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Friday, July 26, 2019

जिहाद क्या और क्यों?

1- ''फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो 'मुश्रिको' को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घातकी जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे 'तौबा' कर लें 'नमाज' कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।'' (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ख पृ. ३६८)
2- ''हे 'ईमान' लाने वालो! 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।'' (१०.९.२८ पृ. ३७१)
3- ''निःसंदेह 'काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।'' (५.४.१०१. पृ. २३९)
4- ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।'' (११.९.१२३ पृ. ३९१)
5- ''जिन लोगों ने हमारी ''आयतों'' का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं'' (५.४.५६ पृ. २३१)
6- ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा 'कुफ्र' को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे'' (१०.९.२३ पृ. ३७०)
7- ''अल्लाह 'काफिर' लोगों को मार्ग नहीं दिखाता'' (१०.९.३७ पृ. ३७४)
8- ''हे 'ईमान' लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम 'ईमान' वाले हो।'' (६.५.५७ पृ. २६८)
9- ''फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।'' (२२.३३.६१ पृ. ७५९)
10- ''(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे 'जहन्नम' का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।''
11- 'और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके 'रब' की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।'' (२१.३२.२२ पृ. ७३६)
12- 'अल्लाह ने तुमसे बहुत सी 'गनीमतों' का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,'' (२६.४८.२० पृ. ९४३)
13- ''तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ'' (१०.८.६९. पृ. ३५९)
14- ''हे नबी! 'काफिरों' और 'मुनाफिकों' के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना 'जहन्नम' है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे'' (२८.६६.९. पृ. १०५५)
15- 'तो अवश्य हम 'कुफ्र' करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।'' (२४.४१.२७ पृ. ८६५)
16- ''यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का ('जहन्नम' की) आग। इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी 'आयतों' का इन्कार करते थे।'' (२४.४१.२८ पृ. ८६५)
17- ''निःसंदेह अल्लाह ने 'ईमानवालों' (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए 'जन्नत' हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।'' (११.९.१११ पृ. ३८८)
18- ''अल्लाह ने इन 'मुनाफिक' (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से 'जहन्नम' की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।'' (१०.९.६८ पृ. ३७९)
19- ''हे नबी! 'ईमान वालों' (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।'' (१०.८.६५ पृ. ३५८)
20- ''हे 'ईमान' लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।'' (६.५.५१ पृ. २६७)
21- ''किताब वाले'' जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे 'हराम' करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना 'दीन' बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से 'जिजया' देने लगे।'' (१०.९.२९. पृ. ३७२)
22- २२ ''.......फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०)
23- ''वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी 'काफिर' हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।'' (५.४.८९ पृ. २३७)
24- ''उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और 'ईमान' वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा'' (१०.९.१४. पृ. ३६९)
उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं।

Wednesday, July 10, 2019

An open letter to Javed Akhtar

Dear Javed Ji,
Namaskar.
This is in response to your tweet to Mr Tarek Fateh in which you refer to Muslims, Hindus,Terrorism and 'fanatics like Pragya'.
1. Pragya is entitled to her opinion on Godse as much as near 170 crore Muslims are on Mohd who justified the killing of Kafirs. Godse killed Gandhi as his policy (of nonviolence) led to genocide of about 3 million Hindus by Muslims. No doubt, both Gandhi and Godse were patriots. Being a killer doesn't necessarily makes you anti-national if the intention of killing is to safeguard the national interest.
2. Most of the global terror is attributed to Islam that is a disease of which most Muslims are worst victims. The Qur'an is banned in China & Muslim children are being DE-educated to be cured of Islam. Today you don't have the choice of FEAR or CONVENIENCE. Do something for our very dear motherland Bharat.
3. Javed Ji, why is there no Muslim middle class? Yes, it's because even people like you are dead afraid of questioning Islam that punishes the doubters with death. In terms of crimes against the humanity, even dozens of Hitlers can't match Mohd but you remain silent under the Burqa of Atheism.
4. It's not a question of Indian Muslims only. It's about all Muslims who are taught by their religion that the Property, Women & Land of non-Muslims belong to Muslims. It's about Islam that prescribes the abduction, rape & killing of non-Muslims as a religious duty done to spread Islam.
5. People like you can save the world from the impending Global Civil War by talking boldly about the pathetic conditions of Muslims at the hands of Islam. Instead you keep yourself focused on Muslims who are just the poor victims. This way you avoid looking at the cause of their plight.
6. In her magnum opus A GOD WHO HATES, Dr Wafa Sultan says that the one who remains a Muslim even having read the Quran is mentally ill. It shows how serious the problem is. Yet you still end up defending Islam through its victims (Muslims).
7. Islam or for that matter any ideology espousing violence engages in deception. Islam does this through its theory of religiously sanctioned lies( Taqaiya). This way, minus God, Communism is Islam's closest junior cousin. Those trapped in this were called USEFUL IDIOTS by Lenin!
8. Face the cruel truth. As individuals, most Muslims are as good or as bad as the non-Muslims. But they are potential terrorists as the followers of Islam that makes it their duty to kidnap, rape and kill the non-Muslims as part of Jihad. Millions of Kafirs know this. Don't you?
May God bless a self-declared atheist like you with courage to question Islam that has practically become synonymous with global terrorism,
Thanking you,
A Kafir & an ex-Communist.

Tuesday, July 9, 2019

गृहयुद्ध--5: शिशुओं से बलात्कार और सुप्रीम कोर्ट


23 मई के बाद देशभर में बच्चियों से हो रहा 'मजहब सम्मत' बलात्कार और उनकी हत्याएँ आशंकित गृहयुद्ध के लिए उत्प्रेरक का काम कर रहीं। लेकिन अदालतें बहुत पहले से इस सुषुप्त आग में घी का काम करती रही हैं। लगता है गृहयुद्ध के पहले 'जनता बनाम सुप्रीम कोर्ट' का आंदोलन होगा क्योंकि यह कोर्ट हिंदुओं के मामले में न्याय के बजाय अक्सर सिर्फ निर्णय करती है और वह भी बहुत देर से। राम जन्मस्थान मंदिर और रोहिंग्या मामलों में अदालती रवैया इसका प्रमाण है।
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न्यायपालिका की विश्वसनीयता आज पुलिस और अपराधियों से भी कम हो गई लगती है क्योंकि यह न्यायसम्मत, समाजसम्मत और नीतिसम्मत होने के बजाय क़ानूनसम्मत होने पर ज़ोर देती है। क़ानून तो अंग्रेज़ों का भी था और उसके पहले नरसंहारी-बलात्कारी इस्लामी हमलावरों का भी। लोग सुप्रीम कोर्ट को 'सुप्रीम *ठा' कहकर अपना आक्रोश जताते है जो लोकतंत्र के लिए ख़तरे की घंटी है।
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पिछले 5 सालों से चला आ रहा 'सत्ता संस्थान बनाम सरकार' का संघर्ष अब और विकट रूप लेगा जिसकी अगुवाई सुप्रीम कोर्ट करेगी। यह सरकार के हर समाजसम्मत और नीतिसम्मत क़दम के रास्ते में क़ानूनी रोड़े अटकायेगी और दबाव बनायेगी कि हिंदू-द्वेषी और भारतविरोधी लोग न्यायपालिका में उच्च पदों पर रखे जाएँ। चूँकि सरकार इसका विरोध करेगी, इसलिए सरकार से अदालत का टकराव खुलकर सामने आयेगा जिसमें जनता सरकार के साथ और अधिक मजबूती के साथ खड़ी होगी।
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यहाँ सत्ता संस्थान का मतलब है न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, मीडिया और विश्वविद्यालय। सत्ता संस्थान के ये अंग कमोबेश जनविरोधी हैं,
और सरकारविरोधी हैं क्योंकि मोदी सरकार ने नेता-बाबू-दलाल की तिकड़ी को एक हद तक कमज़ोर कर दिया है। इस कारण किसी भी मामले को इस आधार पर कम या ज्यादा महत्त्व दिया जाता है कि उसमें पीड़ित कौन है: हिंदू या मुस्लिम? पीड़ित हिंदू हुआ तो मामला दबाया जाता है या फिर पीड़ित को ही उत्पीड़क साबित करने की मुहिम शुरू हो जाती है। लेकिन पीड़ित अगर मुसलमान हुआ तो मामले पर ख़ूब रायता फैलाया जाता है। इतना ही नहीं पीड़ित और उत्पीड़क दोनों ही मुसलमान हुए तो भी बिना किसी जाँच हिंदू को दोषी ठहराने का एजेंडा काम करने लगता है।
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उपरोक्त पाखंड और भेदभाव के कारण अधिसंख्य हिंदू जो अबतक माइनॉरिटी सिंड्रोम (Minority Syndrome) के शिकार होकर चुप्पी के मकड़जाल (Web of Silence) में फँसे थे, वे अब मुखर होने लगे हैं। उनका आक्रोश जो अबतक सुषुप्त ज्वालामुखी की तरह दबा था, उसके निकट भविष्य में सक्रिय होकर सुनामी को जन्म देने के आसार दिख रहे हैं। यह सब इंटरनेट-मोबाइल-सोशल मीडिया के तेजी से फैलाव के कारण संभव हो रहा है।
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चिंता की बात यह है कि इस विस्फोटक स्थिति पर खुलकर चर्चा करके उसका समाधान निकालने के बजाय मुद्दे पर चर्चा करनेवालों को ही इस्लाम-विरोधी, संघी या मोदीभक्त कहकर चुप करा दिया जाता है जैसे बीमारी की पहचान करनेवाले डॉक्टर को ही बीमारी का कारक मान लिया जाए।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

Monday, July 8, 2019

राष्ट्र और सत्ता: काँग्रेस बनाम आरएसएस


काँग्रेस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच जारी विवाद के मूल में #राष्ट्र को लेकर उनकी समझ का अंतर है। काँग्रेस यूरोपीय #NationState (राष्टराज्य) की नेहरू-नक़ल करती है तो संघ भारतीय जीवन और सभ्यता में व्यवहृत #StateNation (राज्यराष्ट्र) को मानता है जिसे वह 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' कहता रहा है।
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असल में #राष्ट्रराज्य विभेदों में खड़ा किया जाता है जैसे मजहब, भाषा, नस्ल, क्षेत्र आदि। इसी आधार पर अंग्रेज़ों ने खुद द्वारा स्थापित काँग्रेस और पोषित लीग के साथ मिलकर भारत का बँटवारा कर दिया। फिर इसी आधार पर बांग्लादेश बना और बलुचिस्तान-सिंध-पख़्तूनिस्तान भी लाइन में हैं क्योंकि राष्ट्रराज्य की अवधारणा ही सत्ता (state) केंद्रित और विभेदाधारित है।
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दूसरी तरफ़ #राज्यराष्ट्र की अवधारणा रामायण वाली 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि' पर आधारित है  जिसमें सत्ता एक साधन मात्र है जन्मभूमि की गरिमा को बनाये रखने के लिए। सत्ता का काम भाषिक-क्षेत्रीय समेत अन्य विविधताओं के बीच सेतु का काम करना है न कि उन्हें समुद्र में टापू की तरह अकेले छोड़ देना है। अथर्ववेद में भी आया है: 'माता भूमिः पुत्रोहं पृथिव्याः'।
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दूसरे शब्दों में कहें तो काँग्रेसी सोच के केंद्र में सत्ता-केंद्रित समाज है तो संघ की सोच के केंद्र में समाज-केंद्रित सत्ता है।
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दिलचस्प है कि भारत का संविधान और यहाँ का सत्तासंस्थान (विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका, मीडिया, शिक्षाजगत) सब यूरोप की नक़ल करते हुए सिद्धान्ततः राष्ट्रराज्य में विश्वास रखते हैं जबकि भारत का जनजीवन राज्यराष्ट्र को जीता है। यानी भारत के जीवन से निसृत राष्ट्र/राष्ट्रवाद की व्यावहारिक अवधारणा और उसके बुद्धिजीवियों में इसकी समझ के बीच एक गहरी खाई है। असल में वे एक-दूसरे के धुर विपरीत हैं।
इसलिए इस देश में आज बुद्धिजीवी यह कहते से प्रतीत होते हैं:
'जनता को गोली मार दो
जनता प्रतिक्रियावादी हो गई है।'
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जनता और उसके अभिजात वर्ग के बीच की यही खाई नेपाल में भी है जिसे केंद्र में रखकर 'राज्यराष्ट्र: अवधारणा और सिद्धान्त' नामक पुस्तक लिखी गई है। इस क्रांतिकारी पुस्तक के लेखक हैं डॉ Nirmala Mani Adhikary और डॉ गोविन्द उपाध्याय। इस पुस्तक की यूट्यूब पर समीक्षा का लिंक नीचे है। मित्र सुमंत भट्टाचार्य ने भी अपनी वाल पर इसको लेकर विमर्श शुरू किया है। असल में आज पोस्ट लिखने की प्रेरणा उन्हीं की सर्जिकल स्ट्राइक से मिली।
https://www.youtube.com/watch?v=ODL9Ne-6w6
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

Saturday, July 6, 2019

मुसलमानों को इस्लाम-मुक्त कराना एक वैश्विक कर्तव्य

चीन में मुस्लिम बच्चों को उनके माँ-बाप से अलग किया जा रहा है ताकि इस्लाम की शिक्षा उन्हें न मिले और वे जिहादी होने से बच जाएँ। मानवाधिकार को सुनिश्चित करने के लिए इससे बड़ा कोई काम नहीं हो सकता। इसके लिए चीन की सरकार बधाई की पात्र है।
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ऐसा इसलिए कि मजहब की शक़्ल में इस्लाम एक मानव-घाती कब्ज़ावादी राजनीतिक विचारधारा है जिसे माननेवाला चुप्पा या सक्रिय जिहादी होता है। इस लिहाज से इस्लाम के सबसे बड़े शिकार ख़ुद मुसलमान हैं और वे पूरी दुनिया को अपना शिकार बना रहे हैं। चीन ने इस बात को न सिर्फ समझा है बल्कि उससे बचाव का कारगर तरीका भी अपनाया है जिसे देर-सबेर सभी देशों को स्वीकारना पड़ेगा।
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चीन के क़दम का महत्त्व सीरियाई मनोचिकित्सक डॉ वफ़ा सुल्तान के शोध-निष्कर्ष से समझा जा सकता है जिसमें वे कहती हैं कि क़ुरान पढ़ने के बाद भी मुसलमान बना रहनेवाला मनोरोगी होता है। दूसरी तरफ़ INFIDEL की लेखिका अयान हिरसी अली इसी बात से बहुत ख़ुश हैं कि दुनिया के अधिकतर मुसलमान वह सब नहीं करते जो ख़ुद हुज़ूर ने किया भले वे उसे सही कहते-मानते हों। अगर ऐसा नहीं होता तो दुनिया अबतक नरक हो गई होती।
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इस कठिन समय में चीन के जिनपिंग और सऊदी राजकुमार बिन सलमान दुनिया की आशा के केंद्र हैं। वे यह साबित करते हैं कि दुनिया कभी विकल्पहीन नहीं होती। जिन्हें इन बातों के महत्त्व पर भरोसा न हो उन्हें क़ुरआन जरूर पढ़ना चाहिए, मोहम्मद की जीवनी भी क्योंकि यह पढ़ना आपके और पूरी दुनिया के अस्तित्व से जुड़ा है।
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अंग्रेजी पढ़नेवालों के लिए डॉ वफ़ा सुल्तान की आत्मकथात्मक पुस्तक A GOD WHO HATES बड़े काम की है। इस किताब को पढ़ने-गुनने के बाद आपको मुसलमानों पर सिर्फ दया आएगी क्योंकि वे इस्लाम नामक बीमारी के शिकार हैं और उन्हें इस बीमारी से मुक्त कराना हम सबका वैश्विक कर्तव्य है। इस पोस्ट के साथ इस्लाम और मुसलमानों पर लिखी कुछ बहुचर्चित पुस्तकों का फ्रंट-कवर स्क्रीनशॉट संलग्न है।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

Friday, July 5, 2019

The Worst Ever Known Holocaust

The US Holocaust Museum drops the three worst holocausts of human history: Evangelists massacred 40 cr plus people globally, Jihadis 27 cr plus and Communists 10 cr plus. Of all these, Jihadis killing 10 cr plus Hindus only in India in 1400 yrs tops the list of territory-specific holocausts. The massacre of 50 lakh Jews during WW-II pales in front of the Hindu massacres by Muslims. The India-hating copycat that #MahuaMoitra is, can she dare these facts?