Tuesday, December 20, 2016

देश का मूल राजनीतिक संस्कार कांग्रेसी है: बांटो और राज करो

पार्टी चाहे कोई भी हो, इस देश का मूल राजनीतिक संस्कार कांग्रेसी है यानी बांटो और राज करो। दूसरी तरफ यहाँ का वोटर अपने को नागरिक कम और वोटों का खुदरा विक्रेता ज़्यादा मानता है जिसका लाभ राजनीतिक दल उठाते हैं।

वोट बेचने वाली जनता सरकारी कृपा से कुछेक  गैरवाजिब सुविधाओं का उपभोग करने की गारंटी चाहती है। ऐसा करते वक़्त यह जनता कहीं से भी जनार्दन कहलाने लायक़ नहीं रहती; क्योंकि  वह यह भूल जाती है कि ज़रूरी या ग़ैरज़रूरी, उपयोगी या अनुपयोगी सुविधाओं की व्यक्तिगत प्राप्ति के लिए नागरिक जिम्मेदारी (सही व्यक्ति को चुनने के लिये वोट देना) की क़ुर्बानी इस देश को अंदर-अंदर खाये जा रही है।

ऐसे में चुनाव के प्रचार को चुनाव आयोग के हाथ में देकर उसे पार्टीमुक्त करने का आन्दोलन अगर नागरिक करें तभी इस मुहिम में सफलता मिल सकती है; वोटर अगर वोटों का खुदरा विक्रेता और सरकारी कृपा से प्राप्त गैरवाजिब सुविधाओं का उपभोक्ता बना रहा तो इसका मतलब होगा:
मन न रंगाये रंगाये जोगी कपरा,
दाढ़ी बढ़ाये जोगी बन गइले बकरा।

हम चाहते हैं कि नेता-कारोबारी-नौकरशाही-अपराधी का गठजोड़ ख़त्म हो लेकिन हम ख़ुद भ्रष्ट-आचार(वोट के एवज़ में अनैतिक लाभ) में लिप्त रहें, यह कैसे सम्भव है?

जिस देश की जनता अपनी नागरिक जिम्मेदारी निभाती है, उसे ही नैतिक रूप से समृद्ध सरकार मिलती है, उपभोक्ता बने वोटर क़ानून-सम्मत देशहित हंता से ज़्यादा कुछ भी नहीं।

सही मायने में वे जयचंद-मीरज़ाफ़रों से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं क्योंकि घर के भेदियों को क़ानून का साथ नहीं होता जबकि नागरिक-बोध को तिलांजलि देकर उपभोक्ता बने वोटबेचवा लोगों को क़ानून का पूरा साथ मिलता है।
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लेकिन यह समझना उनके बौद्धिक बूते का नहीं जो यह मानते हैं कि पब्लिक सबकुछ जानती है और हमेशा अच्छा ही करती है। अगर ऐसा होता तो यूरोप में हिटलर और पाकिस्तान में जेहादियों को नायकत्व नहीं मिलता।
17.12

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