Sunday, December 31, 2017

हिंसा ही परम धर्म है... हिंसा से ही टिकाऊ शांति सम्भव है...

25.12.17
हिंसा ही परम धर्म है...
हिंसा से ही टिकाऊ शांति सम्भव है...

1000 सालों से धोखे-नरसंहार-लूट-अपमान के शिकार हिंदुओं को सिर्फ सात्विक हिंसा ही बचा सकती है क्योंकि अबतक अहिंसा को कायरता की हद तक महिमामंडित किया गया है।
इस सात्विक हिंसा का ही हिस्सा है सवाल पूछना...
उन घटनाओं-लोगों-स्थानों-प्रतीकों-अवधारणाओं-परिभाषाओं पर सवाल उठाना जिनके दम पर हर ग़लत चीज़ को सही साबित करने की साज़िश होती रही है...

●राम का जन्म प्रमाणपत्र माँगनेवालों के उत्सव में हम क्यों शरीक़ हों जबतक वे उनके जन्म के प्रमाणपत्र नहीं दे देते जिनका उत्सव मना रहे हैं?
●हिंदुओं के तीनों देवताओं-नायकों के जन्मस्थानों पर मस्जिदें क्यों हैं? ये मस्जिदवाले पहले आये या हमारे देवता और नायक?
●नालंदा विश्वविद्यालय को जलानेवाले के नाम पर आज भी बिहार के एक शहर (बख़्तियारपुर) का नाम क्यों है?
●भारत को दीन-हीन बनानेवाले अंग्रेज़ों की रानी के नाम पर 'विक्टोरिया मेमोरियल' क्यों है?
●हमारे प्रतीकों को अपमानित करनेवालों के उत्सव में शामिल होने की मूर्खता हम क्यों करें?
●ये सेकुलर-कम्युनल क्या बला है? इसकी उम्र क्या है? इसके पैदा होने के पहले ही भारत ने ईसाइयों के मारे यहूदियों, मुसलमानों के मारे पारसियों और एक ख़लीफ़ा के मारे पैग़म्बर मुहम्मद के परिवार को किस आधार पर ससम्मान शरण दी थी?
●हम उस गंगा-जमुनी तहजीब को क्यों मानें जो फरेब पर टिकी है, जो हमें 'प्रयाग' को 'अल्लाहाबाद'(इलाहाबाद), 'अयोध्या' को 'फैज़ाबाद', आगरा' को 'अकबराबाद', 'पटना' को 'अजीमाबाद' और 'रामसेतु' को 'एडम्स ब्रिज' कहने को मजबूर करती है?
●हम उस सांस्कृतिक समरसता को क्यों मानें जो हमारे अंदर 'स्वामीभाव' की जगह 'दास्यभाव' को मजबूत करती है, जो कबीर-रहीम-रसखान-मीर-ग़ालिब-नज़ीर की जगह हाली-इक़बाल को इस्लाम के बौद्धिक शमशीर के रूप में स्थापित करती है?
●दिल्ली में लोदी रोड की जगह कबीर रोड क्यों नहीं है?
●बाबर रोड की जगह राणा सांगा रोड क्यों नहीं है?
●अकबर रोड की जगह राणा प्रताप रोड क्यों नहीं है?
●फिर हम ऐसे व्यक्ति को अपना नायक क्यों माने जो गर्व से कहता था: 'मैं तो मन से यूरोपीय हूँ और सिर्फ तन से भारतीय' ? भले ही वह व्यक्ति देश का पहला प्रधानमंत्री क्यों न हो?
●हमारे नायक हम तय करेंगे कि हमारे दुश्मन? आज़ादी 70 सालों बाद भी हमारे दिलोदिमाग पर हमारे दुश्मन क्यों हावी हैं?
●हम इन दुश्मन-विचारों की चीरफाड़ क्यों नहीं करते?
●उच्चशिक्षा प्राप्त भारतीयों के हिन्दू-द्वेषी, देशहित-विरोधी और मानसिक ग़ुलाम होने का ख़तरा क्यों रहता है?
●अक्सर विज्ञान के विद्यार्थी राष्ट्रवादी और समाजविज्ञानों-साहित्य के विद्यार्थी राष्ट्रद्वेषी क्यों हो जाते हैं?
●गाँव की एक अनपढ़ बुजुर्ग महिला क्यों कहती है:
'जे जेतना पढ़ुआ उ ओतना भड़ुआ' ?

आज जो हमारे सवालों से बिलबिलाये हैं वे हमें नेस्तनाबूद करनेवालों को अपने नायक मानते हैं जो एक बौद्धिक हिंसा है। हमारे सवाल फिलहाल तो बौद्धिक प्रतिहिंसा या आत्मरक्षार्थ ही हैं लेकिन कल को इन्हें और भेदक और लेज़र-धर्मी होना पड़ेगा।
लब्बोलुआब यह है कि हिंसा और हिंसा ही टिकाऊ अहिंसा और शांति की गारंटी है न कि बौद्धिक-कायरता जनित अहिंसा।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home