Saturday, February 27, 2016

दुर्गा को वेश्या कहनेवालों की साज़िश को पहचानिये


अपने छोटे-मोटे स्वार्थों (स्कालरशिप, विदेश यात्रा आदि) के लिए अनेक स्वयंभू #दलित नेता #ईसाई_मिशनरियों के गढ़े
कुचक्र में फँसते जा रहे हैं।इसी कुचक्र का हिस्सा है #मूलनिवासी  / #आदिवासी की अवधारणा जिसके फर्जीवारे को और पुष्ट करने के लिए आजकल #महिषासुर को 'मूलनिवासी' और #दुर्गा को '#रंडी' या '#सेक्सवर्कर' कहा जा रहा है।
लेकिन इसमें कुछ भी नया नहीं है।
हमें पता है कि  ईसाई मिशनरियों ने 19-20 वीं सदी  में  वैमनस्य फैलानेवाली और हिन्दुओं को बाँटने के लिए ऐसी किताब लिखी।उनमें एक का नाम है  Sherring.
#ईसा मसीह #कुमारी #मरियम से पैदा हुए, इस बात को हमने ससम्मान मान लिया क्योंकि हमारे लिए संतान के संदर्भ में माँ का स्थान बहुत ऊँचा है।
लेकिन हिन्दू नामों से काम करनेवाले ईसाइयों (सुनील सरदार, अजित योगी, जगनमोहन रेड्डी, बिस्वास, सरकार आदि) को अच्छी तरह पता है कि इन 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाले मिशनरियों ने 'मरियम के कौमार्य के मिथ को
#मैथुन_के_पाप' से बचाने के लिए दुर्गा को 'सेक्स वर्कर ' घोषित कर दिया !
इसके बावजूद ईसा मसीह हमारे लिए अवतार हैं,
मरियम हमारे लिए  उनकी पूजनीया माता हैं क्योंकि हमारी परंपरा में #दशरथ की रानियों को, जिन्हें नियोग पद्धति से संतान प्राप्ति हुई, पूरा सम्मान है और #यशोदा को #कृष्ण की असली माँ से ज्यादा सम्मान है।
लेकिन इसकी समझ मक्कार और साज़िशी ईसाई मशीनरियों को इसलिए नहीं होगी क्योंकि वे #सर्वमत_समभाव या 'ईश्वर प्राप्ति के अनेक रास्ते' वाली दृष्टि में विश्वास ही नहीं करते।इसलिए पूरी दुनिया को एकमात्र स्वर्ग --यानी ईसाई स्वर्ग-- में स्थाई जगह दिलाने के लिए पहले ईसाई बनाना अपना कर्तव्य समझते हैं।इसके लिए सब तरह के कुकर्म जायज हैं।

यह सब तबतक चलेगा जबतक ईसा मसीह की महानता को ईसाई मशीनरियों के फर्जीवारे से मुक्त नहीं किया जाता।क्योंकि मिशनरियों ने पहले #नरसंहार (यूरोप और अमेरिका में 30 करोड़ से अधिक स्थानीय लोगों का जातिनाश और नरसंहार ) और अब (एशिया और अफ्रीका में) हर तरह के फर्जीवारे का सहारा ले ईसा की करुणा और दया को  #मताँतरण की अनंत भूख के हवाले कर दिया है।

सम्मान पाने के लिए असम्मान की यह तकनीक ज्यादा दिन नहीं चलेगी क्योंकि आज #मोबाइल, इंटरनेट और
सोशलमीडिया ने  टीवी-अखबारों के फर्जीवारे और एकाधिकार को जबर्दस्त चुनौती दे दी है।
आज डीएनए मैंपिंग और कार्बन डेटिंग के जमाने में भी #सेकुलर_वामपंथी 'विज्ञानवादी' कठमुल्ले अबतक #आर्यन हमले के सिद्धांतों की माँद से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और वह भी ईसाई मिशनरियों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मिलने वाले चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए।
सवाल उठता है कि ईसाई मिशनरियों ने ऐसा क्यों किया? यहाँ भी वही चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात।चूँकि खुद यूरोप और अमेरिका की ईसाइयत पूर्व आस्थाओं को मानने वाले मूर्ती और प्रकृति पूजकों  (जिसे वे अब #Aboriginal कहते हैं) का समूल नाश किया तो वही फार्मूला #हिन्दुओं पर भी लगा दिया।यानी खेत खाये गदहा और मार खाये जुलहा!

पिछली दो सदियों से चलने वाले ईसाई फर्जीवारे को हिन्दू हँसकर टालते रहे हैं क्योंकि उन्हें यह बेवकूफाना लगता रहा है।लेकिन अब जाकर यह साफ हुआ है कि यह कोई बेवकूफी नहीं है, बल्कि देश को बाँटने की गहरी और लंबी साज़िश का हिस्सा है।तभी तो #चर्चिल ने कहा था कि अंग्रेज़ों के जाते ही भारत सैकड़ों टुकड़ों में बँट जाएगा।लेकिन अब जब यह सब नहीं हुआ तो सब बौखला गए हैं ।#दादरी, #मालदा, #पटिदार आंदोलन, #वेमुला, #जेएनयू और अब #जाट_आंदोलन इसी बौखलाहट के नमूने हैं।

इसी से जुड़ा एक सवाल और है।साज़िशकर्ताओं को भी यह पता है कि उनकी साज़िश पर अब ज्यादा दिन पर्दा नहीं रह पाएगा फिर भी वे साज़िश पर साज़िश और झूठ पर झूठ रचे जाते हैं । वे ऐसा इसलिए करते चले जाते हैं कि उन्हें विश्वास है कि हिन्दू कायरता की हद तक सहिष्णु हैं और सहिष्णु कहे जाने के लिए नरसंहार, बलात्कार,  जातिनाश कुछ भी बर्दाश्त करने को तैयार रहते हैं।उनका यह भी विश्वास है कि हिन्दू बुद्धिजीवी इस स्तर तक मानसिक गुलामी के शिकार हैं कि वे भारतीय दृष्टि से घटनाओं को देखने की बौद्धिक हिम्मत ही नहीं रखते।
यह अब आप पर निर्भर करता है कि आप देशतोड़क
साज़िशकर्ताओं के विश्वास पर खड़ा उतरना जारी रखते हैं या देशहित और स्वहित में खुद को पहचानने की जद्दोजहद करते हैं । इस जद्दोजहद का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ उसके खिलाफ है जो जाने-अनजाने भारतीय हितों के खिलाफ है।

ऐसे लोग जहाँ मिल जाएँ उनको सिर्फ उनकी भाषा में समझाएँ क्योंकि ये बातों के भूत नहीं हैं।आप जिस दौर से गुजर रहे हैं उसमें सहिष्णुता को बरकरार रखने के लिए बुद्धिविलासिता  और बुद्धिपैशाच्य का संहार जरूरी है।
लेकिन इसके लिए रीढ़विहीन बुद्धिजीवी और बुद्धिमान किसी काम के नहीं वैसे ही जैसे भीष्म और विदुर थे जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था।
आज भारत को भारत बने रहने के लिए,  अनेक मजहबों की शरणस्थली बने रहने के लिए, जरूरी है कि आप बुद्धिवीर और बुद्धिवीरांगना बने, मानसिक गुलाम बुद्धिजीवी नहीं ।

अपने आसपास के लोगों की एक लिस्ट बनाइए जो सिर्फ रट्टूमल न हो, बल्कि चीजों को गुनता हो, खुद से संघर्ष करता हो और बेधड़क  दोटूक बोलता हो।मुझे तो जो जितना बड़ा है वो उतना ही गया गुजरा लगता है।एक कहावत है:
"जो जेतना पढ़ुआ वो उतना भड़ुआ"।

ऐसे लोग जहाँ मिल जाएँ उनको सिर्फ उनकी भाषा में समझाएँ क्योंकि ये बातों के भूत नहीं हैं ।
(नोटः संसद में मानव संसाधन मंत्री के भाषण के दौरान भगोड़े सेकुलर-वामपंथी विपक्ष की बौद्धिक कायरता और मानसिक गुलामी देखने लायक थी।अब समझ आया लोगों को राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी की जगह सुश्री स्मृति ईरानी की शैक्षणिक योग्यता की चिंता क्यों होती है ।)

1 Comments:

Blogger Akshay said...

जाके संथालियों से मिलो उनके पूर्वज यही उनसे बताते आ रहे हैं, यह कोई नही बात नही है। आज के समाज में ज्यादा छल एक ब्राह्मण ही करता है, एक तरफ आदिवासी जो निश्चल होते है। बेटा ये टोपी अपने बाप दादा को पहनना, तुम लोग एक जिन्दा महिला को जिंदा इस लिए जला दो क्यू की उसका पती नही है।

August 7, 2020 at 9:09 PM  

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