Saturday, February 27, 2016

जेएनयू के कामरेडों के कारनामों से कुत्ते परेशान

संताः शिमला के कुत्ते इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं कि ऊनके पिल्ले कह रहे हैं कि अब वे जिसका खाएँगे उसका नहीं गाएँगे।
बंताः क्यों?
संताः पिल्ले कह रहे हैं कि जब जेएनयू के क्रांतिकारी लोग खाते भारत का और गाते पाकिस्तान का हैं तो फिर वे क्यों नहीं?
बंताः अरे भई, कुत्तों पर से भरोसा उठ गया तो हिन्दुस्तान के बुजुर्गों, महिलाओं, पुलिस, सेना और बच्चों का क्या होगा!
संताः पिल्ले तो एकदम से बरखा दत्त और राजदीप सरदेसाई के फैन हो गए हैं।
बंताःभई, देखो ये कोई टीवी-अखबार में सेकुलर-सेकुलर और वामी-सामी खेलने का मामला थोड़े न है जो मन में आए बक जाए?
संताःतो कुत्ते अपने पिल्लों को कैसे समझाएँ?
बंता: उन्हें बताओ कि इन क्रांतिकारियों में कुछ मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट है और पहले भी वे अंग्रेज़ों, पाकिस्तान और चीन पर जान न्यौछावर कर चुके हैं ।एक-दो दशक में अपनी गलती भी मान लेते हैं और लोग उन्हें माफ भी कर देते हैं।
संताः लेकिन इससे तो और नमकहरामी और काहिली की प्रेरणा नहीं मिलेगी?
बंताः वाह! अब तो ये बोल दो: भई, नमकहराम कामरेड बनना है कि देश का वफादार कुत्ता, यह खुद तय कर लो।

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