सेकुलर कौन होता है? सेकुलरवाद क्या है? भक्त कौन और कैसे? (भक्त-प्रतिभक्त संवाद)
सेकुलर कौन होता है? सेकुलरवाद क्या है? भक्त कौन और कैसे?
(भक्त-प्रतिभक्त संवाद)
†††††
■ प्रोफेसर असग़र वजाहत:
बिना समझे -बूझे कुछ लोग (भक्त नहीं कहूँगा ) सेक्युलर शब्द का मन माफिक प्रयोग कर देते है।उनकी मंशा अपना डिफेन्स करना होता है और लोकतान्त्रिक शक्तियों को गाली देना होता है।बहुत जल्दी ही वे लोग लोकतंत्र का प्रयोग भी इसी रूप में करने लगेंगे।
■ देव फौज़दार:
बिना समझे बुझे कुछ लोग ( काफ़िर नही कहूंगा) सेक्युलर शब्द का मन माफिक प्रयोग कर देश की बॉट लगाने में लगे हुए हैं....जो कश्मीर मुद्दे पर तो चुप्प रहते हैं पर सर्जिकल स्ट्राइक पर बेबाकी पर उत्तर आते हैं...जो जनसँख्या कैसे घटे देश की, जैसे गंभीर मुद्दे पर कम ...और तीन तलाक़ पर गाला फाड़ कर चीखने लगते हैं....जो कसाब मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं .. और भोपाल एनकाउन्टर पर बिलबिलाने लगते हैं....जो भ्र्ष्टाचार पर कम पर नोटबंदी पर अभी तक मातम मना रहे हैं…जो शनि मंदिर में प्रवेश के लिए औरतो के हक़ के लिए लड़ते नज़र आते हैं ...मगर बुरका या पर्दा प्रथा पर इक कौम का निजी मामला कहकर मुंह पर टेप लगा लेते हैं...जो ओबैसी के नाम पर गूंगे बन जाते हैं और साध्वी का नाम ले लेकर गाला फाड़ डालते हैं ... जो जे एन यू के मामले जहाँ पकिस्तान जिंदावाद बोला गया पर गाँधी बन जाते हैं और अब्दुल्ला बनकर आज़ादी का नाम लेकर इन जे एन यू के चु.....को हीरो बना डालते हैं ...जो सिर्फ इस बात में अपने आपको को सेक्युलर बनने की ख़ुशी मनाते हैं की कैसे और किस तरह देश की ऐसी-तैसी की जाए ....जय हो सेकुलरिज्म की.....
■ मैं (प्रोफेसर वजाहत से):
सेकुलर की अवधारणा आई कहाँ से और क्यों? इतना जरूर है कि इसके जन्म से बहुत-बहुत पहले जब यहूदियों का नरसंहार उन्हीं की कोख़ से पैदा हुये ईसाई करने लगे तो वे भागकर भारत आये;
ईरान में पारसियों का नरसंहार अरब से आये शान्तिदूत करने लगे तो वे भागकर भारत आये;
मोहम्मद साहेब के परिवार के बचेखुचे लोगों को भी जब हममजहब शांतिदूतों ने ख़त्म करने की ठान ली तो वे भागकर भारत आये।
मतलब यह कि प्रताड़ित को शरण देने के लिये भारत को सेकुलर होने की जरूरत न तब थी न अब है; हाँ आज़ाद सेकुलर भारत में यह जरूर हुआ कि लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपने पुरखों के घर से इसलिए बेदख़ल होना पड़ा कि वे वहाँ अल्पसंख्यक थे।
भारत के किसी और हिस्से में (जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक थे) अल्पसंख्यक समुदायों के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ?
■ विकास मिश्र:
हम काफिर अनपढ़ हैं, पढ़े लिखे तो केवल वज़ाहत साहब ही हैं।
■ देव फौज़दार:
घुटनो पर टिके हुए लोग ,
सुविधा पर बिके हुए लोग।
बरगद पर उठाते हैं उँगलियाँ ,
गमलों में उगे हुए लोग।
■ डॉ कर्मेंदु शिशिर:
सबसे दुष्कर काम जड़ को सचेत करना होता है।हमारा.देश बहुत बड़े जाहिलों के पाले में पड़ गया है।
■ मैं (डॉ शिशिर से):
प्रणाम। आपकी बात से लगता है कि पहले यह समझदारों के हाथों था। चूँकि भाषा का अवाम से गहरा रिश्ता है इसलिए मैं समझता हूँ कि इन समझदारों की भाषा-दृष्टि जरूर जनोन्मुखी रही होगी जिसकी जानकारी भले मुझे नहीं है।
दूसरी बात, जड़ को चेतन बनाने की है।
दार्शनिक दृष्टि से क्या यह सही नहीं कि ख़ुदा की अवधारणा को छोड़ इस्लाम और साम्यवाद में अद्भुत समानतायें हैं:
जिहाद @वर्गसंघर्ष
मुसलमान @सर्वहारा
काफ़िर वाजिबुल क़त्ल @ प्रतिक्रियावादियों का सफ़ाया
काफ़िर @बुर्जुआ
ज़न्नत @वर्गविहीन समाज ?
ये सारी अवधारणाएँ अंततः चेतन को भी जड़ बनाने के लिए इस्तेमाल होती आई हैं, वो तो मनुष्य का स्वभाव है कि हर हाल में अपने लिए जगह बना लेता है , लेकिन इसका क्रेडिट इन घृणा-केंद्रित दर्शनों को तो नहीं ही दिया जा सकता।
■ तत्वदर्शी सत्यप्रिय (प्रोफेसर वजाहत से):
सेक्युलर का अर्थ क्या है ?
■ राजीव गिल(प्रोफेसर वजाहत से):
चलिये आप ही बता दीजिये कि सेक्युलर का क्या अर्थ है।
■ प्रोफेसर वजाहत:
राज्य किसी धर्म को राज्यधर्म नहीं मानता और देशवासियों को उनके अपने धर्म पर चलने की आज़ादी देता है।यह सेक्युलर होना है।
■ राजीव गिल:
नागरिकों को उनके धर्म पर चलने की आजादी मिलना ये सेक्युलर की परिभाषा है? मतलब मेरा धर्म अगर ये कहता है कि अपने धर्म के अलावा अन्य सभी धर्मों को मानने वालों को घेर घेर कर मारो उनके खिलाफ जेहाद करो ।सब अपने अपने मजहब की मानो सबको छूट है ।मजहब के ऊपर कोई कानून नहीं है?
■ प्रोफेसर वजाहत:
राजीव जी आप सच्चे भक्त हैं।आपकी भाषा बता रही है।
■ तत्वदर्शी सत्यप्रिय:
वजाहत भाई, यह परिभाषा अधूरी है ,आप विद्वान है लेखन में सिद्धहस्त किन्तु धर्म और सम्प्रदाय या पंथ का भेद नहीं समझ रहे।
■ प्रोफेसर वजाहत:
ये काम आप ही करें।
■ तत्वदर्शी:
रात्रि तक लिखूंगा, अभी व्यस्त हूं।
■ राजीव गिल:
राज्य किसी मजहब को नहीं मानता, हर नागरिक को उसके कानूनी मानवाधिकारों के साथ चलने की आजादी देता है।राज्य ये नहीं देखता की कोई हिन्दू है या मुस्लिम उसकी नजर में सबके अधिकार बराबर हैं।ये ही सेक्युलरिज्म है।
■ मैं (प्रोफेसर वजाहत से):
उसे मजहब, दीन या रिलिजन कहते हैं, धर्म नहीं। धर्म का संबंध कर्त्तव्य से होता है जैसे अपने देश, राष्ट्र, समाज, मित्र, पड़ोसी, परिवार, संतान और छात्र-छात्राओं के प्रति आपके भिन्न-भिन्न कर्त्तव्य हैं।
*
इसीलिए कहते हैं मित्र धर्म, पितृ धर्म, पुत्र धर्म, पति धर्म , शिक्षक धर्म आदि।
सेकुलर की अवधारणा यूरोपीय है जहाँ चर्च के ही हाथ में सारी सत्ता थी और जो अपने अंदर -बाहर के किसी भी तरह के विरोध या वैभिन्य के खिलाफ बेहिचक एवं बेहिसाब हिंसा का इस्तेमाल करता था।
*
उसी चर्च से प्रभावित होने और सगोत्रीय होने के कारण इस्लाम आज भी अपने मूल में सत्ताप्राप्ति के लिये एक विचारधारा ज़्यादा है और दीन कम (स्रोत: Allah is dead: Islam is not a religion , Rebecca)।
*
पुनर्जागरण के कारण यूरोप में Church और State को Seclude करने की जरूरत को अमली जामा पहनाने के लिए Secularism की अवधारणा दी गई जबकि इस्लाम में 'अंतिम पैग़म्बर और अंतिम किताब' को अभी तक दार्शनिक धरातल पर चुनौती नहीं मिलने के कारण आईएस और तालिबान जैसे संगठनों का न सिर्फ उद्भव होता है बल्कि दुनियाभर से उन्हें समर्थन मिलता है; भारत के बँटवारे की भी असली वजह यही थी।
*
चूँकि ईसाइयत और इस्लाम दोनों ही मूल रूप से सामी मजहब हैं , इसलिए इस्लामी और क्रिस्तानी राज्यों में Secularism की घोर जरूरत है, हिन्दुस्तान में नहीं जहाँ राज्य की मजहबी परंपरा नहीं थी; हाँ धर्म की नैतिक सत्ता थी जिसे राजधर्म कहा जाता था और जो और कुछ नहीं अपनी प्रजा के लिए राजा का कर्त्तव्य भर था।
*
यही वजह है कि संविधान निर्माताओं ने मूल स्वीकृत संविधान में डालना इसे गैरज़रूरी समझा। 1970 के दशक में मुस्लिम लीग और सीपीआई से समझौते के बाद इंदिरा गाँधी ने संविधान के प्रिअम्बल में इसे घुसवाया था।
■ मैं:
"यूरोप-अमेरिका के ईसाई एकदम से सेकुलर हैं, है न ?"
"हाँ, वहाँ किसी और को उन्होंने छोड़ा ही नहीं जिनके साथ कम्युनल होने की नौबत आती।"
*
"इस्लामी देशों के लोग भी सेकुलर होते होंगे?"
" हैं तो नहीं लेकिन हो जाएंगे।"
"कब तक ?"
"जब दुनियाभर के गैरमुसलमानों को वे जेहाद करके मुसलमान बना देंगे।"
*
" और हिन्दू लोग सेकुलर हैं कि नहीं?"
"वे स्वभाव से ही कम्युनल हैं।"
"सो कैसे?"
"उन्हें किसी कम्युनिटी के साथ रहने में परेशानी नहीं है।"
"अगर उस कम्युनिटी को उनसे परेशानी हुई तो?"
"अव्वल तो वे उस जगह को ही छोड़ देते हैं और जगह नहीं छोड़ पाए तो बहू-बेटियों की ख़ातिर अपना हिन्दू होना ही छोड़ देते हैं।"
"जैसे?"
"पाकिस्तान - बांग्लादेश के हिन्दू मुसलमान बन गए और कश्मीर घाटीवाले अपने ही देश में शरणार्थी।"
■ प्रोफेसर वजाहत:
इस्लामोफोबिया के मरीज़ का कोई इलाज नहीं है।
■ मैं:
वजाहत साहेब, जब सॉफ्टवेयर अपडेट नहीं होता तो हार्डवेयर हैंग हो जाता है। 2016 में MS700 थोड़े न चलेगा। लेकिन यह कहने के लिये सवाल पूछने की ताक़त चाहिये जिसे अंतिम किताब और अंतिम पैग़म्बर की अवधारणा के नाम स्वाहा कर दिया गया है।
अगर ऐसा नहीं है तो इस्लाम समेत दुनिया के हर मजहब को आज की दुनिया के हिसाब से किन-किन सवालों से रूबरू होना चाहिये ताकि हर इंसान बिना दूसरे को परेशानी में डाले चैन से जी सके?
सम्भव है वे सवाल आप पहले भी पूछ चुके हों, यहाँ उन्हें मेरे अज्ञान के अंधकार को मिटाने के लिए फिर से लिख दीजिये क्योंकि आपका तो मूल धर्म लेखक-धर्म ही है न?
14.12
(भक्त-प्रतिभक्त संवाद)
†††††
■ प्रोफेसर असग़र वजाहत:
बिना समझे -बूझे कुछ लोग (भक्त नहीं कहूँगा ) सेक्युलर शब्द का मन माफिक प्रयोग कर देते है।उनकी मंशा अपना डिफेन्स करना होता है और लोकतान्त्रिक शक्तियों को गाली देना होता है।बहुत जल्दी ही वे लोग लोकतंत्र का प्रयोग भी इसी रूप में करने लगेंगे।
■ देव फौज़दार:
बिना समझे बुझे कुछ लोग ( काफ़िर नही कहूंगा) सेक्युलर शब्द का मन माफिक प्रयोग कर देश की बॉट लगाने में लगे हुए हैं....जो कश्मीर मुद्दे पर तो चुप्प रहते हैं पर सर्जिकल स्ट्राइक पर बेबाकी पर उत्तर आते हैं...जो जनसँख्या कैसे घटे देश की, जैसे गंभीर मुद्दे पर कम ...और तीन तलाक़ पर गाला फाड़ कर चीखने लगते हैं....जो कसाब मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं .. और भोपाल एनकाउन्टर पर बिलबिलाने लगते हैं....जो भ्र्ष्टाचार पर कम पर नोटबंदी पर अभी तक मातम मना रहे हैं…जो शनि मंदिर में प्रवेश के लिए औरतो के हक़ के लिए लड़ते नज़र आते हैं ...मगर बुरका या पर्दा प्रथा पर इक कौम का निजी मामला कहकर मुंह पर टेप लगा लेते हैं...जो ओबैसी के नाम पर गूंगे बन जाते हैं और साध्वी का नाम ले लेकर गाला फाड़ डालते हैं ... जो जे एन यू के मामले जहाँ पकिस्तान जिंदावाद बोला गया पर गाँधी बन जाते हैं और अब्दुल्ला बनकर आज़ादी का नाम लेकर इन जे एन यू के चु.....को हीरो बना डालते हैं ...जो सिर्फ इस बात में अपने आपको को सेक्युलर बनने की ख़ुशी मनाते हैं की कैसे और किस तरह देश की ऐसी-तैसी की जाए ....जय हो सेकुलरिज्म की.....
■ मैं (प्रोफेसर वजाहत से):
सेकुलर की अवधारणा आई कहाँ से और क्यों? इतना जरूर है कि इसके जन्म से बहुत-बहुत पहले जब यहूदियों का नरसंहार उन्हीं की कोख़ से पैदा हुये ईसाई करने लगे तो वे भागकर भारत आये;
ईरान में पारसियों का नरसंहार अरब से आये शान्तिदूत करने लगे तो वे भागकर भारत आये;
मोहम्मद साहेब के परिवार के बचेखुचे लोगों को भी जब हममजहब शांतिदूतों ने ख़त्म करने की ठान ली तो वे भागकर भारत आये।
मतलब यह कि प्रताड़ित को शरण देने के लिये भारत को सेकुलर होने की जरूरत न तब थी न अब है; हाँ आज़ाद सेकुलर भारत में यह जरूर हुआ कि लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपने पुरखों के घर से इसलिए बेदख़ल होना पड़ा कि वे वहाँ अल्पसंख्यक थे।
भारत के किसी और हिस्से में (जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक थे) अल्पसंख्यक समुदायों के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ?
■ विकास मिश्र:
हम काफिर अनपढ़ हैं, पढ़े लिखे तो केवल वज़ाहत साहब ही हैं।
■ देव फौज़दार:
घुटनो पर टिके हुए लोग ,
सुविधा पर बिके हुए लोग।
बरगद पर उठाते हैं उँगलियाँ ,
गमलों में उगे हुए लोग।
■ डॉ कर्मेंदु शिशिर:
सबसे दुष्कर काम जड़ को सचेत करना होता है।हमारा.देश बहुत बड़े जाहिलों के पाले में पड़ गया है।
■ मैं (डॉ शिशिर से):
प्रणाम। आपकी बात से लगता है कि पहले यह समझदारों के हाथों था। चूँकि भाषा का अवाम से गहरा रिश्ता है इसलिए मैं समझता हूँ कि इन समझदारों की भाषा-दृष्टि जरूर जनोन्मुखी रही होगी जिसकी जानकारी भले मुझे नहीं है।
दूसरी बात, जड़ को चेतन बनाने की है।
दार्शनिक दृष्टि से क्या यह सही नहीं कि ख़ुदा की अवधारणा को छोड़ इस्लाम और साम्यवाद में अद्भुत समानतायें हैं:
जिहाद @वर्गसंघर्ष
मुसलमान @सर्वहारा
काफ़िर वाजिबुल क़त्ल @ प्रतिक्रियावादियों का सफ़ाया
काफ़िर @बुर्जुआ
ज़न्नत @वर्गविहीन समाज ?
ये सारी अवधारणाएँ अंततः चेतन को भी जड़ बनाने के लिए इस्तेमाल होती आई हैं, वो तो मनुष्य का स्वभाव है कि हर हाल में अपने लिए जगह बना लेता है , लेकिन इसका क्रेडिट इन घृणा-केंद्रित दर्शनों को तो नहीं ही दिया जा सकता।
■ तत्वदर्शी सत्यप्रिय (प्रोफेसर वजाहत से):
सेक्युलर का अर्थ क्या है ?
■ राजीव गिल(प्रोफेसर वजाहत से):
चलिये आप ही बता दीजिये कि सेक्युलर का क्या अर्थ है।
■ प्रोफेसर वजाहत:
राज्य किसी धर्म को राज्यधर्म नहीं मानता और देशवासियों को उनके अपने धर्म पर चलने की आज़ादी देता है।यह सेक्युलर होना है।
■ राजीव गिल:
नागरिकों को उनके धर्म पर चलने की आजादी मिलना ये सेक्युलर की परिभाषा है? मतलब मेरा धर्म अगर ये कहता है कि अपने धर्म के अलावा अन्य सभी धर्मों को मानने वालों को घेर घेर कर मारो उनके खिलाफ जेहाद करो ।सब अपने अपने मजहब की मानो सबको छूट है ।मजहब के ऊपर कोई कानून नहीं है?
■ प्रोफेसर वजाहत:
राजीव जी आप सच्चे भक्त हैं।आपकी भाषा बता रही है।
■ तत्वदर्शी सत्यप्रिय:
वजाहत भाई, यह परिभाषा अधूरी है ,आप विद्वान है लेखन में सिद्धहस्त किन्तु धर्म और सम्प्रदाय या पंथ का भेद नहीं समझ रहे।
■ प्रोफेसर वजाहत:
ये काम आप ही करें।
■ तत्वदर्शी:
रात्रि तक लिखूंगा, अभी व्यस्त हूं।
■ राजीव गिल:
राज्य किसी मजहब को नहीं मानता, हर नागरिक को उसके कानूनी मानवाधिकारों के साथ चलने की आजादी देता है।राज्य ये नहीं देखता की कोई हिन्दू है या मुस्लिम उसकी नजर में सबके अधिकार बराबर हैं।ये ही सेक्युलरिज्म है।
■ मैं (प्रोफेसर वजाहत से):
उसे मजहब, दीन या रिलिजन कहते हैं, धर्म नहीं। धर्म का संबंध कर्त्तव्य से होता है जैसे अपने देश, राष्ट्र, समाज, मित्र, पड़ोसी, परिवार, संतान और छात्र-छात्राओं के प्रति आपके भिन्न-भिन्न कर्त्तव्य हैं।
*
इसीलिए कहते हैं मित्र धर्म, पितृ धर्म, पुत्र धर्म, पति धर्म , शिक्षक धर्म आदि।
सेकुलर की अवधारणा यूरोपीय है जहाँ चर्च के ही हाथ में सारी सत्ता थी और जो अपने अंदर -बाहर के किसी भी तरह के विरोध या वैभिन्य के खिलाफ बेहिचक एवं बेहिसाब हिंसा का इस्तेमाल करता था।
*
उसी चर्च से प्रभावित होने और सगोत्रीय होने के कारण इस्लाम आज भी अपने मूल में सत्ताप्राप्ति के लिये एक विचारधारा ज़्यादा है और दीन कम (स्रोत: Allah is dead: Islam is not a religion , Rebecca)।
*
पुनर्जागरण के कारण यूरोप में Church और State को Seclude करने की जरूरत को अमली जामा पहनाने के लिए Secularism की अवधारणा दी गई जबकि इस्लाम में 'अंतिम पैग़म्बर और अंतिम किताब' को अभी तक दार्शनिक धरातल पर चुनौती नहीं मिलने के कारण आईएस और तालिबान जैसे संगठनों का न सिर्फ उद्भव होता है बल्कि दुनियाभर से उन्हें समर्थन मिलता है; भारत के बँटवारे की भी असली वजह यही थी।
*
चूँकि ईसाइयत और इस्लाम दोनों ही मूल रूप से सामी मजहब हैं , इसलिए इस्लामी और क्रिस्तानी राज्यों में Secularism की घोर जरूरत है, हिन्दुस्तान में नहीं जहाँ राज्य की मजहबी परंपरा नहीं थी; हाँ धर्म की नैतिक सत्ता थी जिसे राजधर्म कहा जाता था और जो और कुछ नहीं अपनी प्रजा के लिए राजा का कर्त्तव्य भर था।
*
यही वजह है कि संविधान निर्माताओं ने मूल स्वीकृत संविधान में डालना इसे गैरज़रूरी समझा। 1970 के दशक में मुस्लिम लीग और सीपीआई से समझौते के बाद इंदिरा गाँधी ने संविधान के प्रिअम्बल में इसे घुसवाया था।
■ मैं:
"यूरोप-अमेरिका के ईसाई एकदम से सेकुलर हैं, है न ?"
"हाँ, वहाँ किसी और को उन्होंने छोड़ा ही नहीं जिनके साथ कम्युनल होने की नौबत आती।"
*
"इस्लामी देशों के लोग भी सेकुलर होते होंगे?"
" हैं तो नहीं लेकिन हो जाएंगे।"
"कब तक ?"
"जब दुनियाभर के गैरमुसलमानों को वे जेहाद करके मुसलमान बना देंगे।"
*
" और हिन्दू लोग सेकुलर हैं कि नहीं?"
"वे स्वभाव से ही कम्युनल हैं।"
"सो कैसे?"
"उन्हें किसी कम्युनिटी के साथ रहने में परेशानी नहीं है।"
"अगर उस कम्युनिटी को उनसे परेशानी हुई तो?"
"अव्वल तो वे उस जगह को ही छोड़ देते हैं और जगह नहीं छोड़ पाए तो बहू-बेटियों की ख़ातिर अपना हिन्दू होना ही छोड़ देते हैं।"
"जैसे?"
"पाकिस्तान - बांग्लादेश के हिन्दू मुसलमान बन गए और कश्मीर घाटीवाले अपने ही देश में शरणार्थी।"
■ प्रोफेसर वजाहत:
इस्लामोफोबिया के मरीज़ का कोई इलाज नहीं है।
■ मैं:
वजाहत साहेब, जब सॉफ्टवेयर अपडेट नहीं होता तो हार्डवेयर हैंग हो जाता है। 2016 में MS700 थोड़े न चलेगा। लेकिन यह कहने के लिये सवाल पूछने की ताक़त चाहिये जिसे अंतिम किताब और अंतिम पैग़म्बर की अवधारणा के नाम स्वाहा कर दिया गया है।
अगर ऐसा नहीं है तो इस्लाम समेत दुनिया के हर मजहब को आज की दुनिया के हिसाब से किन-किन सवालों से रूबरू होना चाहिये ताकि हर इंसान बिना दूसरे को परेशानी में डाले चैन से जी सके?
सम्भव है वे सवाल आप पहले भी पूछ चुके हों, यहाँ उन्हें मेरे अज्ञान के अंधकार को मिटाने के लिए फिर से लिख दीजिये क्योंकि आपका तो मूल धर्म लेखक-धर्म ही है न?
14.12
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home