Sunday, August 9, 2020

जिन्ना, गाँधी और आज का संघ

जिन्ना पोर्क खाते थे लेकिन मुसलमानों के पक्के ईमानदार वकील थे। गाँधी खुद को सनातनी हिंदू कहते थे लेकिन 1920-22 के खिलाफत आंदोलन और 1946-48 में भारत-विभाजन के दौरान जिहादी हितों की रक्षा करते एक हिंदूयोद्धा की गोली का शिकार हुए। उनका व्यवहार वैसे ही था जैसे बलात्कार पीड़ित समुदाय का कोई वकील बलात्कारी से ही बलात्कार-पीड़िताओं के चरित्र प्रमाण-पत्र लेने की बात करने लग जाए! गाँधी के इस हिंदू-घाती आचरण की प्रतिध्वनि है संघ-स्थापित 'मुस्लिम मंच'। सुप्रीम कोर्ट में 

 राममंदिर मामले में हिंदू पक्ष की जीत पर हिंदुओं से खुशी न मनाने की अपील तो उससे भी ज्यादा हिंदू-घाती उदाहरण है क्योंकि यह जीत  सदियों की इस्लामी बर्बरता पर लाखों हिंदू बलिदानियों के संघर्ष की विजय थी।

इससे यह भी जाहिर होता है कि  सरकारी राष्ट्रवादी गिरोह सनातन की पुनर्प्रतिष्ठा की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित होगा, कम्युनिस्ट-जिहादी-मिशनरी गिरोह से भी ज्यादा। आश्चर्य नहीं अगर ये दोनों गिरोह धर्मनिष्ठ हिंदू योद्धाओं के विरुद्ध हाथ भी मिला लें।

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