अब तो छुट्टी माँगता!
पिछले 26 महीनों के इस फेसबुकिया सफर में आपने मेरी लगभग 1200 पोस्टें पढ़ीं,
उसपर कुछ कहने का समय निकाला,
उसे लाइक किया या बगैर बटन दबाये उसे पढ़ा
और न जाने मुझे क्या-क्या सिखाया।
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सैकड़ों किताबों से गुजरकर 40 सालों में जो बातें ओझल रहीं उन्हें आपने इस दौरान मानों जिन्दा ला खड़ा किया।
कुछ ने कह के सिखाया तो ज्यादातर ने अपने मौन से सँवारा।
कुछ लोग आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया में मित्र हो गए तो कुछ दशकों के बिछड़े मित्र आ मिले।
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जो चीज़ हम सबमें कॉमन थी वह है 'विमर्श-जेहाद', जिसे एक अवधारणा के रूप में पहली बार दोस्त Sumant Bhattacharya की वाल पर पढ़ा।
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आप सबने मुझसे मेरा परिचय कराने में जो रोल अदा किया है उसके लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं।
देश के इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, राजनीति, साहित्य, संस्कृति, कला और सबसे ऊपर इसके भविष्य को लेकर जो तड़प मैंने आपमें पाई है वह वाणी से परे है।
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यह साफ लगने लगा है कि आप जैसे लाखों बुद्धियोद्धाओं ने इस विशाल देश की गाड़ी को सही अर्थों में नवजागरण के राजमार्ग पर चला दिया है। इससे मिली खुशी को समेटने के लिये भी एक उम्र चाहिए।
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इसलिए अब तो विमर्श-जेहाद के साथ-साथ अपुन को
उत्सवधर्मी होना माँगता,
आपके लिये प्रार्थनाएँ करना माँगता,
आप सबको बड़ी-से-बड़ी लकीर खिंचते देखना माँगता,
आँखे मूँदकर आपको महसूसना माँगता,
आपके लिखे को पढ़-पढ़कर चोरी-चोरी आनंदित होना माँगता,
और यह सब करन वास्ते छुट्टी माँगता!
आपका अपना,
चन्द्रकान्त।
30।12।16