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Monday, April 25, 2016

Secularists , Islamists and Kabir Das



Santa: Secularists are all for the great Saint-poet Kabir Das?
Banta: True.
Santa: They are also the apologists of radical Islamists?
Banta: Equally true.
Santa: Islamists must have declared their allegiance to the reformist ideas of Kabir?
Banta: No. Not at all.
Santa: Why?
Banta: Kabir is universal in his love for life on the earth while Islamists justify violence citing from the Holy Quran, Hadiths and the Sharia.
Santa: But isn't Islam a religion of peace?
Banta: Yes, it is. But only for those who are true believers.
Santa: Believers?
Banta: Sunni Muslims, to be precise.
Santa: Why only Sunnis?
Banta: Bro, google and find out yourself.

Sunday, April 24, 2016

Why do social sciences breed India-hating copycats?

Q: Why are the  social sciences & humanities (SS& H) profs mostly world-class India-hating copycats ?

A: In Sciences, the laws are more or less universal while tgose in SS &H are society-  and culture-specific.
*
Since India has had a history of nearly thousand years of foreign domination with little systemic changes even after the Independence in 1947,  there is little or no elbow room for those looking at issues from Indian perspectives.
*
Anti-India and divisive academics and  syllabi in JNU and other such institutions are a case in point. Without India-centric and ingenious thinking in place, most of the academic work is not only copy-paste but proudly anti-India too.

Q: Is there everything bad about us?
A:To be happy about yourself, you are the fastest growing economy with a democratic political system and nearly the best amongst those that became free almost about the same time.
Q: What else do we need if we are doing so well?
A: What's most disconcerting is the inability to tap even 10 % of the available potential because of copycat policy making and divisive politics the seeds of which are sown in our colleges and universities.

सात बेटियों वाले बाप का बेटा...

23 अप्रैल 2016:
आज बाबूजी (पिता) बहुत याद आए।उनकी सात बेटियाँ थीं।मुझे बुलाते तो अमूमन मेरे नाम के पहले  लगभग सभी बेटियों के नाम वे लेते जिससे मुझे कोफ्त होती थी।लेकिन यह कोफ्त बर्फ की तरह पिघल जाती थी जब अहसास होता कि पिताजी बड़े भाई साहेब का नाम अक्सर नहीं लेते थे।सोचता , चलो कोई तो है जिससे वे मुझे ज्यादा प्यार करते हैं।
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इसके बाद जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया बहनें मुझे माँ और दोस्त भी लगने  लगीं।एक ऐसे परिवार में मैं बड़ा हो रहा था जो पुरुष-प्रधान समाज में भी घर के बड़े फैसलों में स्त्रियों को बराबर की अहमियत देता था।मेरी दो बहने तो लक्ष्मी बाई की अवतार ही थीं।लाठी-भाला-गाली-गलौज-लात-जूते तो मानों जैसे सलवार पर पड़ी धूल हो जिसे झाड़ने में वे एकदम कोताही नहीं करतीं थीं।लेकिन ऐसा करना वे अपना एकाधिकार समझती थीं, मेरे लिए वह सब एकदम वर्जित था खासकर महिलाओं के मामले में।
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जब बेटियों से मिलने का मन हो तो बाबूजी माँ से झगड़ा करके अक्सर शाम को घर से निकल जाते थे।हफ्ते भर बाद लौटते मानों किसी हिल-स्टेशन से होकर आये हों, चुस्त और खुश।
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अंतिम समय में उन्होंने सभी बेटियों को अपने पास बुला लिया था , शायद यह सोचकर कि मानों वे उनके स्वर्ग की सीढ़ियाँ हों।बेटियाँ होती ही ऐसी हैं।
ऐसा नहीं कि बाबूजी सिर्फ अपनी बेटियों पर ही प्यार बरसाते थे, गाँव-घर की अन्य बेटियों को भी उनके साथ अपने बाप की कमी नहीं खलती थी।पता नहीं कहाँ से इतना सारा प्यार वो लाते थे जिसका सोता कभी सूखता ही नहीं था।
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लेकिन सात बहनों के मुझ भाई को बेटी नहीं हुई तो अपने माँ-बाप से ईर्ष्या भी हुई और उनपर थोड़ा गुस्सा भी आया कि मेरे कोटे का पुत्री-सुख वे खुद ही मार ले गए नहीं तो एक हमें भी मिल जाती।खैर,  कोसने से क्या होना था।
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इसी बीच मैं पत्रकारिता को अलविदा कह पढ़ाने लग गया और इसकी शुरुआत हुई आईआईएमसी -दिल्ली से जहाँ मुझे 2003 की अंग्रेज़ी पत्रकारिता की क्लास में गरिमा दत्त मिलीं।ऑल इन वन गरिमा दत्त-- मानों अर्द्धनारीश्वर की साकार परिकल्पना हो।
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बेचारे जिन लोगों ने उन्हें  सिर्फ मादा समझा उन्हें गरिमा के रौद्र- रूप के दर्शन हुए और जिन्होंने सिर्फ 'मर्दानी' समझा वे उनके प्रगल्भ नारी-रूप से वंचित रह गए।
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बहरहाल, मेरे जीवन में गरिमा दत्त के आने से अपने माँ-बाप के प्रति मेरा गुस्सा काफूर हो गया।मिस ऑल-इन-वन दत्त ने मुझे वह सब दिया जो दो-चार बेटियों वाले को भी शायद ही मिलता होगा।
एक और बात।दस साल बाद इंडस्ट्री में ऊँचे पदों पर हाड़-तोड़ काम करते हुए भी गरिमा ने गेस्ट फैकल्टी की हैसियत से आईपी यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को न्यू मीडिया के बारे में जो पढ़ाया वो भारत तो क्या दुनिया के किसी भी शिक्षक के लिए ईर्ष्या की बात होगी।
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गरिमा, तुझे सलाम।
तुम्हारे माता-पिता को सलाम कि उन्होंने तुम्हें तुम जैसा बनने दिया और इसके लिए बड़े दंश झेले।
अरविंद, आपको सलाम कि आप उसके सपनों में अँटे और आप दोनों ने जीवन-साथी बनने का फैसला किया।
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हमारी हार्दिक बधाई और अक्षय शुभकामनाएँ!

Saturday, April 23, 2016

सेकुलर प्रोफेसर कौन?

संताः सेकुलर प्रोफेसर कौन?
बंताः जो सिखाये 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह'!
संताः और कम्युनल?
बंताः 'भारत माता की जय', 'वंदे मातरम्' और  'जय हिन्द' जैसी दकियानुसी बातें।
संताः सेकुलर लोग कहाँ पाए जाते हैं?
बंताः जेएनयू और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में।
संताः और कम्युनल?
बंताः  कुकुरमुत्ते की तरह पूरे देश में फैलते जा रहे हैं।
#सेकुलर #कम्युनल #प्रोफेसर  #जेएनयू #एएमयू
#भारत_तेरे_टुकड़े_होंगे #भारत_माता_की_जय #वंदेमातरम् #जयहिन्द
#Secular #Communal #Professor #JNU #AMU
#LongLiveMotherIndia #VandeMataram #JaiHind

Friday, April 22, 2016

फटाफट सेकुलर होने का लेटेस्ट नुस्खा


संताःफटाफट सेकुलर होने का कोई लेटेस्ट नुस्खा, प्राजी?
बंताः नारा-ए-तकबीर, भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह।
संताः बस?
बंताः याकूब मेमन, अफजल गुरू और इशरत के लिए छाती पीटना।
संताः और कुछ?
बंताः नेहरू जी के गाँधी-वंश वाली काँग्रेस में अपनी अटूट संवैधानिक आस्था जताते हुए हिन्दू देवी-देवताओं को गालियाँ देना।
संताः फुल एंड फाइनल?
बंताः गुजरात दंगे को कम्युनल और दिल्ली को सेकुलर बताना।
#FatafatSecularMantra #SecularMantra #SecularFastFood #DelhiRiots #YakubMemon #IshratJahan #AfzalGuru  #GujaratRiots #SecularRiots #CommunalRiots #NehruGandhiDynasty #Congress #INC 

Thursday, April 21, 2016

नेहरू ने गाँधी की कमी नहीं खलने दी!

संताः देश के पहले परिधानमंत्री चाचा नेहरू का सबसे बड़ा योगदान क्या है?
बंताः उन्होंने गाँधी जी की कमी नहीं खलने दी।
संताः सो कैसे?
बंताः नेहरू-परिवार को देश का नया गाँधी-वंश बनाकर।
संताः और नेहरू जी के गाँधी-वंश का योगदान?
बंताः सेकुलरवाद।
संताः इसका लाभ?
बंताः आज देश में न जाने 'कितने पाकिस्तान ' हैं।

गाँधी की हत्या: गोडसे और नेहरू


संताः नेहरू और गोडसे में क्या अंतर है?
बंताः नेहरू ने गाँधी की आत्मा को मारा जबकि गोडसे ने सिर्फ
शरीर को।
संताःऔर कुछ?
बंताः नेहरू ने बिना बताये किया, गोडसे ने खुल्लमखुल्ला।
संताः इसका परिणाम?
बंताः पंडित जवाहरलाल आजीवन भारत के प्रधानमंत्री रहे और गोडसे को फाँसी हुई।
संताः देश को क्या लाभ मिला?
बंताःगोरों की जगह काले अंग्रेज़ आ गए और मुगल-वंश की जगह नेहरू जी का गाँधी-वंश।
संताः और कुछ?
बंताः अब बचा क्या है कहने को? फिर भी सुनः राष्ट्रीयता तरीपार घोषित हो गई और अवसरवादिता को भारतरत्न मिला।

Wednesday, April 20, 2016

जिस दिन अंग्रेज़ लोग जिंदा 'साँप से खेलना' सीख जाएँगे...

अभी हाल में बीबीसी ने अपनी वेबसाइट पर एक पाॅप-अप डाला कि भारत साँप-सँपेरों का देश है या नहीं?
इस पर मीडिया में बवाल मच गया यानी बौद्धिक प्याले में तूफान आ गया।
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देशभक्त पें-पें करने लगे और सेकुलर हमेशा की तरह हाहा हीही।दोनों ही रिस्पाँस मानसिक गुलामी-जनित कुँठा के प्रमाण हैं। आइये करते हैं उसका र्सर्जिकल ऑपरेशन।
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वैसे अगर कुत्ते, घोड़े आदि की स्वभावगत विशेषता को समझ उन्हें अपने हित में उपयोग करना वैज्ञानिक और सराहनीय है तो साँप को वश में कर उसे अपने हित में उपयोग करना तो सुपर-वैज्ञानिक और सुपर-सराहनीय होना चाहिए।लगता है बाइबिल में इसकी चर्चा नहीं है इसलिए गोरों ने उसे अंधविश्वास मान लिया।फिर गोरों का चैनल बीबीसी क्यों न अपने गौरांग महाप्रभुओं का राग आलापे?
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बड़ी दिलचस्प बात है कि नितांत अहिंसक किस्म के जानवर गाय-भैंस की लाखों की संख्या में अरबों-खरबों कमाने के  लिए हत्या वैज्ञानिक हो गई और एक खतरनाक जंतु साँप को वश में कर बिना उसकी हत्या किये बगैर उससे अपनी आजीविका चलाना अंधविश्वास हो गया!
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लगता है साँप और सँपेरे के मामले में विज्ञान और वैज्ञानिक सोच के मानक यह देखकर तय किए जाते हैं कि उससे जुड़े लोग हिन्दुस्तानी हैं या यूरोपीय।
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आजकल 'क्रिश्चियन योगा' और 'ब्रेन योगा' (कान पकड़ उठक-बैठक करना) भी चल पड़ा है।हो सकता है कल को 'क्रिश्चियन आयुर्वेदा' भी आ जाए जैसे भारतीय अंक प्रणाली को दुनिया 'अरबी संख्या' के रूप में जानती है।
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जिस दिन अंग्रेज़ लोग जिंदा 'साँप से खेलना' सीख जाएँगे उस दिन 'स्नेक-प्ले' एक अंतरराष्ट्रीय खेल हो जायेगा जैसे शतरंज।फिर भारत के काले अंग्रेज़ नेहरू फेलोशिप लेकर लंदन जायेंगे उसमें पी.एचडी की डिग्री हासिल करने और वापस लौटकर सँपेरों को प्रतिबंधित करने के लिए विदेशी चंदे से एक एनजीओ शुरू करेंगे।
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फिर जेएनयू में समाज विज्ञान के अंदर एक सँपेरा-अध्ययन केन्द्र खुलेगा जिसमें उपरोक्त एनजीओ-संस्थापक को प्रोफेसर नियुक्त किया जाएगा और उसके विभाग में उसी वामपंथी दल के छात्रों का नामांकन होगा जिसका सदस्य या पदाधिकारी वह प्रोफेसर होगा।
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विश्वास न हो तो जेएनयू के समाज-विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के सीनियर प्रोफेसरों की लिस्ट बनाइए और उनके नाम के सामने उनकी पार्टी का नाम लिख दीजिए।ज्यादातर लोग सीपीआई या सीपीआई (एम) के मिलेंगे। और यह काम वहाँ खुल्लमखुल्ला होता रहा है।

#BBCHindi #BBCWorld #BBC #SnakeCharmersIndia #JNU #MentalSlavery
#HorseTaming #DogTaming #CowSlaughter
#BuffaloSlaughter #Secular #Bhakt #SnakeTaming #SnakeCharming

Friday, April 15, 2016

बाबा साहेब अंबेडकर के नाम खतः 1-2-3

बाबा साहेब,
जय भीम जय भारत!
पता नहीं क्यों आज (14 अप्रैल) आपकी याद आते ही बाबू बालमुकुन्द गुप्त के 'शिवशंभो के चिट्ठे' भी याद या गए सो थोड़ी बूटी छानी और चढ़ा ली।फिर होश ही नहीं रहा कि आपको खत लिखने के पहले कंठ लंगोट (टाई) बाँध लें।
*
इसी चक्कर में एक और ब्लंडर हो गया।आप समझ ही गए होंगे कि भाँग की जगह अगर शराब पी होती तो अभी अंग्रेज़ी में लिख रहे होते और आपको वीर सावरकर की मदद से  हिन्दी में लिखी पाती पढ़ने की नौबत नहीं आती।
लेकिन मुझे विश्वास है कि लार्ड मैकाले हमें हिन्दी में खत लिखने और आपको पढ़वाकर सुनने की गलती के लिए माफ कर देंगे क्योंकि वे तो काले अंग्रेज़ों के लिए भगवान ईशू की तरह हैं और ईशू तो कन्फेशन के बाद हजार गलतियाँ भी माफ कर देते हैं।
*
पार्ट-1:
खैर अब आते हैं मुद्दे पर।यह पाती पाती कम और स्वयंभू दलित चिंतकों की चुगली ज्यादा है।आप तो जानते ही हैं कि आजकल ई भाई लोग आपको भारत के एकमात्र संविधान -निर्माता के रूप में मार्केट कर रहा है जबकि संविधान सभा की अंतिम बैठक (26 नवंबर 1949? ) को संबोधित करते हुए आपने साफ-साफ स्वीकार किया था कि आपका मुख्य काम संविधान-सभा द्वारा स्वीकृत बातों को कागज पर उतारना था, उस संविधान सभा की बहसों को ठोस रूप देना था जिसके पहले  सभापति डा सच्चिदानंद सिन्हा और दूसरे तथा अंतिम सभापति डा राजेन्द्र प्रसाद थे।
*
मुझे तो डर लग रहा है कि जैसे पंडित वीर जवाहरलाल ने गाँधी जी से टोपी लेकर गाँधीवाद को टोपी पहना दी, नागार्जुन ने संस्कृत में बौद्ध धर्म को लिखकर भगवान बुद्ध को देशनिकाला दे दिया वैसे ही कहीं ई चिंतक भाई लोग आपकी विशालकाय मूर्तियाँ बनाकर आपके काम को जय-भीमिया न दे।चेलों ने किसको छोड़ा है कि आपको छोड़ेंगे।
 *
पार्ट-2:
आप पूछेंगे कि नेहरू जी ने गाँधीवाद को कैसे टोपी पहनाई क्योंकि वे तो गाँधी जी के स्वघोषित उत्तराधिकारी थे? तो सुनिए आगे का हवाल।आपके जमाने में ही नेहरू जी के बेटी-दामाद 'गाँधी' हो गए थे।फिर नाती राजीव और संजय भी गाँधी हुए तथा परनाती राहुल गाँधी।इतना ही नहीं, राॅबर्ट वाड्रा से शादी के बावजूद प्रियंका गाँधी प्रियंका वाड्रा के रूप में नहीं जानी जातीं।इस तरह नेहरू जी के गाँधी परिवार ने काँग्रेस को फैमिली बिजनेस पार्टी बना दिया।लो हो गई काँग्रेस भंग!
*
आपको याद होगा कि आजादी के बाद नेहरू जी की किसी हरकत से आहत होकर बापू ने कहा था कि काँग्रेस को भंग कर देना चाहिए। अब आपको समझ आ गया होगा कि नेहरू जी ने कितनी उदारता और निष्ठा से बापू की अंतिम इच्छा पूरी की।
*
आज के दलित चिंतक भी गाँधी के उत्तराधिकारी पंडित वीर जवाहरलाल से काफी प्रेरित लगते हैं।आपकी हर बात को ब्रह्मवाक्य मानते हैं।कहते हैं बाबा साहेब सब पढ़ चुके थे, हमें अब उसपर अमल करना है, पढ़ने-लिखने और ठोकने-ठेठाने-जाँचने-परखने का अभी टाइम नहीं है!
उनका चले तो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कानून में संशोधन करवा कर आपकी कही बातों पर तर्क-वितर्क को प्रतिबंधित करवा दें--एक दम कुराने पाक के आयतों की तरह।लोग तो दबी जुबान से यह कहने भी लगे हैं कि दलित आलोचक वो होते हैं जो अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते।
*
बाबा साहेब, दलित चिंतकों की आज की दिशा के लिए एक हद तक आप भी जिम्मेदार हैं।आप अगर ईसाई या मुसलमान हो गए होते तो ये बखेरा ही नहीं खड़ा होता।आपने हिन्दू धर्म से राम-राम कर बौद्ध धर्म क्यों अपनाया? आप कहेंगे: धर्म से धर्म में जाना स्वाभाविक है न कि मजहब या रिलीजन में क्योंकि धर्म कर्तव्य और बुद्धि-विवेक पर आधारित है जबकि रिलीजन-मजहब खास किताबों पर।लेकिन यहाँ तो आपके ऑफिशियल चेले अपनी बौद्धिकता को ताक पर रख मोसल्लम ईमान के साथ विवेक और तथ्य से आँखें मूँद भारतीयता को तारतार करनेवाले इवांजेलिस्ट गिरोहों की गोद में जा बैठे हैं।
*
आज पादरियों और मुल्लों का मतांतरण सिंडिकेट आपसे बदला ले रहा है।जब वे थैली भर-भर कर लाइन लगाये खड़े थे कि आप उनके रिलीजन या मजहब की शरण में जाएँ और उनके बताये रास्ते से ही हैवेन या ज़न्नत का रुख करें तब आपने निर्वाण के रास्ते को चुनकर उनका अपमान किया।आज वे सूद समेत आपसे ही क्यों पूरे देश से बदला ले रहे हैं।ऐसा सूँघनी मंत्र फूँका है कि आपके चेले उनकी थैली के थाले से चिपक गए हैं।आलम यह है कि इस देश के हर मुद्दे पर निष्कर्ष उनके होते हैं और दस्तखत दलित चिंतकों के।
*
पार्ट- 3
पिछले दिनों मनुस्मृति जलानेवाले मित्रों से यूँ ही जानकारी के लिए पूछ लिया कि आपमें कितनों ने इस ग्रंथ को जलाने के पहले पढ़ने का कष्ट उठाया है? जवाब मिला कि इस बावत बाबा साहेब ने जो फरमाया वह फुल-एंड-फाइनल है, कोई 'भूलचूक लेनीदेनी' नहीं है।
*
मैंने सोचा अब अपन ही कुछ देह हिलायें तो बात बने।पंजाब-हरियाण हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश
एम. रामा जोइस की पुस्तक Ancient Indian Laws (Universal, 2003)में उल्लिखित निम्न श्लोक पर नज़र पड़ी तो मैं भौंचक रह गया:
"परित्यजेदर्थकामौ यौ स्यातां धर्मवर्जितौ ।
धर्म चाप्यपिसुखोदर्कं लोकविक्रुष्टमेव च ।।"
(मनुस्मृति-IV, 176)
(धर्म विरुद्ध धनार्जन और कामना त्याज्य है, धर्म के वे नियम भी त्याज्य हैं जिनसे कुछ लोगों को दुःख होता हो या जनाक्रोश फैलता हो।)
*
इससे यह साबित होता है कि यह श्लोक तो मनुस्मृति का मूल-वाक्य है जो इसके किसी भी नियम को मानवीय-सामाजिक-राजनैतिक आधार पर बदलने की छूट देता है!
ऐसा अनेक बार हुआ है कि संसद में पास कानून को सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक करार देता है या फिर संविधान में ही सौ से अधिक संशोधन हो चुके चुके हैं। इससे क्या पूरा संविधान फालतू हो गया? संसद के बनाये सारे कानून फालतू हो गए? समय के साथ बेकार हो गए कुछ नियमों के आधार पर  अगर मनु स्मृति को जलाना तार्किक है तो भारतीय संविधान को तो जलाना भी एकदम तार्किक होगा, हमारे एकमात्र 'संविधान निर्माता' डा साहेब!
क्या आपका ध्यान इस ओर एकदम नहीं गया था?
*
यह तो समझ में आता है कि आपको संस्कृत सीखने का अवसर नहीं मिला और मूल किताबों को आप नहीं पढ़ पाए।फिर आपके राजनैतिक जीवन की भी अपनी व्यस्तताएँ कम नहीं रही होंगी।सो आपको मूलतः एम ए शेरिंग सरीखे मतांतरण के भूखे ईसाई पादरियों के भ्रष्ट अनुवादों पर निर्भर रहना पड़ा।इलाहाबाद के डा त्रिभुवन सिंह ने अपने अद्यतन शोधों (www.tribhuvanuvach.blogspot.in) से यह साबित किया है कि '... जात,जाति, वर्ण, सवर्ण, अवर्ण,शूद्र, वर्णाश्रम, जातिप्रथा, छुआछूत आदि मामलों में डा अंबेडकर ईसाई मिशनरियों के फर्जी अनुवादों के जाल में फँस गए'।
*
लेकिन बाबा साहेब, तबतक तो आपके गौरांग महाप्रभु लाॅर्ड मैकाले द्वारा भारत में अधिष्ठित देववाणी अंग्रेज़ी में भी कुछ किताबें आ गईं थीं {The Case for India (Durant, 1930) ; India in Bondage (Sunderland, 1929)} जो भारत के न सिर्फ आर्थिक और राजनैतिक बल्कि सामाजिक अधोपतन (जातिप्रथा, छुआछूत, अशिक्षा आदि) में भी अंग्रेज़ी हुकूमत और ईशाई मिशनरियों की साजिशी भूमिका का पर्दाफाश करती थीं-ऐसी साजिश जिसके तहत हिन्दू समाज को छुआछूत और ऊँचनीच के लिए वैसे ही जिम्मेदार ठहराया गया जैसे किसी बलात्कार-पीड़िता के माँ-बाप को यह कहा जाए कि 'लड़के तो बलात्कार करेंगे ही, आपकी गलती है कि आपने लड़की पैदा ही क्यों की'!
यानी 'घोड़ा खुला है घोड़ी बाँधकर रखो'।
*
आपको शायद याद हो कि इन किताबों को बरतानवी सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था।वैसे भारत-दुर्दशा पर 1904 में मराठी मूल के सखाराम देउस्कर द्वारा लिखित बाँग्ला पुस्तक  'देशेर कथा' की 13000 प्रतियाँ 1908 तक बिक चुकी थीं यानी आज के मुहावरे में बेस्ट सेलर! इसे भी 28 सितंबर 1910 को जब्त  कर लिया गया जिसकी खबर 30 सितंबर 1910 को 'हितवाद' समेत सिर्फ दो अखबारों में छपी।
*
संभव है प्रतिबंधित होने के कारण और गौरांग महाप्रभुओं को नाहक नाराज न करने के उद्देश्य से आपने इन किताबों पर अपनी नज़र फेरना उचित नहीं समझा हो।यह भी संभव है कि दुनिया के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों से उच्चतम शिक्षा (कोलंबिया से कानून और लंदन से अर्थशास्त्र में पी.एच डी) हासिल करने के बावजूद खुद छुआछूत का शिकार होने के कारण पैदा आक्रोश का आपके चिंतन पर असर पड़ा हो।और, स्वाभाविक रूप से दो सौ साल में पैदा हुई स्थिति को सुदूर अतीत पर आपने प्रत्यारोपित कर दिया और तब के बुद्धिजीवी वर्ग यानी ब्राह्मणों को इसके लिए जिम्मेदार माना।
*
लेकिन बाबा साहेब, आजादी से कुछ सालों पहले (1940) अपनी पुस्तक Thoughts on Pakistan और आजादी के बाद में मतांतरण-लोभी पादरी-मुल्लों की थैलियों पर लात मारकर आपने साबित किया कि आपमें देश-दुनिया की स्वतंत्र समझ रखने की न सिर्फ क्षमता थी बल्कि उस पर अमल करने का नैतिक साहस भी।ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे अंग्रेज़ी शासन के दिन करीब आते गए वैसे-वैसे आपका पैनापन बढ़ता गया।
*
फिर भी डा साहेब, यह बात एकदम हजम नहीं होती कि 2 फरवरी 1838 को बरतानवी संसद में लाॅर्ड मैकाले के भाषण की प्रति आपके हाथ न लगी हो जिसमें उसने साफ-साफ कहा था कि भारत की सामाजिक-आर्थिक-शैक्षिक-नैतिक समृद्धि को तहस-नहस किए बगैर इस देश को ज्यादा समय तक गुलाम नहीं रखा जा सकता; और यह महान उद्देश्य भारत की भाषाओं की जगह अंग्रेज़ी को थोपकर ही प्राप्त किया जा सकता है।
फिर भी आपने अंग्रेज़ी को 'पितृभाषा' का दर्जा दिया?
 वैसे मेरा मन कहता है कि आपने इसमें भी कुछ अच्छा सोचा होगा।आप 64 विषयों के मास्टर के अलावा दो पी.एचडी समेत आठ डिग्रियों के धारक जो थे!
(जारी...)

Thursday, April 14, 2016

बाबा साहेब अंबेडकर के नाम खतः 1-2

बाबा साहेब,
जय भीम जय भारत!
पता नहीं क्यों आज (14 अप्रैल) आपकी याद आते ही बाबू बालमुकुन्द गुप्त के 'शिवशंभो के चिट्ठे' भी याद या गए सो थोड़ी बूटी छानी और चढ़ा ली।फिर होश ही नहीं रहा कि आपको खत लिखने के पहले कंठ लंगोट  (टाई) बाँध लें।
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इसी चक्कर में एक और ब्लंडर हो गया।आप समझ ही गए होंगे कि भाँग की जगह अगर शराब पी होती तो अभी अंग्रेज़ी में लिख रहे होते और आपको वीर सावरकर की मदद से  हिन्दी में लिखी पाती पढ़ने की नौबत नहीं आती।
लेकिन मुझे विश्वास है कि लार्ड मैकाले हमें हिन्दी में खत लिखने और आपको पढ़वाकर सुनने की गलती के लिए माफ कर देंगे क्योंकि वे तो काले अंग्रेज़ों के लिए भगवान ईशू की तरह हैं और ईशू तो कन्फेशन के बाद हजार गलतियाँ भी माफ कर देते हैं।
*
पार्ट-1:
खैर अब आते हैं मुद्दे पर।यह पाती पाती कम और स्वयंभू दलित चिंतकों की चुगली ज्यादा है।आप तो जानते ही हैं कि आजकल ई भाई लोग आपको भारत के एकमात्र संविधान -निर्माता के रूप में मार्केट कर रहा है जबकि संविधान सभा की अंतिम बैठक (26 नवंबर 1949? ) को संबोधित करते हुए आपने साफ-साफ स्वीकार किया था कि आपका मुख्य काम संविधान-सभा द्वारा स्वीकृत बातों को कागज पर उतारना था, उस संविधान सभा की बहसों को ठोस रूप देना था जिसके पहले  सभापति डा सच्चिदानंद सिन्हा और दूसरे तथा अंतिम सभापति डा राजेन्द्र प्रसाद थे।
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मुझे तो डर लग रहा है कि जैसे पंडित वीर जवाहरलाल ने गाँधी जी से टोपी लेकर गाँधीवाद को टोपी पहना दी, नागार्जुन ने संस्कृत में बौद्ध धर्म को लिखकर भगवान बुद्ध को देशनिकाला दे दिया वैसे ही कहीं ई चिंतक भाई लोग आपकी विशालकाय मूर्तियाँ बनाकर आपके काम को जय-भीमिया न दे।चेलों ने किसको छोड़ा है कि आपको छोड़ेंगे।
 *
पार्ट-2:
आप पूछेंगे कि नेहरू जी ने गाँधीवाद को कैसे टोपी पहनाई क्योंकि वे तो गाँधी जी के स्वघोषित उत्तराधिकारी थे? तो सुनिए आगे का हवाल।आपके जमाने में ही नेहरू जी के बेटी-दामाद 'गाँधी' हो गए थे।फिर नाती राजीव और संजय भी गाँधी हुए तथा परनाती राहुल गाँधी।इतना ही नहीं, राॅबर्ट वाड्रा से शादी के बावजूद प्रियंका गाँधी प्रियंका वाड्रा के रूप में नहीं जानी जातीं।इस तरह नेहरू जी के गाँधी परिवार ने काँग्रेस को फैमिली बिजनेस पार्टी बना दिया।लो हो गई काँग्रेस भंग!
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आपको याद होगा कि आजादी के बाद नेहरू जी की किसी हरकत से आहत होकर बापू ने कहा था कि काँग्रेस को भंग कर देना चाहिए। अब आपको समझ आ गया होगा कि नेहरू जी ने कितनी उदारता और निष्ठा से बापू की अंतिम इच्छा पूरी की।
*
आज के दलित चिंतक भी गाँधी के उत्तराधिकारी पंडित वीर जवाहरलाल से काफी प्रेरित लगते हैं।आपकी हर बात को ब्रह्मवाक्य मानते हैं।कहते हैं बाबा साहेब सब पढ़ चुके थे, हमें अब उसपर अमल करना है, पढ़ने-लिखने और ठोकने-ठेठाने-जाँचने-परखने का अभी टाइम नहीं है!
उनका चले तो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कानून में संशोधन करवा कर आपकी कही बातों पर तर्क-वितर्क को प्रतिबंधित करवा दें--एक दम कुराने पाक के आयतों की तरह।लोग तो दबी जुबान से यह कहने भी लगे हैं कि दलित आलोचक वो होते हैं जो अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते।
*

बाबा साहेब, दलित चिंतकों की आज की दिशा के लिए एक हद तक आप भी जिम्मेदार हैं।आप अगर ईसाई या मुसलमान हो गए होते तो ये बखेरा ही नहीं खड़ा होता।आपने हिन्दू धर्म से राम-राम कर बौद्ध धर्म क्यों अपनाया? आप कहेंगे: धर्म से धर्म में जाना स्वाभाविक है न कि मजहब या रिलीजन में क्योंकि धर्म कर्तव्य और बुद्धि-विवेक पर आधारित है जबकि रिलीजन-मजहब खास किताबों पर।लेकिन यहाँ तो आपके ऑफिशियल चेले अपनी बौद्धिकता को ताक पर रख मोसल्लम ईमान के साथ विवेक और तथ्य से आँखें मूँद भारतीयता को तारतार करनेवाले इवांजेलिस्ट गिरोहों की गोद में जा बैठे हैं।
*
आज पादरियों और मुल्लों का मतांतरण सिंडिकेट आपसे बदला ले रहा है।जब वे थैली भर-भर कर लाइन लगाये खड़े थे कि आप उनके रिलीजन या मजहब की शरण में जाएँ और उनके बताये रास्ते से ही हैवेन या ज़न्नत का रुख करें तब आपने निर्वाण के रास्ते को चुनकर उनका अपमान किया।आज वे सूद समेत आपसे ही क्यों पूरे देश से बदला ले रहे हैं।ऐसा सूँघनी मंत्र फूँका है कि आपके चेले उनकी थैली के थाले से चिपक गए हैं।आलम यह है कि इस देश के हर मुद्दे पर निष्कर्ष उनके होते हैं और दस्तखत दलित चिंतकों के।
(जारी...)

बाबा साहेब अंबेडकर के नाम खत-1

बाबा साहेब,
जय भीम जय भारत!
पता नहीं क्यों आज (14 अप्रैल) आपकी याद आते ही बाबू बालमुकुन्द गुप्त के 'शिवशंभो के चिट्ठे' भी याद या गए सो थोड़ी बूटी छानी और चढ़ा ली।फिर होश ही नहीं रहा कि आपको खत लिखने के पहले कंठ लंगोट  (टाई) बाँध लें।
*
इसी चक्कर में एक और ब्लंडर हो गया।आप समझ ही गए होंगे कि भाँग की जगह अगर शराब पी होती तो अभी अंग्रेज़ी में लिख रहे होते और आपको वीर सावरकर की मदद से  हिन्दी में लिखी पाती पढ़ने की नौबत नहीं आती।
लेकिन मुझे विश्वास है कि लार्ड मैकाले हमें हिन्दी में खत लिखने और आपको पढ़वाकर सुनने की गलती के लिए माफ कर देंगे क्योंकि वे तो काले अंग्रेज़ों के लिए भगवान ईशू की तरह हैं और ईशू तो कन्फेशन के बाद हजार गलतियाँ भी माफ कर देते हैं।
*
खैर अब आते हैं मुद्दे पर।यह पाती पाती कम और स्वयंभू दलित चिंतकों की चुगली ज्यादा है।आप तो जानते ही हैं कि आजकल ई भाई लोग आपको भारत के एकमात्र संविधान -निर्माता के रूप में मार्केट कर रहा है जबकि संविधान सभा की अंतिम बैठक (26 नवंबर 1949? ) को संबोधित करते हुए आपने साफ-साफ स्वीकार किया था कि आपका मुख्य काम संविधान-सभा द्वारा स्वीकृत बातों को कागज पर उतारना था, उस संविधान सभा की बहसों को ठोस रूप देना था जिसके पहले  सभापति डा सच्चिदानंद सिन्हा और दूसरे तथा अंतिम सभापति डा राजेन्द्र प्रसाद थे।
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मुझे तो डर लग रहा है कि जैसे पंडित वीर जवाहरलाल ने गाँधी जी से टोपी लेकर गाँधीवाद को टोपी पहना दी, नागार्जुन ने संस्कृत में बौद्ध धर्म को लिखकर भगवान बुद्ध को देशनिकाला दे दिया वैसे ही कहीं ई चिंतक भाई लोग आपकी विशालकाय मूर्तियाँ बनाकर आपके काम को जय-भीमिया न दे।चेलों ने किसको छोड़ा है कि आपको छोड़ेंगे।
(जारी...)

Monday, April 11, 2016

शिंगनापुर शनिमंदिर : कामरेड के नाम ख़त

कामरेड,
लाल सलाम! केमोन आछेन? भालो!
इधर महाराष्ट्र के #शनिमंदिर मामले पर आपने और आपके इवांजेलिस्ट-इस्लामी साथियों ने काफी बवाल काटा और हिन्दू कट्टरपंथी जमात को उसकी औकात बता दी।बधाई हो! आपके इस योगदान को नहीं भूलेगा हिन्दुस्तान ।
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लेकिन #कामरेड, तीन तलाक-चार शादियाँ-72 हूरों के लिए #जेहाद-#शाहबानो केस-कोख पर मुस्लिम महिलाओं के अधिकार-मस्जिदों में पुरुषों जैसे प्रार्थना के अधिकार-सरकारी मदद से चलनेवाले मदरसों में हिन्दुस्तान और संविधान-विरोधी पाठ्यक्रम आदि पर कभी आपका  ध्यान गया? इसको कहते हैं 'सेलेक्टिव एमनेसिया' जिससे भारत का सेकुलर-लिबरल-इस्लामी-इवांजेलिस्ट -नक्काल वामपंथ ग्रस्त है।अपनी मूल विचारधारा से भी दूर एक कटी पतंग की तरह।
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क्या तथ्य और आँकड़े कभी सपने में भी आपसे सवाल नहीं पूछते? तर्क से तीन-तलाक  हो गया है? आपकी इस विस्मृति का क्या कारण है?
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लाखों #कश्मीरी_हिन्दुओं के पलायन और सैकड़ों के नरसंहार-बलात्कार पर किसी वामी बालीवुड डायरेक्टर का ध्यान कभी क्यों नहीं गया? महेश भट्टों और श्याम बेनेगलों को सिर्फ मुसलमानी ख़ून ख़ून लगता है, बाकी पानी?
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#गुजरात_दंगों पर हाय-हाय करते  वक्त #गोधरा में ट्रेन-डिब्बे में जिन्दा जलाकर मार दिए गए कारसेवक और दिल्ली दंगों में मारे गए सिख याद नहीं आते? इतनी बेशर्मी कहाँ से पाई, इतना कुतर्क कहाँ से पाया?
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कभी इस्लाम की मूल किताबों को एक बार पढ़ने की कोशिश की जिसमें दारुल हरब, दारुलस्सलाम, काफ़िर वाजिबुल-क़त्ल और ग़ज़वा-ए-हिन्द के बारे में स्पष्ट लिखा है? क्या आपने कभी पता लगाने की कोशिश भी कि ये अवधारणाएँ दारुल उलूम (देवबंद) समेत भारत के ग़ैर-हनफ़ी मदरसों के   पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा हैं जिस कारण सरकारी खर्च पर चलने वाले  ये मदरसे जेहाद की फैक्टरी बनकर रह गए हैं?
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आपने धरना-प्रदर्शन के अपने अति-व्यस्त कार्यक्रम से थोड़ा सा समय निकालकर कभी यह पता लगाया कि गैर-मुसलमानों और जेहाद-विरोधियों की  हत्या को मजहबी-दार्शनिक जामा पहनाने वाली इन चार अवधारणाओं का
कश्मीर में हिन्दुओं के जातिनाश से गहरा संबंध हो सकता है?
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कभी पाकिस्तान- बाँग्लादेश में अल्पसंख्यकों की बेतहाशा गिरती आबादी पर नजर गई है? इन अभागों पर कोई गीत-कहानी-नाटक-उपन्यास आदि लिखने का ख्याल भी आया?
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जो काम आज भारत के कम्युनिस्ट कर रहे हैं वो सिर्फ और सिर्फ पेड एजेंट करते हैं लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि कुछ शीर्ष लोगों को छोड़ बाकी को छदाम भी नसीब नहीं होता होगा सिवाय इसी दुनिया में 'क़यामत के बाद के 72-हूरों वाली सामी ज़न्नत' के!
भूल-चूक लेनी-देनी,
लाल सलाम! लाल सलाम!!

नोटः
1. #दारुल_हरब : वे इलाके जहाँ इस्लामी शासन नहीं है और जहाँ इस्लामी शासन लाना हर मुसलमान का मजहबी फ़र्ज़ है। इस कर्म को जेहाद कहा जाता है और ऐसा करनेवाले को जेहादी।
2. #दारुल_इस्लाम: वे इलाके जहाँ इस्लामी यानी शरियत के नियमों के हिसाब से शासन चलता है, जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, पाकिस्तान आदि ।
3. #काफ़िर_वाजिबुल_क़त्ल: बहुदेव वादियों जैसे हिन्दुओं की हत्या जायज़
4. #ग़ज़वा_ए_हिन्द: युद्ध/जेहाद के द्वारा हिन्दुस्तान पर कब्जा कर उसे दारुल इस्लाम में तब्दील करना। जिस किसी को ग़ाज़ी की उपाधि मिली होगी उसने जरूर यह साबित किया होगा कि उसने या तो काफ़िरों को चाहे जैसे हो मुसलमान बनाया या फिर उनपर ज़ुल्मोसितम ढाये या फिर उनका क़त्ल
किया।
इसी से अनुमान लगाइए कि #औरंगज़ेब को
#ग़ाज़ीपीर क्यों कहा जाता है या फिर #ग़ाज़ियाबाद या #ग़ाज़ीपुर जिन महापुरुषों के नाम पर हैं उन महापुरुषों ने क्या-क्या और कितने महान काम किए होंगे!

Tuesday, April 5, 2016

आईपी यूनीवर्सिटी की नेशनल रैंकिंग 21, लेकिन खुशी किसे है कैसे पता चलेगा!

(हमारी आई पी यूनिवर्सिटी की नेशनल रैंकिंग 21 आने पर भी खुलकर खुशी सिर्फ प्रो सरोज शर्मा ने जताई, बाकी सब मौनी बाबा बने रहे।इसी पर पहली बार यह पोस्ट यूनिवर्सिटी शिक्षकों-कर्मचारियों के एक ह्वाट्सऐप ग्रुप पर थोड़ी देर पहले लिखी गई जो 19 वीं सदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार बालमुकुंद गुप्त के काॅलम 'शिवशंभो के चिट्ठे' से प्रेरित है।)
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अरे, आपने तो कुफ़्र बरपा कर दिया, प्रो सरोज शर्मा! इससे तो पूरा क्रेडिट प्रो अग्रवाल(पहले कुलपति) और प्रो बंद्योपाध्याय (दूसरे कुलपति) को मिल जाएगा क्योंकि 18 सालों में तो सिर्फ दो ही साल हुए हैं प्रो त्यागी के? कहीं वे नाराज हो गए तो? बाप रे! अब क्या होगा?
खैर, आपको बहुत-बहुत बधाई कि आपने विश्वविद्यालय की उपलब्धि पर खुशी जाहिर की , उस विश्वविद्यालय की जिसके वर्तमान कुलपति प्रो त्यागी हैं और जिनको, मेरा विश्वास है, विश्वविद्यालय की इस उपलब्धि पर नैसर्गिक खुशी हुई होगी, वैसे ही जैसे प्रो अग्रवाल और प्रो बंद्योपाध्याय को।
दूसरी बात, किसी भी विश्वविद्यालय को 'कुलपति' से ज्यादा वे 'कुल' बनाते हैं जिनके के वे 'पति' होते हैं।कोई शक?
हे, बुद्धि की प्रतिमूर्ति पेनड्राइव सरीखे नक्काल पद-अधिकारी (आपके बारे में नोबेल विजेता आक्टेवियो पाज़ ने यही कहा था) बेजुबान वर्ग, चलिये आपकी खुशी व्यक्त करने की सुपारी मैं लेता हूँ और अपने विश्वविद्यालय कुल के कुलपति समेत समस्त कुल को बधाई देता हूँ ।
याद रखिए, आपके विदेशी मानस माता-पिता आपको गौरवान्वित होने का टाॅनिक नहीं देंगे, नहीं ही देंगे।यह आपको खुद अपने अंदर पैदा करना होगा।
इस देश के पास बुद्धि की कभी कमी नहीं थी, पिछले हजार सालों की गुलामी ने जरूर इसके अंदर कूट-कूटकर कायरता भर दी थी जिसका इजहार अभी आपलोगों ने किया।लेकिन प्रो सरोज शर्मा, प्रो विजेता सिंह और डा वत्स को कोटिशः नमन खुशी को अभिव्यक्त करने की पहल के लिए।

आपलोगों में से कितनों की टेक्स्ट बुक किसी प्रतिष्ठित प्रकाशन समूह से 35 साल की आयु में प्रकाशित हुई थी? वह भी समसामयिक चुनौतीपूर्ण विषय पर?

अगर आपकी अंतरात्मा जिन्दा बची हो तो अपने ही  विश्वविद्यालय के पीएचडी स्कालर सुरेश कुमार के प्रति जो भी आपके भाव हों (खुशी के ही होंगे, होंगे न?) जरूर व्यक्त करियेगा।

(नोटः इस पोस्ट से किसी की भावना आहत होती हो तो मेरे खिलाफ सीधे अदालत जाये, वकील और खर्च मेरा।मतलब यह कि बकलोली और सत्यनारायण कथा के अलावा अपनी असली उपलब्धियों पर झूमना सीखिये।)
+++++++प्रो सी पी सिंह+++++++




Today its JNU, tomorrow(2025) it will be Pvt Universities...India's very own Ivy League!

"Prof. Vivek Kumar(CSSS/SSS/
Why no Private Technology Management University or Institute in the top ten?.
Do they have merit? HA HA HA HA ....."



Myself:
I am working in a govt university and have worked with pvt institutions too. Wait for another 10 years, you will be asking a reverse question, Prof Kumar.
But I will not end up with Ha Ha Ha Ha!
Why?
Because both the sectors have their roles cut out and may both compete with the best in the world rather than suffer from the frog-in-the-well syndrome.
*
I feel inspired by the IVY league universities with pvt institutions in the main. Why can't the pvt institutions outcompete the govt ones? What about the pvt schools and some colleges in India?
*
Why was the trioka of liberalization-privatization-globalization adopted and govt control of industry forsaken in India?
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By the way,  what's is relative significance of the JNU Social Sciences etc in that NIFR ranking? The disciplines that are known more for ideological pamphleteering rather than prospective and positive research?
*
In this sense, JNU's top ranking hides more than it says...
The Ideological Pamphleteering and Debauchery in Social Sciences is more than made up by the Pure Sciences whose faculty and students are known for their nationalistic moorings.
The Pure Sciences faculty and students were branded as UNSCIENTIFIC by their pamphleteering Social Science counterparts!
*
I bet, in 2025, the top ranks will be dominated by the Pvt Universities.

*
In the mean time, I join you in celebrating the top rank our alma mater JNU has got. Cheers!

Monday, April 4, 2016

तंज़ील देशद्रोही होते तो उनके परिवार का दामन नोटों और सहानुभूति से भर दिया जाता!!

तंज़ील देशद्रोही होते तो उनके परिवार का दामन नोटों और सहानुभूति से भर दिया जाता!!

कश्मीर की आज़ादी की दिवानी निवेदिता मेनन,  उनके चेले उमर खालिद और कन्हैया कुमार, भारत के टुकड़े-टुकड़े करनेवालों के साथ खड़े  राष्ट्रवाद के पुरोधा इरफान हबीब, रोमिला थापर,  हरबंस मुखिया और जेएनयू का बाकी अफ़ज़ल प्रेमी गैंग अभी अपनी पिछली जयचंदी करतूतों के लिए मिली  वाहवाही के नशे से उबरा नहीं है !
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फिर यूपी में अभी चुनाव भी नहीं हो रहे जहाँ तंज़ील की हत्या हुई है।अगर तंज़ील अहमद देशद्रोही होते तो आज उनके परिवार का दामन नोटों और सहानुभूति से भर दिया जाता!!

A must read Hindi book on ONLINE MEDIA published by PEARSON

Mr Suresh Kumar, a Ph. D scholar, University School of Mass Communication, GGS Indraprastha University, Delhi, does it again with his book titled ONLINE MEDIA published by PEARSON.
The book is first of its kind in any Indian language including English that deals with the convergence of communication technologies and the   consequential knowledge about the content without ignoring the strategic business requirements.
A must read for all the stakeholders including graduate students, practitioners and the researchers interested in the operational aspects of the New Media platforms.

Sunday, April 3, 2016

Syrian Refugees Crisis: Preparing for the 21st Century Crusade?

The US will keep manufacturing facts to ensure that Muslims end up finishing each other and thus they(US) reap the richest harvest in this intra-civilizational clash( instead of inter-civiliztional as forcast by Hutington).
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That's why Saddam was thrown out and   not only the Iraq-Syria govts and the ISIS both get the US support! The  US is also fighting Europe through Syrian /Muslim refugees.
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The Arab and the West Asian countries are rich and expansive yet not accepting the refugees. Why?  Because their clergy sees  in this US-created crisis an opportunity to extend Jehad to Europe and the Kingdoms an opportunity to delay the rise of 'lurking fang of democracy' in their respective territories.
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On the other hand, the European countries see in this an opportunity to increase their young population in the short run and in the long run, when the migrant Jehadis antagonize the local populations through their violence acts that have already started, justify their direct interventions in  the oil-rich countries. This is reminiscent of the circumstances leading to the emergence of Hitler during 1930s.
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This is a fight for sustaining economic hegemony in which ISLAM comes handy for the West because of its embedded espousal of violence.
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In India from AwardWapsi to Malda to Vemula to Patidar and Jat violence, you have the hand of the US funded NGOs.
Here, what I see is that the Muslims are almost unaware of the Majority's Minority Syndrome which, if not addressed in time, will have dangerous implications.
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I foresee  ISLAMIZATION (no offences meant) of Hindus in clear terms as much as I see the Jehadist Threat to India.
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Europe and the US have laid the honey-trap and till date things appear to have moved as per their design. Even the Jehadis and the Islamic kingdoms have reasons to be happy about.
But one thing that the Jehadis are missing is that the combined intelligence and the firepower of the West may prove matchless. In the long run, only the TIME will tell who will out-manoeuvre whom in the game of strategically desired transition from the current low-scale violence to tomorrow's full-scale war.
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But today all the stakeholders are in the delirium-driven assurance what,  for want of better expression, may be called a WIN-WIN SITUATION!

Tribhuwan Singh Shailendra Dhar
Tufail Ahmad Tarek Fatah  Tufail Chaturvedi  #PMOIndia #NSA #HMOIndia #AjitDoval

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