Thursday, December 8, 2016

हमारी त्रासदी क्या है?

हमारी त्रासदी क्या है?

हम धनी होना चाहते हैं लेकिन धन कमानेवालों से चिढ़ते हैं
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हम दुनियाभर की सुविधाओं का लाभ उठाना चाहते हैं लेकिन वैश्वीकरण का विरोध करते हैं...
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हम अमेरिका-यूरोप-चीन के टक्कर में खड़ा होना चाहते हैं लेकिन पूँजीवाद से नफ़रत करते हैं
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हम सर्वांगीण विकास चाहते हैं लेकिन निजी उद्यमिता को हेय दृष्टि से देखते हैं
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हम सरकारी दखल का विरोध करते हैं लेकिन सरकार के सामने हर चीज़ के लिये कटोरा फैलाये रहते हैं
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क्योंकि 70 सालों में हम यही नहीं समझ पाए हैं कि हम चाहते क्या हैं...नहीं नहीं हम शायद समझना ही नहीं चाहते कि हम चाहते क्या हैं,
हम भारत के बुद्धिजीवी हैं और हमारे आका गौरांग महाप्रभु अँगरेज़ भी यही चाहते थे कि हम हमेशा ऐसे ही रहें जैसे कि आज हैं...
याद रहे कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सगर्व घोषित किया था:
मैं अपने तन से भारतीय हूँ पर स्वभाव से यूरोपीय।

नोट:
1. अंगरेज़ों से अलग सोच रखनेवाले विवेकानंद, नेताजी, गाँधीजी, पटेल, अरविन्द घोष आदि की मूर्तियाँ बना दी गईं हैं ताकि लोग उनपर फूल-मालायें चढ़ा सकें।
2. नेहरू जी के नाम पर बने जेएनयू में नारे लगे थे:
¶ भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह।
¶ अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं।
नारा लगानेवाले इस बात से खफा थे कि संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को सुप्रीम कोर्ट ने फाँसी की सज़ा दी थी। अफ़ज़ल गुरु का क़ातिल कौन था इसका पता वहाँ के कुछ प्रोफेसरों और क्रांतिकारी छात्रों को ज़रूर होगा।
21.11.16

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