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Saturday, July 16, 2016

आओ खेलें इस्लाम-इस्लाम, हो रहा अंदर-बाहर क़त्लेआम

आओ खेलें इस्लाम-इस्लाम

चलो पढ़ते हैं हदीसो क़ुरआन
जाये भाड़ में कबीर-ओ- कलाम
अपना प्यारा हो वानी बुरहान
आओ खेलते हैं इस्लाम-इस्लाम।
*
कहते हैं सब सलाम-सलाम
न छोड़े कोई काम हराम
शरीफ़ों की जुबान है जाम
आओ खेलते हैं इस्लाम-इस्लाम।
*
इंसानियत का बजा रहा ढोल इंसान
बाज़ार में है छाया सच्चा मुसलमान
जो लाये यज़ीद का सच्चा पैग़ाम
आओ खेलते हैं इस्लाम-इस्लाम।
*
चलो पढ़ते हैं हदीसो क़ुरआन
हो रहा अंदर-बाहर क़त्लेआम
इंसान से लड़े वो सच्चा मुसलमान
कब तक खेलेंगे इस्लाम-इस्लाम?

कश्मीरी हिन्दू क्यों आतंकवादी नहीं बने?

जुल्मोसितम से तंग आकर अगर दहशतगर्द  बनते हैं तो:
कश्मीरी मुसलमानों से पहले कश्मीरी हिंदुओं को दहशतगर्द बनना चाहिए...
ईरान से जलावतन हुए पारसियों को दहशतगर्द बनना चाहिए...
सीरिया से लेकर कांधार तक के बौद्धों को दहशतगर्द बनना चाहिए जिन्हें तलवार या इस्लाम के अलावा कोई विकल्प ही नहीं दिया गया...
यहूदियों को दहशतगर्द बनना चाहिए जिन्हें 2000 हज़ार साल पहले मादरेवतन से खदेड़ दिया गया था...

Friday, July 15, 2016

मुस्लिम मानस को डिकोड कैसे करें?

मुस्लिम मानस को डिकोड करने की क़वायद

पूरी दुनिया में इस्लामी आतंकवाद के जाल को देखकर लगता है कि पाकिस्तान का बनना ज़रूरी था।अगर पाकिस्तान, जिससे बाद में बांग्लादेश अलग बना, आज भारत का हिस्सा होता तो भारत का हाल इराक़ और सीरिया जैसा होता क्योंकि तब शान्तिदूत एक तिहाई होते।
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बाबा साहेब अम्बेडकर ने 1940 में लिखी पुस्तक 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' में साफ़-साफ़ कहा था कि अगर देश का बँटवारा होता है तो हिन्दू-मुस्लिम आबादी की सम्पूर्ण अदला-बदली होनी चाहिये।उनका मानना था कि ऐसा नहीं हुआ तो भारत में धीरे-धीरे भविष्य का 'पाकिस्तान' पलता रहेगा क्योंकि एक औसत मुसलमान क़ुरआन से बंधा है न कि देश या राष्ट्र की सीमाओं से।उन्होंने तो यहाँ तक आशंका जतायी थी कि किसी पड़ोसी इस्लामी देश से लड़ाई में मुस्लिम बहुल फौज के हमलावर से मिलाने का ख़तरा भी होगा। अभी हाल में अमेरिकी मुस्लिम संस्थान CAIR के एक अश्वेत अधिकारी ने स्पष्ट कहा कि 'एक मुसलमान के रूप में मैं अमेरिकी क़ायदे-क़ानून से ऊपर हूँ'।
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नेहरू की नासमझी और गाँधी की अति उदारता के आगे बाबा साहेब की एक नहीं चली।अविभाजित भारत के एक-तिहाई मुसलमान-बहुल इलाक़ों से हिन्दू या तो किसी तरह जान बचाकर भागे या फिर मुसलमान बनने को मजबूर हुए।आज पाकिस्तान में हिन्दू आबादी 22 % से गिरकर 1 % रह गई है।
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इसका अपवाद था तो भारत में विलयित कश्मीर पर वह भी 1990 में निज़ामे मुस्तफ़ा के कौल पर  पाकिस्तान की राह पर चल निकला: वहाँ के तीन लाख से ज़्यादा अल्पसंख्यक हिंदुओं को नरसंहार, बलात्कार और जातिनाश झेलना पड़ा, वे अपने ही देश में निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हो गए। लेकिन तब भी हिंदुओं की आँखें नहीं खुलीं, क्यों?
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हिन्दू इस आत्मघाती आस्था के शिकार हैं कि सारे मजहब एक जैसे हैं और यह कि सभी ईश्वर प्राप्ति के अलग-अलग रास्ते हैं।गाँधीजी के प्रिय भजन (ईश्वर-अल्ला तेरो नाम) की मूल भावना भी यही थी।लेकिन यह बात तभी तक सच है जबतक गैर-हिंदुओं की भी इस बात में आस्था हो।यानी अगर इस्लाम के लिये सारे हिन्दू काफ़िर हैं और इन काफ़िरों को अल्लाह के अंतिम पैग़म्बर की अंतिम किताब क़ुरआन के अनुसार या तो इस्लाम कबूल करना होगा या फिर मरने के लिये तैयार, तब तो हिंदुओं का 'सर्वपंथ समभाव' फ़ालतू हो गया न!
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आज जब कश्मीर में आतंकी संगठन हिज़्बुल का कमांडर, जिसके सर पर दस लाख का ईनाम था, बुरहान वानी मारा गया और उसकी मैयत में आये हज़ारों लोगों ने 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' और 'आईएस ज़िंदाबाद' के नारे लगाये तो पूरे हिंदुस्तान के हिंदुओं को झटका लगा।कभी वे पाकिस्तान को कोस रहे तो कभी भारत सरकार को। कभी इसका ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ रहे तो कभी भाजपा पर।
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असल में दोष न कांग्रेस-भाजपा का है न ही पाकिस्तान का।इसके मूल में है 'पाकिस्तान बनाने' का मानस जो एक औसत मुसलमान की समाजी सोच का हिस्सा है।यह सोच उचित माहौल पाकर अपना फ़न फैलाती है।आकस्मिक नहीं है कि पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, बिहार, असम, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलांगना आदि अनेक राज्यों के मुस्लिम-बहुल इलाक़ों में आज न जाने 'कितने पाकिस्तान' पल रहे हैं।
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इसी से जुड़ा सवाल है 'इस्लामी आतंकवाद' पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों का रवैया तथा सिर्फ़ और सिर्फ़ कट्टर छवि वाले मुस्लिम नेताओं की अपने समाज में स्वीकृति।
आतंकवादी घटनाओं पर एक औसत पढ़े-लिखे का क्या रुख होता है?
# ज्यादातर तो वह चुप रहता है;
# या आलोचना करने के तुरंत बाद इसके लिये अमेरिका-इस्राइल-पश्चिमी देशों की नीतियों और पीड़ितों पर इसकी असली जिम्मेदारी थोप पतली गली से निकल लेता है;
# या फिर हिंसा की दूसरी घटनाओं (मसलन सड़क दुर्घटनाओं में ज़्यादा लोग मरते हैं) का हवाला देते हुए आतंकवादी हिंसा को काफ़ी कम महत्व का साबित करता है;
# या शिया मुसलमान हुआ तो यह साबित करने में लग जाता है कि आज का इस्लामी आतंकवाद मूलतः सुन्नियों द्वारा शियाओं के ख़िलाफ़ चलाया गया ख़ूनी अभियान है;
# या अंत में बेरोजगारी-अशिक्षा तथा संघी तालिबान की आड़ में इस्लामी आतंक को रेशनलाइज करने लग जाता है।
*
आप देखेंगे की आतंकवाद की मूल वजह यानी इस्लाम का ग़ैर-इस्लाम घाती रवैये पर कोई भी बात नहीं करना चाहता, क़ुरआन-हदीस-शरीया के ऐसे अंशों को संशोधित करने की बात नहीं करता जिनको उद्धरित करके आईएस अपनी हिंसात्मक कार्रवाई को इस्लामिक करार देता है।ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि औसत पढ़ा-लिखा मुसलमान और अनपढ़ मुसलमान इस पर एकमत हैं कि एक दिन ऐसा आएगा जब पूरी दुनिया में सिर्फ इस्लाम होगा (दारुल इस्लाम) और जिसके लिए प्रयत्न करना हर मुसलमान का फ़र्ज़ है।
*
इस्लामी आतंक का सबसे बड़ा और सबसे लंबे समय तक शिकार रहा देश है भारत।लेकिन संचार क्रांति के कारण अब पूरी दुनिया इसका शिकार हो रही है जिस वजह से भारत की पीड़ा से समानुभूति रखनेवाले अब दूसरे देशों में भी पैदा हो रहे हैं।तब भी यह ध्यान रखने की बात है कि इस्लामी आतंक से निपटने के लिए भारत को टिपिकल हिन्दू गलदश्रु मानसिकता और सेकुलर बकलोली से मुक्ति पानी होगी।इस दिशा में एक मात्र देश जो अपने अनुभव के कारण सच्चा मित्र साबित होगा वह है इस्राइल।
*
ऐसा क्यों है कि भारत के मुसलमान बात-बात में इस्राइल के ख़िलाफ़ झंडा और डंडा उठा लेते हैं? अफ़ज़ल-याकूब-ओवैसी-ज़ाकिर-बुरहान का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन करते हैं लेकिन आजतक इस्लामी आतंकवाद के ख़िलाफ़ सड़क पर नहीं उतरते? क्यों उनके नायक संत कबीर, बाबा बुल्लेशाह, हब्बा ख़ातून, रहीम, रसखान, दारा शिकोह, अजीमुल्ला ख़ान, ज़फ़र, मौलाना आज़ाद और अब्दुल कलाम के बजाय ग़ौरी, ग़ज़नी, लोदी, तुग़लक़, औरंगज़ेब , जिन्ना, अफ़ज़ल गुरु, याकूब मेमन, दाऊद इब्राहिम और बुरहान वानी हो जाते हैं?
*
हिन्दू-बहुल भारत में 25 सालों से तीन मुसलमान बॉलीवुड के सुपरस्टार बने हुए हैं लेकिन कश्मीर घाटी से लाखों हिंदुओं के निर्वासन और हज़ारों की हत्याओं और बलात्कार पर एक भी फ़िल्म नहीं दिखी?

बुरहान प्रेमियों का हुक्का-पानी बंद करने की मुहिम

रवीश कुमार-बरखा दत्त-राजदीप सरदेसाई टाइप बुरहान प्रेमियों का हुक्का-पानी बंद करने की मुहिम अब तक शुरू हुई है कि नहीं?
अगर नहीं तो अभी शुरू होती है।
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इनके और इनके जैसे जयचंदों के मित्र हमें अमित्र करके सेकुलर ज़न्नत में अपने लिए 72 हूरों(विदेश यात्रा, विदेशी पुरस्कार, विदेशी फेलोशिप, बाल-बच्चों को विदेशी स्कालरशिप आदि) की बुकिंग करा लें।
ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा।

मोदी सरकार काँग्रेसियों से कुछ टिप्स ले

संता:राष्ट्रपति शासन के मामले में फ़िर मोदी सरकार को मुँह की खानी पड़ी।
बंता: तो सरकार क्या करे?
संता: काँग्रेसियों से कुछ टिप्स ले।कुल 87 बार राष्ट्रपति शासन लगाने का उनका अनुभव है। अकेले इंदिरा गाँधी ने 50 बार ऐसा किया था।

अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित कायर थे तो बहादुर कौन?

जनाब हसन जावेद(पत्रकार, प्रभात ख़बर) ने
श्री राजेन्द्र तिवारी की वाल पर कमेंट लिखा है कि कश्मीरी पंडित कायर थे जो घाटी से भाग निकले और जो बहादुर थे , वे जो संघर्ष कर रहे हैं।
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सवाल है कि अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित कायर थे तो बहादुर कौन? ज़ाहिर है उनके पड़ोसी मुसलमान जिनकी आबादी 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा थी।
दूसरा सवाल, कश्मीरी पंडित किससे डरकर घाटी छोड़कर भागे? उत्तर है आतंकवादी।
इन आतंकवादियों का किसने बहादुरी से विरोध किया? क्या बहुसंख्यक मुसलमानों ने? उत्तर है नहीं।
तो वहाँ रह रहे मुसलमान किसलिए संघर्ष कर रहे हैं? कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए? उत्तर है नहीं।
*
तो बहुसंख्यक मुसलमानों की बहादुरी किस बात में है? पहली बहादुरी है पंडितों के निष्कासन पर साज़िशि चुप्पी और दूसरी बहादुरी है तीन लाख पंडितों को हत्या, बलात्कार और नरसंहार के द्वारा घाटी से खदेड़नेवाले आतंकवादियों का साथ।

तभी तो आतंकी सरगना बुरहान वानी की एनकाउंटर में मौत के विरोध में बहुसंख्यक मुसलमान सुरक्षाबलों पर ग्रेनेड और पत्थरों से हमले कर रहे हैं।
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किसी को याद है कि मुसलमानों ने ऐसी बहादुरी अपने अल्पसंख्यक पड़ोसी पंडितों के नरसंहार , हत्या, बलात्कार और अपहरण के ख़िलाफ़ दिखाई हो?
*
तो कश्मीरी बहुसंख्यक मुसलमानों के संघर्ष और हिम्मत के बारे में क्या निष्कर्ष निकलता है?
यही न कि अत्याचारी हिम्मती होते हैं ?
और यह भी कि कश्मीरी मुसलमानों ने कायर हिंदुओं को घाटी से भगाने में वैसे ही हिम्मत दिखाई जैसे कि यज़ीद ने कर्बला में (जहाँ हसन-हुसैन और उनके परिवारवालों तथा समर्थकों को 40 दिनों तक भूखे-प्यासे मार डाला गया था)?
*
आज पूरी दुनिया को यज़ीदों ने कर्बला बना दिया है, इसमें अव्वल नंबर पर इस्लामी देश हैं।

#BurhanVani #KashmirValley #KashmiriPandit
#KashmiriMusalman #Yazeed #Yazid #Karbala #PanditInExile #KashmiriHindus

जैसा इंसान वैसा ही उसका भगवान

जैसा इंसान वैसा ही उसका भगवान

इंसानों ने ईश्वर को बनाया, न कि ईश्वर ने इंसान को।यह इससे साबित होता है कि हर दौर और देश में ईश्वर अलग-अलग है और इंसानों के विकास के चरण का प्रतिबिम्ब भी।
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इसे समझने के लिए करीब 1000 साल पहले दुनियाभर में मौजूद ईश्वर की परिकल्पनाओं का तुलनात्मक अध्ययन करिये।आपको लगेगा जो समाज जितना आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से विकसित था उसका ईश्वर भी उतना ही उदार और विराट था।इसके विपरीत जो समाज जितना बर्बर और हिंसक था उसका ईश्वर भी उतना ही बर्बर और हिंसक।
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अरब के लोग बर्बर और जाहिल थे तो उनका ईश्वर भी उन्हीं की विकासयात्रा के अगुआ रूप में चित्रित है।
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जैसे कोई मूर्ख अपनी बात को अंतिम मान बात-बात में टंटा करता है वैसे ही अरबों ने अपने ईश्वर को भी अंतिम बात, अंतिम किताब और अंतिम पैग़म्बर पर आश्रित बना डाला।और आज उसी ईश्वर के नाम पर सब एक दूसरे के ख़ून के प्यासे बने हुए हैं।अंतिम बात, अंतिम किताब और अंतिम पैग़म्बर किसी जाहिल समाज की ही ऊपज हो सकते हैं, गतिमान समाज के नहीं।
*
विश्वास न हो तो क़ुरआन की वे 37 आयतें पढ़ लीजिये जिसमें काफ़िरों का ज़िक्र है और उनका समाज-मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करिये।
आज ग्लोबलाइजेशन का सबसे बड़ा नुकसान इस जाहिलियत के तेजी से पूरी दुनिया में फैलने का है।
*
पूरी दुनिया के सबसे शांत वे देश हैं जहाँ इन अन्तिमवालों की आबादी 5% से कम है और सबसे अशांत वे जहाँ अन्तिमवाले 95% हैं।

इसे समझने के लिए निम्न किताबें देख सकते हैं:
1. A God Who Hates
@Wafa Sultan
2. Allah is Dead: Islam is Not A Religion @ Rebecca B

भारत के टॉप अंग्रेज़ी चैनल: जंगल में मोर नाचा किसने देखा!

भारत के टॉप अंग्रेज़ी चैनल: जंगल में मोर नाचा किसने देखा!

भारत के टॉप सेकुलर सॉरी अंग्रेज़ी चैनलों को पिछले हफ़्ते (2-8 जुलाई) सवा पाँच लाख से भी कम लोगों ने देखा।इसमें सबसे बड़े सेकुलर
चैनल (NDTV 24x7) को सिर्फ़ 97 हज़ार दर्शक मिले और उसके अनुज IndiaTodayTV को 94 हज़ार।बेचारे सबसे कम सेकुलर चैनल Times Now को सबसे ज़्यादा 2,15000 लोगों ने देखा।
125 करोड़ के देश में इन चैनलों को कुल 5,23,000 लोगों ने देखा।(स्रोत: BARC)
*
ऐसा पहली बार हुआ है। न्यूज़रूम में कंपकंपी छुट रही है। बुरहान वानी के चाचा-काका-अब्बू-अम्मी वाले चैनलों को भारत ने ठेंगा दिखाना शुरू कर दिया है।बुरहान जन्नतनशीं क्या हुआ उसके इन डिजाइनर अब्बू-अम्मियों को दिन में ही तारे दिखने लगे!
यही हाल कुछ हफ़्ते और रह जाये तो क्या होगा?जंगल में मोर नाचा, किसने देखा!
*
1950 में असली अंग्रेज़ लगभग 70 हज़ार थे तो आज काले अँगरेज़ कितने होंगे? ऐसे ही पूछ लिया, किसी मित्र को पता हो तो बता कृपया बता दे।
*
शाबाश देशभक्तो! सेना कश्मीर में पाकिस्तान से लड़ रही है तो आप अंदर के पाकिस्तानियों से।

#EnglishNewsChannels #TopFiveEnglishNewsChannels
#EnglishNewsAtNadir
#AllTimeLow #BurhanSyndrome
#NDTV #IndiaTodayTV #TimesNow

भारत और फ्राँस में क्या अंतर है?

सांता: भारत और फ्राँस में क्या अंतर है?
बंता: भारत में एक आतंकवादी की मौत पर मातम मनाया जा रहा है और फ्राँस में आतंकी हमले के शिकार लोगों की मौत पर।

#NiceAttacks #France #BurhanVani #Kashmir #IslamicTerror #Jehad #India #PakSponsoredTerror

इशरत को बिहार की बेटी कहनेवाले नीतीश एक दिन पाकिस्तान ज़िंदाबाद भी कहेंगे क्या!

इशरत को बिहार की बेटी कहनेवाले नीतीश एक दिन पाकिस्तान ज़िंदाबाद भी कहेंगे क्या!

मोदी की हत्या करने आई इशरत जहाँ को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कभी बिहार की बेटी कहा था। आज वहाँ ज़ाकिर नाइक के समर्थन में एक रैली निकली और पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगे तो नीतीश कुमार को समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया का सपना साकार होते दिखा कि एकदिन भारत और पाकिस्तान एक होकर रहेंगे!
*
सचमुच नीतीश कुमार को 2019 में मोदी के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री का उम्मीदवार होना चाहिए।उनमें देश के दुश्मनों के दिल जितने की क्षमता है।एक आतंकवादी को बिहार की बेटी कहा तो कल वैश्विक आतंकवाद की फैक्टरी कहे जानेवाले देश को अपना देश भी कह सकते हैं।
*
नीतीश कुमार की यह पहल पूरी दुनिया के लिए शांति और सलामती का पैग़ाम है।जब यूरोप, अमेरिका और एशिया में 'इस्लाम बनाम इंसानियत' की आवाज़ जड़ जमा रही है तब जिहाद के अलंबरदारों को ही गले लगाने का साहस महात्मा बुद्ध की धरती के लाल नीतीश कुमार ही कर सकते हैं।

नोट:
1. वैसे जब इस्लाम का उदय हुआ तो सीरिया से गांधार तक बौद्ध धर्म फैला था और तब भी मजहब की तलवार के सामने धर्म ने अपनी अहिंसा और उदारता का वैसा ही परिचय दिया था जैसे नीतीश कुमार दे रहे हैं।
2. कहा तो यह भी जाता है कि कर्बला में जिहादी यज़ीद ने अली के बेटे और मोहम्मद साहेब के नवासे हसन-हुसैन के साथ जिन लोगों को 40 दिन भूखे प्यासे रखकर मारा था उसमें कुछ बौद्ध भी थे।उन्हीं बौद्धों के वंशजों को पंजाब में हुसैनी ब्राह्मण और बिहार (जिला: चम्पारण) में हुसैनी भूमिहार कहते हैं।

#ZakirNaik #IshratJahan #NitishKumar #BiharKiBeti #Buddhism #NonNiolence #Karbala #Yazid #HazratAli #HassanHussain #Bhumihars #HussainiBrahman #HussainiBhumihars #Syria #Kandhar

इतनी बड़ी आबादी जिहादी हो जाये तो क्या सबको गोली मार देंगे?

आजकल लोग पूछने लगे हैं कि अगर इतनी बड़ी आबादी जिहादी हो जाये तो क्या सबको गोली मार देंगे?
सवाल है कि नाज़ियों को भी यूरोप में जबर्दस्त समर्थन था तो क्या दुनिया ने उन्हें माफ़ कर दिया?

A true Muslim is above the law of the land

Like Islam transcending national and cultural territories, Islamic terrorism is also a global phenomehnon today and is best analysed with global data. A true Muslim is above the law of the land.
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The problem arises when you look at Islam as a religion which is not true. Islam is an ideology , like communism, to grab power through brute force , of course in the name of Allah. (Ref. Allah Is Dead: Islam Is Not A Religion by Rebecca B.)
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With this in view, Kashmir has become what any Muslim majority region is destined to be ,that is, a place where Shari'a Rules are in force or will be made so through Jehad. Pleaae refer to a study based on data from over 50 countries including India:
Slavery , Terrorism and Islam by Peter Hammond.
Let me know if the author belonged to the Chddi gang!
*
By the way, have you heard of something called Muslim Middle Class anywhere in the world? The educated Muslims perform their Jehadi duty either through silence over or justification through victimhood narrative of the terrorist acts.

Monday, July 11, 2016

वे पत्रकारों की मनोहर कहानियों का मजा लेते हैं।

संता: मोदी को प्रधानमंत्री बने कितने साल हुए?
बंताः दो साल।
संताः और उसके पहले?
बंताः  लगभगग 57 साल  काँग्रेस का शासन था।
संताः फिर भारत की समस्याओं के लिए जिम्मेदार कौन?
बंताः पत्रकार तो मोदी का ही नाम लेते हैं।
संताः और बाकी लोग?
बंताः वे पत्रकारों की मनोहर कहानियों का मजा लेते हैं।

ISIS and Israel

Is not it intriguing that ISIS doesn't target ISRAEL which is so close to its territories but it successfully targets far off lands such as Paris, Brussels, Orlando and Dhaka ? Answer to this question amounts to decoding the collective Muslim Mind.

सोचने और सवाल करने की शक्ति का अपहरण?

क्या यह सही है की इस्लाम स्वतंत्र रूप से सोचने और सवाल पूछने की शक्ति का अपहरण कर लेता है और सेकुलर राजनीति सच बोलने की क्षमता का।जो अपवाद हैं वे सिर्फ नियम को सिद्ध करते हैं।
*
इसका प्रमाण है आतंकवादी घटनाओं पर भारत और दुनिया भर के पढ़े-लिखे मुसलमानों की चुप्पी। संसद हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को फाँसी का मामला हो या तलाकशुदा शाहबानो को शरीया में लिखे से ज्यादा पर जरूरी गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का, इस्लाम एकाएक ख़तरे में पड़ जाता है और फिर इसके ख़िलाफ़ भारत का मुसलमान सड़क पर उतरने में देर नहीं लगाता। लेकिन वही सच्चा मुसलमान आतंकवादी घटनाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना उचित नहीं समझता।क्यों?
*
असल में ये आतंकवादी घटनाएँ इस्लाम के मूल उद्देश्यों के मद्देनज़र एकदम सही हैं, इसीलिए समझदार मुसलमान चुप रहता है यह सोचकर कि चलो मैं नहीं तो कोई तो है जो जान की बाज़ी लगाकर दीनोईमान की राह पर चल रहा है, पूरी दुनिया को मजबूर कर रहा है कि वो अल्लाह पर मोसल्लम ईमान रखे या फिर अल्ला मियां का प्यारा बनने के लिये तैयार रहे।
*
सेकुलर हिन्दू यह सबकुछ समझते हुए भी बौद्धिक कायरता का शिकार होने के कारण चुप रहता है।ऐसे में नेता बेचारा वोटबैंक के दबाव में चुप न रहे तो क्या करे!

आतंकवादी, देशविरोधी और दिलचस्प सेकुलर सहानुभूति

यह दौर बड़ा दिलचस्प है।कहीं किसी भी वजह से एक मुसलमान, दलित या सेकुलर-वामपंथी मारा जाये तो मीडिया के प्याले में तूफ़ान आ जाता है और सब सनातन खलनायक हिंदुत्व के पीछे नैसर्गिक भाव से हाथ धोकर पड़ जाते हैं। लेकिन वह व्यक्ति अगर हिन्दू-विरोधी या अफ़ज़ल-प्रेमी ना हुआ तो फिर बात आई-गई हो कर रह जाएगी।
*
दूसरी तरफ हत्या को अंजाम देनेवाला अगर मुसलमान हुआ तो मीडिया में एक-दो लाईन की रस्मी भर्त्सना और लंबे-लंबे जस्टिफिकेशन कि ऐसा क्यों हुआ और क्यों दूसरे लोग हत्या के लिए बेचारे हत्यारे से भी ज़्यादा जिम्मेदार हैं। लेकिन ऐसे मामलों में सेकुलर-वामपंथी तबका आमतौर पर गोधरा-मौनासन मुद्रा धारण कर लेता है। ढाका नरसंहार पर किसने क्या कहा?
*
उन्हें इंतज़ार रहता है अखलाक़ों और रोहित वेमुलाओं का, याकूब मेमनों और अफ़ज़ल गुरुओं का।गोधरा तो उनके लिये दूध की मक्खी की तरह है , असली दूध तो है गुजरात के कम्युनल दंगे; दिल्ली और भागलपुर के सेकुलर दंगे तो कोट की धूल की तरह हैं, असली कोट तो है इशरत जहाँ मुठभेड़ जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री की हत्या करने आयी एक बेचारी आतंकवादी अल्ला मियां को प्यारी हो जाती है और जिसे एक सेकुलर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की बेटी घोषित कर देते हैं।

ऐसी वैक्सिन जो एक औसत पढ़े-लिखे मुसलमान से सच बोलवा दे?

कोई ऐसी वैक्सिन है क्या जिसे लेने के बाद एक औसत पढ़ा-लिखा मुसलमान सच बोलने लग जाए ?
*
उसमें इतनी हिम्मत पैदा हो जाए कि निर्दोष लोगों की हत्या करनेवाले जेहादियों की मन-ही-मन प्रशंसा करने के बजाय वह 1400 साल पुराने इस्लाम में इक्कीसवीं सदी के नवजागरण की लौ जगाने लगे? विमर्श शुरू होने के तुरंत बाद तर्क-तथ्य और मुद्दे के बीच आसमानी किताब घुसेड़ना बंद कर दे?
*
वह इतना विवेकी हो जाए कि मुसलमान बनाम काफ़िर तथा दारुल इस्लाम बनाम दारुल हरब की निगाह से दुनिया को देखने के बजाय उसे करुणा-सिंचित बनाम करुणा-वंचित की निगाह से देखे?
*
वह इतना दुनियाबी हो जाए कि बिना तारीख़ वाली क़यामत के बाद ज़न्नत में 72 कुमारी परियों और शराब  के लिए दूसरों की जान लेने -अपनी जान देने के बजाय इसी जहान में बिना किसी की नाहक जान लिए एकअदद जीवन साथी के लिए जिये? अपनी मेहनत की कमाई से जरूरत भर शराब भी पीये, चखना भी खाये, और अन्य सुख-सुविधाओं के आनंद भी ले।
*
अगर ऐसी वैक्सिन का आविष्कार नहीं हुआ तो देर-सबेर हमसब एक गाना गाते हुए पाये जाएंगे:
डूबल डूबल भंइसिया पानी में...

ईद मुबारक! ईद मुबारक!! ईद मुबारक!!!

ईद मुबारक! ईद मुबारक!! ईद मुबारक!!!
*
तीन बार 'ईद मुबारक' इसलिये कि कुछ संवेदनशील टाइप मुसलमान कह रहे हैं कि जब रमज़ान के दौरान ही वहाबियों ने बग़दाद, ऑरलैंडो, इस्तान्बुल, ढाका , मदीना में इतनी हत्याओं को अँजाम दिया हो तो फिर उत्सव कैसा और किस बात का?
*
तो अल्लाह के बन्दों, उत्सव इस बात का:

कि हम इन हत्याओं से नहीं डरते;
कि हम हत्यारों को सबक सिखाकर ही दम लेंगे;
कि हम बचपन से ही रटा-रटा कर दिलोदिमाग में बैठाए जानेवाले जिहाद का अर्थ ही बदल देंगे;
कि हम इस जहान में अपने जीवनसाथी, बच्चे, गाँव, देश और मानवीय मूल्यों के लिए जीयेंगे और मरेंगे न कि क़यामत के बाद के जहान में 72 हूरों, गिल्मों और शराब के लिये।
*
ईद मुबारक! ईद मुबारक!! ईद मुबारक!!!

जेटली का यह योगदान नहीं भूल पाएगा हिंदुस्तान

अरूण जेटली और छह महीने रह गए तो मोदी को 2019 में नेता प्रतिपक्ष बनाकर मानेंगे। उनका यह योगदान , नहीं भूल पाएगा हिंदुस्तान।
किसी कांग्रेसी नेता को जेटली पर ज़ोरदार हमला बोलते सुना क्या?
वैसे ये बातें झूठी बातें हैं जो भक्तों ने फैलाई हैं!

#ModiCabinet #Modi #CabinetReshuffle #CabinetExpansion #ArunJaitley

जेटली विपक्ष के लाड़ले और ईरानी आंखों का काँटा क्यों?

जेटली विपक्ष के लाड़ले और ईरानी आंखों का काँटा क्यों?

प्रोफेसरों के चक्कर में एक चूक (दिल्ली विश्वविद्यालय के चारवर्षीय स्नातक कार्यक्रम को निरस्त करना) के अलावा स्मृति ईरानी के काम क़ाबिले तारीफ़ हैं। भारत के काहिल और ज़ाहिल शिक्षातंत्र को ईरानी ने झकझोर दिया, इसमें कोई संदेह नहीं। कोई भी कितने दिन तक मानसिक गुलामी के अगुआ प्रोफेसरों की सुनता रहेगा।
*
फ़िलहाल मोदी मंत्रिमंडल में कोई भी उनके जैसा तेज-तर्रार वक्ता नहीं है और चार को छोड़ अपने काम को गंभीरता से लेनेवाला भी नहीं।
*
स्मृति ने अपने को संकटमोचक साबित किया है।अगर वे काम नहीं कर रही होतीं तो उनका अंदर और बाहर से इतना विरोध नहीं होता।
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असल बात यह है कि जेटली ने रोज़गार के मोर्चे पर जो नुकसान किया है स्मृति ईरानी उसकी भरपाई करेंगी।जेटली ने तो पीएफ से लेकर वेतन आयोग तक, सरकार के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।वे कांग्रेस के इतने लाड़ले क्यों हैं ?और स्मृती ईरानी आंखों का काँटा क्यों?
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स्मृति ईरानी में प्रधानमंत्री का कितना विश्वास है यह जानने के लिए उनके मंत्रालय का बजट, पूरे देश खासकर उत्तरप्रदेश में उसकी रोज़गार सृजन क्षमता(अगले साल यूपी में चुनाव हैं), उसमें एफडीआई आदि के आंकड़ों पर नज़र डाल लीजिये।

आतंकवाद पर पढ़े-लिखे और अनपढ़ मुसलमान में कोई अंतर नहीं

यह समझ में नहीं आता कि किसी पर आतंकवाद फ़ैलाने के आरोप मात्र से भाईलोग बिलबिलाने लगते हैं जबकि आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों पर, चाहे वे मुसलमान ही क्यों न हों, वे श्मशान वाली चुप्पी साध लेते हैं।
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शाहबानो को गुजारा भत्ता के ख़िलाफ़ सड़क पर वे, समान नागरिक संहिता के विरोध में वे, अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन के समर्थन में वे, दारा शिकोह को धिक्कार औरंगज़ेब का बोसा ले वे फिर भी वे यह भी चाहें कि लोग उन्हें विश्वास करें।
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लेकिन जब आप अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन पर सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानते तो ज़ाकिर नायक पर आरोप को कैसे मानेंगे!
कुछ तो केमिकल लोचा है जो पढ़े-लिखे और अनपढ़ मुसलमान के अंतर को ध्वस्त कर देता है!
कहीं फाइनल पैग़म्बर और फाइनल किताब तो नहीं?

सवाल सिर्फ़ आस्था का नहीं, अस्तित्व का भी है...

सवाल सिर्फ़ आस्था का नहीं, अस्तित्व का भी है...

इस्लाम एक सॉफ्टवेयर है
मुसलमान हार्डवेयर है
सॉफ्टवेयर 1400 पहले का है
जिसमें अपग्रेडेशन की गुंजाइश नहीं है
हार्डवेयर हैंग होता रहता है
लोग दोष हार्डवेयर को देते हैं
जबकि हार्डवेयर तो महज एक मशीन है।
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इस्लाम जिस हार्डवेयर पर आधारित है वह ईसाईयत है जो पहले क्लोज एंडेड था लेकिन पुनर्जागरण ने उसके सॉफ्टवेयर को अपग्रेड होने लायक बना दिया।
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यही हाल सनातन ब्रांड सॉफ्टवेयर का है जो अनगिनत बार अपग्रेड हुआ है
जिस कारण हिन्दू का हार्डवेयर हैंग नहीं हो पाता लंबे समय तक।
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पता नहीं इस्लाम में हैंग होने को ही अपग्रेड होना क्यों कहते हैं?
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चूँकि इस्लाम में काफ़िर के लिये घोर  दंडविधान है इसलिए इस्लामिक सॉफ्टवेयर में काफ़िर भी एक महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर है,
इसलिए मोसल्लम ईमान वाले अगर सॉफ्टवेयर को अपग्रेड नहीं कर पाये तो काफ़िरों को ही यह जिम्मा लेना पड़ेगा क्योंकि
सवाल आस्था का नहीं
अस्तित्व का है।
जै राम जी की!
(दोस्तो, सहमत हों तो इसे कॉपी-पेस्ट करके शेयर करें।इसलिये कमेंट बॉक्स में भी डाल दिया है।)

ज़ाकिर नायक पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाना चाहिये...

ज़ाकिर नायक पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाना चाहिये...

क्योंकि जो काम:
कायरबुद्धि उदार हिन्दू 1000 सालों में नहीं कर पाये,
वोटबाज़ सेकुलर नेता 70 सालों में नहीं कर पाये,
मजहब और धर्म को एक माननेवाले नकलची बुद्धिविलासी दो सौ सालों में नहीं कर पाये,
करोड़ों की हत्या, बलात्कार, जबरिया मतान्तरण और सेक्सगुलाम के रूप में बाज़ार में बेंचकर क्रूर इस्लामी हमलावर नहीं कर पाये,
मजहब के आधार पर देश का बंटवारा करनेवाले नहीं कर पाये,
आज़ादी के पहले और बाद के अनगिनत दंगे नहीं कर पाये,
पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं की विलुप्त होती आबादी (पाकिस्तान: 22 से 2 %, बांग्लादेश: 33 से 8 %) नहीं कर पायी
वो या उससे भी ज़्यादा कारगर काम डॉ ज़ाकिर नायक और उनका चैनल कर रहे हैं।
सो कैसे?
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वे हिंदुओं को बता रहे हैं कि:
मजहब, दीन और धर्म में बहुत अंतर है,
ईश्वर,अल्लाह और गॉड एक नहीं है,
साम्यवाद की तरह इस्लाम एक राजनैतिक विचारधारा है जिसका उद्देश्य चाहे जैसे हो सत्ता हथियाना है,
इस्लाम के लिये हर हिन्दू काफ़िर है जिसे या तो मुसलमान बनना होगा या दूसरे दर्ज़े का इंसान या फिर मरने के लिए तैयार रहना होगा,
लोकतंत्र तो मुसलमानों के लिए एक अस्थायी रणनीतिक व्यवस्था है जबतक मुसलमान इतने मज़बूत नहीं हो जाते कि उसे उखाड़कर भारत को दारुल इस्लाम बना लें;काफ़िरों को मोसल्लम ईमान वाला बना दें,
यह लड़ाई अगर मुसलमानों की आस्था की है तो हिंदुओं और पूरी दुनिया के अस्तित्व की भी है,
या तो आस्था बचेगी या यह दुनिया,
हिन्दू यह तय करें कि वे ज़िंदा रहना चाहते हैं या
सबकी आस्था को बराबर दर्ज़ा देते हुए एक बर्बर आस्था का शिकार होना...
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डॉ ज़ाकिर नायक या उन जैसे लोगों ने हिंदुओं को सजग करने में जो भूमिका निभायी है वह क़ाबिले तारीफ़ है। उनसे प्रेरणा लेकर हिन्दू सच को स्वीकारना और बोलना सिखेंगे।कोई हिन्दू डॉ ज़ाकिर की तर्ज़ पर सनातन धर्म-दर्शन की बात करने वाले टीवी चैनल चलाने के लिये प्रेरित होगा और सभी मजहबों के तुलनात्मक रूप को पेश करेगा।लेकिन यह सब ठीक से तभी होगा जब डॉ ज़ाकिर नायक का Peace TV चलता रहेगा।
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डॉ ज़ाकिर नायक और उनका चैनल एक तूफ़ान के ख़तरे से आगाह करनेवाले उपकरण की तरह हैं जिससे हमें तूफ़ान का सामना करने में मदद मिलेगी।उन पर पाबंदी लगाने का मतलब है शतुरमुर्ग की तरह तूफ़ान को देख बालू में सर छिपा लेना।

गंगा-जमुनी तहजीब का मतलब है?

गंगा-जमुनी तहजीब का मतलब है वो तहजीब जो हज़ार सालों के नरसंहार, बलात्कार, जबरिया मतान्तरण आदि के साथ खुशी-खुशी जीवन बिताने के औज़ार के रूप में पैदा हुई है!
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अगर ऐसा नहीं है तो ईरान के पारसी किससे प्रताड़ित होकर 1300 साल पहले भारत में शरण माँगने आये थे?
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उससे भी पहले और बाद में किससे प्रताड़ित होकर यहूदियों ने भारत में शरण माँगी थी?
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गंगा-जमुनी संस्कृति का मतलब अगर समावेशिता होता तो यह हज़ारो सालों से भारत की पूंजी है और इसी कारण पूरी दुनिया के सताये लोगों को यहाँ सदियों से शरण और सम्मान मिलता रहा है।
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अगर इस्लाम से इसकी शुरुआत मानी जाए तो इसका अर्थ बौद्धिक कायरता, मानसिक ग़ुलामी और इस्लामी अत्याचार के महिमामंडन के सिवा और कुछ भी नहीं क्योंकि गंगा की शर्त पर यमुना से और यमुना की शर्त पर गंगा से मिलन को औपनिवेशिक संस्कृति कहेंगे, गंगा-जमुनी नहीं।
10 वीं से 18वीं सदी की शुरुआत तक तो मूलतः औपनिवेशिक संस्कृति ही थी।
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मुग़ल साम्राज्य के पतनशील दौर में बराबरी की संस्कृति की अल्पकालिक झलक ज़रूर मिलती है जिसके वाहक हैं मीर, नज़ीर अकबराबादी, ज़फ़र, ग़ालिब और अकबर इलाहाबादी। लेकिन उनपर इस क़दर भारी पड़ते हैं मौलाना हाली और उनके चेले कि 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा' लिखनेवाले डॉ इक़बाल गंगा-जमुनी संस्कृति का उपसंहार ख़ालिस इस्लामी अंदाज़ में कर डालते है:

हो जाये ग़र शाहे ख़ुरासान का ईशारा
सज्दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मीं पर।

इसके पहले के दौर में बंदानवाज़ गेशुदाराज़, कबीर, जायसी, रहीम और रसखान की रवायत को शेरशाह-अकबर को छोड़ तुग़लक़, ख़िलजी, लोदी और जहाँगीर से औरंगज़ेब तक ने तो दफ़न कर ही दिया था।

ज़ाकिर नाइक एकदम असली इस्लाम की बात करते हैं

नाइक पर प्रतिबन्ध बेवकूफ़ी का दूसरा नाम होगा

डॉ ज़ाकिर नाइक पर प्रतिबन्ध बेवकूफ़ी का दूसरा नाम होगा।डॉ नाइक भारत ही नहीं पूरी दुनिया के अधिसंख्य मुसलमानों का सच सामने लाकर आनेवाले ख़तरे से आगाह करने का काम कर रहे हैं। साँप के विष का प्रतिविष भी साँप के विष से ही बनाया जाता है।
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पूरी दुनिया के सजग नीतिनिर्माताओं को डॉ नाइक का  शुक्रगुज़ार होना चाहिये कि वे मुफ़्त में विष उपलब्ध करा रहे हैं ताकि उस विष से बचने के लिए आप प्रतिविष (Anti-venom) बना सकें।
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हमें तो इस बात का भी स्वागत करना चाहिये कि भारत के हर राज्य में और यहाँ की हर भाषा में
डॉ नाइक जैसे पंथ प्रचारक हों और पीस टीवी जैसा चैनल हो ताकि पूरे देश में मौजूद विष की विविधता को सामने लाया जा सके और साथ ही उसकी असरदार काट भी।
*
खासकर हिंदुओं को डॉ नाइक का आभारी होना चाहिये कि वो उन्हें काफ़िर होने का मतलब समझा रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि इस्लाम काफ़िरों के प्रति कितना रहमदिल है! उनको सुनकर किसी को भी यह समझते देर नहीं लगेगी कि पाकिस्तान की हिन्दू आबादी 22 से 2 और बांग्लादेश की 33 से 8 प्रतिशत कैसे हो गई।अल्लाह बड़ा रहमदिल है।

Jehad in Kahmir and Zakir Naik

Jehad in Kahmir and Zakir Naik

Dr Zakir Naik only says what Islam is: an ideology , in the garb of religion, to grab power through brute force. Concepts such as MUSALMAN, KAFIR, DARUL ISLAM, DARUL HARAB, JEHAD, GHAZWA-E-HIND & KAFIR WAJIB UL QATL testify to it.
*
The problem in Kashmir , for example, is because of its demography(over 95 % Muslim Population) and location (Pakistan, an Islamic State) that inspire  the Muslim Mind to fight for Nizame Mustafa (Rule of Shari'a) through Jehad the first stage of which was achieved in early 1990s through the ETHNIC CLEANSING of Kashmiri Hindus that was never considered a serious issue because of compulsions of votebank politics.
*
We are openly discussing it because now it is no longer limited to India.
For a better understanding of the issue please refer to:

1. Slavery , Terrorism and Islam by Peter Hammond
2. A God Who Hates by Wafa Sultan
3. Allah Is Dead : Islam Is Not A Religion by Rebecca B
4. The Jehadist Threat To India by Tufail Ahmad
5. The Illusion of Islamic State by Tarek Fatah

Communism is an extension of Islam, how?

Q: Communism is an extension of Islam, how?

A: To understand how Communism is an extension of Islam , one needs to compare the concepts fundamental to both:
Islam: Muhammad, the last Prophet
Communism: Marx, the first and the foremst Prophet
*
Islam : Musalman vs Kafir
Marxism: Proletariat vs Bourgeoisie
*
Islam: Jehad for Islamic Rule
Communist: Class Struggle for Communist Rule
*
Islam: Darul Islam vs Darul Harab
Communist: International Communist Rule vs Imperialist-Capitalist Rule
*
Islam: Kafir Wajib-ul-Qatl (Killing of a Kafir by Muslims is HALAL or justified)
Communism: Annihilation of class enemy (Bourgeoisie) is justified
*
Islam: Qur'an
Communism: Das Capital
*
Islam: Zannat (for men 72 virgins and unlimited wine)
Communism: Stateleesness when every one gets as per his need
*
Islamic Rule: Elimination of countless of opponents on a mass scale in Asia, Europe and Africa over the last 1400 years
Communist Rule: Elimination of nearly 10 crore opponents , mainly in the then USSR, China and Kambodia during the last 100 years
*****
From the above, it is clear that both Islam and Communism propogate EXCLUSIVISM, BINARY THOUGHT &  ,VIOLENCE for attaining their goals.

It is also clear that Islam is a political ideology in the garb of religion because it is all about establishing Islamic rule by eliminating those opposed to it.

Q: Where is the difference?

A: Unlike Islam, Communism allows the elbow room for lesser prophets such as Lenin, Stalin, Mao, Che, Castro and Ho Chi Minh.

Communism, unlike Islam, abhors religion as opium but demands religious commitment to its basic tenents from its adhetents.

Islam, unlike Communism, doesn't trash religion as an institution but wants no religion to survive in the long run because it considers itself as the only true DIN (path to the only true God); and, to fulfil this goal makes JEHAD obligatory for every Muslim.

This way Islam ends up as an ideology to gain political power in the garb of religion.

#Islam #Communism #Religion #IslamIsNotAReligion #IslamAndCommunismCompared
#CommunismIsAnExtensionOfIslam
#CommunismIsIslamRepackaged
#Prophet #Marx #Mohammad #Kafir #Jehad

Friday, July 1, 2016

Gagging Swamy means gagging the wall of democracy

You need a lot of intellectual guts and selflessness to call a spade a spade.
Dr #SubramanianSwamy has all this and much more. No wonder, he has been doing in #PublicInterest what he can do best. And #gagging him would amount to shutting the doors to the WALL OF DEMOCRACY on the face of a common man.
It would also mean the CONGRESSIZATION of BJP: the language of HIGH COMMAND and weakening of intra-party democracy.
But the million dollar question is:
A gagged Swamy is anything but Dr Swamy!
#HighCommandCulture #CongressizationOfBJP
#IntraPartyDemocracy
#WallOfDemocracy
#Swamy