Wednesday, December 21, 2016

'अमन की आशा' के कारोबार में अधिसंख्य अवाम हमेशा सही होती है...

'अमन की आशा' के कारोबार में अधिसंख्य अवाम हमेशा सही होती है...

पाकिस्तान की अवाम के नाम पर अमन की आशा का कारोबार करनेवाले सेकुलर यह मानकर चलते हैं कि अवाम, खासकर गैरहिन्दू,  चाहे कहीं की हो वह हमेशा सही होती है। लेकिन पाकिस्तान की बहुमत अवाम को तो ग़ज़वा-ए-हिन्द चाहिये। अगर ऐसा नहीं होता तो न सेना वहाँ सर्वेसर्वा होती और न ही जेहादियों की इतनी जबर्दस्त सामाजिक हैसियत।
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हसन निसार और असमा जहाँगीर जैसे लोग पाकिस्तान के शो पीस हैं जो पाकिस्तान की अवाम की नुमाइंदगी नहीं करते, वे बस सच बोलकर पाकिस्तान के आतंकवाद-पोषक तंत्र को लोकतांत्रिक जामा पहनाते हैं। अमेरिका में चॉम्स्की भी हैं, वैसे ही पाकिस्तान में हसन निसार भी हैं।
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भारत के अधिकांश पत्रकार अपने शैक्षणिक संस्कार से आत्म-घृणा के शिकार मानव-रोबॉट यानी मानसिक ग़ुलाम हैं। वे जयचंद से भी गए-गुजरे हैं, जहाँ तक राष्ट्रहित की बात है क्योंकि वे राष्ट्र, राज्य, देश, मजहब, धर्म  किसी भी संस्था की भारतीय सत्ता में विश्वास नहीं रखने के लिये अभिशप्त हैं।
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यूँ समझ लीजिये कि भारत के बुद्धिजीवी (सही में बुद्धिविलासी, बुद्धिवंचक, बुद्धिपिशाच या कुपढ़)  नखशिख वर्णनवाले रीतिकालीन नायिका भेद विशारद कविराजों जैसे हैं जिनका ध्यान पेट और पेट के थोड़ा नीचे चक्कर काटता रहता है।
12.12

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