Thursday, May 9, 2019

जिहाद- माओवादी ख़ूनी क्रान्ति के बरक्स 'खालसापंथ' और 'रणवीर सेना' का मॉडल

पिछले 1400 सालों में मुसलमान और ईसाई हमलावरों, लुटेरों और शासकों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीक़े से लगभग 20 करोड़ हिंदुओं का संहार किया।
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इस नरसंहार के लिए ख़ुद हिंदुओं की संकीर्णता, पिछड़ापन, अशिक्षा, जातिप्रथा, ग़रीबी और साम्प्रदायिकता जिम्मेदार है, ऐसा सेकुलर लोग कहते हैं। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लगभग 50 लाख यहूदी जो मारे गए उसे मानव इतिहास का सबसे भीषण नरसंहार या Holocaust कहते हैं। जब 50 लाख लोगों के नरसंहार को होलोकॉस्ट कहते हैं तो 20 करोड़ के नरसंहार को क्या कहेंगे?
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इसलिए आश्चर्य की बात यह नहीं है कि दिग्विजय सिंह-चिदंबरम-शिंदे की तिकड़ी ने 'हिन्दू-आतंक' जैसे फेक न्यूज़ का आविष्कार किया बल्कि अबतक सचमुच ऐसा क्यों नहीं हुआ? क्या हिन्दू ख़ून ख़ून नहीं पानी है?क्योंकि आत्मरक्षार्थ दुश्मनों का संहार हमारे अस्तित्व की माँग है।
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यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और एशिया का शायद ही कोई मुल्क बचा हो जहाँ बिना असली ख़तरे या शोषण के मुसलमानों ने इस्लाम-सम्मत आतंकी या जिहादी संगठन न बना लिए हों और जिन्हें 56 इस्लामी सरकारों के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन न प्राप्त हों। फिर भी आतंक का कोई मजहब नहीं है। लेकिन जो समुदाय सदियों से दीन-रिलिजन के नाम पर सर्वाधिक नरसंहार का शिकार रहा हो, आज भी हो रहा हो, वह आत्मरक्षार्थ हिंसा के संगठन न बनाये और हिंस्र समुदायों के मन-मस्तिष्क को डिकोड करने के सिलसिलेवार प्रयास भी न करे--- यह गर्व नहीं बल्कि शर्म और शुतुरमुर्गी आत्महंता मूर्खता का परिचायक है।
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इसलिए हिंदुओं की असली चुनौती हिन्दू-आतंक से ख़ुद को बचाने की उतनी नहीं है जितनी कि आक्रामक रूप से आत्मरक्षार्थ हिंसा के लिए ख़ुद को संगठित करने की है। इसके उदाहरण भी मौजूद हैं: 'खालसापंथ' के संस्थापक गुरुगोविंद सिंह और 'रणवीर सेना' के संस्थापक ब्रह्मेश्वर सिंह 'मुखिया'। एक ने इस्लामी जिहाद से टक्कर ली तो दूसरे ने माओवादी और नक्सली ख़ूनी 'क्रान्ति' से। अस्तु इन दोनों ही संस्थाओं की भविष्योन्मुख भूमिका पर गहन शोध की आवश्यकता है। शोध का मुख्य सवाल यह है कि इस्लामी जिहाद और माओवादी ख़ूनी क्रान्ति से निपटने में 'खालसापंथ' और 'रणवीर सेना' सनातन समाज के मॉडल हो सकते हैं क्या?
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वैसे एक सच यह भी है कि हिन्दुस्तान दुनिया का एकमात्र देश है जिसकी सभ्यता और संस्कृति 1000 सालों की मुसलसल गुलामी के बावजूद मूल रूप से बची रह गई। साथ ही इन हजार बरसों में शायद ही कोई साल गया हो जब हिन्दुस्तानियों ने विदेशी सत्ता के विरुद्ध बिगुल नहीं बजायी हो। यह भी एक कड़वा सच है कि इस दौरान जहाँ-जहाँ हिन्दू आबादी अल्पमत हुई वहाँ -वहाँ अलग देश बनते चले गए जैसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश।
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लेकिन इन हजार सालों में देसी सोच और संस्कृति का
जितना नुकसान हुआ उससे कहीं ज्यादा नुकसान आज़ादी के बाद के 70 सालों में हुआ। इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार जवाहरलाल नेहरू हैं जो बेशर्मी की हद तक जाकर कहते थे: मैं तन से हिन्दू, संस्कार से मुसलमान और सोच से यूरोपीय हूँ।
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नोट: कम्युनिस्टों के नाम 10 करोड़ लोगों का नरसंहार है, इसे क्रान्ति कहते हैं। इस्लाम के नाम 27 करोड़ अधिक का नरसंहार है, इसे जिहाद कहते हैं। ईसाइयों के नाम 40 करोड़ से भी अधिक का नरसंहार है, इसे क्रूसेड और 'यूरोपीय जिम्मेदारी' कहते हैं। हिंदुओं ने कितने ग़ैर-हिंदुओं को मारे और उसे क्या कहते हैं?
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

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