Thursday, May 16, 2019

स्वातंत्र्य वीर सावरकर: मुद्दा माफ़ीनामे का

क्या कॉमरेड लेनिन गद्दार नहीं जिन्होंने One Step Backward and Two Steps Foward की रणनीति अपनाई?
पैग़म्बर मुहम्मद ने यही फॉर्मूला हुदैबिया की संधि में लागू किया जब दस साल तक शांति बनाये रखने का सुलहनामा करके दो साल में ही विरोधी पक्ष पर धोखे से हमला कर दिया...
गाँधी-नेहरू ने अंग्रेजी सत्ता में विश्वास का संकल्प व्यक्त किया तब जाकर बैरिस्टर बन पाए जबकि सावरकर को यह डिग्री इसलिए नहीं मिली कि उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता में विश्वास की शपथ नहीं ली थी...
नेहरू की पुस्तक 'भारत की खोज' की खोज बेस्ट सेलर बन गई और सावरकर की पुस्तक '1857: भारत का पहला स्वातंत्र्य संग्राम' को छपने के पहले ही प्रतिबंधित कर दी गई...

प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेज़ों की सहायता के लिए गाँधी को 'क़ैसरे हिंद' की उपाधि मिली,
प्रचण्ड बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष बने बोस को 'महात्मा' गाँधी ने काम नहीं करने दिया...

नेहरू ने कश्मीर-तिब्बत की समस्या पैदा की, लड़कभूरभूर में चीन के हाथों लाखों एकड़ जमीन गवाँ दी,  नेताजी को जीतेजी मृत घोषित करके उनके परिवार पर जासूसी भी करवाते रहे, चर्चिल के लिए संसद में शोक प्रस्ताव पास कराया लेकिन सावरकर के लिए विरोध करवाया...

19 71 के युद्ध में भारत को इंदिरा गाँधी ने विजय के बावजूद PoK नहीं दिलाया, केजीबी के इशारे पर देश का शासन चलाया (Mitrokhin Archives)...

अगर उपरोक्त नेता गद्दार नहीं हैं तो देश की जनता को जगाने के लिए जेल से बाहर आने वास्ते 'रणनीतिक सुलहनामा' करनेवाला क्रांतिवीर कैसे गद्दार हो जाएगा? वह भी तब जब क्रिस्लामी-वामियों के आरोप को सही मान लिया जाए कि ऐसा कुछ हुआ था।

फिर भी सवाल है कि सावरकर को ही 50 वर्ष काले पानी की सज़ा क्यों मिली, गाँधी या नेहरू को क्यों नहीं?

गाँधी के भारत आने से पहले सावरकर देश-विदेश में क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत बन चुके थे...
1910 में उनपर मुक़दमा चलाने के लिए उन्हें जहाज़ से जब भारत लाया जा रहा था तो वे समुद्र में कूदकर तैरते हुए फ्राँस पहुँच गए थे लेकिन फ्राँस ने उन्हें अंग्रेज़ों को सौंप दिया, वे भारत लाये गए और उन्हें डबल कालापानी की कठोरतम सज़ा मिली जिसका शतांश भी गाँधी-नेहरू के हिस्से कभी नहीं आया... अंडमान के सेलुलर जेल में वे 1921 तक विकट परिस्थितियों में रखे गए लेकिन तबियत ख़राब होने पर नज़रबंद कर अमरावती भेज दिया गया... इसी बीच माफीनामे की बात कही जाती है जो असल में दो विरोधी पक्षों के बीच सुलहनामा कहा जाएगा। वैसे फैज़ाबाद की जेल में बंद अमर शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ने भी ऐसा ही सुलहनामा पेश किया था, क्या इसी वजह से वे गद्दार हो गए?
असल में जेल से निकलने के लिए इस तरह के सुलहनामे/माफ़िनामे का रणनीतिक इस्तेमाल अभूतपूर्व नहीं था।

क्यों अंग्रेज़ सरकार सावरकर से डरती थी जबकि नेहरू तो माउंटबेटन दम्पत्ति के अनुरागी थे?
क्यों सावरकर को अपनी कविताएँ लिखने के लिए नखों और कंकरों का इस्तेमाल करना पड़ा, जबकि नेहरू-गाँधी को लिखने-पढ़ने की सारी सुविधाएँ उपलब्ध थीं?

जी हाँ, सावरकर ने सेलुलर जेल की काल कोठरी की दीवारों पर 8 से 10 हज़ार पंक्तियाँ लिखीं और उन्हें याद भी रखा।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

नोट: वरिष्ठ पत्रकार श्री मनमोहन शर्मा कहते हैं कि "इस माफीनामे की चर्चा तो बहुत है मगर आज तक इसकी पुष्टि नहीं हुई। इस माफीनामे की चर्चा आजादी के बाद सावरकर की मृत्यु के बाद शुरू हुई। उनके जीवन चरित्र में क्रिक नामक लेखक ने इसका उल्लेख किया था मगर अगले एडिशन में उन्होंने इस आरोप को अपनी पुस्तक से खारिज कर दिया। इसका कारण यह था कि वह इस माफीनामे की पुष्टि नहीं कर सके थे। कुछ संस्थाओं ने उन्हें मानहानि का नोटिस दिया था और उनसे अनुरोध किया था कि या तो वो इस आरोप को वापस ले ले या इसकी पुष्टि करें। वह इसकी पुष्टि नहीं कर सके और उन्होंने इस आरोप को वापस ले लिया। इस पुस्तक के पहले संस्करण में लगाए गए इस आरोप को वामपंथियों ने खूब उछाला। कोच्चिन से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक वीक ने 2014 में एक लेख में इस संदर्भ में आरोप लगाया था। मगर जब सावरकर के परिजनों ने उन्हें लीगल नोटिस दिया तो समाचारपत्र ने माफी मांगी। यह स्थिति है जिसकी मैंने स्पष्टरूप से व्याख्या कर दी। आप निष्कर्ष स्वयं निकाल सकते है।"
(28.5.2018)
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