Thursday, December 8, 2016

तो भइया, आॅल इज वेल!

तो भइया, आॅल इज वेल!
दोस्तों, किसी की भी डिग्री पर जाना भारतीय संस्कृति की शिक्षात्मक और सभ्यतागत क्षमताओं की अवमानना है, चाहे बहस डिग्री होने की हो या न होने की हो।
मैकाले शिक्षा पद्धति में पारंगत लोगों में ज्यादातर मानसिक गुलामी के शिकार हैं , इसलिए गाँवों में कहावत है:
जे जेतना पढ़ुआ उ ओतना भढ़ुआ!...

भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि बहुत सारे लोग यहाँ यूनिवर्सिटी -कालेज नहीं गए, नहीं तो 'अनपढ़' और कम पढ़े-लिखे लोगों की मानसिक स्वतंत्रता और मौलिक खोजों से देश वंचित रह जाता।
22.11.16

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