Thursday, September 24, 2015

बकरीद मुबारक!

बकरीद मुबारक!
पूरे दिन की बुकिंग हो चुकी है , इसलिए खाना-खिलाना और बधाई सब सिर्फ वर्चुअल दुनिया में होगा।
और वादा कि आज मैं सेकुलर-वामी-सामी पर कुछ बोलूँगा नहीं...एकदम नहीं।
और ये कोई अल्लामा इक़बाल के तरानों की तरह नहीं
कि एक दिन चले---
"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा"

फिर किसी और दिन ---
"सज़दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मीन पर"।
शब्बा ख़ैर,
एक काफ़िर ।

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