Thursday, August 25, 2016

शान्ति के लिए हिंसा बनाम कायर-अहिंसा

शान्ति के लिए हिंसा बनाम कायर-अहिंसा

लालकिले से प्रधानमंत्री के भाषण की एक बात तोता रटंत, अनर्गल और बौद्धिक कायरता की मिसाल लगी:
इस देश में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं।

यह देश जबतक शांति और धर्म(कर्त्तव्य) के लिए हिंसा को वरेण्य मानता रहा तभी तक ज्ञान-विज्ञान-अर्थ-सम्मान में अग्रणी रहा। जिस दिन से अहिंसा अपने आपमें उद्देश्य हो गयी उस दिन से इसका पतन शुरू हो गया।

भारत के बहुमत ने कायरता की हद तक अहिंसा का महिमामंडन किया है; यहाँ तक कि आज़ादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर करनेवालों को भी हम भूला बैठे; नेताजी को जितेजी मारनेवाले लोग इस देश के कर्णधार हो गए; जो लोग अंग्रेज़ों से गलबहियां कर रहे थे उन्हीं लोगों के हाथों में हमने राजनीति-नौकरशाही-न्यायपालिका-सेना की बागडोर थमा दी। शिवाजी-गुरुगोबिंद सिंह-महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने ठग और लुटेरा बता दिया।

चूँकि देश की जनता और उसकी आज़ादी के लिए लड़नेवाले हिंसा के शिकार थे इसलिये हिंसकों के साथ हिंसा करना उन्हें अपना कर्त्तव्य लगा था; लेकिन बिना कुछ खोये आज़ादी की मलाई मारनेवालों ने हज़ारों-लाखों सेनानियों के नाम को इतिहास से मिटाने का काम किया जो देश के साथ की गई जयचंदी हिंसा थी। बाद में इन्हीं लोगों ने प्रचारित किया कि देश को "बिना खडग बिना ढाल" के ही आज़ादी मिल गई।

ऐसे जयचंद और मीर ज़ाफ़र आज देश को घुन की तरह खा रहे हैं।स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय-नौकरशाही-राजनीति-अदालतें सब जगह इन्होंने कब्ज़ा जमाया हुआ है। ये लोग ही "भारत तेरे टुकड़े होंगे"और "भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी" जैसे नारों के सूत्रधार हैं। क्या अहिंसा से इनका ईलाज़ होगा, प्रधानमंत्री जी?

कल को कोई यह सवाल कर बैठे कि अगर कश्मीर घाटी के लोग निज़ामे मुस्तफ़ा के लिए हथियाबंद होकर
सड़क पर उतर आये तो क्या आप सबको गोली मार देंगे?
प्रधानमंत्री का जवाब क्या होगा यह तो वे ही जानें, युवा भारत का जवाब कुछ ऐसा होगा:
जो गोली खाने आये हैं उन्हें गोली ही मिलेगी न!

अंग्रेज़ों के साथ खड़े लोगों ने 1940 के दशक में मजहब के नाम पर पाकिस्तान की माँग की थी और हिंसा से डरकर उनकी बात मान भी ली गई थी। लेकिन क्या इससे हिंसा रुक गई? हिन्दू-मुस्लिम दंगे बंद हो गए? हिन्दुस्तान के अंदर पाकिस्तान बनना बंद हो गया?

इसलिए यह देश अपने अधूरे सूत्रवाक्य को अब पूरा करने को बेकरार है। मानसिक ग़ुलामी की कोख से निकली बौद्धिक कायरता के परचमधारियों ने अब तक हमें आधी बात ही बतायी थी:

अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।

इसका बाकी हिस्सा है:
धर्म (कर्तव्य) की रक्षा के लिए हिंसा वरेण्य है।

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