जेएनयू माने क्या: भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह?
जेएनयू माने क्या?
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'भारत तेरे टुकड़े होंगे,
इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह' ??
*
क्या आपको ऐसा लगता है कि #जेएनयू कैंपस के ज्यादातर छात्र-छात्राएँ इस नारे में विश्वास करते हैं?
उत्तर है, नहीं।एकदम नहीं ।
*
तो फिर वे सामने क्यों नहीं आते?
यहीं पर कैच है।
*
जो लोग #देशतोड़क रोटी-चावल पर पलते हैं वे ज्यादातर #समाजविज्ञान,#भाषा और #अंतरराष्ट्रीय_संबंध विषयों से जुड़े है।और इनकी संख्या बहुत कम है लेकिन इन्हें अपने देशतोड़क #प्रोफेसरों और उन #राजनैतिक_संगठनों का पूरा समर्थन रहता है जिनसे ये प्रोफेसर जुड़े हैं और जिनकी वजह से ये यहाँ प्रोफेसर बने हैं।
*
यहाँ समझने की बात है कि कोई छात्र पैदाइशी देशतोड़क नहीं बन जाता बल्कि बनाया जाता है।कौन करता है यह? जाहिर है ये #सेकुलर-#वामपंथी-#लिबरल प्रोफेसर।
*
यह बात जरूर है कि अच्छी खासी तादाद उन छात्रों की भी है जो जेएनयू आने से पहले ऐसे देशतोड़क संगठनों से जुड़े होते हैं और उन्हें आसानी से जेएनयू में दाखिला मिल जाता है।आप पूछेंगे ये कैसे होता है? सीधी सी बात है : प्रवेश परीक्षा से पहले उन्हें कैंपस के अंदर या बाहर '#कोच' कर दिया जाता है।
*
इसके ठीक विपरीत स्थिति है #विज्ञान विषयों से जुड़े प्रोफेसरों और छात्रों की जिन्हें अपने पठन-पाठन और #लैब से फुर्सत नहीं और न ही उनकी बातों को टीवी -अखबारों में जगह मिलती है।ये गंभीर काम करते हैं और अक्सर #राष्ट्रवादी झुकाव रखते हैं जिस कारण सेकुलर-वामपंथी-लिबरल लोग इन्हें राजनैतिक रूप से नाकारा और जाहिल मानते हैं।
*
आप पूछ सकते हैं कि #मीडिया में उनको क्यों जगह नहीं मिलती? इसका उत्तर एक-दो और सवालों के उत्तर में छिपा है जो पूरे देश से जुड़े हैं:
#गुजरात_दंगों पर छाती पिटने वाले #गोधरा क्यों भूल जाते है? #दादरी पर आँसू बहाने वाले #मालदा पर क्यों चुप्पी साध लेते हैं? #वेमुला पर रुदाली करनेवाले #कोटा या आईआईटी-एम्स में छात्रों की आत्महत्याओं पर क्यों चुप रहते हैं?
*
अब लौटते हैं मुद्दे पर कि जेएनयू की विश्वस्तरीय सुविधा का लाभ उठाकर यहाँ के समाजविज्ञान वाले वामपंथी-लिबरल अंततः थर्डरेट बुद्धिजीवी बनते और बनाते हैं जबकि विज्ञान वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर का काम करते हैं जो सीधे-सीधे देश को लाभ पहुँचाने वाला होता है।
#JNU #PMO #MHRD #NSA #HMOIndia
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'भारत तेरे टुकड़े होंगे,
इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह' ??
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क्या आपको ऐसा लगता है कि #जेएनयू कैंपस के ज्यादातर छात्र-छात्राएँ इस नारे में विश्वास करते हैं?
उत्तर है, नहीं।एकदम नहीं ।
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तो फिर वे सामने क्यों नहीं आते?
यहीं पर कैच है।
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जो लोग #देशतोड़क रोटी-चावल पर पलते हैं वे ज्यादातर #समाजविज्ञान,#भाषा और #अंतरराष्ट्रीय_संबंध विषयों से जुड़े है।और इनकी संख्या बहुत कम है लेकिन इन्हें अपने देशतोड़क #प्रोफेसरों और उन #राजनैतिक_संगठनों का पूरा समर्थन रहता है जिनसे ये प्रोफेसर जुड़े हैं और जिनकी वजह से ये यहाँ प्रोफेसर बने हैं।
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यहाँ समझने की बात है कि कोई छात्र पैदाइशी देशतोड़क नहीं बन जाता बल्कि बनाया जाता है।कौन करता है यह? जाहिर है ये #सेकुलर-#वामपंथी-#लिबरल प्रोफेसर।
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यह बात जरूर है कि अच्छी खासी तादाद उन छात्रों की भी है जो जेएनयू आने से पहले ऐसे देशतोड़क संगठनों से जुड़े होते हैं और उन्हें आसानी से जेएनयू में दाखिला मिल जाता है।आप पूछेंगे ये कैसे होता है? सीधी सी बात है : प्रवेश परीक्षा से पहले उन्हें कैंपस के अंदर या बाहर '#कोच' कर दिया जाता है।
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इसके ठीक विपरीत स्थिति है #विज्ञान विषयों से जुड़े प्रोफेसरों और छात्रों की जिन्हें अपने पठन-पाठन और #लैब से फुर्सत नहीं और न ही उनकी बातों को टीवी -अखबारों में जगह मिलती है।ये गंभीर काम करते हैं और अक्सर #राष्ट्रवादी झुकाव रखते हैं जिस कारण सेकुलर-वामपंथी-लिबरल लोग इन्हें राजनैतिक रूप से नाकारा और जाहिल मानते हैं।
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आप पूछ सकते हैं कि #मीडिया में उनको क्यों जगह नहीं मिलती? इसका उत्तर एक-दो और सवालों के उत्तर में छिपा है जो पूरे देश से जुड़े हैं:
#गुजरात_दंगों पर छाती पिटने वाले #गोधरा क्यों भूल जाते है? #दादरी पर आँसू बहाने वाले #मालदा पर क्यों चुप्पी साध लेते हैं? #वेमुला पर रुदाली करनेवाले #कोटा या आईआईटी-एम्स में छात्रों की आत्महत्याओं पर क्यों चुप रहते हैं?
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अब लौटते हैं मुद्दे पर कि जेएनयू की विश्वस्तरीय सुविधा का लाभ उठाकर यहाँ के समाजविज्ञान वाले वामपंथी-लिबरल अंततः थर्डरेट बुद्धिजीवी बनते और बनाते हैं जबकि विज्ञान वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर का काम करते हैं जो सीधे-सीधे देश को लाभ पहुँचाने वाला होता है।
#JNU #PMO #MHRD #NSA #HMOIndia
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