Wednesday, December 21, 2016

प्रताड़ित को शरण देने के लिये भारत को सेकुलर होने की जरूरत न तब थी न अब है


सेकुलरबाज़ी के कारोबारी आजकल कहते फिर रहे हैं कि हिन्दुस्तान का गंगा-जमुनी सेकुलर रंग अब बदरंग हो रहा है।
लेकिन जरा थमकर यह पूछना क्या ठीक नहीं होगा कि सेकुलर की अवधारणा आई कहाँ से और क्यों? इंदिरा गाँधी ने संविधान में इसे किस मक़सद से जोड़ा और मूल संविधान में इसे क्यों जगह नहीं मिली थी?

इन सवालों का उत्तर जो हो सो हो, इतना जरूर है कि इसके जन्म से बहुत-बहुत पहले जब यहूदियों का नरसंहार उन्हीं की कोख़ से पैदा हुये ईसाई करने लगे तो वे भागकर भारत आये;
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ईरान में पारसियों का नरसंहार अरब से आये शान्तिदूत करने लगे तो वे भागकर भारत आये;
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मोहम्मद साहेब के परिवार के बचेखुचे लोगों को भी जब हममजहब शांतिदूतों ने ख़त्म करने की ठान ली तो वे भागकर भारत आये।

मतलब यह कि प्रताड़ित को शरण देने के लिये भारत को सेकुलर होने की जरूरत न तब थी न अब है।
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हाँ आज़ाद सेकुलर भारत में यह जरूर हुआ कि लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपने पुरखों के घर से इसलिए बेदख़ल होना पड़ा कि वे वहाँ अल्पसंख्यक थे।
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भारत के किसी और हिस्से में (जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक थे) अल्पसंख्यक समुदायों के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ?
10.12.16

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