Thursday, October 8, 2015

कैसा है शमशान देख ले, चल मेरा खलिहान देख ले...

"कैसा है शमशान देख ले, चल मेरा खलिहान देख ले।
अगर देखना है मुर्दा , तो चलकर एक किसान देख ले ।।"

अंग्रेज़ों ने किसानों का क्या हाल किया था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1750 से 1800 के बीच 10 प्रतिशत आबादी काल कवलित हो गई।1942-45 के बीच 40 लाख बंगालियों को भूखों मार दिया गया।दिल्ली के पंजाबियों में एक मुहावरा है  'बंगाली भूक्खड़' जो इसी अकाल की देन है ।
उधर महामानव अंग्रेज़,  कम्युनिस्ट स्टालिन (जिसने खुद दो करोड़ देशवासियों को जनहित में मारा!) और भारतीय वामियों की मदद से नाज़ी-फासीवादी हिटलर-मुसोलिनी से लड़ने में व्यस्त थे।इसमें मानवता के परमपुजारी कामरेड एम एन राय भी शामिल थे।
खास जानकारी के लिए इंतजार कीजिए Tribhuwan Singh की किताब The Economics of Untouchablity in India (1750-1947)।
इस बीच अगर कंट्रोल न हो तो पढ़िये Will Durant की किताब THE CASE FOR INDIA (1947)।
अंग्रेज़ों के साथ सेकुलर-वामी-सामी गठजोड़ का कच्चा चिट्ठा खोलती किताब।जाहिर है अंग्रेज़ों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था।

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