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Sunday, February 28, 2016

Haryana ends Jungle Raj monopoly of Bihar

Santa: The  Haryana's Khattar govt is now more than qualified to  snatch the Jungle Raj Returns title from Bihar's Lalu Prasad.
Banta: But the secular media is glossing over this feat of the BJP-led  govt in Haryana.
Santa: The fact is that Lalu's more than 15 years of Jungle Raj in Bihar is no match for what Khattar's Haryana achieved in just two days.
Banta: Yes, today Khattar is to Haryana what Nero was to Rome!
#JungleRajTitleToHaryana
#HaryanaJungleRaj #JungleRajReturns #Haryana #JungleRaj #Jats #GangRape #JatReservationStir

Saturday, February 27, 2016

जेएनयू के कामरेडों के कारनामों से कुत्ते परेशान

संताः शिमला के कुत्ते इस बात को लेकर बहुत चिंतित हैं कि ऊनके पिल्ले कह रहे हैं कि अब वे जिसका खाएँगे उसका नहीं गाएँगे।
बंताः क्यों?
संताः पिल्ले कह रहे हैं कि जब जेएनयू के क्रांतिकारी लोग खाते भारत का और गाते पाकिस्तान का हैं तो फिर वे क्यों नहीं?
बंताः अरे भई, कुत्तों पर से भरोसा उठ गया तो हिन्दुस्तान के बुजुर्गों, महिलाओं, पुलिस, सेना और बच्चों का क्या होगा!
संताः पिल्ले तो एकदम से बरखा दत्त और राजदीप सरदेसाई के फैन हो गए हैं।
बंताःभई, देखो ये कोई टीवी-अखबार में सेकुलर-सेकुलर और वामी-सामी खेलने का मामला थोड़े न है जो मन में आए बक जाए?
संताःतो कुत्ते अपने पिल्लों को कैसे समझाएँ?
बंता: उन्हें बताओ कि इन क्रांतिकारियों में कुछ मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट है और पहले भी वे अंग्रेज़ों, पाकिस्तान और चीन पर जान न्यौछावर कर चुके हैं ।एक-दो दशक में अपनी गलती भी मान लेते हैं और लोग उन्हें माफ भी कर देते हैं।
संताः लेकिन इससे तो और नमकहरामी और काहिली की प्रेरणा नहीं मिलेगी?
बंताः वाह! अब तो ये बोल दो: भई, नमकहराम कामरेड बनना है कि देश का वफादार कुत्ता, यह खुद तय कर लो।

दुर्गा को वेश्या कहनेवालों की साज़िश को पहचानिये


अपने छोटे-मोटे स्वार्थों (स्कालरशिप, विदेश यात्रा आदि) के लिए अनेक स्वयंभू #दलित नेता #ईसाई_मिशनरियों के गढ़े
कुचक्र में फँसते जा रहे हैं।इसी कुचक्र का हिस्सा है #मूलनिवासी  / #आदिवासी की अवधारणा जिसके फर्जीवारे को और पुष्ट करने के लिए आजकल #महिषासुर को 'मूलनिवासी' और #दुर्गा को '#रंडी' या '#सेक्सवर्कर' कहा जा रहा है।
लेकिन इसमें कुछ भी नया नहीं है।
हमें पता है कि  ईसाई मिशनरियों ने 19-20 वीं सदी  में  वैमनस्य फैलानेवाली और हिन्दुओं को बाँटने के लिए ऐसी किताब लिखी।उनमें एक का नाम है  Sherring.
#ईसा मसीह #कुमारी #मरियम से पैदा हुए, इस बात को हमने ससम्मान मान लिया क्योंकि हमारे लिए संतान के संदर्भ में माँ का स्थान बहुत ऊँचा है।
लेकिन हिन्दू नामों से काम करनेवाले ईसाइयों (सुनील सरदार, अजित योगी, जगनमोहन रेड्डी, बिस्वास, सरकार आदि) को अच्छी तरह पता है कि इन 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाले मिशनरियों ने 'मरियम के कौमार्य के मिथ को
#मैथुन_के_पाप' से बचाने के लिए दुर्गा को 'सेक्स वर्कर ' घोषित कर दिया !
इसके बावजूद ईसा मसीह हमारे लिए अवतार हैं,
मरियम हमारे लिए  उनकी पूजनीया माता हैं क्योंकि हमारी परंपरा में #दशरथ की रानियों को, जिन्हें नियोग पद्धति से संतान प्राप्ति हुई, पूरा सम्मान है और #यशोदा को #कृष्ण की असली माँ से ज्यादा सम्मान है।
लेकिन इसकी समझ मक्कार और साज़िशी ईसाई मशीनरियों को इसलिए नहीं होगी क्योंकि वे #सर्वमत_समभाव या 'ईश्वर प्राप्ति के अनेक रास्ते' वाली दृष्टि में विश्वास ही नहीं करते।इसलिए पूरी दुनिया को एकमात्र स्वर्ग --यानी ईसाई स्वर्ग-- में स्थाई जगह दिलाने के लिए पहले ईसाई बनाना अपना कर्तव्य समझते हैं।इसके लिए सब तरह के कुकर्म जायज हैं।

यह सब तबतक चलेगा जबतक ईसा मसीह की महानता को ईसाई मशीनरियों के फर्जीवारे से मुक्त नहीं किया जाता।क्योंकि मिशनरियों ने पहले #नरसंहार (यूरोप और अमेरिका में 30 करोड़ से अधिक स्थानीय लोगों का जातिनाश और नरसंहार ) और अब (एशिया और अफ्रीका में) हर तरह के फर्जीवारे का सहारा ले ईसा की करुणा और दया को  #मताँतरण की अनंत भूख के हवाले कर दिया है।

सम्मान पाने के लिए असम्मान की यह तकनीक ज्यादा दिन नहीं चलेगी क्योंकि आज #मोबाइल, इंटरनेट और
सोशलमीडिया ने  टीवी-अखबारों के फर्जीवारे और एकाधिकार को जबर्दस्त चुनौती दे दी है।
आज डीएनए मैंपिंग और कार्बन डेटिंग के जमाने में भी #सेकुलर_वामपंथी 'विज्ञानवादी' कठमुल्ले अबतक #आर्यन हमले के सिद्धांतों की माँद से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और वह भी ईसाई मिशनरियों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मिलने वाले चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए।
सवाल उठता है कि ईसाई मिशनरियों ने ऐसा क्यों किया? यहाँ भी वही चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात।चूँकि खुद यूरोप और अमेरिका की ईसाइयत पूर्व आस्थाओं को मानने वाले मूर्ती और प्रकृति पूजकों  (जिसे वे अब #Aboriginal कहते हैं) का समूल नाश किया तो वही फार्मूला #हिन्दुओं पर भी लगा दिया।यानी खेत खाये गदहा और मार खाये जुलहा!

पिछली दो सदियों से चलने वाले ईसाई फर्जीवारे को हिन्दू हँसकर टालते रहे हैं क्योंकि उन्हें यह बेवकूफाना लगता रहा है।लेकिन अब जाकर यह साफ हुआ है कि यह कोई बेवकूफी नहीं है, बल्कि देश को बाँटने की गहरी और लंबी साज़िश का हिस्सा है।तभी तो #चर्चिल ने कहा था कि अंग्रेज़ों के जाते ही भारत सैकड़ों टुकड़ों में बँट जाएगा।लेकिन अब जब यह सब नहीं हुआ तो सब बौखला गए हैं ।#दादरी, #मालदा, #पटिदार आंदोलन, #वेमुला, #जेएनयू और अब #जाट_आंदोलन इसी बौखलाहट के नमूने हैं।

इसी से जुड़ा एक सवाल और है।साज़िशकर्ताओं को भी यह पता है कि उनकी साज़िश पर अब ज्यादा दिन पर्दा नहीं रह पाएगा फिर भी वे साज़िश पर साज़िश और झूठ पर झूठ रचे जाते हैं । वे ऐसा इसलिए करते चले जाते हैं कि उन्हें विश्वास है कि हिन्दू कायरता की हद तक सहिष्णु हैं और सहिष्णु कहे जाने के लिए नरसंहार, बलात्कार,  जातिनाश कुछ भी बर्दाश्त करने को तैयार रहते हैं।उनका यह भी विश्वास है कि हिन्दू बुद्धिजीवी इस स्तर तक मानसिक गुलामी के शिकार हैं कि वे भारतीय दृष्टि से घटनाओं को देखने की बौद्धिक हिम्मत ही नहीं रखते।
यह अब आप पर निर्भर करता है कि आप देशतोड़क
साज़िशकर्ताओं के विश्वास पर खड़ा उतरना जारी रखते हैं या देशहित और स्वहित में खुद को पहचानने की जद्दोजहद करते हैं । इस जद्दोजहद का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ उसके खिलाफ है जो जाने-अनजाने भारतीय हितों के खिलाफ है।

ऐसे लोग जहाँ मिल जाएँ उनको सिर्फ उनकी भाषा में समझाएँ क्योंकि ये बातों के भूत नहीं हैं।आप जिस दौर से गुजर रहे हैं उसमें सहिष्णुता को बरकरार रखने के लिए बुद्धिविलासिता  और बुद्धिपैशाच्य का संहार जरूरी है।
लेकिन इसके लिए रीढ़विहीन बुद्धिजीवी और बुद्धिमान किसी काम के नहीं वैसे ही जैसे भीष्म और विदुर थे जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था।
आज भारत को भारत बने रहने के लिए,  अनेक मजहबों की शरणस्थली बने रहने के लिए, जरूरी है कि आप बुद्धिवीर और बुद्धिवीरांगना बने, मानसिक गुलाम बुद्धिजीवी नहीं ।

अपने आसपास के लोगों की एक लिस्ट बनाइए जो सिर्फ रट्टूमल न हो, बल्कि चीजों को गुनता हो, खुद से संघर्ष करता हो और बेधड़क  दोटूक बोलता हो।मुझे तो जो जितना बड़ा है वो उतना ही गया गुजरा लगता है।एक कहावत है:
"जो जेतना पढ़ुआ वो उतना भड़ुआ"।

ऐसे लोग जहाँ मिल जाएँ उनको सिर्फ उनकी भाषा में समझाएँ क्योंकि ये बातों के भूत नहीं हैं ।
(नोटः संसद में मानव संसाधन मंत्री के भाषण के दौरान भगोड़े सेकुलर-वामपंथी विपक्ष की बौद्धिक कायरता और मानसिक गुलामी देखने लायक थी।अब समझ आया लोगों को राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी की जगह सुश्री स्मृति ईरानी की शैक्षणिक योग्यता की चिंता क्यों होती है ।)

Tuesday, February 23, 2016

जेएनयू 1983:1000 छात्र गिरफ्तार हुए थे और 250 निष्कासित

जेएनयू के जिन छात्रों के खिलाफ #भारत_की_बर्बादी के नारे लगाने के आरोप हैं वे 21 फरवरी की रात कैंपस में लौट गए और #जेएनयू शिक्षक संघ को उन पर इतना प्यार आया कि उसने फटाक से एक माँग रख दी:
छात्रों पर से आपराधिक आरोप हटाए जाएँ!
पुलिस को #कैंपस में न आने दिया जाए!!
*
वैसे 1983 में इसी जेएनयू के शिक्षक संघ ने प्रधानमंत्री
#इंदिरा_गाँधी से मिलकर आग्रह किया था कि छात्रसंघ को निलंबित किया जाए और छात्रों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
*
1000 छात्र गिरफ्तार हुए थे और 250 निष्कासित।
*
फिर 1983 और 2016 में  क्या अंतर है ?
1983 में छात्रों और #छात्रसंघ पर #गैर_कम्युनिस्ट लोगों का असर ज्यादा था जो #कम्युनिस्ट शिक्षकों को एकदम मंजूर नहीं था।उन्होंने अपने ही छात्रों को #फासिस्ट करार देकर #गिरफ्तार करवाए, #निष्कासित करवाए और #निलंबित करवाए।
*
आज छात्रसंघ पर #वामपंथी छात्र संगठनों (#एआईएसएफ, #आइसा, #एसएफआई) का दबदबा है।छात्रसंघ अध्यक्ष #कन्हैया_कुमार का संबंध भी #सीपीआई के छात्र संगठन एआईएसएफ  से है।

#JNU #ShutDownJNU #JNURow #RevampJNU
#AISF #SFI #CPI #CPIM  #AISA

जेएनयूः बोवै पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय ?

जेएनयूः बोवै पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय ?

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देशतोड़कों को मिल रही पनाह पर जिन्हें झटका लगा हो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर और तिब्बत की समस्या, चीनी हमला और कम्युनिस्ट तानाशाह स्टालिन की मदद से नेताजी को जीते जी मृत घोषित करने का सेहरा उस व्यक्ति के सर बंधा है जिसके नाम से यह विश्वविद्यालय है।

क्या जवाहरलाल नेहरू गर्व से नहीं कहते थे:
'मैं सिर्फ तन से भारतीय हूँ, मन से तो यूरोपीय ही हूँ'?

दूसरे शब्दों में, मानसिक गुलामी और अराष्ट्रीयता तो जेएनयू के डीएनए में है।तो भाई, "बोवै पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय"?

#PMO #HMO #MHRD #SmritiIrani #AjitDobhal

बर्बर गिरोहबंद हमलावरों से निपटना हमें नहीं आया

बर्बर गिरोहबंद हमलावरों से निपटना हमें नहीं आया

पूरे गाँव या मोहल्ले को लूटने वाले चंद गिरोहबंद डकैत ही होते हैं।
करोड़ों की आबादी वाले इस समृद्ध देश को गुलाम बनानेवाले कुछ हजार #मजहबी नशे में चूर #गिरोहबंद #बर्बर #हमलावर थे या #मिशनरी भेस में #मक्कार #यूरोपीय #डाकू।
भारत के लोग उनसे ज्यादा बड़े #योद्धा थे, लेकिन बर्बर नहीं थे।इसलिए यह देश 1000 साल गुलाम रहा।

हजार साल की #दैहिक गुलामी ने इस देश को मानसिक रूप से भी गुलाम बना डाला।आज #जेएनयू में जो कुछ हो रहा है वह इस #मानसिक_गुलामी का लक्षण भर है।
पूरी दुनिया में एक ही समुदाय है जो #ईसाई और #इस्लामी बर्बरता का शिकार हो दो हजार सालों तक बेघर भटकता रहा लेकिन जो मानसिक गुलामी का शिकार नहीं हुआ।वह समुदाय है #यहूदियों का जिन्होंने दूसरे #विश्वयुद्ध के बाद #इस्राइल नामक देश का गठन किया और कम आबादी वाला देश होने के बावजूद बर्बर हमलावर पड़ोसी इस्लामी देशों के सामने चट्टान की तरह अडिग हैं।

यह #भारतीय_आभिजात्य की मानसिक गुलामी ही है कि स्थानीय #मुसलमानों और #कम्युनिस्टों के विरोध तथा #वोटबैंक के चलते भारत  लंबे समय तक इस्राइल से सामान्य #राजनयिक संबंध नहीं बना पाया।
यह बात अलग है कि आज #आईएसआईएस से निबटने में सबसे कारगर अगर कोई देश है तो वह है इस्राइल।
अगर आईएसआईएस मजहबी हमलावर बर्बरता का सबसे निकृष्ट उदाहरण है तो इस्राइल कारगर  #सुरक्षात्मक_बर्बरता का।अब यह भारत के राष्ट्रीय कर्णधारों को तय करना है कि वे इस्राइल से कितना और कैसे लाभ उठाते हैं।

#PMO #HMO #NSA #AjitDobhal

मैं हूँ मूसहर तू मूसबिल्ला, अख़लाक़ुल्ला अख़लाक़ुल्ला...

डा त्रिभुवन सिह (Tribhuwan Singh ) ने कुछ समय पहले एक पैरोडी बनाई थी :
 मैं हूँ मूसहर तू मूसबिल्ला
अख़लाक़ुल्ला अख़लाक़ुल्ला।

संदर्भ था #अख़लाक़_सिंड्राॅम से ग्रस्त #मूसबिल्ला समाज का अपने सेकुलर-लिबरल-वामपंथी-इस्लामी बिलों से बिलबिलाते हुए निकलकर विधवा विलाप करना।

जब #मालदा , #पूर्णिया और #पुणे की हिंसा और हत्याएं हुईं तो ये बिल में समा गए।फिर #वेमुला और #जेएनयू के मामले आए तो मूसबिल्ले दलबल बाहर निकले।

तो यारो , हाथ में राष्ट्रीयता का तेल पिलाये गहरे लाल-लाल डंडे लेकर तैयार रहिए और इन #मूसबिल्लों की आवाजाही पर नजर रखिए। एक समय ऐसा होगा जब आपके अंदर का #मूसहर जागेगा और अपने सहजबोध से बिना किसी को मौका दिए वार पर वार करेगा।तब हमारे राष्ट्र रूपी खेत को चाटने वाले मूसबिल्ले अपने बिलों में वापस जाने लायक नहीं रहेंगे क्योंकि उन बिलों में आप और हम जैसे मूसहर #जयहिंद और #वंदेमातरम का पानी भर चुके होंगे।
फिर इस देश में भारत माँ के सच्चे सपूतों यानी मूसहरों का राज होगा और मूसबिल्ला-शासन का अंत।मजे की बात यह है कि मूसबिल्लों को इस बात की अंदेशा हो चला है कि मूसहर अब समझदार हो रहे हैं।
#PMO #HMO #NSA #AjitDobhal

मुस्लिम कट्टरपंथियों और कम्युनिस्टों का गठजोड़ -1

मुस्लिम कट्टरपंथियों और कम्युनिस्टों के गठजोड़ पर एक टिप्पणीः
"मुहम्मद अली जिन्ना और एस.ए. डांगे सबसे पहले उदाहरण हैं (वैसे मुहम्मद अली और मोहनदास गाँधी की मुहब्बत भी ठीक उसी श्रेणी की है)। - मुस्लिम-कम्युनिस्ट सहयोग पुरानी बीमारी है। मगर एकतरफा। लक्ष्य प्राप्त कर लेने के बाद इस्लामी सत्ता कम्युनिस्टों को क्रूरतापूर्वक खत्म करती है। पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान... सब कहीं यही कथा है।
मगर जेएनयू में रोमिला थापर, बिपनचंद्र आदि ने क्लासिक कम्युनिस्ट परंपरा में असुविधाजनक इतिहास पर ही पर्दा डालकर रंगरूट रेडिकल बनाए हैं। नतीजा वही नागपाश का मोह... यदि जेएनयू आजाद मुल्क हो गया, तो बेफिक्र रहिए, सारे गैर-इस्लामी रेडिकल एक साल के अंदर मारे जाएंगे या खुद भाग खड़े होंगे। वे भगत सिंह का नाम भर जपते हैं, मरने की तमन्ना होती तो तस्लीमा को बुलाकर उस के सेक्यूलर, नारीवादी, मुक्तिकामी, स्वतंत्रचेता जीवट की जयकार करते।

जेएनयू की सारी रेडिकलिज्म चारदीवारी की सुरक्षा के कारण है। चारदीवारी ढाह दो! केवल मुनीरका के दस-बीस जाट छोकरे उन्हें अच्छा बच्चा बना देंगे..."
( डा Shankar Sharan की टिप्पणी।)

युवा भारत को अखबार-टीवी के बकवास के लिए फुर्सत कहाँ है!

संताः देश के 65-70% आबादी यानी युवा भारत को टीवी-अखबारों में हो रहे बकवास के लिए फुर्सत नहीं है।
बंताः तब तो देश को कोई खतरा नहीं है।

(नोटः देश में 100 करोड़ मोबाइल और 35 करोड़ इंटरनेट कनेक्शन हैं।अखबारों की कुल बिक्री 8 करोड़ है।टीवी की स्थिति अखबार से बेहतर लेकिन मोबाइल के आसपास भी नहीं।)

Saturday, February 20, 2016

Decoding JNU-V It is better to be a BHAKT than antinational today

Decoding JNU-V
It is better to be a BHAKT than antinational today

It is better to be a BHAKT than antinational at a time when you are branded a SANGHI for anything you say that is rational or pro-India.
In this sense, commy mental slaves are helping the BJP-RSS the most today through their anti-India rants or direct-indirect support to the India-breaking forces .
When the Leftist ideological position was best required in the opposition to fill the gaps that the market-oriented policies tend to create globally, they are playing into the hands of ISLAMISTS-EVANGELISTS & ANTI-INDIA THINK TANKS.
No wonder, George Fernandes had once said of them in a JNU's Satluj hostel meeting (1988-89) : They are the last to learn!
Firing his gun through Einstein's shoulders, a  JNU professor justifies his disdain for nationalism this way:
"Nationalism … is like cheap alcohol. First it makes you drunk, then it makes you blind, then it kills you. Nationalism is an infantile disease. It is the measles of mankind – Albert Einstein"

What's more than clear from this is that by
equating Indian nationalism with the Western nationalism,  India's JNU brand  intellectuals prove themselves to be just the pendrives or copycats of what happens in the West. A former CPI member and JNU alumnus Prof Shankar Sharan has this to say:
With the world class facilities to boot, JNU churns out the third class intellectuals!

You will have difficulty listing listing JNU Social Scientists who have looked at India from Indian perspectives and are recognized for the same.
But in the same JNU, you have good number of Scientists in the Life Sciences etc who have made significant contributions.
Why? Because the Social Science students the country over are victims of mental slavery of which the pure sciences students are relatively spared.

Anyway, JNU episode has done a great service to the nation by exposing the copycat and anti-India character of  the best of educational institutions in the country.
JNU in that sense is a COMMON NOUN, not proper noun.
I am really feeling blessed to be living in this info  technology-driven age that so easily demolishes the one-way-MSM hegemony.

#JNU #ShutDownJNU #Modi #Bhakt #BJP #RSS #MSM #MentalSlavery #SocialSciences
#Sciences #Sanghi #Saffron #Bhagwa  

Sunday, February 14, 2016

Nationalist Speakers not welcome in Allahabad University!

Allahabad Central University cancelled venue booking (15 Feb, 2 pm) for program to be addressed by international indologist Dr Koenard Elst and  nationalist speakers such as Prof C P Singh (GGSIPU, Delhi) Dr Tribhuwan Singh(Gen Sec, IMA , Allahabad)  and others. Topic: Manufacturing Caste: India and Europe

Friday, February 12, 2016

देशद्रोहियों बाहर जाओ, जेएनयू हमारा है'...

SHUT DOWN JNU नहीं , अब नारा होगा 'देशद्रोहियों बाहर जाओ, जेएनयू हमारा है'।

जेएनयू के कुछ क्रांतिकारी छात्रों ने 'संसद की हत्या' के प्रयास के दोषी अफ़ज़ल गुरू को अपना नायक माना है और कश्मीर से भारत को बाहर जाने को कहा है 'एक सांस्कृतिक कार्यक्रम' के बहाने।
अब जब एफआईआर हो गया है तो कैंपस में सरकारी दखल का स्यापा कर रहे हैं।जो कैंपस देशद्रोही पाले, उसे कैंपस कैसे माना जाएगा? यह तो 'साधु वेश में रावण आया' वाली बात हो गई।
चूँकि आजतक इन क्रांतिकारी लोगों ने सैकड़ों कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार, लाखों के पलायन और इस तरह उनके जातिनाश पर कभी जुबान नहीं खोली है , इससे जाहिर होता है कि ये पाकिस्तान परस्त भी हैं और भारत-द्रोही भी।

लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इन्हें वामपंथी-सेकुलर पार्टियों का समर्थन रहा है।ये लोग तो बस मोहरे हैं।
लश्करे तोएबा की इशरत जहाँ को नीतीश कुमार बिहार की बेटी कहते हैं लेकिन बिहार में ही पिछले तीन महीनों में महिलाओं की  सरेआम हत्याओं और जंगलराज-2 पर न उन्हें कुछ कहना है न ही बाकी सेकुलर गिरोहों को।

जेएनयू एक गंभीर राष्ट्रीय बीमारी का एक लक्षण भर है, एक ऐसी बीमारी जिसके वायरस को नेहरू परिवार के सत्तामोह ने बड़े जतन से पाला है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस को जीते जी नेहरू द्वारा मृत घोषित किये जाने पर भी जेएनयू में चुप्पी रही है।इससे साफ जाहिर होता है कि जेएनयू की परिकल्पना ही नेहरू जी की याद में नेहरू जैसों के पालन-पोषण के लिए हुई थी।

सवाल है कि जेएनयू का क्या किया जाए?

बख्तियार ख़िलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को इसलिए जलाया था कि उसे ज्ञान से नहीं सिर्फ 'इस्लाम की तलवार' से प्यार था।क्या हम भी उसी की तरह ज्ञान-विरोधी परंपरा के वाहक वामी-इस्लामी हैं? उत्तर है 'नहीं'।

तो जेएनयू की स्थापना की साज़िश को बेनकाब किया जाए।जेएनयू के बहाने भारत की देशतोड़क और राष्ट्रविरोधी सेकुलर-वामपंथी-लिबरल राजनीति के खोखलेपन को बेनकाब किया जाए।उसके शुद्ध विज्ञान और संस्कृत अध्ययन के विभागों में बह रही राष्ट्रीयता की भावधारा को पुष्ट किया जाए ।

समाजविज्ञान और भाषा विभागों को विभाजनकारी वायरस ने जकड़ा हुआ है जबकि लगभग दर्जन भर और विभाग हैं जिनके स्वतंत्रचेता राष्ट्रवादी शिक्षक-छात्रों की संख्या सेकुलर-वामपंथी मानसिक गुलामों से बहुत ज्यादा है।

तो सही लोगों के हाथों को मजबूत करने की जरूरत है, विमर्श-जेहाद छेड़ने की जरूरत है, एकदम पिद्दी सी देशतोड़क
लाइन के बगल में बहुत बड़ी राष्ट्रीयता की लाइन खींचनी है।
और कुछ?
फिर तो ये देशघाती मूसबिल्ले बिलबिलाकर बाहर निकलेंगे और हम मूसहर इनका हिसाब बराबर कर देंगे ।
यानी SHUT DOWN JNU नहीं , अब नारा होगा 'देशद्रोहियों बाहर जाओ, जेएनयू हमारा है'।

#ShutDownJNU #NoToShutDownJNU #JNU

Tuesday, February 9, 2016

फ़ाज़ली ने अपनी शायरी को अरबी-फ़ारसी की ठूँसा-ठूँसी से मुक्त रखा

निदा #फ़ाज़ली की #शायरी की सादगी वली #दक्कनी जैसी है। लगता है कोई कान में धीरे से बहुत मार्के की बात कह गया है जो दिमाग से ज्यादा दिल पर असर करती है:

कभी किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता।

हिन्दी-उर्दू के चोंचले से ऊपर अपने लिए एक ग़ुलाबी ज़ुबान की जो इमारत उन्होंने गढ़ी उसका गाड़ा और मिट्टी उन्होंने #अरबी-फ़ारसी से कम और लोक भाषाओं से ज़्यादा  लिया था।

इस तरह वे #ग़ालिब से ज़्यादा #नज़ीर अकबराबादी और मीर से जुड़ते हैं।एक ऐसा शायर जो #गंगा_जमुनी तहजीब की सीमाओं को अपनी बहुसांस्कृतिक रुझान से #कावेरी और #गोदावरी तक ले जाता है।

ऐसे लोग जब जाते हैं तो उनके पाठकों का वही हाल होता है जो माँ-बाप के न रहने टुअर संतानों का।
अब्बा जान, हम आपको बहुत मिस करेंगे।

आपको लेकर थोड़ी परेशानी भी है क्योंकि आप ठहरे ख़ुदाबंद और  ऊपर तो 'हूर-बाज़ अल्लावालों' ने आजकल कब्जा सा जमा लिया है।इतना तो पक्का है कि वहाँ आपको मन नहीं लगेगा।
#NidaFazli #Faazli #NidaFaazli

Sunday, February 7, 2016

Jehadi push to India's population

If not checked in time,the #Jehadi push to #
India's #population will throw her into the #ISIS net for sure. https://t.co/lgGH7R7mAM

Saturday, February 6, 2016

हिटलर की आत्मकथा और आज का भारत

हिटलर की आत्मकथा (1925 तक) पढ़ते हुए लग रहा है मानों आज का भारत तब के जर्मनी की फोटोकाॅपी हो।
अगर ऐसा है तो खतरनाक है, बेहद खतरनाक।
*
लेकिन भारत के जीवाष्मी प्रोफेसर (Fossilized Minds) इसे तब समझेंगे जब एक औसत नागरिक भी कह और कर चुका होगा, अच्छा या बुरा ।
*
वाह रे, मानसिक गुलाम! आपके सर से क्या सरस्वती और काली का हाथ हमेशा के लिए उठ गया है?

#हिटलर_की_आत्मकथा #मानसिक_गुलामी
#भारत_और_जर्मनी

#Germany #Hitler #India 

Decoding JNU-II : Manufacturing Victimhood

Decoding JNU-II : Manufacturing Victimhood

They specialize in manufacturing victimhood and you in real RUDAALI..

The Secular-Left-Liberal-Evangelist-Dalit-Islamist Pen-Pushers generate & transfer data about India to their Western masters without doing the same about the Western countries to India, their motherland.
*
JNU and University of Hyderabad are factories
known for the 'production and supply' of such India-hating copycats.
*
Once in a blue moon, a #RohitVemula emerges to expose the gang's design by ending his life.
However, the gang is too smart to be taken
aback,  at least in the first round.
*
Actually, the gangsters milk the most out of the situation initially. It is only after the facts about their conspiracies start emerging,  thanks to social media, that they are seen on the back foot.
*
But soon after, they manufacture another case and character of victimhood. And, the story goes on and on and on...

#JNU #UoH #HyderabadUniversity #Secular #Liberal #AdarshLiberal #Islamist #Evangelist #EvangelistDalit #Dalit #JohnDayal
#SunilSardar #Left #PenPushers #RohithVemula #Rohit #Rohith

गरीबी उन्मूलन बनाम लोक लुभावन वोट गिरावन नीति

यह अब साबित हो चुका है कि मार्क्सवादी/साम्यवादी/समाजवादी व्यवस्था गरीबी से लड़ने में अक्षम है। यह गरीबी पैदा करती है न कि उसका  उन्मूलन।गुगल कर लीजिए, सारी जानकारी मिल जाएगी।
यहाँ तो असली मुद्दा है: गरीबी उन्मूलन की दीर्घकालिक नीति बनाम लोक लुभावन वोट गिरावन कार्यक्रम ।इसके लिए वोटर ज्यादा जिम्मेदार है क्योंकि वह गरीब हो या धनी उसे फटाफट मैगी कार्यक्रम ही पसंद आते हैं:
मुफ्त की बिजली, मुफ्त का पानी--यानी माले मुफ्त दिले बेरहम ।
राजनीतिज्ञ भी सोचता है कि आज  वह कड़वी नीति लागू कर खुद चुनाव हारे और कल उसके विरोधी उसकी नीति के सुफल का फायदा उठाएँ?
एक औसत मतदाता जितना गंभीर कपड़ा खरीदने, फिल्म देखने  या किसी दिन होटल में खाना खाने को लेकर रहता है उससे भी कम गंभीर वह नेता के चुनाव को लेकर रहता है।नेताओं में श्री अटलबिहारी वाजपेयी और स्वर्गीय पी वी नरसिंहराव इसके अपवाद हैं । 2014 का लोकसभा चुनाव भी अपवाद है जिसका क्रेडिट जनता को जाता है।

पंडित नेहरू के हिन्दू होने न होने पर बहस

आजकल सोशल मीडिया में पंडित जवाहरलाल नेहरू के हिन्दू होने न होने पर बहस छिड़ी है।
और उनके परिवार का गोत्र पूछा जा रहा है ताकि अपने परिवार के बारे में नेहरू के दावों की जाँच हो सके।
पर सवाल यह नहीं है कि नेहरू परिवार फर्जी हिन्दू है या असली, सवाल यह है कि इस पर बहस करने में 70 साल क्यों लग गए?
सवाल यह भी है कि अपने सच्चे सपूतों/सपूतियों के प्रति हम इतने उदासीन क्यों हैं?
ऐसा कैसे हो गया कि नेताजी जैसे व्यक्तित्व के कद को बौने नेहरू छोटा करते रहे और हम उनको चाचा कहते रहे?

दोष नेहरू के फर्जीवारे का उतना नहीं है जितना गुलाम भारतीय मन का जो आज भी अपनी भीरुता और दब्बूपने को गहना बनाकर पेश करता है।
सबलोग मिलकर पहले इस मानसिक गुलामी का डायग्नोसिस करिये फिर देखिए इसकी दवा कितनी जल्दी सामने आती है और कारगर होती है।

Tolerance in public is weakness in private...


Tolerance in public  is weakness in private...

When public Hindu tolerance is equated with weakness privately and the elite starts reveling in this weakness, it tantamounts to being the captive of your own making.
For TOLERANCE you need to exist and the Semetic Faiths including Marxism, Secularism and Liberalism of Indian variety are hell bent upon destroying the very inclusiveness of Hinduism, if there is any ISM as such.

Today Hindus are a huge bunch of tolerant people suffering from mental slavery designed by the British, to start with, and carried forward by its western educated elite that can safely be described as India-hating copycats produced in factories such as JNU.

बराक हुसैन ओबामा तो राजीव 'ख़ान' गाँधी क्यों नहीं?

कहा जा रहा है कि अगर ईसाई बहुल अमेरिका के लोग बराक हुसैन ओबामा के पिता के मुसलमान और माँ के ईसाई होने के बाद उन्हें सब जानते हुए अपना दो बार राष्ट्रपति चुन सकते हैं तो हिन्दू बहुल भारत में ऐसा क्यों नहीं?
इसका जवाब यह है कि हिन्दू बहुल भारत ने तो मुसलमान बहुल इलाकों के मुसलमानों के मजहब के  आधार पर दो राष्ट्रों के सिद्धांत को अपने ऊपर लागू न करते हुए भी पाकिस्तान की हिंसात्मक माँग को लागू होने दिया जो ईसाई या मुसलमान बहुल दुनिया में असंभव सा है।
इसी उदारता में नेहरू- गाँधी खानदान का फर्जीवारा भी खप गया।
लेकिन लोग अगर अब पूछ रहे हैं तो उन्हें यह जानने का हक है।
मैं हिन्दू हूँ और कोई हिन्दू नामधारी हिन्दुओं की निर्लज्ज और निरर्थक आलोचना कर रहा है तो मुझे यह हक है कि आलोचक के मजहब को भी जानूँ।जैसे एक इवाँजेलिस्ट हैं सुनील सरदार जो हिन्दुओं की पानी पी पीकर आलोचना करते हैं बिना यह बताये क वे ईसाई हैं और मताँतरण उनका धंधा है।
अगर कोई सच्चा है और सही काम कर रहा है तो उसे अपना मजहब छिपाने की क्या जरूरत?
बराक हुसैन ओबामा ने तो नहीं छुपाई अपनी आस्था और पृष्ठभूमि।फिर भारत तो अमेरिका क्या दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा उदार है जिसके लिए सेकुलर-वामी-सामी-लिबरल उद्योग के धंधेबाज़ों से प्रमाणपत्र की एकदम जरूरत नहीं है।

नेहरू तेरी महिमा अपरंपार



नेहरू जी ने नेताजी की आजाद हिन्द फौज का खजाना लूटनेवाले को बतौर ईनाम योजना आयोग में प्रचार-सलाहकार नियुक्त कर दिया था।
डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन को नेताजी की सच्चाई पता चल गई थी तो वे भी राजदूत,  उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बन गए।
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इसी तरह देशभक्तों को नंबर आने से पहले ही स्वर्ग की सीढ़ी पकड़ा दी गई जैसे डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय।
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ऐसे ही पंडित जी ने इतने विशाल देश को नहीं चलाया।इसके लिए उन्हें क्या नहीं करना पड़ा।अंग्रेज़ों से अंग्रेज़ियत ली और हजारों सालों के सनातनी देश पर उसे बिछा दिया।भारत को सेकुलर बनाने के लिए उनके पास और कोई चारा ही नहीं था।
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आज कोई शख्स अंग्रेज़ी उपनिवेशकाल का जिन्दा इतिहास देखना चाहे, तो उसके पास चाचा नेहरू के इंडिया की यात्रा करनी ही पड़ेगी।देखिए, नेहरू जी ने एक तीर से कैसे दो शिकार किए।अंग्रेज़ चले गए पर अंग्रेज़ियत रह गई जिस कारण आज भी अंग्रेज़ लोग भारत यात्रा पर आते हैं और हमारे पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
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उसी तरह कम्युनिस्ट सोवियत संघ से उन्होंने प्लानिंग माँग ली और भारत में योजना आयोग बना डाला।अब बिना नेहरू जी या उनके सरकारी बाबुओं की इजाजत के कोई स्याह-सफेद धंधा देश में हो ही नहीं सकता था।
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सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेताओं खासकर महान डिक्टेटर कामरेड स्टालिन से वे काफी प्रभावित थे और कहते हैं कि उन्हीं की क्रांतिकारी मदद से पंडित जी ने बरतानवी साम्राज्य के युद्ध अपराधी नेताजी सुभाषचंद्र बोस से भी छुट्टी पाई।
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बात यहीं तक नहीं  थमी । जिस कांग्रेस को गाँधीजी आजादी के बाद भंग कर देना चाहते थे, उसे नेहरू जी ने अपने परिवार का प्राइवेट बिजनेस बना दिया।बिना भंग किए काँग्रेस भंग हो गई।साँप भी मर गया, लाठी भी न टूटी।
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इस बीच गाँधी जी का भी समय पूर्व ही बुलावा आ गया।उनको चार गोलियाँ लगी थीं जिनमें तीन गोडसे ने चलाई थी और चौथी का वही हाल हुआ जो नेताजी का।किसकी मदद से इस चौथी गोली का पता नहीं चल पाया यह एक रहस्य है।
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खैर, उधर सोवियत संघ में स्टालिन की तानाशाही उनकी अंतिम साँस के बाद भी चलती रही थी और इधर नेहरू जी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए अमर हुए।
नेहरू तेरी महिमा अपरंपार।
(नोट: इस पोस्ट में ऐतिहासिक चरित्रों और घटनाओं का इस्तेमाल जरूर हुआ है लेकिन है इससे इसके काल्पनिक होने पर कोई फर्क नहीं पड़ता!)

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