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Monday, February 1, 2021

संगठन-बद्ध ऑफिशिअल राष्ट्रवादी बनाम और नवजागृत भारतीय मेधा

 डॉ साहेब, ऑफिशिअल राष्ट्रवादियों और वामियों में भारत को लेकर कोई ख़ास तात्विक अंतर नहीं है। मानसिक गुलामी के शिकार दोनों ही हैं क्योंकि विरासत को ये परचून की दूकान से ज्यादा नहीं समझते। यह भी कि किसी-न-किसी स्तर पर हममें से अधिकतर लोग इस गुलामी के शिकार हैं, डिग्री का फर्क जरूर हो सकता है। लेकिन किसी भी संगठन से मुक्त-चिंतन को प्रश्रय देने की आशा रखना दिवास्वप्न जैसा है। आगे की लड़ाई संगठन-बद्ध ऑफिशिअल राष्ट्रवादियों और नवजागृत भारतीय मेधा के बीच होगी न कि वामियों-राष्ट्रवादियों के।

सीताराम गोयल और कोएनराड एल्स्ट की उपेक्षा उपरोक्त स्थापना का प्रमाण है। जहाँ तक डॉ शंकर शरण की बात है, उनकी चुप्पी को सहमति मानना भूल होगी। वे बिना पूछे नहीं के बराबर बोलते हैं।

(Posted as a Comment on the FB post of Dr Tribhuwan Singh in June-July 2020)