Tuesday, February 23, 2016

मुस्लिम कट्टरपंथियों और कम्युनिस्टों का गठजोड़ -1

मुस्लिम कट्टरपंथियों और कम्युनिस्टों के गठजोड़ पर एक टिप्पणीः
"मुहम्मद अली जिन्ना और एस.ए. डांगे सबसे पहले उदाहरण हैं (वैसे मुहम्मद अली और मोहनदास गाँधी की मुहब्बत भी ठीक उसी श्रेणी की है)। - मुस्लिम-कम्युनिस्ट सहयोग पुरानी बीमारी है। मगर एकतरफा। लक्ष्य प्राप्त कर लेने के बाद इस्लामी सत्ता कम्युनिस्टों को क्रूरतापूर्वक खत्म करती है। पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान... सब कहीं यही कथा है।
मगर जेएनयू में रोमिला थापर, बिपनचंद्र आदि ने क्लासिक कम्युनिस्ट परंपरा में असुविधाजनक इतिहास पर ही पर्दा डालकर रंगरूट रेडिकल बनाए हैं। नतीजा वही नागपाश का मोह... यदि जेएनयू आजाद मुल्क हो गया, तो बेफिक्र रहिए, सारे गैर-इस्लामी रेडिकल एक साल के अंदर मारे जाएंगे या खुद भाग खड़े होंगे। वे भगत सिंह का नाम भर जपते हैं, मरने की तमन्ना होती तो तस्लीमा को बुलाकर उस के सेक्यूलर, नारीवादी, मुक्तिकामी, स्वतंत्रचेता जीवट की जयकार करते।

जेएनयू की सारी रेडिकलिज्म चारदीवारी की सुरक्षा के कारण है। चारदीवारी ढाह दो! केवल मुनीरका के दस-बीस जाट छोकरे उन्हें अच्छा बच्चा बना देंगे..."
( डा Shankar Sharan की टिप्पणी।)

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