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Sunday, May 8, 2016

ममत्व की सुपारी नहीं है नारी के नाम!



माँ बनना एक जैविक प्रक्रिया है और माँ होना या ममत्व एक समाज-मनोवैज्ञानिक क्षमता जिसके लिए औरत होना आवश्यक नहीं।एक जन्मजात है तो दूसरी अर्जित या नैसर्गिक या दोनों।
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पति की माँ मे माँ की तलाश की शुरुआत तब होती है जब आपकी सास ने आपमें बेटी की तलाश की हो।लेकिन हमेशा शुरुआत ऐसी ही हो जरूरी नहीं।जो जागे सबेरा उसी का, जभी जागो तभी सबेरा।
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वैसे मुझे दुनिया के सबसे बड़े अधूरे सच में से एक यह लगता है कि 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो' या दया-उदारता-ममता का सागर हो।
अर्द्धसत्य इसलिए कि यह बात एक औसत नारी अपनी संतानों पर लागू करती है, दूसरों की संतानों पर नहीं।
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इसके बरक्स एक औसत पुरुष दूसरों की संतानों के प्रति एक औसत नारी से ज्यादा उदार होता है और यही उदारता उसे और उसके पूरे परिवार को सामाजिक स्वीकार्यता दिलाती है।
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इस प्रकार दया-ममता का क्रेडिट कुछ इस तरह है कि परिवार की ईकाई में औरत का पलरा भारी है तो समाज में पुरुष का।दोनों  मिलकर ही समाज के दया-माया-उदारता के कोटे को बमुश्किल पूरा कर पाते हैं!
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जिन समाजों में माँ-बाप के लिए यथोचित समय नहीं है वहाँ उनका मन रखने और उनके महत्व को रेखांकित करने के लिए मातृ-पितृ दिवस जैसी चीज़ें अक्सर मिल जाती हैं और जरूरी भी हैं।ऐसा ही समाज वृद्धाश्रम की जरूरत भी पैदा करता है क्योंकि संतानों के दिल में माँ-बाप के लिए जगह नहीं होती।
#MothersDay #OldAgeHome #Motherhood #SocialCompassion 

Monday, May 2, 2016

ईमानदारी का मतलब एहसास फरामोश थोड़े न होता है?

संताःघोर ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रहते अगस्ता वीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाला कैसे हो गया?
बंता: ईमानदारी का मतलब एहसास फरामोश थोड़े न होता है?
संता: मतलब?
बंताः जिसने प्रधानमंत्री बनाया उसका भी तो कर्ज अदा करना था!
संताः यानी?
बंताः छड्ड यार, तू भी नऽऽऽ...खैर सोशल मीडिया भक्तों की तरह तू इसका मतलब AG-OG  मत निकाल लेना।

तभी तो एG ओG सारे घोटाले बड़े आराम से हुए

संताः जो भी ही मनमोहनसिंह जी बड़े ईमानदार प्रधानमंत्री थे।
बंताः तभी तो एG ओG सारे घोटाले बड़े आराम से हुए।
संताः मतलब?
बंताः पारस पत्थर के छूने मात्र से जैसे लोहा सोना बन जाता है वैसे ही सिंह साहब के साये में सारे घोटालेबाज मंत्री पुण्यात्मा हो गए।
संताः लेकिन सुना है कि बड़े-बड़े पत्रकार भी उसमें शामिल थे?
बंताः वैसे ही जैसे भोज के बाद पत्तल चाटनेवाले कुत्ते।

हिंसा परमो धर्मः

 
हिन्दू अब कट्टर होते जा रहे हैं
क्योंकि
शांतिप्रिय मुसलमानों द्वारा बलात्कार, नरसंहार और बर्बरता को राजनीति सेकुलर करार देती है...
हिन्दू अब कट्टर होते जा रहे हैं
क्योंकि
दया के सागर ईसाई मिशनरियों के छलप्रपंच और हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान को राजनीति सेकुलर करार देती है...
हिन्दू अब कट्टर होते जा रहे हैं
क्योंकि
पेशेवर देशतोड़क और हिन्दू-विरोधी वामपंथियों को राजनीति सेकुलर करार देती है...
हिन्दू अब कट्टर होते जा रहे हैं
क्योंकि
अपने ही देश हिन्दुस्तान में वे खुद को दोयम
दर्जे का नागरिक महसूस करने लगे हैं...
हिन्दू अब कट्टर होते जा रहे हैं
क्योंकि
उनके अपमान, नरसंहार और बलात्कार के लिए उन्हीं को दोषी बताया जा रहा है...
हिन्दू अब कट्टर होते जा रहे हैं
क्योंकि
कट्टरपंथियों से निबटने के लिए कट्टर होने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है ...
हिन्दू अब निस्संदेह कट्टर होते जा रहे है
क्योंकि
यह कट्टरता उनका आपद् धर्म बन गई है...
हिन्दू अब हिंसक हो रहे हैं
क्योंकि
हिंसा और प्रपंच को ही 'धर्म' समझनेवालों को नेस्तनाबूद करना आज उनका परम धर्म हो गया है ...
हिन्दू अब निस्संदेह हिंसक हो रहे हैं
क्योंकि
उनके नवजागरण का मंत्र है:
हिंसा परमो धर्मः।

सेकुलर ब्रिगेड और सिग्नोरा गाँधी में क्या समानता है?


जेएनयू में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह' कहने वालों के साथ खड़े सेकुलर ब्रिगेड और अगस्ता हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले में सिग्नोरा गाँधी का बचाव करनेवालों में क्या समानता है?
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अब यह मत पूछियेगा कि सिग्नोरा गाँधी कौन हैं?
मोहनदास करमचंद गाँधी के 24-कैरेट असली वंशज
या
पंडित जवाहरलाल नेहरू की गाँधी- डाएनेस्टी से?

फेसबुकिया मुसलमान मित्रों से 11 सवाल

 
इधर काफी सेकुलर मित्रों ने निजी बातचीत में अपनी दुविधा जाहिर करते हुए कहा कि यार एक औसत मुसलमान बातचीत के बीच में दो-चार मिनट के अंदर ही कुराने पाक या शरिया घुसेड़ देता है, अब आगे क्या बात करें।
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इस पर मैंने कहा कि तर्क और तथ्य के साथ अपनी बात ईमानदारीपूर्वक क्यों नहीं रखते? जवाब था कि उनकी किताबें तर्कातीत हैं।
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फिर मैंने कहा कि ऐसा तो इस्लामी देशों में होता है, हिन्दुस्तान तो एक लोकतंत्र है।इस पर उनका कहना है कि ऐसी बातों पर कौन जाए अपना संबंध खराब करने।सबको पता है कि सामाजिक मुद्दों पर मुसलमान तर्क से नहीं किताब से काम लेते हैं।
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अब सवाल उठता है कि क्या सारे पढ़े-लिखे मुसलमान ऐसे ही हैं? विश्वास तो नहीं होता।फिर भी घोषित तरक्की पसंद फेसबुकिया मुसलमानों को जानने-समझने के लिए आप कुछ सवाल पूछ सकते हैं:
1. गोधरा-हत्याकांड पर आपकी कोई पोस्ट?
2. हाजी अली पर कोई पोस्ट?
3. कश्मीर से हिन्दुओं के जातिनाश पर पोस्ट?
4. हिन्दुओं के हजारों मंदिरों के ध्वंश पर पोस्ट?
5. अयोध्या विवाद पर कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा प्रस्तुत फर्जीवारे पर कोई पोस्ट?
6. फिर इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर कोई पोस्ट?
7. शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर शरिया को प्रधानता देनेवाले संवैधानिक संशोधन पर कोई पोस्ट?
8. अख़लाक़ की हत्या पर हंगामा और पुजारी की हत्या पर चुप्पी पर कोई पोस्ट?
9. इस्राइल में मुसलमानों पर अत्याचार पर हंगामा और पाकिस्तान में शिया तथा बलुचियों के नरसंहार पर चुप्पी पर कोई पोस्ट?
10. पाकिस्तान -बाँग्लादेश में हिन्दुओं की तेजी से घटती आबादी पर कोई पोस्ट?
11. याकूब मेमन, अफ़ज़ल गुरु , दाऊद इब्राहीम, बग़दादी, लादेन, औरंगजेब, ग़ज़नी तथा मुहम्मद ग़ोरी को आइकाॅन माननेवालों और संत कबीर, रहीम, रसखान, बुल्लेशाह, आरिफ मोहम्मद ख़ान, ए आर रहमान एवं अब्दुल कलाम जैसों को समाजी तौर पर फ़ालतू माननेवालों पर कोई पोस्ट?
अगर ऐसा नहीं तो हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात बेमानी है।अलतकिया है , और कुछ नहीं ।

हमारी शिक्षा हमें कामचोर और काॅमनसेंसविहीन बनाती है?

क्या आपको भी लगता है कि:

हमारी शिक्षा हमें कामचोर ही नहीं बनाती बल्कि काॅमनसेंस से भी वंचित करती है?
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आत्महीनता की कुंठा से ग्रस्त ही नहीं करती बल्कि देशविरोधी भी बनाती है?
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हमारी शिक्षा-प्रणाली में गंभीर डिजाइन-डिफेक्ट है जिस कारण हर बाहरी चीज़ प्यारी और देसी फ़ालतू लगती है?
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हमारे ज्यादातर शिक्षक बौद्धिक कायरता की जीती-जागती प्रतिमाएँ है?
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"चन्द्रगुप्त तो यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं लेकिन उन्हें पहचानने-सँवारने वाला चाणक्य नदारद सा है?"

आपके जवाब की प्रतीक्षा में इस आशंका के साथ कि मेरी फेसबुक- मंडली के ज्यादातर शिक्षक अपनी जगजाहिर बौद्धिक कायरता से बाज़ नहीं आएँगे ।

दू पैसा के सतुआ आधा गो पियाज गे ...

"दू पैसा के सतुआ आधा गो पियाज गे
पत्थर फोड़े जैबै भौजी जमालपुर पहाड़ गे।"

(सौजन्यः Raj Kishor Sinha )

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यहाँ पत्थर फोड़ने के प्रति जो रागात्मक लगाव है वह श्रम के सौन्दर्य की प्रतिष्ठा करता है जैसे कबीर को अपने जुलाहा होने पर गर्व था।
लेकिन यह बात अंग्रेज़ों की मानस संतान शूद्र-विरोधी 'दलित' क्या समझेंगे? दलित- दमित या कुचला हुआ कहलाये जाने की आकाँक्षा रखना एक मानसिकता है जो लाईलाज है।
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सोये हुए को जगाया जा सकता है, सोने का नाटक करनेवाले को नहीं।
अगर वह जग गया तो उसे सोते हुए दिखने की सुपारी के पैसे वापस करने पड़ेंगे जो आकाओं ने उन्हें दिए हैं।

लालू-कन्हैया की जोड़ी: सेकुलर भाय-भाय, नंगा डरे खुदाय

लालू-कन्हैया: नंगा डरे खुदाय

जेएनयू छात्रसंघ के क्रांतिकारी अध्यक्ष कन्हैया कुमार को पटना में चारा घोटाला अध्यक्ष लालू प्रसाद से चरणामृत लेते देख
लल्लू टाइप लोग सिर धुनने लगे: भाई,
नंगेपन की भी हद होती है!

इन्हें कौन समझाये कि सेकुलरबाज़ों का तो उसूल है: नंगा डरे खुदाए! तभी तो कन्हैया बाबू जेएनयू के नियमों को धता बताते हुए उनके साथ खड़े हो गए जिनका नारा-ए-तकबीर था:
"भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह"।

जब इससे भी मन नहीं भरा तो उन्होंने आजादी माँगी:
"कश्मीर माँगे आजादी
बंगाल माँगे आजादी
केरल माँगे आजादी"।

इस पर सेकुलर दास से रहा नहीं गयाः आखिर लालू प्रसाद को भी तो 'चारा खाने की आजादी' चाहिए।गाय-भैंस के प्रति गहन संवेदना के चलते गरीबों के मसीहा ने अन्न छोड़ चारा ग्रहण करने का व्रत क्या लिया कि मनुवादियों का सिंहासन हिलने लगा।ऐसे में सेकुलर-एकता जरूरी है कि नहीं?

सेकुलर दास का इतना कहना था कि लल्लू टाइप लोग कंट्रोल से बाहर हो गए:
भई हमने इनके नंगेपन को इन्हीं की भाषा में उजागर कर दिया तो ये "अखलाक उल्लाह,  अखलाक उल्लाह" कहते हुए मूसबिल्लों की तरह बाहर निकल बिलबिलाने लगे। लेकिन हम भी अपने तेल पिलाए डंडों से दे तरातर करने में कोताही नहीं करेंगे।

मैंने पूछा: क्या आप इन पर हमले करेंगे? वे अधरोष्ठों में मुस्कराये फिर कहने लगे: हम इनके दोहरेपन के खिलाफ विमर्श जेहाद करेंगे।
घोटालेबाज़ ये, अपराधी ये, देशतोड़क ये, दंगाई ये, सांप्रदायिक ये, बलात्कारियों के पालक ये, नरसंहारी ये, वंशवादी ये फिर भी  सेकुलर और लोकतांत्रिक भी ये ही?

अब लल्लू सरदार को कौन समझाये कि जीवन भर के पाप सेकुलर-गंगा में एक डुबकी मात्र से धुल जाते हैं और श्रद्धालु फ्रेश होकर भ्रष्टाचार और अपराध के अगले अभियान पर निकल पड़ता है।

मैंने जब यह कहा कि सेकुलरबाज़ों की अमेरिकी और यूरोपीय मम्मियाँ उनपर काफी लार बरसाती रही हैं तो लल्लू सरदार अपनी हँसी रोक नहीं पाए:
बकरे की माँऽऽऽ कबतक खैर मनाएगीऽऽऽ?