Saturday, May 18, 2019

जन्मदिन (19 मई) पर विशेष: गोडसे के बिना गाँधी का सही मूल्यांकन संभव है क्या?

गोडसे के जन्मदिवस (19 मई) पर श्रद्धाँजलि स्वरूप मेरे लेखों का पुष्पगुच्छ:
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लेख-1 (19.5.2018)
गोडसे के बिना गाँधी का सही मूल्यांकन संभव है क्या ?


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गोडसे ने गाँधी को मारा, इस बात को गला फाड़-फाड़कर कहनेवाले काश यह भी बताते कि गोडसे ने गाँधी को क्यों मारा? आज गोडसे का जन्मदिन है। एक बात मेरे अंदर धँस गई है , वह यह कि गोडसे ने अपनी अस्थियों को सिंधु नद में तब प्रवाहित करने को कहा था जब हमारे पूर्वजों के तारणहार सिंधु नद पर हिन्दुस्तान का पुनः अधिकार हो जाए।
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आज सिंधु का अधिकांश पाकिस्तान में है, वही पाकिस्तान जिसके बारे में गाँधी ने कहा था: मेरी लाश पर ही पाकिस्तान बन सकता है। लेकिन पाकिस्तान बन भी गया, गाँधी के जिन्दा रहते उसने भारत पर अक्टूबर 1947 में हमला भी कर दिया था। और तो और, हमलावर पाकिस्तान को बिना शर्त 55 करोड़ रुपये दिलाने के लिए वे भूख हड़ताल की धमकी भी दे चुके थे।
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लब्बोलुआब यह है कि गाँधी को गोडसे के बिना नहीं समझा जा सकता। जिस तरह गाँधी सिर्फ नायक नहीं, वैसे ही गोडसे सिर्फ गाँधी-हत्यारे नहीं। एक चीज़ जो दोनों में कॉमन है वह है देशप्रेम और मौलिकता। जो चीज़ अलग है वह है हिंदुस्तान के छुपे रुस्तम पाकिस्तानियों से निपटने की रणनीति।
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गाँधी की रणनीति फेल हो गई, इसका प्रमाण है कि आज हिन्दुस्तान में न जाने 'कितने पाकिस्तान' उठ खड़े हो गए हैं। इतना ही नहीं, पूरी दुनिया इन 'पाकिस्तानों' से इतना त्रस्त है कि पाकिस्तान और इस्लाम आज वैश्विक आतंक का पर्याय बन गए हैं।
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जिन लोगों को सिर्फ इसलिए गोडसे पर पुनर्विचार नहीं करना कि उन्होंने गाँधी को मारा, उन्हें करोड़ों के नरसंहार  के कारक पैग़म्बर मोहम्मद, मार्क्स, लेनिन, स्टालिन, माओ आदि के बारे में क्या कहना है?
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दूसरी तरफ़ अगर अहिंसा ही एकमात्र औजार हो गाँधी और गोडसे  के व्यक्तित्व के तुलनात्मक मूल्यांकन का तो यह भी देखना पड़ेगा कि उनकी अहिंसा की नीति से क्या सचमुच आम निर्दोष लोग लाभान्वित हुए या वे और ज्यादा हिंसा का शिकार हो गए? हज़ारों साल की मानव सभ्यता का अनुभव बताता है कि जिन समाजों ने प्रतिहिंसा की मुकम्मल तैयारी नहीं की, वे बर्बर और असभ्य समुदायों की हिंसा का शिकार हुए, मिट गए या सदियों गुलाम रहे। ईसापूर्व के यूरोपीय-अमेरिकी-अफ्रीकी समाज इसके उदाहरण हैं, इस्लाम-पूर्व के अरब-उत्तर अफ्रीकी-पश्चिम-मध्य एशिआई देश भी इसकी निशानदेही करते हैं।
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ये सब देश-समाज और इनकी सभ्यता-संस्कृति बाइबिल और क़ुरआन की उन बर्बर अवधारणाओं की शिकार हुईं जिनके अनुसार अपने से इतर (ग़ैर-ईसाई, ग़ैर-मुसलमान) लोगों के लिए दो ही विकल्प थे: मतान्तरण या मौत।
बाइबल की 'करुणा की ज्वाला' में 30 करोड़ से अधिक निर्दोष लोग स्वाहा कर दिए गए, इस्लाम की 'शांति की खाड़ी' में 27 करोड़ से अधिक लोग दफन कर दिए गए, और साम्यवाद की 'समानता की क्रान्ति' महज 100 सालों के अंदर 10 करोड़ सर्वहारा को लील गई।
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एक बात जरूर है कि बाइबल और क़ुरआन की बर्बरता को उन्नीसवीं सदी में मार्क्स-एंगेल्स ने आधुनिक जामा पहनाया जिस कारण करोड़ों के नरसंहार के कारक लेनिन-स्टालिन-माओ महानायक का दर्जा पाने में सफल हुए।
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थोड़ा और पीछे जाएँ तो अहिंसा के परम उद्गाता महात्मा बुद्ध पर भी पुनर्विचार करना पड़ेगा। क्या यह सही नहीं है  कि भारत के वे हिस्से(गाँधार, पश्चिमी पाकिस्तान, तक्षशिला, नालंदा, कश्मीर आदि) इस्लामी बर्बरता के सबसे ज़्यादा शिकार हुए जहाँ बौद्ध धर्म का असर ज्यादा था और जहाँ के लोगों में आत्मरक्षार्थ प्रतिहिंसा की क्षमता न्यून हो गई थी। अफगानिस्तान की हिन्दुकुश पर्वतमाला का नाम ही बताता है कि वहाँ हिंदुओं/बौद्धों का भीषण नरसंहार हुआ था। हिन्दुकुश को बौद्धकुश इसलिए नहीं कहा गया होगा कि बर्बर इस्लामी हमलावरों की निगाह में हिन्दू-बौद्धों में कोई अंतर नहीं था, उनके लिए सब-के-सब काफ़िर हिन्दू ही थे।
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सवाल उठता है कि भारतीय बौद्धों में प्रतिहिंसा के भाव की कमी और इस कारण हुए उनके जातिनाश के लिए क्या बौद्धमत और उसके प्रतिपादक महात्मा बुद्ध जिम्मेदार नहीं हैं? ऐसे में महात्मा गाँधी की अहिंसा ने भी अगर हिन्दुस्तान को बर्बर मतों के अनुयायियों की हिंसा के हवाले किया तो क्या अहिंसा के पुजारी गाँधी इसकी जिम्मेदारी से बच सकते हैं?
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वह अहिंसा भी किस काम की जो दुश्मनों को हिंसा के लिए आमंत्रण दे? इसलिए गाँधीजी का सही मूल्यांकन सिर्फ उनके 'सत्य के प्रयोग' के आधार पर नहीं हो सकता। इसके लिए गाँधी को मारनेवाले नाथुराम गोडसे की पुस्तक 'मैंने गाँधी वध क्यों किया?' का सहारा लेना ही होगा क्योंकि इस पुस्तक में गाँधी की अहिंसा-नीति के भीषण हिंसात्मक परिणामों की सप्रमाण चर्चा है।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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लेख-2 ( 8.5.2018)
वक़्त की अदालत में जिन्ना, गाँधी और गोडसे
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मैं इस मायने में जिन्ना को गाँधी से बहुत-बहुत ऊँचा मानता हूँ कि उन्होंने एक वक़ील की हैसियत से अपने क्लाइंट को धोखा नहीं दिया। उनके क्लाइंट थे मुसलमान जिनका मजहब इस्लाम उन्हें बहुसंख्यक काफ़िरों के निज़ाम में रहने की इजाज़त नहीं देता था। 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन का कॉल देकर जिन्ना ने अपने क्लाइंट की मुराद पूरी कर दी, पाकिस्तान बनाकर।जिन्ना एक बेहद ईमानदार वक़ील थे।
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और गाँधी? सत्य -अहिंसा के चोले में अपने क्लाइंट हिन्दुस्तान को उन्होंने जितना असत्य और हिंसा का शिकार हो जाने दिया, वह अभूतपूर्व है।
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ख़िलाफ़त आन्दोलन, मोपला मुसलमानों द्वारा हिन्दू नरसंहार , नेताजी का काँग्रेस से बहिर्गमन, पाकिस्तान का विरोध फिर द्विराष्ट्र सिद्धान्त की स्वीकृति, द्विराष्ट्र सिद्धान्त की स्वीकृति के बावजूद हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली का विरोध और नोआखाली दंगों को लेकर उनके रुख पर एक नज़र डालने से साफ़ हो जाता है कि राजनीति में गाँधी ने अंततः असत्य और हिंसा को आगे बढ़ाया जिसका भीषण खामियाजा हिंदुओं ही नहीं पूरे देश को अबतक चुकाना पड़ रहा है।
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वक़्त की अदालत में अगर मुकदमा चले तो गाँधी के गुनाह अक्षम्य साबित होंगे और गोडसे परिस्थितिजन्य चुनौतियों का निष्ठा के साथ सामना करने के कारण बहुत छोटी सज़ा के हक़दार होंगे क्योंकि उन्होंने व्यक्ति की हत्या की न कि एक जन्म लेते देश के सपनों की; उन्होंने उस गाँधी को मारा जो अपनी लोकप्रियता का बेजा लाभ उठाकर बहुमत हिंदुओं के नरसंहार-बलात्कार-अपहरण -जबरिया मतान्तरण आदि को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दे रहा था; इतना ही नहीं भारत पर हमला कर चुके पाकिस्तान को बिना शर्त 54 करोड़ रुपये दिलाकर दुश्मन को मजबूत कर रहा था।
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लेनिन की भाषा में जिन्ना और जेहादियों के लिए गाँधी 'उपयोगी मूर्ख' से ज़्यादा की हैसियत नहीं रखते थे। गाँधी की हत्या न होती तो असत्य और भीषण हिंसा को बढ़ावा देनेवाली उनकी सत्य-अहिंसा की नीति का पर्दाफाश कब का हो गया होता तथा देश में जो आज न जाने 'कितने पाकिस्तान' हैं, वे न होते।
नोट: चीन जो आज चीन बना है माओ के सिद्धांतो की तिलांजलि देकर, रूस डूबने से बच गया  लेनिन-स्टालिन की राह को राम-राम करके , इसी तरह भारत के पास भी भारत बनने के लिए कम-से-कम राजनीति के क्षेत्र में गाँधीवादी पाखंड और उनकी प्रचंड आत्महंता बौद्धिक कायरता से मुक्ति का कोई विकल्प नहीं।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
#Jinna #Gandhi #Godse #Pakistan #Hindustan #Hindus #Muslims #Islam
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लेख-3 (1.2.2018 )
गाँधी, नेहरू और गोडसे
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संता: नेहरू और गोडसे में क्या अंतर है?
बंता: गोडसे ने गाँधी के भौतिक शरीर को मारा और नेहरू ने उनकी आत्मा को।
संता: फिर गाँधी की मौत से इन्हें क्या फ़ायदा हुआ?
बंता: फ़ौरी तौर पर पाकिस्तान से आनेवाले हिंदुओं-सिखों के पुनर्वास में मदद मिली जो गाँधी के अनर्गल मुस्लिम और पाकिस्तान प्रेम से त्रस्त थे।
संता: और नेहरू?
बंता: काँग्रेस को भंग करने की इच्छा रखनेवाले गाँधी के मार दिए जाने से इस पार्टी को पारिवारिक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाने से नेहरू को रोकनेवाला कोई न रहा। ऊपर से बेटी इंदिरा नेहरू के 'गाँधी' हो जाने से नेहरू-गाँधी वंश को बापू की विरासत का कॉपीराइट मिल गया। मेरे गाँव में तो लोग इंदिरा गाँधी को महात्मा गाँधी की बेटी कहते थे।
संता: और कुछ?
बंता: गाँधी के सनातनी देसी भारत के सपने पर नेहरू ने मानसिक रूप से यूरोप के ग़ुलाम इंडिया को थोप दिया।
संता: मतलब गोडसे ने अनजाने में ही सही नेहरू की मदद की?
बंता: सही पकड़े हो।
संता: लेकिन इसको साबित कैसे किया जाए?
बंता: नेहरू ज़िंदा होते तो उन्हीं से पूछ लेते।
संता: कोई और रास्ता नहीं है?
बंता: गोडसे ने तीन गोलियाँ मारी थीं जबकि गाँधी की छाती पर चार गोलियों के निशान थे।
संता: चौथी गोली की जरुरत क्या थी?
बंता: गोडसे की गोली से गाँधी न मरें तो चौथी गोली अपना काम कर दे।
संता: यानि मारने का पूरा इंतजाम था और प्रशासन को गोडसे की योजना भी मालूम थी?
बंता: लगता तो यही है क्योंकि गाँधी का पोस्टमार्टम भी नहीं होने दिया गया था।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
#Godse #Nehru #Gandhi #Bharat #India #Congress #Sanatan #ColonizedElite #Hindu #Sikh #Muslims #Partition #Pakistan
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लेख-4 ( 6.10.2018)
भारत-विभाजन और गाँधी-वध एक ही सिक्के के दो पहलू
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भारत-विभाजन और गाँधी-वध दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पाकिस्तान बनने के दौरान लाखों हिंदुओं और सिखों के नरसंहार, बलात्कार, अपहरण और जबरिया धर्मान्तरण की ओर से आँख मूँद लेनेवाले गाँधी का वध नहीं होता तो आश्चर्य होता।
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अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था। इसके बावजूद पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए गाँधी ने अनशन किया था लेकिन भारत-विभाजन को रोकने के लिए उन्होंने कोई अनशन नहीं किया जबकि उन्होंने यह घोषित किया था कि उनकी लाश पर ही भारत का बँटवारा होगा यानी उनके जीवित रहते पाकिस्तान नहीं बनेगा।
गाँधी की इस घोषणा पर विश्वास कर बंगाल-पंजाब-हैदराबाद के लाखों हिन्दू-सिखों ने समय रहते इस्लामी देश पाकिस्तान बनाने के लिए नरपिशाच बने पड़ोसी मुसलमानों से अपनी सुरक्षा का उचित प्रबंध नहीं किया। इस प्रकार सत्य और अहिंसा के पुजारी गाँधी के असत्य व्यवहार के कारण लाखों लोग भीषण हिंसा और क्रूरता की भेंट चढ़ गए।

इसी पाखंड--मुसलमानों की हिंसा और हिन्दू-सिखों के नरसंहार का मौन समर्थन--- से उद्वेलित होकर नाथूराम गोडसे ने गाँधी-वध किया वैसे ही जैसे परम देशभक्त भगत सिंह और ऊधम सिंह ने लाला लाजपतराय की हत्या और जालियांवाला बाग नरसंहार से उद्वेलित होकर सबंधित अंग्रेज अधिकारियों के वध किये थे।
कुछ-कुछ इसी क्रम में ख़लिस्तानी नेता भिंडरवाले को शह देनेवाली इंदिरा गाँधी की स्वर्णमंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद हत्या को भी देखा जा सकता है।
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इस प्रकार गाँधी-वध को समझने के लिए जरूरी है कि भारत-विभाजन की परिस्थितियों और विभाजन के समय हुई भीषण हिंसा को भी ध्यान में रखा जाए। और इस सन्दर्भ में नाथूराम गोडसे की पुस्तक "मैंने गाँधी-वध क्यों किया" बहुत जरूरी है।
यह भी सवाल पूछा जाना चाहिए कि सरकार ने गोडसे के अदालती बयान के प्रकाशन पर क्यों प्रतिबंध लगा दिया? इस सत्य को ढँकने से किसे लाभ हुआ? गोडसे का अदालती बयान 29 साल बाद 1977 में उपरोक्त पुस्तक के रूप में छपा।
इस पुस्तक को पढ़ने से लोगों को वैसे ही डराया जाता है जैसे महाभारत को घर में रखने से। कहा जाता है कि महाभारत महाकाव्य को घर में रखने से घर में ही 'महाभारत' होने का ख़तरा पैदा हो जाता है! यह बात अलग है कि भारत के घर-घर में अगर रामायण के साथ-साथ महाभारत भी प्रति भी होती तो यह देश सैकड़ों सालों तक गुलाम नहीं होता। वैसे ही नाथूराम गोडसे के अदालती बयान (मैंने गाँधी वध क्यों किया?) की प्रति  अगर घर-घर में होती तो पाकिस्तान बनने के बाद भी देश में न जाने 'कितने पाकिस्तान' नहीं होते और काँग्रेस का मतलब नेहरू-गाँधी परिवार नहीं होता।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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लेख-5 ( 17.5.2019)
लाखों का नरसंहार बनाम एक गाँधी का वध
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काँग्रेस के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि 1984 में दिल्ली में हजारों सिखों का नरसंहार हुआ। उसके लिये महत्वपूर्ण यह है कि नेहरू-गाँधी वंश की इंदिरा गाँधी की हत्या हुई। इसलिए नरसंहार के आरोपी नेता कैबिनेट और मुख्यमंत्री बनते रहे। ताजा नाम श्री कमलनाथ का है।
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बिल्कुल इसी तर्ज़ पर 1946-47 में काँग्रेस के लिए 30 लाख हिन्दू-सिखों का नरसंहार, अनगिनत का बलात्कार और उसके बाद करोड़ों का जबरिया मुसलमान बनाया जाना महत्वपूर्ण नहीं है। उसके लिए महत्वपूर्ण है पीड़ितों के दुःख से विचलित और देशहित से ओतप्रोत गोडसे द्वारा उस गाँधी का वध जिनपर विश्वास करने के कारण उपरोक्त नरसंहार हुये थे।
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लेकिन मोबाइल-इंटरनेट-सोशल मीडिया के ज़माने में काँग्रेस का नैरेटिव पूरे देश का नैरेटिव कैसे बना रह सकता है। अब गाँधी ख़ारिज होंगे और गोडसे स्थापित। इसमें साध्वी प्रज्ञा निमित्त मात्र हैं, असली पुनर्जागरण का असली उत्प्रेरक तो टेक्नोलॉजी है जिसके बुलडोज़र के आगे काँग्रेस, भाजपा और संघ सब लाचार हैं। यह बुलडोज़र नहीं होता तो गाँधी-गोडसे मुद्दे पर भाजपा-संघ और उनके नायक-द्वय अबतक काँग्रेस की गोद में बैठ चुके होते।
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मतलब गोडसे के साथ टेक्नोलॉजी-आरोहित सच का बुलडोज़र है तो गाँधी के साथ काँग्रेस का झूठा-सच।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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लेख-6 ( 17.5.2019)
गोडसे को लेकर साध्वी प्रज्ञा के बयान पर बवाल
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गोडसे को लेकर #साध्वी_प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर उँगली उठानेवाले पहले पैग़म्बरे इस्लाम को ख़ारिज करें क्योंकि #पैग़म्बर की राह पर चलकर 27 करोड़ से अधिक लोगों का #नरसंहार और न जाने कितनों का #बलात्कार और जबरिया #धर्मान्तरण हुआ है।
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गोडसे को लेकर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर उँगली उठानेवाले पहले #लेनिन- #स्टालिन- #माओ-पोलपोट-कास्त्रो जैसों को ख़ारिज करें जिनके खाते में 100 सालों के अंदर 10 करोड़ से अधिक लोगों के नरसंहार हैं।
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 #गोडसे को लेकर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर उँगली उठानेवाले  #गाँधीवादी #मुसलमान पहले अपने उस घृणाशास्त्र #क़ुरान को ख़ारिज करें जो #काफ़िर, #जिहाद और दारुलहरब जैसी बर्बर अवधारणाओं का उत्स है।
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गोडसे को लेकर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयान पर उँगली उठानेवाले पहले #गाँधी को ख़ारिज करें जिन पर विश्वास कर 30 लाख से अधिक #हिंदू और #सिख जिहादियों द्वारा मार दिए गए और करोड़ों लोग जबरिया धर्मान्तरण तथा बलात्कार की भेंट चढ़ गए।
● जिन्हें संदेह हो वे 1919-21 के
#ख़िलाफ़त_आंदोलन के दौरान जिहादियों द्वारा भीषण हिन्दू उत्पीड़न पर गाँधी के रुख का अध्ययन कर लें।
● गाँधी के हिन्दू विरोधी #सत्य_अहिंसा से वाक़िफ़ #जिन्ना ने अगस्त 1946 में #पाकिस्तान के लिए डायरेक्ट एक्शन (जिहाद) का कौल दिया जिसके बाद #कोलकाता में हजारों हिन्दू गाजर-मूली की तरह काट डाले गए। ज़ाहिर है, गाँधी जी इस पर 'मौन-महात्मा' बने रहे।
● लेकिन #नोआखाली के #दंगों के बाद जब हिंदुओं ने प्रतिक्रिया-स्वरूप आत्मरक्षार्थ #हिंसा का रुख किया तो गाँधी ने #भूख_हड़ताल कर हिंदुओं का ब्लैकमेल करना शुरू किया।
● इसी तरह अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी हमले के बाद #पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिए गाँधी ने 'भूख हड़ताल' का सहारा लिया।
● 'सत्य-अहिंसा' पर इतना ही भरोसा था तो गाँधी ने #भारत_विभाजन को रोकने के लिए क्यों नहीं इस 'ब्रह्मास्त्र' (भूख हड़ताल) का उपयोग किया?
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अगर आप मोहम्मद, लेनिन, स्टालिन, माओ, पोलपोट, कास्त्रो, गाँधी जैसों को ख़ारिज नहीं कर सकते तो इनमें से एक --गाँधी--का वध करनेवाले गोडसे को देशभक्त कहनेवाली साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की हिम्मत, सत्यनिष्ठा और #अभिव्यक्ति_की_स्वतंत्रता का सम्मान करने की आदत डाल लीजिए।
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हिंदुओं के लिये एक 'ज़िंदा लाश' हो चुके गाँधी को गोली मारकर गोडसे ने उन्हें ज़िंदा करने का जो अराष्ट्रीय कर्म किया, इसके लिए हम गोडसे की कड़ी निंदा करते हुये भी उन्हें गाँधी से बहुत बड़ा #राष्ट्रवादी, देशभक्त और सत्यनिष्ठ हुतात्मा मानते हैं।
■ नोट: हिन्दुओं ने कोटि-कोटि देवी-देवताओं के सृजन किये हैं। ईसाइयों और कसाइयों की तरह वे गॉड या अल्लाह के बनाये हुये नहीं हैं कि अन्धविश्वास-- BELIEF-- पर अपनी ज़िन्दगी क़ुर्बान कर दें। वे सवाल पूछते हैं-- ख़ुद से, दुनियाभर से और ईश्वर से भी ताकि भवसागर से 'मुक्ति' पा सकें। वे यह सब 72 हूरों और 28 कमसिन लौंडों वाली ज़न्नत के लिए नहीं करते। और हाँ, हिंदुओं के सवालों से उनके आराध्य राम-कृष्ण-शंकर-बुद्ध-महावीर कोई नहीं बचा फिर गाँधी क्या चीज़ हैं! बुद्धिपिशाच, अनपढ़, कुपढ़, नारेबाज़, आत्महीनता के शिकार नकलची बुद्धिविलासी और अक़्ल के अजीर्ण के शिकार मानसिक ग़ुलाम भी आमंत्रित हैं, just for a KitKat break you know! इस जमात ने गाँधी को भी ईसा-मोहम्मद-मार्क्स-स्टालिन-माओ की तरह पैग़म्बर बनाकर उन्हें सवालों से परे करने की साज़िश की है, 70 साल पुरानी साज़िश, जिसे मोबाइल-इंटरनेट-सोशल मीडिया पर सवार हिन्दू नवजागरण ने तार-तार करना शुरू कर दिया है।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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लेख-7 (14.5.2019 )
गोडसे को 'हिंदू आतंकवादी' कहने का मतलब
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महात्मा गाँधी को एक हिंदू--गोडसे-- ने मारा तो हिंदू आतंकवादी हो गए। इसके बाद पुणे में गोडसे के सजातीय सैकड़ों ब्राह्मणों का नरसंहार काँग्रेस ने करवाया। मने पूरी काँग्रेस पार्टी ही आतंकवादी हुई।
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इंदिरा गाँधी की हत्या उनके सिख सुरक्षा गार्डों ने कर दी। उपरोक्त तर्कानुसार सिख आतंकवादी हो गए। इसके बाद काँग्रेस पार्टी ने दिल्ली में हज़ारों सिखों का नरसंहार कराया। मने पूरी काँग्रेस पार्टी ही आतंकवादी हुई।
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2002 में अयोध्या से लौट रहे 50 से अधिक हिन्दू कारसेवकों को गोधरा के मुसलमानों ने ज़िंदा जला दिया। ज़ाहिर है कि मुसलमान आतंकवादी हो गए। इसके बाद अहमदाबाद समेत गुजरात के अनेक शहरों में मुसलमान-विरोधी दंगे शुरू गए जिन्हें नियंत्रित करने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने काँग्रेस शासित तीन पडोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अतिरिक्त पुलिसबल भेजने का आग्रह किया। ये तीन राज्य हैं: महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान। तीनों ही काँग्रेस-शासित राज्यों से मोदी को निराशा ही हाथ लगी जिस कारण दंगों पर नियंत्रण करने में बड़ी मुश्किलें आईं और करीब 900 हिन्दू-मुसलमान मारे गए जिसमें पुलिस की गोली से मरनेवाले लगभग 300 हिन्दू भी शामिल हैं। मने पूरी काँग्रेस पार्टी ही आतंकवादी हुई क्योंकि इसने दंगों को रोकने में मदद नहीं कर दंगों को हवा दी।
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राजीव गाँधी की हत्या लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण ने करवायी थी। प्रभाकरण ईसाई था और उसे श्रीलंका के उत्तरी भाग में एक अलग तमिल ईलम (देश)बनाने के लिए ईसाई संगठनों से पूरी सहायता भी मिलती थी। मतलब यह कि ईसाई भी आतंकवाद में किसी से कम नहीं। उधर प्रभाकरण को श्रीलंकाई सेना से बचाने के लिए काँग्रेस सुप्रीमो सोनिया गाँधी ने भारतीय जलसेना के अनऑफिशिअल इस्तेमाल की असफल साज़िश रची। बाद में राजीव गाँधी की हत्या में शामिल नलिनी को भी फाँसी से बचाने के लिए काँग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने पुरज़ोर कोशिश की जिसमें वे अबतक सफल भी रही हैं। मने पूरी काँग्रेस पार्टी ही फिर आतंकवादी हुई।
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इस तरह हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी समुदायों के लोग आतंकवादी हुये और इन सभी की आतंकवादी कार्रवाइयों के बाद काँग्रेस कोई-न-कोई भीषण आतंकवादी खेल रचती है। सवाल उठता है कि काँग्रेस कहीं इन सभी समुदायों के आतंवादियों की मम्मी तो नहीं जो एक तरफ़ तो आतंकवादियों को पालती-पोसती है तो दूसरी तरफ़ इन्हीं आतंकवादियों का भय दिखाकर नागरिकों को रोबोटिक वोटबैंक में बदल देती है?
वैसे यह नारा भी काँग्रेसी ही है कि 'हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आपस में सब भाई भाई'।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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लेख-8 (2.10.2018)
गाँधी और गोडसे: दोनों देशभक्त, दोनों की नीयत संदेह से परे
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गाँधी की अहिंसा-नीति के भीषण हिंसात्मक परिणामों में लाखों निर्दोष और निस्सहाय हिंदुओं का जबरिया धर्मान्तरण, बलात्कार और हत्या है जिसकी प्रतिक्रिया में गोडसे ने गाँधी को गोली मारी।
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मतलब गाँधी की तरह ही गोडसे की नीयत में कोई खोट नहीं थी, वैसे ही जैसे अंग्रेज़ों का वध करनेवाले भगत सिंह या आज़ाद की देशभक्ति और राष्ट्रीयता संदेह से परे  थी। गोडसे की अच्छी नीयत के बावजूद उनके हाथों गाँधी का वध हुआ वैसे ही गाँधी की अच्छी नीयत वाली अहिंसा नीति के बावजूद लाखों लोग मारे गए।
.गाँधी की अहिंसा-नीति के भीषण हिंसात्मक परिणामों में लाखों निर्दोष और निस्सहाय हिंदुओं का जबरिया धर्मान्तरण, बलात्कार और हत्या है जिसकी प्रतिक्रिया में गोडसे ने गाँधी को गोली मारी। मतलब गाँधी की तरह ही गोडसे की नीयत में कोई खोट नहीं थी, वैसे ही जैसे अंग्रेज़ों का वध करनेवाले भगत सिंह या आज़ाद की देशभक्ति और राष्ट्रीयता संदेह से परे  थी। गोडसे की अच्छी नीयत के बावजूद उनके हाथों गाँधी का वध हुआ वैसे ही गाँधी की अच्छी नीयत वाली अहिंसा नीति के बावजूद लाखों लोग मारे गए। ऐसे में भीषण नरसंहारों के कारक गाँधी अगर माफ़ी के योग्य हैं तो सिर्फ एक गाँधी का वध करने वाले गोडसे क्यों नहीं? लाखों असहाय और निर्दोष लोगों के नरसंहार पर एक गाँधी-वध को हावी हो जाने देना पाखंड के सिवा और क्या है!
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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