युनिस्टों के महानायक हो गए। आज भी हिन्दुस्तान के जंगलों में क्रान्ति की अलख जगानेवाले लोग उनकी माला जपते हैं।

ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर ने महज कुछ हज़ार लोगों को अल्ला मियाँ का प्यारा बनाया और देखते-देखते अपने लोगों के दिलों पर छा गए। लेकिन नरसंहार में सामूहिक बलात्कार और सेक्स-ग़ुलाम कारोबार की छौंक लगानेवाले अबु अल बग़दादी के नायकत्व की टी आर पी को आजकल टॉप पर चल रही है।

बिहार के भागलपुर दंगों में हज़ारों लोग मारे गए। दंगाई लोग तब के  मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की पार्टी में शामिल हो गए। 1990-2005 में बिहार हत्या-अपहरण-फिरौती के मामले में अव्वल रहा। लालू प्रसाद भी चारा घोटाले में सज़ा पाकर सामाजिक न्याय के मसीहा हो गए।

अपने आसपास देखिये कि जिसे आपने अपना हीरो माना है, क्या वह उपरोक्त मानदंडों पर खरा उतरनेवाला मर्यादा पुरुष नहीं है?

नोट: द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 60 लाख से ज़्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतारनेवाले हिटलर को न जाने क्यों माओ और स्टालिन के बाद महायुद्ध-नायक का दर्ज़ा नहीं मिला। कहते हैं हिटलर के साथ इस अन्याय के लिए यहूदी-बहुल देश इस्राइल जिम्मेदार है।

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