Monday, May 13, 2019

पैग़म्बर, मार्क्स और गाँधी: भाग एक


पैग़म्बर ने मुसलमानों द्वारा लूट, अपहरण, बलात्कार, हत्या और नरसंहार को वाजिब ठहराया। युद्ध में हारे पक्ष की औरतों और बच्चों तक को मालेगनिमत कहा। मालेगनिमत जिसके साथ विजेता मुसलमान जो चाहे कर सकते हैं क्योंकि वह अल्लाह की तरफ़ से उन्हें दिया गया उपहार है। उन्होंने मालेगनिमत में ख़ुद के लिए 20% रखा और शेष 80 प्रतिशत जिहादियों में बाँटने का नियम बनाया। इसका परिणाम यह हुआ कि अरबों में जो काहिल, जाहिल, हरामख़ोर, लुच्चे, लफंगे, चोर, उचक्के और अन्य अपराधी थे, उन सबों को मुसलमान बनकर जिहाद द्वारा मालेगनिमत(लूट की औरत और धन) पर हाथ साफ़ करने की स्कीम बहुत आकर्षक लगी।
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दूसरी ओर अबतक जिस काम को अनैतिक माना जाता था उसे मजहब-सम्मत करार देकर ज़न्नत की सीढ़ी घोषित कर दिया गया था। मतलब पुरुष की जरुरत को जानवरों की बुनियादी जरुरत (भोजन और सेक्स) तक महदूद कर दिया गया। गीत-संगीत और इस्लाम पूर्व की अरबी संस्कृति को दौरे जाहिलिया (अज्ञान का दौर) का प्रतीक बता दिया गया।
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इसीलिए कहा जाता है कि पैग़म्बर ने मुसलमानों को 'पेट और जांघों के बीच' इतना महदूद कर दिया कि वे 'गर्दन के ऊपर टिके दिमाग़' की जरुरतों पर ध्यान ही न दें पाएँ। बर्बरता को मजहबी जामा पहनाते हुए बर्बर लोगों को ज़न्नत का रसीदी टिकट जो पकड़ा दिया गया था।
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आकस्मिक नहीं है कि मुसलमानों को पस्त करनेवाले कबीलों को भी इस्लाम बहुत रास आया। हलाकू और चंगेज़ ख़ान इसकी मिसालें हैं। यही कारण है कि जिन लोगों के पूर्वजों को इस्लामी लूट, अपहरण, जबरिया धर्मांतरण, हत्या, बलात्कार, नरसंहार आदि का शिकार बनाया गया, उन्होंने भी इस्लामी मालेगनिमत में अपने को डूबो दिया और अपने पूर्वजों को जाहिल करार देते हुए उनकी संस्कृति को सुपुर्दे ख़ाक कर दिया।
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इसीलिए पाकिस्तान का इतिहास सिंध के हिन्दू राजा दाहिर पर मोहम्मद बिन क़ासिम के हमले (710 ई ?) से शुरू होता है। बिन क़ासिम अपने साथ बीस हज़ार से अधिक हिन्दू औरतों को ले गया था जिन्हें पश्चिम एशिया के बाज़ारों में सब्ज़ी-भाजी की तरह बेचा गया। इन्हीं औरतों के सिंध में रह गए रिश्तेदार जबरिया मुसलमान बनाये गए जिन्होंने बाद में अपने ही ख़ून के रिश्ते के हिंदुओं के साथ वह सब किया जो बिन क़ासिम और उसके जिहादियों उनके हिन्दू पूर्वजों के साथ किया था।
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इस पूरे सिद्धान्त को निम्न तुकबंदी से भी समझ सकते हैं: 'माले मुफ़्त दिले बेरहम, ज़न्नत की गारंटी सनम'।
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कोई इस मजहबी नियम पर सवाल न उठा पाए, इसलिए सवाल करनेवालों के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया। इस सज़ा को भी सैद्धांतिक जामा पहनाने के लिए क़ुरान को अंतिम किताब और मोहम्मद को अंतिम पैग़म्बर घोषित किया गया। इसी सिद्धान्त के तहत सिर्फ़ भारतवर्ष में नालंदा समेत 32 से अधिक श्रेष्ठ विश्वविद्यालय और शिक्षा-संस्थान विनष्ट किये गए। जारी...
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह


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