Thursday, December 22, 2016

गाँधी की हत्या के सबसे बड़े लाभार्थी कौन?

■ गाँधी की हत्या के सबसे बड़े लाभार्थी कौन?

"अंग्रेज़,नेहरू और वामपंथी।"

■ फिर सारा विमर्श गाँधी बनाम गोडशे पर क्यों ख़त्म हो जाता है?

"इसलिए कि अंग्रेज़ों और नेहरू ने गोडशे के कंधे का इस्तेमाल करके पहले गाँधी के भौतिक शरीर को मारा। फिर अवाध गति से काले अंग्रेज़ों ने पहले नेहरू की सरपरस्ती में फिर नेहरू वंश की सरपरस्ती में नेहरू वंश के लिए गाँधी की भारतीयता और देसी दृष्टि को मारने का एक भी मौका नहीं खोया।"

■ फिर आज गाँधी पर ताज़ा विमर्श क्यों?

"आज गाँधी को इंटरनेट और मोबाइल पर सवार सोशल मीडिया ने पुनर्जीवित कर दिया है तो उन्हें अंग्रेज़ों का दलाल कहनेवाले सेकुलर-वामपंथी भी खुद को गाँधीवादी कहने लगे हैं। लेकिन उनके स्वदेशी और सनातन पर अकुंठ राष्ट्रवादी युवाओं और घोषित 'सांप्रदायिक' लोगों को छोड़ शेष लोग मौन हैं। सेकुलर खाल ओढ़े जेहादी भी गाँधी के नाम पर अपना काम निकालने में लगे हैं।"

■ पिछले दो हज़ार सालों में शंकराचार्य के बाद अखिल भारतीय देसी रणनीतिक सोच रखनेवाला कौन हुआ?

"गाँधी को छोड़ शून्य बटा सन्नाटा है।
बौद्धिक कायरता की हद देखिये कि वे (अभिजात वर्ग) नेताजी का काँग्रेस से निकाला जाना बर्दाश्त कर लेते हैं; उनकी मृत्यु की झूठी ख़बर देनेवाले, संविधान में धारा 370 घुसेड़नेवाले और सेना को चीनी हमले के पहले निःशस्त्र कर देनेवाले नेहरू को सर आँखों बिठाते हैं, लेकिन भारत के लिए लंबा सपना देखनेवाले रणनीतिक दृष्टिसम्पन्न गाँधी के विचारों की हत्या कर डालते हैं।"

■ सो कैसे?

"गाँधी हर चीज़ को भारतीय दृष्टि से देखते थे जो तन से भारतीय और मन से ग़ुलाम नेहरू को एकदम पसंद नहीं था।नेहरू की आँखों के काँटा हो गए गाँधी जब उन्होंने कहा कि कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए। गाँधी न तन से कायर थे न मन से। भारतीय आभिजात्य की मानसिक ग़ुलामी और बौद्धिक कायरता के मद्देनज़र उन्होंने अहिंसा को एक स्ट्रैटेजिक औज़ार की तरह इस्तेमाल किया था। ऐसा नहीं होता तो 1942 में वे 'करो या मरो' का नारा क्यों देते?"

■ भारत के एक राष्ट्रवादी नाथुराम गोडशे ने इस आकाशधर्मी रणनीतिकार की हत्या क्यों की?

"इसलिए नहीं कि वह कायर था या उसे अपनी जान का डर था बल्कि वह हिन्दू-बौद्धिक कायरता का अप्रतिम उदाहरण था जो जाने-अनजाने अंग्रेज़ों और उनके मानसिक ग़ुलाम पिट्ठू नेहरू के हाथों का खिलौना बन गया क्योंकि वह भी नाक के आगे देखने में असमर्थ था; उसे पाकिस्तान से आती हिंदुओं की लाश तो दिख रही थी लेकिन यह नहीं दिख रहा था कि अंग्रेज़ों और अभिजात वर्ग की मदद से नेहरू भारत और भारतीयता की ही हत्या करने में लगे हैं।
"इस लिहाज से गोडशे समेत ज़्यादातर राष्ट्रवादी जमात के लोग इस्लामी और बर्तानवी अत्याचार की प्रतिक्रिया में पैदा हुए अन्धविरोधी थे न कि आधुनिक भारत को निर्माण करने की देसी दृष्टि को लेकर आगे बढ़नेवाले नेता।"

■ वैसे गोडशे ने तीन ही गोलियाँ चलायी थीं तो चौथी कहाँ से आ गई?

"यानी गाँधी को मारने का पक्का इंतज़ाम था।
गाँधी की मौत के बाद देसी बौद्धिक राष्ट्रीयता वैसे ही टूअर हो गई थी जैसे आज वह छली गयी महसूस कर रही है।
"इसके लिए यह जानना जरूरी है कि गाँधी की मौत से किसको फायदा हुआ?

1. अंग्रेज़ों को जिनकी रगरग से गाँधी वाकिफ़ थे और जिन्हें अपने मनमाफ़िक टट्टू दल को सत्तानशीन करने का पूरा मौका मिल गया;

2. नेहरू को जिन्होंने अंग्रेज़ों की मदद से अपने प्रतिद्वंदियों को रास्ते से हटाया और काँग्रेस को एक फैमिली बिज़नेस में तब्दील कर दिया(नेशनल हेराल्ड मामले को इसी सन्दर्भ में देखना उचित है);

3. भारत के स्वदेशी उद्योग की जगह कांग्रेस- पोषित चुनिंदा घरानों को जिन्होंने लोकतंत्र की जड़ों में मट्ठा डालने में कांग्रेस की मदद की;

4. सोवियत संघ और चीन के पैसों पर पलनेवाले कम्युनिस्टों को जिन्होंने जेएनयू जैसे शीर्ष शिक्षण संस्थानों पर काबिज़ हो नयी पीढ़ी के मन में भारत और भारतीयता के प्रति गर्व के बदले शर्म की भावना भर दी; और,
5. बुद्धिविरोधी राष्ट्रवादियों को जिन्हें पंजाब और बंगाल से किसी तरह जान बचाकर दिल्ली पहुँचे हिन्दुओं में पैठ बनाने का मौका मिल गया।"

■ सवाल उठता है कि आज़ादी के समय तो ऑफिसियल राष्ट्रवादियों की बौद्धिक कायरता और नेहरू की मानसिक ग़ुलामी ने मिलकर भारत की राष्ट्रीयता का गला घोंटा था लेकिन आज?
2।10।16

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