किस-किस ने अंग्रेज़ों का कैसे साथ दिया?
किस-किस ने अंग्रेज़ों का कैसे साथ दिया
■ अंग्रेज़ों का साथ तो अम्बेडकर और जिन्ना ने भी दिया था। पहले विश्वयुद्ध में गाँधी ने भी दिया था, टैगोर ने भी।
■ ख़िलाफ़त आन्दोलन के रास्ते मुसलमानों को आज़ादी की लड़ाई में जोड़ने के लिए ही सही लेकिन इस तरह सांप्रदायिकता की आग में सबसे बड़ा घी का कनस्तर भी गाँधी ने डाला था।
■ कम्युनिस्ट नेता एमएन रॉय और बाबा साहेब अम्बेडकर को अंग्रेज़ों का साथ देने के लिए 13000 रुपये प्रति माह मिलते थे। डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी किसी महत्वपूर्ण अंग्रेज़विरोधी आंदोलन के हिस्सा रहे हों, मुझे संदेह है। पेरियार ताल ठोंककर अँगरेज़-भक्त थे।
■ सावरकर ने भारत के किसी भी बड़े नेता से ज़्यादा यातनाएँ सहीं थीं , 1857 को भारत का पहला संग्राम कहनेवाले वे पहले बुद्धियोद्धा थे लेकिन अंग्रेज़ों से माफ़ी माँग फिर आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय हो गए थे।
■ नेहरू तो खुले तौर पर कहते थे कि वे तो सिर्फ जन्म से भारतीय हैं, सोच से ख़ालिस यूरोपीय हैं। नेताजी की भारत में वापसी न हो इसके लिए उन्होंने बर्तानवी प्रधानमंत्री चर्चिल और एटली तथा सोवियत कम्युनिस्ट नेता स्टालिन से गुप्त समझौते किये।
■ सूची लंबी हो सकती है। हालाँकि असली सवाल है कि किस उद्देश्य से किस नेता अंग्रेज़ों का साथ दिया, इसमें देशहित प्रमुख था या उस नेता का राजनैतिक कैरियर या फिर भारत-विरोधी विचारधारा की गुलामी।
■ लेकिन 1962 के चीनी हमले का कम्युनिस्टों द्वारा ह्रदय से समर्थन तो अक्षम्य है।
3।10।16
■ अंग्रेज़ों का साथ तो अम्बेडकर और जिन्ना ने भी दिया था। पहले विश्वयुद्ध में गाँधी ने भी दिया था, टैगोर ने भी।
■ ख़िलाफ़त आन्दोलन के रास्ते मुसलमानों को आज़ादी की लड़ाई में जोड़ने के लिए ही सही लेकिन इस तरह सांप्रदायिकता की आग में सबसे बड़ा घी का कनस्तर भी गाँधी ने डाला था।
■ कम्युनिस्ट नेता एमएन रॉय और बाबा साहेब अम्बेडकर को अंग्रेज़ों का साथ देने के लिए 13000 रुपये प्रति माह मिलते थे। डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी किसी महत्वपूर्ण अंग्रेज़विरोधी आंदोलन के हिस्सा रहे हों, मुझे संदेह है। पेरियार ताल ठोंककर अँगरेज़-भक्त थे।
■ सावरकर ने भारत के किसी भी बड़े नेता से ज़्यादा यातनाएँ सहीं थीं , 1857 को भारत का पहला संग्राम कहनेवाले वे पहले बुद्धियोद्धा थे लेकिन अंग्रेज़ों से माफ़ी माँग फिर आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय हो गए थे।
■ नेहरू तो खुले तौर पर कहते थे कि वे तो सिर्फ जन्म से भारतीय हैं, सोच से ख़ालिस यूरोपीय हैं। नेताजी की भारत में वापसी न हो इसके लिए उन्होंने बर्तानवी प्रधानमंत्री चर्चिल और एटली तथा सोवियत कम्युनिस्ट नेता स्टालिन से गुप्त समझौते किये।
■ सूची लंबी हो सकती है। हालाँकि असली सवाल है कि किस उद्देश्य से किस नेता अंग्रेज़ों का साथ दिया, इसमें देशहित प्रमुख था या उस नेता का राजनैतिक कैरियर या फिर भारत-विरोधी विचारधारा की गुलामी।
■ लेकिन 1962 के चीनी हमले का कम्युनिस्टों द्वारा ह्रदय से समर्थन तो अक्षम्य है।
3।10।16
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