Thursday, August 25, 2016

मेधावी देशतोड़क चाहिए या औसत देशभक्त?

हमें खूब पढ़ा-लिखा कन्हैया-ख़ालिद टाइप देशतोड़क चाहिये या औसत पढ़ा-लिखा देशभक्त?

ऐसा क्यों है कि जेएनयू और ऐसे ही गिने-चुने संस्थानों में "भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह" के नारे लगते हैं और औसत विश्वविद्यालयों से पढ़नेवाले गर्व के साथ 'भारत माता की जय', 'वंदे मातरम्' और 'जयहिन्द' के नारे लगाते हैं?

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