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Sunday, October 20, 2019

एक सवाल पूछनेवाले की हत्या

न कमलेश तिवारी व्यक्तिवाचक हैं न ही उनके हत्यारे। शास्त्रार्थ परम्परा के एक समातनी हिंदू ने नबी को लेकर कुछ नैसर्गिक प्रश्नोत्तरी कर दी। यही जिज्ञासा जनित खोज भारत की मूल पहचान है। इस लिहाज से कमलेश तिवारी ने भारतीय मनीषा के स्वभाव के अनुकूल बरताव किया न कि कोई भड़काऊ बयानबाजी की। जाहिर है कोई हिंदू अपने ही हिन्दूस्तान में हिंदू की तरह नहीं रहेगा तो कहाँ रहेगा!
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जो काम कमलेश तिवारी ने किया वह काम करोड़ों हिंदू हर दिन करते हैं और स्वाभाविक रूप से करते हैं लेकिन उनके प्रश्नों और टिप्पणिओं के केंद्र में 33 कोटि देवी-देवता होते हैं न कि नबी या ईसा मसीह क्योंकि ये दोनों (नबी और ईसा मसीह) उनके जीवनानुभव और विरासत से सिर्फ ऊपरी तौर पर जुड़े हैं। उन्हें मालूम तक नहीं कि नबी को लेकर जिज्ञासा जनित प्रश्न और टिप्पणी की इस्लाम में मनाही है और इसे शास्त्रार्थ के बजाये इस्लाम-विरोध और ईश-निंदा की श्रेणी में रखा जाता है जिसकी सज़ा मौत है।
अधिकतर हिंदुओं को तो सवाल पूछने की मनाही और सवाल पूछने पर मौत के इस्लामी प्रावधान पर विश्वास ही नहीं होगा क्योंकि वे बाकियों को भी अपने जैसा ही समझते हैं।
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अब कमलेश तिवारी के हत्यारों की बात करते हैं। उन्होंने जो किया वह 1400 सालों से होता आ रहा है। इसलिए यह कृत्य किन्हीं दो व्यक्तियों का नहीं है बल्कि उन दो मजहबियों का है जो दुनियाभर में फैले शेष 160 करोड़ हममजहबियों की तरह मानते हैं कि नबी पर शास्त्रार्थ नहीं हो सकता क्योंकि वे सवालों से परे हैं और इसे न मानने की सजा मौत है।
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नबी के जीवनकाल में ही नबी की आलोचक एक लोक कवयित्री और गायिका (अस्मा बिन्त मारवान?) की उस समय हत्या कर दी गई थी जब वह अपनी बच्ची को स्तनपान करा रही थी।
इस तरह कमलेश तिवारी की हत्या किसी भी दृष्टि से सिर्फ एक हत्या नहीं है और न ही कोई सरकार इसके लिए जिम्मेदार है क्योंकि पूरा मामला दो भिन्न जीवन दृष्टियों का है। जैसे एक के लिए सवाल-जवाब नैसर्गिक है वैसे ही दूसरे के लिए सवाल-जवाब करनेवाले की हत्या न सिर्फ स्वाभाविक है बल्कि मजहबी दायित्व (जिहाद) भी है।
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इसी मजहबी दायित्व के तहत पिछले 1400 सालों में 27 करोड़ से अधिक सवालियों और जिज्ञासुओं का नरसंहार किया जा चुका है और इस्लामी मुल्कों समेत पूरी दुनिया में अभी भी हो रहा है। भारत में  राम जन्मस्थान मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण मंदिर समेत 40 हजार से अधिक महत्वपूर्ण देवस्थलों का ध्वंस भी इसी दायित्व का हिस्सा था। भारत का विभाजन, धारा 375 एवं 35ए और  कश्मीर से हिंदुओं का भगाया जाना भी इसी दायित्व का हिस्सा थे। इस दायित्व का एक रूढ़ सिद्धांत भी है जिसकी कुछ मूल अवधारणाएँ हैं:
'काफिर वाजिबुल क़त्ल' (काफ़िर का क़त्ल वाजिब है), 'क़ित्ताल फी सबीलिल्लाह' (अल्लाह की राह में नरसंहार वाजिब है),
दारुल हरब (वह स्थान युद्धस्थल है जहाँ इस्लामी शासन नहीं है),
दारुल इस्लाम (वह स्थान शांति- स्थल है जहाँ इस्लामी शासन है,
जिहाद (दारुल हरब को दारुल इस्लाम में बदलने के लिए हर तरह का संघर्ष जिसमें चुप्पी, छलकपट, अपहरण, लूट, बलात्कार, हत्या, नरसंहार शामिल हैं),
गज़वा-ए-हिंद (हिंदुस्तान के लिए एक विशेष प्रकार का जिहाद)।
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अब सवाल उठता है कि विमर्श और अविमर्श में हम किसे चुनें? जिज्ञासा और अन्धविश्वास में हम किसे चुनें? सबके 'अपने-अपने राम' और सबके लिए 'एकमात्र सर्वशक्तिमान अल्लाह' में हम किसे चुने? स्वतंत्रता  और परतंत्रता में किसी चुनें? समाज-केंद्रित धार्मिक सत्ता और सत्ता-केंद्रित मजहबी समाज में हम किसे चुनें? प्रश्नाकुल मानवीय जीवन और प्रश्नविहीन रोबोटिक अस्तित्व में हम किसे चुनें? और अंतत: सभ्यता और बर्बरता में हम किसे चुने?
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हक़ीक़त यह है कि वोटबैंक का शिकार वैश्विक लोकतंत्र वैश्विक जिहाद से निपटने में फ़ेल साबित हो रहा है जिस कारण लोकतंत्र के मुख्यद्वार से तानाशाही की भव्य एन्ट्री हो रही है। इंटरनेट-मोबाइल पर सवार दुनिया आज वैश्विक गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है। 100 से अधिक देश इसकी चपेट में होंगे। 750 करोड़ की आबादी वाली दुनिया के 35 से 40 करोड़ लोग सभ्यता और बर्बरता के बीच के इस संघर्ष में बलि चढ़ सकते हैं। और इसी बलि की एक मिसाल हैं कमलेश तिवारी जो सभ्यता के लिए संघर्षरत थे। इस दृष्टि से कमलेश तिवारी एक शरीर से ज्यादा एक विचार थे और विचार कभी मरते नहीं। इसलिए उनके परिवार के लिए संवेदना और उस विचार पर मर मिटने के लिए आतुर अनगिनत शेष 'कमलेश तिवारियों' का नमन ... 'अमर्त्य वीरपुत्र हो बढ़े चलो बढ़े चलो...'। @चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह
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Monday, October 14, 2019

नोबेल पुरस्कारों का सच

अगर आप भारत-विरोधी एजेंडा का हिस्सा हैं तो मैग्सेसे की कौन कहे, आपको नोबेल पुरस्कार भी मिल सकता है।
गाँधी को शांति का नोबेल क्यों नहीं मिला?
सुलभ इंटरनेशनल के डा बिन्देश्वर पाठक के बजाये कैलाश सत्यार्थी को क्यों नोबेल मिला?
टेरेसा को गरीबों की सेवा के लिए नोबेल मिला था या उन्हीं गरीबों को जैसे-तैसे ईसाई बनाने के लिए?
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्यसेन की सलाह पर चलनेवाली बंगाल और केरल की सरकारों ने क्या-क्या गुल खिलाये?
बिना नोबेल पाये डा सुब्रमण्यम स्वामी और डा मनमोहन सिंह की जोड़ी ने 1991-96 के दौरान नरसिंह राव के नेतृत्व में देश की विकास दर को कैसे 8% से ऊपर पहुँचा दिया?
ज्याँ पॉल सात्र ने 1964 में इसी नोबेल पुरस्कार को लेने से क्यों मना कर दिया था?
सबसे बड़ा सवाल:
देश बड़ा या देश का नोबेल विजेता?
देशप्रेम बड़ा या नोबेल विजेता की भारत-द्वेषी दृष्टि?
दुनिया के दूसरे सबसे शक्तिसंपन्न देश चीन के कितने लोगों को नोबेल मिला है और क्यों?
चीन के सत्ता संस्थान ने ऐसे कितने लोगों को सम्मानित किया है जिनकी भूमिका वहाँ पर वही है जो भारत में अमर्त्यसेन, कैलाश सत्यार्थी और टेरेसा जैसों की है?
अन्त में जे एन यू के पूर्वछात्र प्रो अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र में नोबेल के लिए बधाई! लेकिन उनके गरीबी-निवारण मॉडल को हऊआकर अपनाने के लालच से सावधान! मिल्टन फ्रीडमन समेत ऐसे अनेक नोबेल विजेताओं के मॉडल विकासशील देशों के लिए आत्मघाती साबित हो चुके हैं।

कुछ और प्रश्न:
विश्वगुरु बनने का दम भरनेवाले भारत का मौजूदा नेतृत्व भारत में ही नोबेल से भी अधिक स्तरीय पुरस्कारों की शुरुआत क्यों नहीं करता ?
इस्लामी हमलों के शुरुआती दौर तक इसी भारत में नालंदा जैसे 32 विश्वविख्यात विश्वविद्यालय थे जहाँ 12 वीं सदी तक उच्च कोटि के शोध होते थे। आज़ादी के 72 सालों बाद भी हम क्या वैसा एक भी विश्वविद्यालय बना पाए हैं ?
ऐसे विश्वविद्यालयों के बिना हम विश्वगुरु बनने का सपना पूरा कर सकते हैं क्या?
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Thursday, October 10, 2019

Dictatorship through the front door of democracy

Democracy has failed globally in dealing with the threat of Jihad because of the politics of vote bank that reduces a citizen to just a 'consumer' ever ready to sell his votes for petty gains. It is in view of this that Gandhi,  defying political correctness of his time,  had termed the British parliament as a "barren woman" and a "prostitute" (Hind Swaraj, 1909).
Consequently,  the rise of Right Wing has become a global phenomenon. Moreover,  people are welcoming Dictatorship through the front door of democracy.
Modi, Trump or Putin are examples of this global trend.

Note: The spirit of Gandhi's quotes is acceptable not the form as the moral standards of a prostitute or a barren woman would generally be unmatched by an average self-serving practitioner of politics.

#Modi #Trump #Putin #Jihad #democracy
#Dictatorship 

Sunday, October 6, 2019

Papa Naipaul, we thank thee! .

Institute for Nurturing Indian Intellect (INII) is all set to shake the elite off its centuries of intellectual slumber that makes them celebrate self-hate and mental slavery. To this end, INII has decided to pay its tributes to V S Naipaul, a Nobel  Laureate  of Indian Hindu origin,  who decoded and exploded the myth of Secularism as practiced in India by applauding the demolition of Babri Mosque built on the debris of a pre-existing Ram Janmsthan Mandir.
Naipaul symbolized intellectual honesty and courage  at a time when political correctness appeared to be eating  into the vitals of Truth and Dharma in a country known for Seeking not Believing.
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A monumental  Dharmic Voice that you are
And  will always remain so to the Truth-Seekers
We thank thee, Papa Naipaul!
You were to us, you are to us
What Hemingway was to the USA.
#Naipaul  #PapaNaipaul #VSNaipaul