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Wednesday, December 30, 2015

बाजीराव मस्तानी : बिना बौद्धिक बीमा के फिल्म देखना खतरनाक

बाजीराव मस्तानी: सेकुलर-वामी-लिबरल-इस्लाम परस्त या मानसिक गुलामी से ग्रस्त लोगों के लिए यह फिल्म बुद्धिभंजक साबित हो सकती है।
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बिना बौद्धिक बीमा के फिल्म देखना खतरे से खाली नहीं।

#बाजीराव_मस्तानी #बुद्धिभंजक #बौद्धिक_बीमा

दलित चिंतक 2015: चिंतन से मुक्त, सेकुलर भत्ते की चिंता

दलित आलोचक की सबसे बड़ी खूबी होती है कि वह अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योंकि कुरान मजीद और होली बाइबिल की तरह उसके वाक्य अमर वचन होते हैं।
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डा अंबेडकर को उतना और वैसे ही समझना चाहता है जैसे अंग्रेज़, ईसाई मिशनरियाँ और इस्लामपरस्त लाबी चाहती हैं।
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उन्हें न डा अंबेडकर को सर्वांगीण पढ़ने में रुचि है न ही उनके निष्कर्षों के कारण जानने में, अंबेडकर के स्रोतों की तो बात ही मत करिये।
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मोटे तौर पर हमारे आदरणीय दलित चिंतक सेकुलराइटिस के ऐसे मरीज हैं जो अपना ईलाज जानबूझकर इसलिए नहीं कराते कि कहीं 'बीमारी भत्ता' मिलना बंद न हो जाए।
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निम्न में से जो भी उनपर आपको अच्छा लगे उससे उन्हें आप प्यार सहित नवाज सकते हैं-
बुद्धिजीवी
बुद्धिमान
बुद्धिविलासी
बुद्धिवंचक
बुद्धिविरोधी
बुद्धिवीर
बुद्धू
अरि-बुद्धि  ( Tribhuwan Singh )
बुद्धिपिशाच(" " " " " " " " " " "  " ")
बुद्धिभंजक( Shailendra Dhar )
कुपढ़
सुपढ़ ।

असहिष्णुता 2015: सदी का सबसे बड़ा फर्जीवारा

अख़लाक़ सिंड्राॅम से ग्रस्त असहिष्णुता का हल्ला इस सदी का सबसे बड़ा फर्जीवारा है...
यह फर्जीवारा एनजीओ-मीडिया-काँग्रेस का नापाक गठबंधन है...
यह गठबंधन सेकुलरवाद के नाम पर जनता के मौलिक अधिकारों का अपहरण करने में माहिर है...

यह गठबंधन और इसका सेकुलरवाद दोनों राष्ट्र निर्माण की राह के सबसे बड़े रोड़े हैं...

इसका अचार डालें, क्या करें?

भारतीयता को सर्वाधिक नुकसान जेएनयू से

भारतीयता और देसी दृष्टि का जितना नुकसान अकेले जेएनयू ने किया है उतना देश के सभी विश्वविद्यालयों ने मिलकर भी नहीं।इसमें भी इतिहास विभाग का जो अराष्ट्रीय कर्म है वह तो
पाश्चाताप और सजा से भी परे है और जिसे केवल माफ किया जा सकता है।

(नोट: पोस्ट को लिखने वाला भी जेएनयू का ही है और उसे इस पर गर्व है।)

Tuesday, December 29, 2015

India should be grateful to Mr Donald Trump

India should be grateful to Mr Donald Trump for having stated in clear terms the threat that the Collective Muslim Mind poses globally.
It requires a politician to make or break a point.

Monday, December 28, 2015

Decoding JNU-III : Throwing the baby with the bathwater?


 Decoding JNU-III : Throwing the baby with the bathwater?

JNU is a factory known for its products lapped up by the India-breaking forces globally.
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Many JNU reject-products are smart nationalists shunned by the official nationalists!
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How can you counter JNU's sharpest India breaking minds with anti-intellect official nationalists?
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JNU is programmed to produce the
sharpest anti-India copy cats groomed to revel in their mental slavery.
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JNU  should be respected for living up to its mandate of aping the West and dumping that is India's best.
By living upto its mandate, JNU helps to assess the damage done to the nation by the university system as a whole.
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In the garb of decolonizing the Indian Mind, JNU excelled in neo-colonizing which no other university could because of resource crunch & and or political intervention.
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In this sense, JNU is not just a university but the symbol of the mental slavery of  Indian intelligentsia at its best.
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The course correction in JNU must be started with the resolve to extend it the country over as JNU is more like an ideal lab where it is easy to obtain desired results.
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JNU's reject-products, most of whom turn out to be smart nationalists, are to the govt what a baby is to its mother.
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Moral of the story: Don't throw away the baby with the bathwater. JNU Renegades or
'factory rejects' are your WMDs to be used to the optimum effect.

#JNU #MentalSlavery #ColonizedMind #IndiaBreakingForces #Nationalists
#OfficialNationalists #AntiIndia #CopyCats #NoToShutDownJNU #ShutDownJNU
#IndianIntelligentsia #MiddleClass #AntiIntellectual #AntiIntellect

बाजीराव मस्तानी यानी हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ बायोपिक

ऐतिहासिक चरित्रों पर बनी हिन्दी फिल्मों में 'बाजीराव मस्तानी' अबतक की सर्वश्रेष्ठ ! कहानी, अभिनय, निर्देशन, कैमरा सभी के पुरस्कारों पर कब्जा तय । असली हिन्दुस्तान पर बनी असली फिल्म।
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बुंदेलखंड के हिन्दू राजा की मुसलमान बेगम से मुसलमान वीरांगना बेटी का नाम है मस्तानी और मराठा पेशवा (बाजीराव) की मुसलमान बेगम (मस्तानी) से पुत्र का नाम है शमशेर बहादुर ।
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इतिहास, वीरता,मजहब, कर्मकांड, कट्टरता, धर्म, प्रेम, त्याग, देशप्रेम, छल, जीवनोत्सर्ग, उदारता और उत्कट मानवीय मूल्यों में अडिग आस्था को इस फिल्म में एक साथ देखा जा सकता है।
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बाजीराव पेशवा की पटरानी यानी पेशवन बाई के अंतर्द्वंद्व को जिस तीव्रता से प्रियंका चोपड़ा ने पर्दे पर जिया है उसको और प्रभावपूर्ण बना दिया है मस्तानी (दीपिका पादुकोण) की दिलकश अदाकारी ने जो एक साथ वीरांगना, कलाकार, प्रेमिका और पत्नी भी है।
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अपने जीवन में कोई भी युद्ध नहीं हारनेवाले बाजीराव (रणवीर सिंह) की अपनों के हाथों धर्म (प्रेमी-पति-पिता-बेटा-योद्धा-भाई-सेनापति के कर्तव्य) की रक्षा करते हुए हार जाना ही उसकी सबसे बड़ी जीत है।इतनी विविधतापूर्ण भूमिकाओं को निभाते हुए रणवीर सिंह आपको एक साथ संजीव कुमार, दिलीप कुमार, नाना पाटेकर, शाहरुख खान, राजकुमार, अमिताभ बच्चन सबकी याद दिला जाते हैं।
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जैसे अनेकानेक व्यंजन वाले छप्पन भोग के बाद खिचड़ी खाने की इच्छा नहीं होती वैसे ही इस हफ्ते मुझे कोई और फिल्म देखने में डर लग रहा है कि कहीं सौंदर्यबोध के कैलाश पर्वत  से रायसीना पहाड़ी पर न गिर जाएँ।डर तो डर है, इसका क्या करें!
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नैतिक चेतावनी: सेकुलर-वामी-लिबरल-इस्लाम परस्त या मानसिक गुलामी से ग्रस्त लोगों के लिए  फिल्म बुद्धिभंजक साबित हो सकती है।बिना बौद्धिक बीमा के फिल्म देखना खतरे से खाली नहीं।

#बाजीराव_मस्तानी #रणवीर_सिंह #दीपिका_पादुकोण #संजय_लीला_भंसाली #बायोपिक #हिन्दी_फिल्म #बाॅलीवुड

#BajiRaoMastani #DeepikaPadukone #PriyankaChopra #SanjayLeelaBhansali
#HindiFilms #Bollywood #Biopic #BestBiopicHindi

Iqbal inspires Jihadism and is a Secular Symbol too!

The philosopher-poet Allama Iqbal seeded the Idea of Pakistan during his sponsored stay in England in 1920s.
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In the later part of his life, Iqbal  wrote poems which are being used by the Jehad Recruiters  in India of today:
Ho Jayne Agar Shah-e-Khurashan Ka Ishara / Sajda Na Karoon Hind Ki Napak Zameen Par (Won't even offer Namaz on the unholy land of India if so desired by the king of Khurasan).
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Allama Iqbal is an Islamist Poet & he must be treated as such in India . And, he should be taught the way he is.
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Rudhdie's Satanic Verses is banned as it questions Peace-potential of Islam and Iqbal is venerated because he birthed the Idea of Pakistan in early early 20th century and his poetry is inspiring Jehadism today!
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It happens only in India...

#IqbalExposed #AllamaIqbal #JehadiPoetry #JehadistPoetIqbal #Iqbal #JehadRecriters #JehadFactory #IdeaOfPakistan

बाइबिल से भारत क्यों ग़ायब है?

ईसा मसीह के "सरमन ऑन द माउंट " को छोड़ शेष सब फर्जीवारा है।वे मरे भारत में, उनकी कब्र भारत में, उनके पहले यहूदी अनुयायियों की संतति 'बनी इस्राइल' (अब मुसलमान) भारत (कश्मीर) में, उनको बोधिसत्व का दर्जा भारत में फिर भी ईसाइयों के फर्जी इतिहास से भारत गायब!

पढ़िये Jesus Lived in India by
Holger Kersten (Penguin, 1982).
इसका खंडन अबतक नहीं हो सका है।सिर्फ साज़िशी चुप्पी है।
डाॅक्युमेंट्री भी है जिसे भारत सरकार ने बनवाई थी
The Rozabal Shrine .
गूगल करिये तो और फ्राॅड का पता चलेगा ।मैं क्रिसमस के मूड को नहीं बिगाड़ना चाहता क्योंकि यह एक छुट्टी है और इसका संबंध ईसा मसीह से है जो भारत में मुदफ्न हैं, मेरे लिए इतना काफी है।

क्या अंग्रेज़ों से मुक्ति के बाद भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन हुआ?

1. दुनिया के कितने देश हैं जहाँ के इतिहास को विदेशी शासन से आजादी के बाद पुनः नहीं लिखा गया?
2. क्या भारत के इतिहास को आजादी के बाद पुनः लिखा गया?
3. अगर नहीं, तो क्यों? कौन लोग इसके पीछे थे?
4. इसमें नेहरू की क्या भूमिका थी?
5. इसमें नेहरू-परिवार का क्या लाभ था?

Sunday, December 27, 2015

अल्लामा इक़बाल और उनका जेहादी काव्य

अल्लामा इक़बाल का पुनर्पाठ जरूरी है।उनकी कविता और विचारों को जेहादी-भर्ती में बहुत कारगर पाया गया है।
जरा गौर करिये:

हो जाए अगर शाहे ख़ुरासान का ईशारा
सजदा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मीं पर ।

वैसे  Tufail Ahmad ने साफ-साफ उन्हें विश्वविद्यालयों में प्रतिबंधित करने की बात कही है।
ये हमारे सेकुलर-लिबरल-वामी अकल से इतने पैदल क्यों हैं?
सब के सब आख़िरी रोटी ही खाए रहै क्या जो फालतू के एक जेहादी को इतना सम्मान देते रहे?
इतना तो इतिहास के बकलोल को भी पता होगा कि इक़बाल मियाँ जब  अंग्रेज़ों की स्काॅलरशिप पर इंग्लैंड गए तो पाकिस्तान का आइडिया देकर आ गए लेकिन शायरी में भी 'पाकिस्तान का रायता' फैला गए, इसका राज़ तो अब खुल रहा है।

ये सेकुलर-वामी-लिबरल भी न जिस पत्तल में खाते उसी में छेद करते? फिर चर्च की तरह दसियों साल बोलते कि 'पत्तल में छेद करना महाभूल थी'!
लगता है कि इन लोगों ने महाभूल के महाकुंभ आयोजन की सुपारी ले रखी है।

कोई आश्चर्य नहीं अगर वे अब तुफैल अहमद के पीछे पड़ने की महाभूल कर बैठें!
तथास्तु ।

#इक़बाल_की_पोलखोल #अल्लामा_इक़बाल #इक़बाल
#जेहादी_शायर
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#AllamaIqbal

Thursday, December 24, 2015

कड़कड़डूमा अदालत में नाबालिगों द्वारा हत्या के निहितार्थ

कड़कड़डूमा अदालत परिसर में अंजाम दी गई हत्या की वारदात यह चिल्ला-चिल्ला कर कहती जाप पड़ती है कि  बाल-अपराध कानूनों की भारतीय संदर्भ में तत्काल समीक्षा की जाए ।
नाबालिग अपराधी को लेकर भारत के कानून यूरोपीय जरूरत की नकल लगते हैं।एक तरफ तो यूरोपीय दंपति बच्चे पैदा करने और पालने का 'झंझट' मोल नहीं लेना चाहते तो दूसरी तरफ अपनी आबादी को भी विलुप्त होने से बचाना चाहते हैं।
पहली चाहत टूटे हुए परिवार और आवारा-अपराधी बच्चे का कारण है और दूसरी चाहत इन अपराधी बच्चों को दंड से बचाने का।
यह बूढ़ी होती आबादी का लक्षण है जिसे एक युवा आबादी वाले देश के नक्काल हुक्मरानों ने ओढ़ लिया है।

भारत में न बच्चे के लालन-पालन को झंझट मानते हैं और न ही यहाँ आबादी के विलुप्त होने का संकट है।
एक तरफ तो हम कहते हैं कि हमारी आबादी का 75 प्रतिशत युवा हैं और दूसरी तरफ उन देशों के बाल-कानूनों की नकल कर रहे हैं कि जहाँ की बहुसंख्य आबादी बुजुर्गों की श्रेणी में है!
ऐसी ही मानसिकता पर क्षुब्ध होकर प्रसिद्ध साहित्यकार आक्टेवियो पाज़ ने कहा था कि नक्काली में भारत के बुद्धिजीवी बेजोड़ हैं ।

काश इन नक्कालों को गाँव के सामान्य स्कूलों में पढ़ाया जानेवाला यह नीतिउपदेश कोई समझा देताः

लालयेत पंच वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत।
प्राप्तेषु षोड्से वर्षे पुत्रं मित्रमिवाचरेत ।।

(नोटः यह पोस्ट डा त्रिभुवन सिंह से इस विषय पर विमर्श,  खासकर टूटे परिवारों का तर्क, से संवर्धित है।)
Tribhuwan Singh

#कड़कड़डूमा_हत्याकांड
#बाल_अपराध #नाबालिग_कानून #बालकानून #युवाओं_का_देश #बुजुर्गों_का_देश
#टूटे_परिवार_अपराधी_बच्चे #भारत_और_यूरोप

Wednesday, December 23, 2015

कुमारिलभट्ट ब्रिगेड क्यों ?

भारतीय बुद्धिजीवियों की मानसिक गुलामी से तंग कुछ बुद्धिमानों  का यह मानना है कि जबतक देश के शीर्ष संस्थानों पर आयातित विचारों की जुगाली में मस्त और बुद्धि के लिए बुद्धि का नारा देनेवाले बुद्धिविलासी गिरोह का कब्जा रहेगा तबतक बुद्धिवीरों का अकाल बना रहेगा जो देश हित में निर्भीक होकर सोचते और उस सोच पर अमल करने की क्षमता रखते हैं।
इस अकाल में अगर किसी का साम्राज्य है तो वे हैं बुद्धिवंचक जो सबकुछ जानते-बूझते भी रात-दिन निहित स्वार्थ साधने मे लगे रहते हैं ।लेकिन इन सबों से निबटने में राष्ट्रप्रेमी दल अमूमन बुद्धिविरोधियों जैसा बर्ताव करता है जिसे देख कोई बुद्धू भी शरमा जाए।
तो सवाल उठता है कि बुद्धिविलासी और बुद्धिवंचकों के कुपढ़ गिरोह के सामने जो अधपढ़ और अनपढ़ देशप्रेमी बुद्धिविरोधियों  की गतिमति है उसे सुपढ़ बुद्धिवीर कैसे सुधारेंगे।ऐसा नहीं हुआ तो गाँव-देहात की यह अनुभवजन्य
धारणा बलवती होतीं जाएगी कि
'जे जेतना पढ़ुआ ऊ ओतना भड़ुआ'।
इसी के मद्देनजर देशहित-व्याकुल-बुद्धिवीरों का एक मंच तैयार हो रहा है जिसका नाम है "कुमारिलभट्ट ब्रिगेड" ।

#कुमारिलभट्ट_ब्रिगेड
#बुद्धिजीवी #बुद्धिमान #बुद्धिविलासी #बुद्धिवंचक #बुद्धिवीर #बुद्धिविरोधी #बुद्धू #अधपढ़ #अनपढ़ #सुपढ़ #कुपढ़ #पढ़ुआ #भड़ुआ

Sunday, December 20, 2015

Why not a study on Religion and Crime?

What do you think of a study on the relationship between Religion and Crime in every district of India as an interdisciplinary project done by a group of universities, both public and private?

This idea is inspired by an ICSSR seminar on
'How to understand Radical Islam and live with it'.

Saturday, December 19, 2015

काँग्रेसियों के नाम नेहरू की पाती

प्रिय काँग्रेसियो,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
आपके समर्थन का नतीजा है कि सत्ता में न रहते हुए भी  हम चोरी और सीनोजोरी कर सके।हमारी जगह भाजपा होती तो रो-गा रही होती।लेकिन हमने संसद को ठप रखा और पप्पू जैसे राजकुमार के बावजूद राज को ढहने नहीं दिया।

बुद्धिविरोधियों को ऐसे ही फँसा कर रखिए चाहे असहिष्णुता को पुनर्जीवित क्यों न करना पड़े, दुनियाभर की निजी समस्यायो के लिए भी मोदी को जिम्मेदार ठहराना पड़े, बेखौफ करिये। कुछ भी करिये पर सरकार और जनता को सोचने का मौका मत दीजिए।

भाजपा, संघ और हिन्दुओं को कट्टर कह-कहा दीजिए, इसी में दो साल निकल जाएगा।हीनभावना से ग्रस्त और बुद्धिविरोधी जमात जबतक समझेगी तबतक बहुत देर हो चुकी होगी।2018 में भाजपा चुनाव-मोड में आ जाएगी और तब होगी आपकी बल्ले-बल्ले।
भाजपा के लोग विपक्ष में रहना जानते हैं, सत्ता चलाना नहीं।
ये असली परेशानियों से निपटना जानते हैं, नकली से नहीं।
उसे शांतिकाल के छायायुद्ध का कोई तजुर्बा नहीं है।
यह  सब तो सिर्फ हमारा नेहरू-गाँधी राजवंश जानता है जिसे अंग्रेज़ों और भारतीयों दोनों से डील करने का 100 सालों से भी ज्यादा का तजुर्बा है।
अगले तीन सालों तक आपकी गलथेथरी और हेहरई की
अग्निपरीक्षा है।घबड़ाइये मत, टीवी , अखबार और बाॅलीवुड सब आपके साथ रहेंगे, सिर्फ सोशल मीडिया से खतरा है जिसे आप मूर्खो का टाइमपास और अविश्वसनीय घोषित कर दीजिए।

लेकिन ये भी ध्यान रहे, कटु पर सत्य बातें सोशल मीडिया पर ही सबसे पहले आती हैं , इसलिए उसकी बातों पर प्राइवेटली पूरा गौर करिये ।
आपका सबसे बड़ा दुश्मन है नई पीढी में राष्ट्रीयता का उभार।इसलिए आदर्श बोलवचन की तो माला फेरिए, पर यह मत भूलिये कि आपकी ताकत आदर्श नहीं, स्वार्थ है।आपके स्वार्थ ने आपको काँग्रेस से उस समय भी जोड़े रखा जब खुद  गाँधी जी इस पार्टी को भंग कर देना चाहते थे।गाँधी जी ने जीते जी टोपी नहीं पहनी लेकिन मरने के बाद जो आप लोगों ने उनको टोपी पहनाई वह आपकी जीजीविषा और स्वार्थ-निष्ठा का अनुपम उदाहरण है।
नेशनल हेराल्ड पर नेहरू-गाँधी राजवंश का नैसर्गिक अधिकार है।इसके लिए कागज-फागज की कोई जरूरत न तब थी न अब है।जिस किसी की सलाह पर कागजी कब्जे की कार्रवाई हुई हो उसे पूरा 'भक्त' मानिए और उसे ललित बाबू, राजेश पायलट और माधवराव सिंधिया जैसा सम्मान देने में कोई कोताही मत करिये , लेकिन थोड़ा सब्र के साथ ।

भक्तों का तो हमलोग वो हाल करेंगे जो नेताजी का किया था।बस स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयों को अपने हाथ से मत जाने दीजिए।ये हमारी फैक्टरियहाँ हैं जहाँ से अनजाने ही एक औसत हिन्दुस्तानी काँग्रेसी बनकर निकलता है।
बाकी आपकी क्षमताओं पर हमारा पूरा भरोसा है,
आपकी अपनी
काँग्रेस ।

(नोटः यह चिट्ठी 19 दिसंबर की रात सपने में चाचा नेहरू द्वारा दिए डिक्टेशन की हूबहू प्रस्तुती है जिसका किसी भी वास्तविक घटना से साम्य महज एक संयोग होगा।)
#नेहरू #नेशनल_हेराल्ड #नेहरू_गाँधी #पप्पू #सोनिया_गाँधी #गाँधी #टोपी #गाँधी _टोपी
#बेल #जमानत #जेल #चोरी_और_सीनाजोरी

Friday, December 18, 2015

Miss no opportunity to be Intolerant!

Santa: Must we miss no opportunity to be Intolerant?
Banta: Yes, because it helps getting declared Tolerant by playing the Victimhood card.
Santa: Who could be the best to learn Intolerance from?
Banta: In decreasing order of importance: Islamists, Commies, Seculars, Liberals.

#Intolerant #Islam #Secular #Secularism #Liberals #Communists #Tolerant

Why did Aryans not mention the place of their origin?

Is writing history so difficult that Aryans - who produced the best of books on maths, sciences, literature,  linguistics, aesthetics etc- didn't know how to mention the place of their origin?

Finally it became the duty of Christian missionaries and British colonizers to locate their place of origin outside India!

How could Nehru and historians patronized by his dynasty not follow in the footsteps of their colonial masters?

But archaeology and genetics disapprove of the Aryan Invasion Theory invented by the fraudsters of the 18th century. Thapars, Habibs, Sharmas et al are just HMVs who need to be ignored. Their patrons decided their research results much before the start of the actual research!

PS: Generally you don't mention the place of your origin when you and your audience are not from outside. But such common sense can't be accepted by the high-profile eminent historians. So if you don't mention the place of your origin, you are deemed to have come from outside!

Thursday, December 17, 2015

आ बैल मुझे मार क्योंकि मुझ बैल ने तुझे पहले ही मार दियो है!

मित्रो,
नमस्कार।आगे का हवाल यह है कि एक बहुत ही घनचक्कर मामले में अपने को फँसा हुआ पाकर आपको यह पाती लिख रहा हूँ ।
आप जानते ही हैं कि मेरी मित्र मंडली में अच्छी-खासी संख्या सेकुलर-लिबरल-वामी-इस्लाम परस्त लोगों की है जिनका बौद्धिक सोफ्टवेयर अपस्केलिंग या सुधार-संशोधन से परे है।वे सनातनी न होते हुए भी देशकाल की सीमा से ऊपर हैं।

ऐसे लोगों के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ क्योंकि मित्र होने के नाते वे मेरे लिए Necessary Evil हैं और उनके बिना मेरे जीवन का कारोबार नहीं चल सकता ।

फिर भी  जिन लोगों को यह लगता हो कि मेरे उनके मित्र रहते उनके पैगंबरों की बताई और जी हुई राहों पर अमल करना उनके लिए मुश्किल हो रहा है तो वे मुझे अवश्य अमित्र (Unfriend) कर दें।ऐसे लोगों की दुविधा के मद्देनजर तुलसीदास ने लिखा है:

तजिये ताहि कोटि वैरी सम जदपि परम सनेही ।

तो मुझे वैचारिक-तलाक देने में ऐसे मित्र तनिक संकोच का अनुभव न करें।वैसे सच तो यह है कि मुझसे भी उनका दुख देखा नहीं जाता जबकि मैं 'दुख के सौन्दर्य का उपासक' सा हो गया हूँ।
लेकिन लिबरल-सेकुलर -वामी नहीं रह पाने के कारण आजकल मुझे सबसे ज्यादा परेशानी तुलसीदास से ही हो रही है जो मित्रता निभाने के बड़े कड़े मानक रख कर खुद खिसक लेते हैं:

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, उनही बिलोकत पातक भारी ।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना,मित्र के दुख रज मेरू समाना।

लब्बोलुआब ये है कि मैं भी आपकी दुविधा और परेशानी से घोर पीड़ा झेल रहा हूँ।इसलिए आपसे अमित्र किये जाने पर मैं खुद को अपराध-बोध से मुक्त मानूँगा और यह मैनेजमेंट की भाषा में Win- Win Situation होगा।
तो 'आ बैल मुझे मार क्योंकि मुझ बैल ने तुझे पहले ही मार दियो है'!
शीघ्रातिशीघ्र अमित्र किये जाने की आशा लिए,
आपका,
भूतपूर्व सेकुलर-लिबरल-वामी मित्र,
चन्द्रकान्त ।
#अमित्र #अनफ्रेंड #Unfriend #सेकुलर #वामपंथी #लिबरल #मित्र #बौद्धिक_साॅफ्टवेयर #तुलसीदास #दुख_के_सौन्दर्य_का_उपासक

Reading Sikh history to decode the colonized Indian mind-I

 Reading Sikh history to decode the colonized Indian mind-I

Reading the Sikh history of fighting for the freedom of Faith can be a great help in decoding the Secular-Liberal-Left Colonized minds dominating the history writing in India.

Remember Guru Tegh Bahadur's martyrdom in Delhi's Chandni Chowk? He was sawed to death on the orders of Aurangzeb.
Secular historians say Sikh Gurus & Shivaji were Bandits while Aurangzeb was a generous emperor. Then what for Gurus sacrificed themselves?
Why did the Nehru-Gandhi' s Congress patronize the writing of blatantly false and anti-national history of India?
Is it incidental that such historians found the most congenial environment in Jawaharlal Nehru University (JNU) and Aligarh Muslim University(AMU)?
Is it also incidental that most of these historians were cardholders of the two communist parties CPI or CPI(M)?
The CPI getting its commands from the erstwhile Soviet Union and the latter from China?

#GuruTeghBahadur #Aurangzeb #Sikhism #SikhGurus #Sikhs #Bandits #Shivaji #Congress #Nehru  #NehruGandhis
#SecularHistorians #ColonizedMinds #Delhi #ChandniChawk #JNU #AMU #CPI #CPIM #USSR #China #HistoryOfIndia
#IndianHistoryWriting

Wednesday, December 16, 2015

जलाने के पहले एक बार मनुस्मृति पढ़ तो लेते!

आप में से कितने लोगों ने मनुस्मृति को पढ़ने का कष्ट उठाया है? अगर नहीं पढ़ा है तो उसे पढ़कर जलाना चाहिए क्योंकि समझ को आउटसोर्स करना, चाहे वह बाबा साहेब हों या गाँधी या मार्क्स या कोई पैगम्बर , मानसिक गुलामी का लक्षण है।

बाबा साहब पाकिस्तान बनने के खिलाफ थे लेकिन जब बँटवारा होना तय हो गया तो उनका दृढ़ विचार था कि पूरी की पूरी मुस्लिम आबादी पाकिस्तान और हिन्दू आबादी शेष हिन्दुस्तान में रहे।
क्या बाबा साहब को माननेवाले इसपर भी उतनी ही ईमानदारी से अमल के लिए आंदोलन करेंगे जितनी कि आरक्षण के लिए?

पिछले सैकड़ों सालों से भारत  बुद्धिवंचकों की खेमेबंदी का शिकार है।ये लोग खुद को सेकुलर-उदार-वाम आदि बैनरों से नवाजते रहे हैं और एक-दूसरे के लिए आक्सीजन बनते रहे हैं।
भारत को भारत की दृष्टि से देखनेवाले लोग बहुत ही कम हुए हैं और जो हुए उन्हें देवता बनाकर मंदिर में बिठा दिया गया या फिर 'बौद्धिक कालापानी ' की सजा दे दी गई।
क्या वजह है कि जो कम्युनिस्ट दूसरे देशों में राष्ट्रीय उभार के वाहक बने वे ही भारत में ब्रिटेन-सोवियत रूस -चीन के एजेंट या भोंपू से ऊपर नहीं उठ पाए? सबसे ज्यादा बड़ी 'बौद्धिक जमात' यहीं थी।ये काँग्रेस के लिए भी बौद्धिक-सप्लायर हो गए।
लेकिन आजादी के बाद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी सीपीआई (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) और बाकी वाम पार्टियाँ कहाँ पर हैं?
आज देश को बुद्धिवीरों की जरूरत है, जबकि गोदाम में बुद्धिविलासी, बुद्धिवंचक और बुद्धविरोधी ही भरे पड़े है।
क्या कारण है कि समाजविज्ञानों में मौलिक शोध न के बराबर होता है?
जो होता है वह बहुत ही मेहनत से अर्जित और सहेजी गई मानसिक गुलामी का नमूना है।
विश्वास न हो तो जेएनयू के पीएचडी शोधों पर एक नजर डाल लीजिए।
जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के एक शोधार्थी को अपनी पीएचडी की डिग्री दस सालों बाद अदालत के आदेश पर मिली क्योंकि उनके शोध-निष्कर्ष सोवियत संघ पर सीपीआई की पार्टी लाईन के खिलाफ जाती थी और उनके गाइड सीपीआई के कार्डधारी सदस्य थे।
#अंबेडकर #मनुस्मृति #जेएनयू #सीपीआई #मौलिक_शोध #सोवियत_संघ #मानसिक_गुलामी #पीएचडी #बुद्धिविलासी #बुद्धिवंचक  #बुद्धविरोधी
#बुद्धिवीर #बौद्धिक_कालापानी #सोवियत_संघ #चीन #रूस #ब्रिटेन #समाजविज्ञान #गाँधी #मार्क्स #पैगंबर #पाकिस्तान #मुसलमान #हिन्दुस्तान #भारत 

Monday, December 14, 2015

No terrorism without a religion, no religion without terrorists

History:
There is no terrorism without  a religion and no religion without terrorists.
Present:
Terrorism has no religion but every terrorist turns out to be a Muslim.
Future:
There is no terrorism without a religion that is Islam and there is no religion without terrorists that is Muslims.

NDTV is like a trapped rat on ABHAYDAAN by the Cat!

Santa: NDTV is like a trapped rat on  ABHAYDAAN by the Cat?
Banta: Cat , who?
Santa: Ask Dr @Swamy39 .
https://t.co/KYpAgroKGR #NDTVexposed 

Even congis can be patriotic!

By helping Sonia-Rahul take over National Herald's publishing company AJL(Associated Journals Ltd.), Congis laid a 'death trap' for the Godmother- Pappu duo. Even Congis can be patriotic Dr Subramanian Swamy ! 

अघोरिया डेरावे थूक से!

यह कौन सी दकियानुसी बात कर दी आपने? बिना किसी युरोपीय चिंतक या अंग्रेज़ लेखक की किताब का नाम लिए वे साँस न लें और आप संस्कृत जैसी गैरवाजिब भाषा में लिखी भारतीय किताबों को उनपर थोपना चाहते हैं?
देखिए, मेकाले की मानस-संतानें आपका जीना दूभर कर देंगी।आप देश-संस्कृति से लेकर खुद उनको जितनी गालियाँ देनी है दे लीजिए लेकिन उनकी उच्चता की गंगोत्री यानी यूरोपीय ज्ञान और भारत में उसका दिग्दर्शन करानेवाले अंग्रेज़ों पर कोई सवाल न उठाइए।
नहीं तो?  नहीं तो वे 'चमत्कार का बलात्कार' करने से नहीं हिचकेंगे।
जी, वे दुनिया हिला देंगे। वाशिंगटन पोस्ट में लेख लिखकर आपको असहिष्णु घोषित कर देंगे फिर आपको जवाब देते नहीं बनेगा।
भला हो अमेरिकी सिनेटर ट्रंप का कि जो सवाल भारत में उठाये जा रहे थे वे ज्यादा जोरदार तरीके से अमेरिका में उठा दिए गए और प्रताप भानु मेहता, अशोक वाजपेयी, अमर्त्य सेन जैसे सहिष्णुता ब्रिगेड के लोग शांत हो गए।

गोनू ओझा कहते हैं कि कुछ भी नया नहीं है:
अघोरिया डेरावे थूक से।

गाँधी जी काँग्रेस को भंग करने का सपना लेकर मरे!

संताः महात्मा गाँधी ने आजादी के बाद काँग्रेस पार्टी को भंग करने के लिए क्यों कहा था?
बंताः उनसे ज्यादा इस पार्टी को कौन जानता होगा?
संताः मतलब?
बंताः गोरों की मदद के लिए बनी इस पार्टी से उन्होंने गोरों की वाट लगा दी लेकिन अपने प्यारे जवाहरलाल के नेतृत्व में खड़े काले अंग्रेज़ों के सामने बेबस हो गए।
संताः ऐसा था तो खुद ही काँग्रेस को भंग कर देते?
बंताः ये काम वे जनता पर छोड़ गए।

#नेहरू #गाँधी #जवाहरलाल #मोहनदासगाँधी  #काँग्रेस_को_भंग_करो #काँग्रेस #गाँधी_और_काँग्रेस

भारत सैकड़ों साल क्यों गुलाम रहा?

संताः
यह एक रहस्य है कि हजारों साल तक  विश्व गुरु रहा भारत सैकड़ों साल क्यों गुलाम रहा?
बंताः
उससे भी बड़ा रहस्य है कि आजाद भारत के सेकुलर-लिबरल-वामपंथी अभी भी परले दरजे के मानसिक-गुलाम क्यों हैं?

कुर्सी प्रेमियों के आगे बेबस गाँधी

संताः देशप्रेमी गाँधी जी कुर्सी प्रेमी काँग्रेसियों के सामने क्यों बेबस हो गए?
बंताः वे ऐसा न करते तो अंग्रेज़ों से मिलकर कुर्सी-प्रेमी जवाहरलाल इस देश के और दो-चार टुकड़े कर डालते।
संताः विश्वास नहीं होता।
बंताः सो तो है।लेकिन नेहरू ने कश्मीर और तिब्बत दोनों पर पटेल की बात नहीं मानी और पूरा देश आजतक भुगत रहा है।
संताः यानी जैसे काँग्रेस नेता अय्यर और खुर्शीद ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ पाकिस्तान से 'मदद' माँग ली वैसे ही सब तब भी थे?
बंताः आज जितने नहीं कि नेहरू परिवार को नेशनल हेराल्ड घोटाले में अदालती फैसले से बचाने के लिए पूरी संसद को ही ठप कर दें।

देश का कानून सोनिया-राहुल से ऊपर थोड़े न है!

संता : #संसद नहीं चलने के लिए कौन जिम्मेदार है?
बंताः प्रधानमंत्री नरेंद्र #मोदी।
संताः सो कैसे?
बंताः जैसे #शाहबानो केस में तब के प्रधानमंत्री #राजीव गाँधी ने संसद से विधेयक पास कराकर #सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करा दिया था वैसे ही मोदी भी कर सकते हैं कि #नेहरू-गाँधी परिवार के लोगों पर कभी भी किसी व्यक्ति या संस्था या सरकार द्वारा कोई #मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा।

प्रोफेसर बनाम नौकरशाह

भारत में एक औसत प्रोफेसर एक औसत नौकरशाह से ज्यादा नौकरशाहपने से ग्रस्त है और एक औसत नौकरशाह एक औसत प्रोफेसर से ज्यादा अकादमिक है।

#प्रोफेसर #नौकरशाह  #नौकरशाहपने #अकादमिक #भारत #भारतीय_शिक्षा_व्यवस्था #उच्च_शिक्षा

Sunday, December 13, 2015

नाटक एजेंडा आजतक -2015



शनिवार (12.12.2015) शाम को आजतक चैनल पर 'एजेंडा आजतक' नाटक देख रहा था।पत्रकार की भूमिका में वित्त एवं सूचना-प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने कमाल का काम किया है हालाँकि सब कुछ उन्होंने बहुत ही शार्ट नोटिस पर बिना किसी प्राम्टिंग के किया।
आजतक के एंकर और इस नाटक के निर्देशक पुण्य प्रसून वाजपेयी ने वैसे तो सवाल पूछने का काम किया लेकिन अपने भाव-भंगिमा और लाचारगी में वे विपक्ष कम और नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गाँधी के वकील ज्यादा लगे।राजदीप सरदेसाई का इस नाटक में वकील के असिस्टेंट के रूप में गेस्ट अपीयरेंस था।
नाटक के निर्माता अरुण पुरी ने पत्रकार की भूमिका में आ गए मंत्री को थोड़ी देर के लिए मंत्री का रोल करने का भी मौका तब दे दिया जब उन्होंने उद्योग-धंधों में सरकार की सीधी भूमिका पर एक नीतिगत सवाल  पूछ लिया। उनका सवाल सुनकर कुछ मिनटों के  लिए सही , यह जरूर लगा कि एक न्यूज चैनल देख रहे हैं।
सबसे अच्छी बात यह रही कि हर कोई उस भूमिका को निभा रहा था जिसके लिए आधिकारिक तौर पर उसे नहीं जाना जाता।यानी वेतन पत्रकार का पर रोल काँग्रेस-वंश के वकील का, वेतन मंत्री का लेकिन रोल पत्रकार का, पद मालिक का लेकिन सवाल एजेंडा सेट करने वाला।इसको कहते हैं रोल रिवर्सल जो बहुत ही मुश्किल काम है।इसलिए सब के सब बधाई के पात्र हैं।
सारी कथा सुनने के बाद गोनू ओझा ने फरमाया कि बहुत पहले कबीर दास कह गए हैं:
'बरसे कंबल भींगे पानी'।

#एजेंडा_आजतक2015 #एजेंडा_आजतक #आजतक
#अरुण_पुरी #पुण्यप्रसून_वाजपेयी #राजदीप_सरदेसाई
#अरुण_जेटली #कबीरदास

लत, लछन, बाई मरले पर जाई



जैसे आज अंग्रेज़ी बोलकर हम अपने पढ़े-लिखे होने का बिन-माँगा प्रमाण पेश करते रहते हैं वैसे ही अरबी-फ़ारसी के शब्दों का बिना वजह  इस्तेमाल कर हम अपने सेकुलर-अभिजात होने का।
दिल्ली सल्तनत, अफगान और मुगलिया शासन में फ़ारसी राजभाषा थी और इसका रोब-दाब वैसे ही था जैसे लगभग सात दशकों से भारतीय लोकतंत्र की सबसे पुरानी पार्टी काँग्रेस में नेहरू परिवार का।
ऐसे बुद्धिजीवी कुकुरमुत्ता की तरह मिल जाएँगे जो
उदार-सेकुलर-लोकतांत्रिक-वामपंथी आदि  हैं लेकिन देश में उन्हें सिर्फ नेहरू-खानदान  वाली काँग्रेस पार्टी का शासन चाहिए।
इस समस्या को जब दस-जनपथ की ड्यूटी पर लगे एक सिपाही लोहा सिंह के सामने रखा तो उन्होंने झट से जवाब दिया:
लत, लछन, बाई मरले पर जाई ।

धन्य हो लोहा सिंह ! जो बात बताते प्रोफेसर-पत्रकारों के गले में कफ जमने लगता हो  वो आपने एक झटके में साफ़ कह दी।दादी ठीक कहती थी:
जे जेतना पढ़ुआ उ ओतना भढ़ुआ ।.

Saturday, December 12, 2015

हिन्दी खबरिया टीवी चैनलों का उर्दू-फ़ारसी प्रेम

(श्री नरेश सचदेव ने अपनी वाल पर हिन्दी खबरिया टीवी चैनलों द्वारा प्रयुक्त उर्दू शब्दों की एक सूची डाली है जिनमें से अनेक ऐसे हैं जो लोग व्यवहार में नहीं लाते।वे इससे चिंतित है । इसी सूची और चिंता पर मेरी टिप्पणी ।)
आपने हिन्दी चैनलों में इस्तेमाल हो रहे शब्दों की एक सूची बनाई, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं।
आप इनमें से उन शब्दों के प्रयोग से खुश नहीं हैं जो आसानी से समझ में नहीं आते।
यह सहज और जिम्मेदारी-बोध से भरी बात है जो आमतौर पर एक संवेदनशील इंसान को दुःख पहुँचाती है।अगर संवेदनशील होना अच्छा तो दुखी होना भी स्वाभाविक है।और यह जो दुख है वह हमें माँजता है, चमकाता है और विरले ही दुःख के इस दैवी रूप का दर्शन कर पाते हैं।आप इस अर्थ में भाग्यशाली हैं ।
हिन्दी-उर्दू को लेकर जो बात आपने नोटिस की है वह तीन सौ साल पुरानी है और सामाजिक-साँस्कृतिक पतन और अपने ऊपर विश्वास की कमी से पैदा होती है। ऊँचे वर्गों के समाज से कटे होने का भी सबूत है ।
यह अकारण नहीं है कि हिन्दी का कोई भी बड़ा कवि दरबारी नहीं था: कबीर, मीरा, तुलसी, जायसी, रसखान या सूर।जबकि उर्दू का शायद ही बड़ा शायर हो जो दरबारी न हो किसी न किसी रूप में: ग़ालिब, मीर, ज़ौक़, ताँबा आदि।इसमें मीर को छोड़ दें तो उर्दू वालों को भी शब्दकोश लेकर बैठना पड़ता है, इतना अधिक ग़ुलाम हैं ये लोग फ़ारसी प्रभाव के।
एक दौर था जब जर्मनी का राजा कहता था कि वह सिर्फ घोड़े से जर्मन में बात करेगा , क्योंकि वह चर्च के दबाव में लैटिन की अभिजात संस्कृति से आक्रांत था।यही हाल शेक्सपियर के समय में अंग्रेज़ी का था जो गँवारों की भाषा समझी जाती थी।

अब जरा ख़बरों पर नज़र डालिए । कितनी ख़बरें आपसे-हमसे जुड़ी होती हैं?
जनता का दबाव और बाजार का प्रभाव (टीआरपी) न होता तो आपकी लिस्ट बहुत लंबी होती क्योंकि हिन्दी भाषी लोगों में मानसिक ग़ुलामी सर्वाधिक है।
जैसे आज अंग्रेज़ी की ग़ुलामी है वैसे ही कभी 700 सालों तक फ़ारसी की ग़ुलामी थी जिसका असर अभी तक वैसे है जैसे धर्म-प्राण समाज पर अनुपयोगी सेकुलरिज़म का जिसे थोपा गया 1971 में इंदिरा गाँधी द्वारा।उद्देश्य था: फूट डालो और राज करो।
आपकी नज़र पैनी है , इसके लिए ईश्वर का धन्यवाद करिये।आप मानसिक ग़ुलामी से मुक्त हैं।
भाषा का लिपि से गहरा रिश्ता है।आज के मोबाइल युग में लिपि ज्ञान होना काफी नहीं है , उसका तकनीकी ज्ञान भी जरूरी है जो हाल में मेरे एक छात्र ने दिया।आप भी अपने घर या आॅफिस में किसी युवा से सीख सकते हैं, लेकिन वह इस बहस का मुद्दा तो एकदम नहीं था।
#हिन्दी #उर्दू #फ़ारसी #हिन्दी_समाचार_टीवी
#हिन्दी_न्यूज_टीवी #हिन्दी_टीवी_न्यूज
#टीवी_समाचारों_की_भाषा
#NareshSachdeva
#SwarnimaAggarwal

Friday, December 11, 2015

सेकुलर हिन्दू कौन?

संताः सेकुलर हिन्दू कौन?
बंताः जो गर्व से अपनी गुलामी की गाथा कहे।
संताः और कुछ?
बंताः जो अपने अतीत पर पैदाइशी शर्म करे।
संताः बस?
बंताः जो जात के लिए कट्टम-कुट्टा कर ले लेकिन धर्म पर हमलावरों के साथ खड़ा हो जाए ।

#सेकुलर #सेकुलरिज़म #हिन्दू #हिन्दुत्व #मानसिक_गुलामी

Defining Secularism after the NH case

Santa:What's #Secularism  2day?
Banta:Of course,defending the Secular queen in the #NationalHerald Case.
Santa: Queen who?
Banta: Sonia G.
Santa: What about those attacking Sonia G?
Banta: They all are communal.Period.

Is every Muslim a potential terrorist?

If Muslims don't collectively attack the violence-promoting interpretation of #Islam, every #Muslim will be taken as a potential #terrorist,
take it or leave it.
Unfortunately, an average Muslim is of the view that like every other turbulent phase in the history of Islam, this too will pass.
But this time they are doomed to be proved wrong. Today those who are questioning the FAITH are armed with Internet, Mobile, Social Media and, above all, the knowledge of the collective Muslim Mind and its acts across time and space.
Today the number of non-Muslims studying Quran and Hadiths far exceeds that of Faithfuls.

Thanks to Dr Swamy, Sonia's dynastic rule is under threat this time

Dacoits and robbers always come in gangs and so do their defenders but this time the dynasty of their ring leader is under threat, thanks to the one and only Prof. (Dr.) Subramanian Swamy who was thrown out of IIT-Delhi in 1971 because the then Ring Leader of Congress from the Dynasty, Mrs Indira Gandhi, didn't like his liberal economic views. Yet the defenders of the Faith-in-Dynasty call themselves Liberal-Secular!

#SoniaRahulRobbery #SoniaInsultsJudiciary
#NehruGandhis #SoniaGandhi
#RahulGandhi #Nehru
#NationalHeraldCase
#IndiraGandhi #SubramanianSwamy

ये गाँधी ज़िन्दाबाद, वो गाँधी ज़िन्दाबाद...

चाचा नेहरू ज़िन्दाबाद! इंदिरा गाँधी ज़िन्दाबाद!!
राजीव गाँधी ज़िन्दाबाद!!! सोनिया गाँधी ज़िन्दाबाद!!!!
राहुल गाँधी ज़िन्दाबाद!!!!!प्रियंका गाँधी ज़िन्दाबाद!!!!!!
ये गाँधी ज़िन्दाबाद, वो गाँधी ज़िन्दाबाद...
*
एक पार्टी है, नाम है काँग्रेस।इसकी स्थापना हुई 1885 में , एक बरतानवी ए ओ ह्यूम इसके केन्द्र में थे।उद्देश्य था गुहार लगाकर अंग्रेज़ आकाओं से काले अंग्रेज़ों यानी हिन्दुस्तानी बाबुओं के  लिए रियायतें हासिल करना।
*
धीरे-धीरे उससे लाल-बाल-पाल और मोहनदास गाँधी जैसे लोग जुड़ गए तो यह पार्टी आजादी की लड़ाई के दीवानों की भी पार्टी बन गई और इससे नेताजी बोस और पटेल जैसे लोग भी जुड़  गए।
*
अंग्रेज़ों को यह लगा कि पार्टी हाथ से निकल गई है तो देश का विभाजन कर-कराके बचे भारत की बागडोर मन से अंग्रेज़ जवाहरलाल नेहरू को थमाने में सफल हो ग्ए।राम जाने दोनों के बीच क्या डील हुई, लेकिन नेहरू जी ने काँग्रेस को फैमिली बिजनेस बनाकर ही दम लिया।
*
आजकल उसी फैमिली बिजनेस से जुड़े अखबार 'नेशनल हेराल्ड' की दो हजार करोड़ की सम्पत्ति को 90 करोड़ रुपये लगाकर काँग्रेस फैमिली की मुखिया सोनिया गाँधी और उनके बेटे ने अपने और कुछ अपने लगुए-बझुए के नाम करा लिया है तो जाने क्यों इतना हंगामा बरपा है?
*
भई, आपको इससे आपत्ति है क्या कि सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे पुरानी पार्टी की कमान  नेहरू परिवार में ही रहती है? नहीं न!
*
आपको इससे आपत्ति है क्या कि नेहरू परिवार में जन्मे लोगों को 'राजकुमार' और 'राजकुमारी' कहकर संबोधित किया जाता है? नहीं न!
*
फिर उन्होंने अपनी और अपनी पार्टी और पार्टी से जुड़े लोगों की कंपनी में अंतर नहीं किया तो आपको क्यों बुरा लग रहा है?
*
राजा-रानी और राजकुमार-राजकुमारी कानून बनाते हैं, कानून उनको नहीं बनाता। वे जो करते-कहते हैं वही कानून हो जाता है।
*
तो पहले यह तय कर लीजिए कि देश में राजा-रानी का राज है या लोकतांत्रिक व्यवस्था का।इसके बाद सोनिया-राहुल पर ऊँगली उठाइए।
*
चाचा नेहरू ज़िन्दाबाद! इंदिरा गाँधी ज़िन्दाबाद!!
राजीव गाँधी ज़िन्दाबाद!!! सोनिया गाँधी ज़िन्दाबाद!!!!
राहुल गाँधी ज़िन्दाबाद!!!!!प्रियंका गाँधी ज़िन्दाबाद!!!!!!
ये गाँधी ज़िन्दाबाद, वो गाँधी ज़िन्दाबाद...

मानसिक गुलामी के सवाल पर शून्य बटा सन्नाटा क्यों है?

दोस्तो,
 पिछले पाँच सालों से देशहित के मुद्दों पर हमलोग गहन विमर्श करते रहे हैं ।ऐसा लगता है यह देश,  खासकर इसका युवा वर्ग, आजादी के बाद पहली बार अपने को  एक पुनर्जागरण का हिस्सा मान रहा है । हर चीज पर सवाल पूछना और इसमें तर्क और तथ्य के आगे किसी आइकाॅन की भी नहीं सुनना, इस नवजागरण की पहचान बन गई है।और इसी समुद्रमंथन से कुछ सवाल निकल रहे हैं जो चिग्घार-चिग्घार कर अपने जवाब माँग रहे हैं:
1.दो हजार सालों तक -1750 तक -दुनिया की अर्थ व्यवस्था के एक चौथाई का हिस्सेदार भारत हजार सालों (दसवीं सदी से 1947 तक) तक कैसे गुलाम रहा और इसकी मानसिक गुलामी आजतक क्यों बरकरार है?
2. समावेशी और सहिष्णु होना इस बात की गारंटी नहीं है कि दूसरे भी ऐसा ही होंगे।फिर भी अंतिम चार सिख गुरुओं, कबीर, शिवाजी, रणजीत सिंह जैसे गिने-चुने लोगों को छोड़ दें तो 10 वीं सदी से आज तक इस मामले में क्यों शून्य बटा सन्नाटा सा है कि गैरसहिष्णु और मतांतरणवादी मजहबों से कैसे निपटा जाए?
अमेरिका ने इस पर अपनी राय जाहिर कर दी है, यूरोप भी समझ चुका है, इस्राइल ने इसका जवाब ढूँढ लिया है लेकिन भारत की राजनीति अभी भी सेकुलर-कम्युनल की वोटबैंक राजनीति से नहीं उबर पा रही।
दूसरों का क्या कहूँ, मुझे खुद सेकुलर-लिबरल-लेफ्ट-इस्लामपरस्त सोच से मुक्त होने में 20 बरस लग गए।वह भी अपनी पढ़ाई की वजह से नहीं, संयोग से एक जानेमाने फिल्मकार की सोहबत से।
आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी ।

Wednesday, December 9, 2015

Nehru-Gandhis remind us of the Mahabharata's Dhritarashtra-Gandhari

The story of Nehru-Gandhis is partly the story of Dhritarashtra-Gandhari of the Mahabharata fame. These two epic characters were overwhelmed by their blind pursuit of power which ultimately left none alive for whom the pursuit was meant.
But Nehru-Gandhis--while playing Dhritarashtra -Gandhari-- ensured that in the post-1947 Maha-Bharat, it is  they who emerged victorious come what may. But the year 2014 saw the return of the Pandavas who had become conspicuous through their absence  from the public memory.
Nehru-Gandhis today are haunted by the ghosts of Mahatma Gandhi, Patel, Bose, Ambedkar and Shyama Prasad Mookherjee whose attorney-incarnate is none other than Dr Subramanian Swamy who is the most reverentially feared person in today's India.

If terror has no religion, why every terrorist is a Muslim?

Today's question is not whether terror has a religion...today's question is whether you are  honest about taking the challenge of terror head-on.
*
Today's question is not whether Islam is good but Muslims are not good enough ...today's question is why every terrorist is a Muslim.
*
Today's question is not whether Islam is the religion of terror...today's question is whether you are honest about saving Muslims and the world from this religion of terror.
*
And if you are honest, you better be kind and intelligent enough not to equate the Operating System (Islam) with the Hardware (Muslim).
*
Either you debug the OS that hasn't been scaled up since it was put to use
or just rid the Hardware of it but don't expect the Hardware to take care of itself on its own because it doesn't have in-built self-correction mechanism.




सेकुलर लेखक अब अपनी निर्लज्जता लौटाएँगे?

अख़लाक़ सिंड्राॅम से ग्रस्त और सोनिया-काँग्रेस भक्ति में मस्त अवार्ड लौटाऊ सेकुलर गिरोह के पास अब प्रायश्चित का अंतिम मौका है।
नेशनल हेराल्ड मामले के बाद उन्हें अपनी 'निर्लज्ज चाटुकारिता' वापस कर देनी चाहिए।
चाटुकारिता में दिक्कत है तो निर्लज्जता ही लौटा दें!

#अख़लाक़_सिंड्राॅम #सम्मान_वापसी
#सम्मान_वापसी_गिरोह #अवार्ड_वापसी_गिरोह
#असहिष्णुता_का_बाजा #नेशनल_हेराल्ड #मैडम_को_बुलाया_है #मैडम_को_बुलावा
#निर्लज्जता_वापसी

मैडम गाँधारी ने लगाई सासु माँ की गुहार तो पप्पू को पप्पा याद आ गए!

अदालत ने बुलाया तो मैडम को सासु माँ याद आ गईं।वही सासु माँ जिन्होंने पंजाब में आतंकवाद को बड़े जतन से पाला-पोसा था ताकि अकाली दल को मात दी जा सके।बाद में इसी मानस -संतान ने अपना कर्ज उतारते हुए उन्हें शहादत बख्श दी।
वैसे सासु माँ ने अपने पिता नेहरू जी की याद में आपातकाल भी लगाया था और उनकी लोकतांत्रिक निष्ठा के मद्देनजर अपने सेकुलर चीफ पुरोहित देवकांत बरुआ से एक मंत्रजाप भी कराया था:
इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया।

अब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी पार्टी की 'आपातकाले विपरीत बुद्धि' हो गई तो इसको तूल देना तो परले दर्ज की असहिष्णुता है और यह हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति के खिलाफ है। इसको कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
मैडम को कल अपने हसबेंड की भी दुहाई देनी पड़ सकती है जिन्होंने इंदिरा जी को याद करते हुए पड़ोसी देश के बिगड़ैल बच्चे -लिट्टे- को  गोद ले लिया था।संयोगवश उसी बच्चे ने उन्हें शहीद का दर्जा दिलाया।आब ऐसे शहीद पप्पा की याद पप्पू को कैसे न आए।

इतने बड़े लोकतंत्र में जब एक ही परिवार में इतने शहीद हों और तीन-तीन भारतरत्न हों तो प्रेरणा के लिए बाहर जाने की क्या जरूरत?
लेकिन मिथिला के गोनू ओझा को हमेशा की तरह उल्टा ही सूझता है।बोलने लगे, 'सासु माँ संजय गाँधी के लिए वैसे ही गाँधारी बन गई थीं जैसे मैडम पप्पू के लिए।नेहरू भी तो मैडम की सासु माँ के लिए धृतराष्ट्र बन गए थे'।
अपन तो गोनू ओझा के पास जाते ही नरभसिया जाते हैं।
#मैडम_को_बुलावा #पप्पू #इंदिरा_गाँधी #नेहरू
#देवकांत_बरुआ #गाँधारी #धृतराष्ट्र #गोनू_ओझा #मैडम #मैडम_गाँधारी #पंजाब #आतंकवाद #शहादत #लिट्टे #भारत_रत्न #आपातकाल #भारत #लोकतांत्रिक #मिथिला #राजीव_गाँधी #सासु_माँ

Tuesday, December 8, 2015

45 देशों में मुस्लिम आबादी और उनकी शांतिप्रियता पर शोध

मुस्लिम आबादी और उनकी शांतिप्रियता पर शोध

"- --जब तक मुस्लिमों की जनसंख्या किसी देश/प्रदेश/क्षेत्र में लगभग 2% के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसन्द अल्पसंख्यक बनकर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते, जैसे -
अमेरिका – मुस्लिम 0.6%
ऑस्ट्रेलिया – मुस्लिम 1.5%
कनाडा – मुस्लिम 1.9%
चीन – मुस्लिम 1.8%
इटली – मुस्लिम 1.5%
नॉर्वे – मुस्लिम 1.8%
"जब मुस्लिम जनसंख्या 2% से 5% के बीच तक पहुँच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलम्बियों में अपना “धर्मप्रचार” शुरु कर देते हैं, जिनमें अक्सर समाज का निचला तबका और अन्य धर्मों से असंतुष्ट हुए लोग होते हैं, जैसे कि –
डेनमार्क – मुस्लिम 2%
जर्मनी – मुस्लिम 3.7%
ब्रिटेन – मुस्लिम 2.7%
स्पेन – मुस्लिम 4%
थाईलैण्ड – मुस्लिम 4.6%

"मुस्लिम जनसंख्या के 5% से ऊपर हो जाने पर वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलम्बियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना “प्रभाव” जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिये वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर “हलाल” का माँस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि “हलाल” का माँस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यतायें प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में “खाद्य वस्तुओं” के बाजार में मुस्लिमों की तगड़ी पैठ बनी। उन्होंने कई देशों के सुपरमार्केट के मालिकों को दबाव डालकर अपने यहाँ “हलाल” का माँस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी “धंधे” को देखते हुए उनका कहा मान लेता है ।

"(अधिक जनसंख्या होने का “फ़ैक्टर” यहाँ से मजबूत होना शुरु हो जाता है), ऐसा जिन देशों में हो चुका वह हैं –
"फ़्रांस – मुस्लिम 8%
फ़िलीपीन्स – मुस्लिम 6%
स्वीडन – मुस्लिम 5.5%
स्विटजरलैण्ड – मुस्लिम 5.3%
नीडरलैण्ड – मुस्लिम 5.8%
त्रिनिदाद और टोबैगो – मुस्लिम 6%

"इस बिन्दु पर आकर “मुस्लिम” सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके “क्षेत्रों” में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाये (क्योंकि उनका अन्तिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व “शरीयत” कानून के हिसाब से चले)।

"जब मुस्लिम जनसंख्या 10% से अधिक हो जाती है तब वे उस देश/प्रदेश/राज्य/क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिये परेशानी पैदा करना शुरु कर देते हैं, शिकायतें करना शुरु कर देते हैं, उनकी “आर्थिक परिस्थिति” का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़फ़ोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ़्रांस के दंगे हों, डेनमार्क का कार्टून विवाद हो, या फ़िर एम्स्टर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है, जैसे कि –
गुयाना – मुस्लिम 10%
इसराइल – मुस्लिम 16%
केन्या – मुस्लिम 11%
रूस – मुस्लिम 15% (चेचन्या – मुस्लिम आबादी 70%)

"जब मुस्लिम जनसंख्या 20% से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न “सैनिक शाखायें” जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरु हो जाता है, जैसे-
इथियोपिया – मुस्लिम 32.8%
भारत – मुस्लिम 22%
"मुस्लिम जनसंख्या के 40% के स्तर से ऊपर पहुँच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याऐं, आतंकवादी कार्रवाईयाँ आदि चलने लगते हैं, जैसे –
बोस्निया – मुस्लिम 40%
चाड – मुस्लिम 54.2%
लेबनान – मुस्लिम 59%

"जब मुस्लिम जनसंख्या 60% से ऊपर हो जाती है तब अन्य धर्मावलंबियों का “जातीय सफ़ाया” शुरु किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है, जैसे –
अल्बानिया – मुस्लिम 70%
मलेशिया – मुस्लिम 62%
कतर – मुस्लिम 78%
सूडान – मुस्लिम 75%

"जनसंख्या के 80% से ऊपर हो जाने के बाद तो सत्ता/शासन प्रायोजित जातीय सफ़ाई की जाती है, अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है, सभी प्रकार के हथकण्डे/हथियार अपनाकर जनसंख्या को 100% तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है, जैसे –
बांग्लादेश – मुस्लिम 83%
मिस्त्र – मुस्लिम 90%
गाज़ा पट्टी – मुस्लिम 98%
ईरान – मुस्लिम 98%
ईराक – मुस्लिम 97%
जोर्डन – मुस्लिम 93%
मोरक्को – मुस्लिम 98%
पाकिस्तान – मुस्लिम 97%
सीरिया – मुस्लिम 90%
संयुक्त अरब अमीरात – मुस्लिम 96%

"बनती कोशिश पूरी 100% जनसंख्या मुस्लिम बन जाने, यानी कि दार-ए-स्सलाम होने की स्थिति में वहाँ सिर्फ़ मदरसे होते हैं और सिर्फ़ कुरान पढ़ाई जाती है और उसे ही अन्तिम सत्य माना जाता है, जैसे –
अफ़गानिस्तान – मुस्लिम 100%
सऊदी अरब – मुस्लिम 100%
सोमालिया – मुस्लिम 100%a
यमन – मुस्लिम 100%

"आज की स्थिति में मुस्लिमों की जनसंख्या समूचे विश्व की जनसंख्या का 22-24% है, लेकिन ईसाईयों, हिन्दुओं और यहूदियों के मुकाबले उनकी जन्मदर को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस शताब्दी के अन्त से पहले ही मुस्लिम जनसंख्या विश्व की 50% हो जायेगी (यदि तब तक धरती बची तो)…

"भारत में कुल मुस्लिम जनसंख्या 15% के आसपास मानी जाती है, जबकि हकीकत यह है कि उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल के कई जिलों में यह आँकड़ा 60 से 80% तक पहुँच चुका है… अब देश में आगे चलकर क्या परिस्थितियाँ बनेंगी यह कोई भी (“सेकुलरों” को छोड़कर) आसानी से सोच-समझ सकता है...

"(सभी सन्दर्भ और आँकड़े : डॉ पीटर हैमण्ड की पुस्तक “स्लेवरी, टेररिज़्म एण्ड इस्लाम – द हिस्टोरिकल रूट्स एण्ड कण्टेम्पररी थ्रेट तथा लियोन यूरिस – “द हज”, से साभार)"

नोटः भाईलाल पटेल (Bhailal Patel) की वाल से लिया गया।

Monday, December 7, 2015

काँग्रसी कार्बाइड से पकेगा हिन्दुओं के 'इस्लामीकरण' का आम?

छह दिसंबर 1992 हिन्दुओं के '#इस्लामीकरण' की पक्की शुरुआत के उदाहरण के रूप में देखा जाना चाहिए।माने कि हिन्दुओं ने #इस्लाम में ईमान रखनेवालों यानी #मुसलमानों को उनकी भाषा में ही समझाने की कोशिश की।

यह काम तब भी #भाजपा के वश का नहीं था और आज भी नहीं है।आंदोलन #विहिप ने खड़ा किया था और मस्जिद ध्वंस हिन्दुओं के मुसलमान यानी #शिवसैनिकों की लीडरशिप में महान काँग्रेसी राजनेता नरसिंह #राव की 'एक तीर से दो शिकार' वाली चुप्पी से संभव हुआ।

ऐसा होने देकर उन्होंने भाजपा की हवा निकाल दी क्योंकि वे जानते थे कि भाजपा मंदिर नहीं बनवा पाएगी भले ही #मस्जिद रहे या टूटे।वे सही थे, इसमें आज किसी को संदेह नहीं होगा।

मंदिर के लिए तब #आंदोलन की जरूरत थी और अब यह काम #आईएसआईएस, #इंटरनेट-
#सोशल मीडिया और  #मोबाइल कर रहे हैं।हिन्दू धड़ल्ले से #कुरान-ए-पाक और #हदीस पढ़ रहे हैं और 1400 साल पुराने इस्लाम के इतिहास की जानकारी इस्लामी स्रोतों से ही प्राप्त कर रहे हैं।

#राममंदिर का मामला नहीं सुलझा तो #काँग्रेस अगला चुनाव काशी-मथुरा-अयोध्या तीनों स्थानों पर मंदिर निर्माण पर लड़ सकती है और यही #सेकुलरिज़म माना जाएगा ।जैसे आज मंदिर विरोध सेकुलरिज़म है वैसे कल मंदिर-निर्माण सेकुलरिज़म होगा क्योंकि वह काँग्रेस के #नेहरू वंश को बचाने का #ब्रह्मास्त्र होगा ।

कभी सुना,'मेरा नाम राम है और मैं आतंकवादी नहीं हूँ'?


शाहरुख ख़ान ने कहा:
मेरा नाम ख़ान है और मैं आतंकवादी नहीं हूँ ।
*
आज तक किसी हिन्दू या सिख-ईसाई -बौद्ध -जैन को यह कहने की नौबत क्यों नहीं आई?
*
उधर गोनू ओझा पिंगिया रहे हैं:
किसी को कहते सुना कि 'मेरा नाम राम है और मैं आतंकवादी नहीं हूँ'?
*
सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन सारे आतंकवादी मुसलमान निकल जाते हैं, इसका मतलब यह थोड़े न है कि इस्लाम का हिंसा से कोई संबंध है? ना बाबा ना, अयोध्या, मथुरा, काशी सब जगह हिन्दुओं ने झंझट फँसा रखा है नहीं तो अब तक वहाँ मस्जिदें होतीं और इस्लाम की ताक़त नुमाया होती।चारों तरफ शांति के मजहब का राज होता जैसे भारत में कश्मीर में, पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बाँग्लादेश में।
*
खैर जबतक यह सब नहीं होता जबतक के लिए तो  इस्लामी सूझबूझ का परिचय दिया ही है सिने सुपर स्टार किंग ख़ान ने...
*
लेकिन गोनू ओझा कहते हैं कि  'चोर की दाढ़ी में तिनका'।
लगता है कुछ ज्यादा ही बूटी चढ़ा लिहिन हैं जो उलूल-जुलूल बोले जा रहे हैं...

अयोध्या में अस्पताल, मक्का में राममंदिर!

अयोध्या में अस्पताल, मक्का में राममंदिर, यरुशलम में  शिवमंदिर, रोम में कृष्ण मंदिर...

मेरा प्रस्ताव है कि #मक्का में राम मंदिर और #यरुशलम में शिवमंदिर तथा #रोम में कृष्णमंदिर बनाकर मंदिर-मस्जिद झगड़े का निपटान कर दिया जाए।
जरूरत हो तो #सहिष्णुता के हक़ में हिन्दू -पारसी-बौद्ध-जैन-सिख आदि दूसरे गैरइस्लामी  देशों में बसना शुरू कर दें क्योंकि उन्हें तो किसी के साथ रहने में समस्या है नहीं , सिर्फ मुसलमान ही गैरमुसलमानों के साथ शांति से नहीं रह सकते सो उनके लिए क्या हिन्दू इतना भी नहीं कर सकते?
वैसे भी आज नहीं तो कल उन्हें या तो वतन छोड़ना होगा, जान से हाथ धोना होगा या मुसलमान बनना होगा ।आजाद भारत में भी एक मुकम्मल उदाहरण है ही:
कश्मीर से अल्पसंख्यक हिन्दुओं को शांति भगा दिया गया।

बाकी पाकिस्तान में उनकी आबादी घटकर 22 से 2 % और बाँग्लादेश में 33 से 7% रह गई है । अब यह मत पूछिये कि पाकिस्तान और बाँग्लादेश के हिन्दुओं का क्या हुआ? भई यह सवाल आपको #असहिष्णु और #कम्युनल करार देने के लिए काफी है।
फिर सच्ची बात यह है कि कश्मीरी हिन्दुओं का उनके उदार मुसलमान
पड़ोसियों ने उतना बुरा हाल तो नहीं ही किया जितने का उनका पाकिस्तान-बाँग्लादेश या आजकल इराक़-सीरिया में ट्रैक-रिकार्ड है।
इसी उदारता और सहिष्णुता से प्रेरित है प्रो असग़र वजाहत का यह सुझाव कि अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक अस्पताल बनवाया जाए।बधाई,?
#राममंदिर #अयोध्या #अस्पताल #हिन्दू #मुसलमान #बाबरी_मस्जिद #पाकिस्तान_में_हिन्दू #बाँग्लादेश_में_हिन्दू
#कश्मीरी_हिन्दू #आईएसआईएस #सीरिया #इराक़

Decoding JNU-IV : How to decolonize the Indian mind

 Decoding JNU-IV : How to decolonize the Indian mind

To decolonize India , you have to first decolonize the top Indian  universities  & colleges by involving Science Students  in Social Sciences.
This is because social sciences and languages are taught along the lines of what the colonial masters found in synch with their interests. No wonder, within JNU,  the most Colonized Minds  come from Social Sciences  and Languages while  the Science Students and Teachers are far more rooted.
IITs, IIMs,  TIFR, IISc groom relatively Decolonized Minds  unlike JNU and DU because of their focus on originality and scientific temper.
This needs no emphasis that brilliant students go to sciences and management irrespective of whether they have the aptitude for the same or not. Some of the fine epic novels and best sellers have come from the ilks of Amish Tripathi and Chetan Bhagat.
#DecolonizeIndianMind #IndianMind #JNU #DU #IITs #IIMs #TIFR #IISc #Sciences
#SocialSciences. #Languages
#ScientificTemper #ChetanBhagat #AmishTripathi #Amish #Originality

Sunday, December 6, 2015

"मेरा नाम ख़ान है और मैं दहशतगर्द नहीं हूँ"

संताः प्राजी, किंग ख़ान ने ये क्यों कहा कि "मेरा नाम ख़ान है और मैं दहशतगर्द नहीं हूँ"?
बंताः ठीक ही तो कहा, सारे खान यानी मुसलमान दहशतगर्द थोड़े न होते हैं।
संताः लेकिन ज्यादातर दहशतगर्द मुसलमान निकल जाते हैं।क्यों?
बंताः अल्ला जाने कि डिजाइन डिफेक्ट है, कोई  केमिकल लोचा है या कुछ और? हमारे लिए तो यह जुबान पर लाना भी कुफ़्र है ।

Friday, December 4, 2015

अच्छा है जो सब पढ़ुआ नहीं हुए!

भारत को यहाँ के बुद्धिजीवी लोगों ने इसके इतिहास पर शर्म करना सिखाया है।
इस देश का सौभाग्य है कि संयुक्त राष्ट्र और विश्वबैंक के अनुसार यहाँ करोड़ों लोग अनपढ़ हैं क्योंकि अगर वे भी पढ़ुआ होते तो इस देश को इसकी मानसिक गुलामी से कौन मुक्ति दिलाता?

नेहरू , स्टालिन, माओ और नेकदिल बगदादी

नेहरू , स्टालिन, माओ और नेकदिल बगदादी
पंडित जवाहरलाल #नेहरू भारतीय राजनीति के #नटवरलाल भी हैं , ऐसा कहना है #संता-#बंता का जो राजनीति का ककहरा भी नहीं जानते।
उनका यह भी कहना है कि #आईएसआईएस को  सौ साल बाद बहुत #जिम्मेदार राज्य और #बग़दादी को बहुत ही #नेकदिल खलीफा के रूप में याद किया जाएगा ठीक वैसे ही जैसे #करोड़ों_को_मौत की घाट उतारने वाले #स्टालिन और #माओ को #महानतम_इंसानों में शुमार किया जाता है।
संता-बंता पर विश्वास किया जाए या नहीं?

भारतीय राजनीति के निर्बंसिया हैं गाँधी...

 भारतीय राजनीति के निर्बंसिया हैं गाँधी...
संता: गाँधी, पटेल, आंबेडकर और राजेन्द्र प्रसाद को राजनीति का निर्बंसिया क्यों कहते है?
बंताः भई, इनके वंश के किसी का नाम तो  राजनीति में सुना नहीं।
संताः लेकिन नेहरू, लालू और मुलायम जैसों के वंश के लोग तो जमे हुए हैं।
बंताः प्राजी, बात साफ है कि जो लोग अपने ही बाल-गोपाल को राजनीति में सेट न कर पाए वे देश का क्या खाक भला करते?
संताः चाचा नेहरू ज़िन्दाबाद! लालू-मुलायम ज़िन्दाबाद!!

आमिर खान को खुला पत्र:असहिष्णुता कब और किसकी?


डियर आमिर खान
असहिष्णु भारत के बारे में मैं यहां कुछ पॉइंट्स रख रहा हूं और इनकी ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं।
1. पिछले करीब 25 साल से सलमान खान, शाहरुख खान और स्वयं आप बॉलिवुड के सुपरस्टार बने हुए है। इससे ऐसा कभी नहीं हुआ जब एक साथ तीन हिंदू सुपरस्टारों ने हिंदूबहुल इस देश के लोगों के दिलोदिमाग पर इतने लंबे समय तक राज किया हो। क्या ये तमाम हिंदू ईडियट्स हैं?
2. मैं एक ऐसे देश का नागरिक हूं, जहां हिंदुओं की संख्या कुल आबादी की लगभग 80 फीसदी है। इसके बावजूद उन्होंने दक्षिणपंथी हिंदूवादी पार्टी (जैसा कि आप जैसे लोग बोलते हैं) जनसंघ को तब तक सत्ता में नहीं आने दिया, जब तक 1977 में तमाम छोटे-छोटे राजनीतिक दलों के साथ उसका जनता पार्टी के रूप में विलय नहीं हो गया। हिंदू कितने बड़े ईडियट्स हैं। नहीं?
3. आजादी के बाद कई सांप्रदायिक तनावपूर्ण स्थितियां पैदा हुई हैं, लेकिन सिवाय एक घटना के अल्पसंख्यक लोगों को कभी अपना घर छोड़कर नहीं जाना पड़ा और वह घटना हुई कश्मीर में जहां हिंदू माइनॉरिटी में हैं। इसके बाद आने वाली सरकारों और मीडिया ने मुस्लिम वोट बैंक की खातिर इस घटना के शिकार हुए लोगों को ही दोषी ठहरा दिया और हिंदूबहुल इस देश के लोगों ने इस बात को आसानी से स्वीकार कर लिया। कितने बेवकूफ हैं इस देश के हिंदू!
4. जम्मू-कश्मीर में ही दिसंबर 2014 में हुए चुनावों में बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट मिले और वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला। उसने जो भी सीटें जीतीं, वे हिंदूबहुल जम्मू क्षेत्र की हैं। बीजेपी ने जब सरकार बनाने की कोशिश की तो उसकी कोशिशों को इस आधार पर कम्युनल कहा गया कि उसने मुस्लिम बहुल घाटी में एक भी सीट नहीं जीती है। घाटी से हिंदुओं को 1989-90 में भगा दिया गया था। क्या हिंदू ईडियट्स नहीं हैं?
5. एक बार तथाकथित सेकुलर पीएम राजीव गांधी ने मुस्लिम फंडामेंटलिस्ट के दबाव में आकर शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को निष्प्रभावी कर दिया था। राजीव गांधी ने संसद में अपने जबर्दस्त बहुमत के बल पर ऐसा किया और 60 साल की उस बूढ़ी महिला को उसके हाल पर छोड़ दिया। आरिफ मोहम्मद खान ने जब इसका विरोध किया तो उन्हें मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा और अधिसंख्य मुसलमानों ने उन्हें अपना नेता नहीं माना। अगर मैं खान होता, तो मैं आरिफ मोहम्मद खान के लिए जरूर लड़ता।
6. अगर मैं खान होता तो मैं जर्नलिस्ट शाहिद सिद्दीकी के लिए भी लड़ता जिन्होंने एक बार कह दिया था कि हिंदूबहुल भारत में मुसलमानों को सेकुलरिजम और वोट बैंक की राजनीति के नाम पर जजिया (वोट) देने के लिए बाध्य किया जाता है।
7. अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जब शादीशुदा हिंदू अपनी पत्नी को कानूनी रूप से तलाक दिए बिना अपनी प्रेमिका से ब्याह करने के लिए औपचारिक रूप से इस्लाम अपना लेते हैं जैसा कि धर्मेंद्र ने हेमामालिनी के साथ ब्याह करने के लिए किया। अगर मैं खान होता तो मेरा सिर ऐसी घटनाओं पर शर्म से झुक गया होता। जरा बताएं ऐसे महिलाविरोधी लॉ भारत के अलावा और कितने देशों में हैं?
8. अगर खान होने का मतलब धर्म के नाम पर समानता, भाईचारे और दया जैसे भावों के साथ समझौता करना है, तो मैं कभी खान नहीं बनना चाहूंगा।
आपका,
चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह ।

क्या सैनिकों ने देशभक्ति और शहादत की सुपारी ले रखी है?

क्या #सैनिकों ने #देशभक्ति की #सुपारी ले रखी है?
क्या देशभक्ति सिर्फ #सीमा पर ही साबित होती है?
क्या देश की #सुरक्षा सिर्फ सैनिकों के ही द्वारा होती है?
क्या दसवीं सदी से 1947 तक #भारत में सैनिक नहीं थे?
क्या यहाँ के #योद्धा इस बीच #हिमालय_प्रवास पर चले गये थे? क्या सैनिक और योद्धा किसी और ग्रह से लाये जाते हैं?
वे इस समाज की ऊपज नहीं होते?
अगर आज की हर अच्छी चीज के लिए सैनिकों को ही क्रेडिट दिया जाए तो फिर हजार साल का डिसक्रेडिट भी फौजियों के सर मढ़ देना चाहिए?
#अंग्रेज़ों_के_खिलाफ लड़ते हुए
#स्वतंत्रता_सेनानियों_पर_गोली चलानेवालों में ज्यादा #हिन्दुस्तानी_फौजी थे या #गोरे? #जालियाँवाला_बाग में गोली बरसानेवाले कौन थे? #अंग्रेज़ या हिन्दुस्तानी सैनिक?
तो मित्रों, सवाल सिर्फ यह नहीं है कि हमारे समाज में सैनिक हैं या नहीं, सवाल यह है कि वे #किसके और #किसलिए_सैनिक हैं।उनका मन कहाँ से चालित होता है और उन्हें #आदेश कौन देता है?
और हाँ, सीमा पर देश तभी सुरक्षित होता है जब सीमा के अंदर #स्वतंत्रचेता_बुद्धिवीर बसते हों।
#चन्द्रगुप्त तो गली-गली में घूम रहा है, उसे पहचाने वह #चाणक्य कहाँ है?

शुभ जलसेना दिवस!

शुभ जलसेना दिवस!
सैनिको, कहीं आपलोग भी सेकुलर बुद्धिविलास का शिकार मत बन जाना नहीं तो जयचंद तो चप्पे चप्पे में स्लीपर सेल की तरह पसरे पड़े हैं।हम आपकी खातिर यह नहीं भूलना चाहते कि "युद्ध ही शांति है"।
हमारा कोई निजी आदर्श देश के ऊपर नहीं है, आप हैं तो हम हैं, हम हैं तो आप । शत शत नमन ।

बुद्धिविलासी कौन? जो बलात्कार को प्यार और प्यार को बलात्कार कह पुरस्कार बटोरे...

शुतुरमुर्ग की तरह बालू में सर छिपाने से तूफान रुक सकता तो न नालंदा विश्वविद्यालय जलाया जाता और न ही भारत की अर्थव्यवस्था को अंग्रेज़ दुनिया की आय के 25% (1750) से 1.5 % (1947) पर ले आते । क्योंकि शुतुरमुर्गी चाल में पिछले हजार सालों में भारत के बुद्धिविलासी लोगों का सानी नहीं है।ये लोग बलात्कार को प्यार और प्यार को बलात्कार बताकर  पुरस्कार पर पुरस्कार लेने के लिए जाने जाते है।

आतंकवादियों के मजहब और नाम न उजागर किए जाएँ?

भारत के ज्यादातर सेकुलर-वामी-इस्लामी इस बात से बहुत आहत होते हैं कि आतंकवादी घटनाओं के बाद उन्हें अंजाम देनेवालों के नाम और उनके मजहब का जिक्र होता है।
उनका मानना है कि जैसे बलात्कार पीड़िताओं के नाम उजागर नहीं किये जाते वैसे ही आईएसआईएस और इनके समानधर्मा संगठनों से जुड़े आतंकवादियों के नाम उजागर नहीं किये जाने चाहिए क्योंकि ऐसी छवि सी बनती जा रही है मानों इस्लाम और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हों।
इस सेकुलर-वामी-इस्लामी चिंता में दम है क्योंकि आजकल ज्यादातर आतंकवादी मुसलमान ही निकलते हैं जबकि इस्लाम को तो कहा ही जाता है  'शांति का मजहब'।
तो क्या यही नियम अन्य अपराधियों जैसे हत्यारों, डकैतों , बलात्कारियों आदि पर भी लागू होना चाहिए जिससे उनके समानधर्मा लोग भी आहत न हो?
कल को 'आपातकाल' पर बहस के दरम्यान काँग्रेस पार्टी , श्रीमती इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी की भी चर्चा नहीं होनी चाहिए ताकि गाँधी-नेहरू परिवार आहत न हो?
महाराष्ट्र की एक हालिया घटना में लोकमत समाचार के दफ्तरों पर कुछ लोगों ने इसलिए हमले किये हैं कि उसमें आईएसआईएस को मिलनेवाले धन के स्रोतों की ग्राफिक जानकारी दी गई है।अब ये हमलावर भी मुसलमान निकले ।

जेएनयू में कभी सच्ची सहिष्णुता थी क्या?

#जेएनयू के #झेलम_हाॅस्टल के एक छात्र #जीतेन्द्र_धाकर को इसलिए अपने #वार्डन का कथित रूप से #कोपभाजन बनना पड़ा कि वह #वैदिक विधि यानी #हवन करके अपना जन्मदिन मना रहा था।हवन सामग्री, #धूप_दीप सब वार्डन साहब के #जूतों_की_भेंट चढ़ गए।
असलियत तो पूरी छानबीन से ही सामने आएगी लेकिन 1980 के दशक के माहौल को आधार माने तो जेएनयू कभी #सहिष्णु नहीं था।वहाँ सहिष्णुता का मतलब था विभिन्न
#वामपंथी_समाजवादी छात्र संगठनों में एक-दूसरे को
#झेलने_की_सहमति। #इस्लामी_गुटों को #वामपंथी संगठनों में #ननिहाल जैसा स्नेह मिलता था, इसलिए अलग से बैनर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती थी।
#ओडीशा और #बंगाल की लड़कियाँ #सरस्वती_पूजा करती थीं , इसे किसी तरह सब झेल पाते थे।
याद है 1988-89 में कावेरी ढाबा पर वरिष्ठ काँग्रेस नेता और वर्तमान राष्ट्रपति #प्रणव_मुखर्जी को #एनएसयूइई ने #व्याख्यान के लिए बुलाया था।आयोजकों को जब यह लगा कि कोई गैरकाँग्रेसी श्रोता-दर्शक नहीं मिलेगा तो हर व्यक्ति को 50 रूपये देने का वादा कर दिया गया।फिर भी #श्रोता_दर्शक नहीं मिले।
ऐसे में सिर्फ #विज्ञान के छात्रों में #राष्ट्रवादी_विचार के लोगों की #स्वीकार्यता थी, शेष लोग उन्हें नेहरू जी की परमवैज्ञानिक सोच के आलोक में सर्टिफाई कर देते थेः
#विज्ञान_पढ़नेवालों_की_सोच_अवैज्ञानिक होती है।

प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक डा त्रिभुवन सिंह पर तमंचे से हमला

प्रखर #राष्ट्रवादी_चिंतक और #इलाहाबाद_मेडिकल_एसोसिएशन के #सचिव डा
#त्रिभुवन_सिंह पर बुधवार की रात #तमंचे से #हमला किया गया।हमलावर बोलेरो पर सवार थे।

#सेकुलर_समाजवादी राज में ऐसे हमलों पर
#पुरस्कार_लौटाऊ वाले गिरोह का कोई भी सदस्य कुछ नहीं बोलेगा क्योंकि उनके मुँह में आॅटोमेटिक दही जम जाता है।यही डा साहेब अगर सेकुलर-लिबरल-वामी होते या फिर उनका नाम #तैय्यब_हुसैन होता तो अबतक
#राष्ट्रव्यापी_स्यापा हो गया होता और खबरिया #टीवी_चैनल पता नहीं कितना #रायता फैला चुके होते।
तो यारो, #हिन्दू और #राष्ट्रवादी होने की #कीमत चुकाने के लिए तैयार तो रहना ही पड़ेगा । आखिर यह सेकुलर-समाजवादी राज है!

हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि डा त्रिभुवन सिंह जल्दी स्वस्थ हों और पूरे दमखम के साथ '#सेकुलर_कैंसर' की #शल्यक्रिया में जुट जाएँ ।

इस्लाम, टेक्नालाॅजी और आधुनिकता के अंतर्संबंध

इस्लाम, टेक्नालॉजी और आधुनिकता के अंतर्संबंधों पर कोई आधिकारिक शोध हुआ हो तो बतायें।कोई सामान्य पुस्तक भी हो तो भी बताने की कृपा करें।सिर्फ यह ध्यान रहे कि तथ्यों के साथ 'थ्री इडियट्स' वाला 'चमत्कारी बलात्कार' न किया  गया हो।

पाकिस्तान, बाँग्लादेश और कश्मीर में क्या समानता है?

प्रश्न: 1
#पाकिस्तान,#बाँग्लादेश और कश्मीर में क्या #समानता हैं?
उत्तर:
तीनों जगह #मुसलमानों का #बहुमत है और तीनों जगह #गैरमुसलमान #नारकीय_जीवन जीने को अभिशप्त हैं।
पाकिस्तान में #हिन्दुओं की #आबादी 22% से गिरकर 2% से भी कम और बाँग्लादेश 33% से घटकर 7% हो गई है जबकि कश्मीर में वे #जातिनाश के शिकार हुए हैं यानी अब नहीं के बराबर हैं।
प्रश्नः2
पाकिस्तान, बाँग्लादेश और #कश्मीर में क्या #अंतर है?
उत्तरः
पाकिस्तान और बाँग्लादेश #इस्लामी देश हैं जबकि कश्मीर #भारतीय #सेकुलर_लोकतंत्र का #मुसलमान_बहुल_इलाक़ा है।
प्रश्नः3
इस्लामी देशों के #अल्पसंख्यकों और हिन्दू बहुल सेकुलर लोकतांत्रिक भारत के अंदर मुस्लिम बहुल इलाक़े के #हिन्दू या #गैरमुसलमान_अल्पसंख्यकों की एक जैसी हालत क्यों है?
उत्तर:
(i) मुसलमान अगर बहुमत हैं तो कुछ अपवादों को छोड़ वे गैरमुसलमानों के साथ शांति से नहीं रह सकते जिसके उदाहरण हैं पाकिस्तान, बाँग्लादेश और कश्मीर ।
(ii) भारत का #सेकुलरिज़म #इस्लाम_परस्त , #पाक_परस्त, #देश_तोड़क और #हिन्दू_विरोधी है।

The Faith That Manufactures Terror

"ISLAM, being the LAST word from the LAST Prophet, disallows any change. Hence blaming the likes of ISIS while sparing the FAITH that manufactures such terror outfits is at best an altruism without any connection with reality".

हिन्दुओं का लोकतांत्रिक व्यवहार बनाम मुस्लिम भेड़चाल

मुसलमानों से जुड़े किसी भी मुद्दे पर जितने गैरमुसलमान विपक्ष में होते हैं उससे कहीं ज्यादा उसके पक्ष में होते हैं और ज़ाहिर है इसमें हिन्दू ही ज्यादा होते हैं लेकिन हिन्दुओं से जुड़े ज्यादातर मुद्दों पर मुसलमान एकमुश्त विरोध करते हैं।
मसलन मेमन को फाँसी के मुद्दे पर यह अंतर करना मुश्किल था कि यह मामला मुसलमानों का है या हिन्दुओं या पूरे देश का।लेकिन कश्मीरी हिन्दुओं के जातिनाश के मामले पर कितने मुसलमान आपको हिन्दू-पीड़ितों के साथ खड़े दिखे हैं?
हिन्दुओं के लोकतांत्रिक व्यवहार और मुसलमानों की भेड़चाल का रहस्य क्या हैं? इस केमिकल लोचा की जड़ कहाँ है?

#हिन्दू #मुसलमान #हिन्दुत्व #इस्लाम #एकमुश्त_विरोध #एकमुश्त_समर्थन #मुसलमानों_की_भेड़चाल #केमिकल_लोचा #याकूब_मेमन #कश्मीरी_हिन्दू #जातिनाश #लोकतांत्रिक_व्यवहार #पक्ष #विपक्ष #गैरमुसलमान

सेकुलर-लिबरल सहिष्णु जनों से कुछ ज़ाहिलिया सवाल

सेकुलर-लिबरल सहिष्णु जनों से कुछ ज़ाहिलिया सवालः

1. कश्मीर से हिन्दुओं के बेवतन किये जाने पर आपके तथ्य क्या कहते हैं?
2. अब्दुल कलाम के बनिस्बत  याकूब मेमन को मिले जबर्दस्त समर्थन पर आपकी क्या दृष्टि है?
3. शाहबानो केस में 'शहीद' हुए आरिफ मुहम्मद खान के राजनीति से जलावतन हो जाने और अधिसंख्य मुसलमानों द्वारा नकार दिये जाने पर आपकी क्या राय है?
4. टीवी पर अपना पक्ष रखने के लिए हिन्दू-सिख-ईसाई-जैन-बौद्धों में से विशेषज्ञ बुलाये जाते हैं जबकि मुसलमानों में से सिर्फ कठमुल्ले, क्यों?
5. अब्दुल कलाम या रसखान या रहीम या कबीर या दारा शिकोह जैसे लोग मुसलमानों के आइकाॅन क्यों नहीं हैं?

सेकुलर-लिबरल-लेफ्ट मित्रों कुछ बोलिए तो सही, मुँह में दही जमाकर बैठने पर 'असहिष्णुता' फैलती चली जाएगी और असहिष्णु लोग उजाले पर अंधकार का राज कायम करने में सफल हो जाएँगे।
फिर आईएसआईएस, तालिबान, अलक़ायदा जैसे संगठनों के साथ कितना अन्याय हो जाएगा?
कश्मीर के मुसलमान फिर से दुखी हो जाएँगे और इस बार पूरे हिन्दुस्तान से हिन्दुओं के निकाले जाने की गुहार संयुक्त राष्ट्र से लगाने लगेंगे।